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Thursday, 19 December, 2024
होममत-विमतफैब इंडिया और शमी के मामले दिखाते हैं कि भारत किस हद तक हिंदुत्व और नरम हिंदुत्व के बीच फंस गया है

फैब इंडिया और शमी के मामले दिखाते हैं कि भारत किस हद तक हिंदुत्व और नरम हिंदुत्व के बीच फंस गया है

मोहम्मद शमी या फैब इंडिया के लिए समर्थन की आवाज़ें इस हकीकत को दबा नहीं सकतीं कि आज भारत की हवा में जो जहर घुला हुआ दिख रहा है उसके लिए भाजपा के साथ-साथ विपक्षी दल भी जिम्मेदार हैं.

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रविवार को क्रिकेट के टी-20 विश्वकप में पाकिस्तान के हाथों भारत की हार के बाद सोशल मीडिया में भारतीय तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी के खिलाफ और फैब इंडिया ब्रांड के ‘जश्न-ए-रिवाज ’ विज्ञापन के खिलाफ जिस तरह नफरत भरे सांप्रदायिक हमले किए गए उससे शायद ही किसी को आश्चर्य हुआ होगा. फैब इंडिया को तो मजबूरन वह विज्ञापन वापस लेना पड़ा. आखिर, भारत में आज उग्र बहुसंख्यकवादी भावनाएं हावी हो चुकी हैं और राजनीति के बस दो रंग रह गए हैं- आक्रामक हिंदुत्ववाद और नरम हिंदुत्ववाद.

आक्रामक हिंदुत्ववाद भाजपा ने 1990 के दशक के प्रारंभ में शुरू कर दिया था, जिसे इसके वर्तमान नेतृत्व ने और मजबूती देकर असहिष्णुता का नया दौर ला दिया है जिसमें भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिवेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ निरंतर नफरत की मुहिम चलाई जा रही है. इस सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का विपक्ष ने शायद ही कोई बड़ा मुकाबला किया है. भाजपा के जवाब में खुद उसने हिंदुत्ववाद का अपना संस्करण शुरू कर दिया, जो नरम और कम आक्रामक है लेकिन स्पष्ट, अवसरवादी और सच कहें तो हताशा से उपजा हुआ दिखता है.

शमी या दूसरों के समर्थन में लोगों का सामने आना स्वागत योग्य और जरूरी भी है लेकिन ऐसे तमाम बयान इस तथ्य को मिटा नहीं सकते कि भाजपा के साथ विपक्ष ने भी देश में माहौल को जहरीला बनाने में अपनी भूमिका निभाई है. इसे ताकत बहुसंख्यकों के वर्चस्व की भावना और राजनीतिक दलों द्वारा प्रमुख धार्मिक समुदाय के तुष्टीकरण से मिलती है.


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फैब इंडिया से शमी तक

फैब इंडिया ने दीपावली के मौके पर शायराना किस्म के शीर्षक ‘जश्न-ए-रिवाज ’ के तहत एक मनोहारी विज्ञापन जारी किया था. कंपनी को अंदाजा नहीं था कि शीर्षक को लेकर ही उस पर इतना हमला किया जाएगा कि उस विज्ञापन को वापस लेना पड़ेगा.

ट्विटर पर देखते-देखते ही #बायकॉटफैबइंडिया छा गया. भाजपा नेताओं ने फैब इंडिया पर आरोप लगाना शुरू कर दिया कि वह दीपावली को बदनुमा बना रही है और एक हिंदू पर्व में ‘मुस्लिम विचार’ को शामिल कर रही है.

भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या का यह दावा ही सब कुछ साफ कर देता है कि यह विज्ञापन ‘हिंदू पर्वों का जानबूझकर अ-ब्राह्ममणीकरण करने की एक कोशिश है’. दरअसल, ‘मुस्लिम किस्म’ का नाम ही नापसंद है और इसे हिंदू भावनाओं के लिए असहनीय माना जाता है.

अभी यह विवाद ठंडा भी नहीं हुआ था कि भारत कA टी-20 क्रिकेट मैच में पाकिस्तान के हाथों शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा, मुसलमान होने के कारण मोहम्मद शमी को निशाना बनाया गया. इंस्टाग्राम पर उनके खिलाफ जिस तरह के हमले किए गए वे घोर निंदनीय हैं, जिन्होंने कई लोगों को उनके बचाव में आगे आने को मजबूर कर दिया. किसी धर्म विशेष का होने के कारण उनके समर्थन में लोगों को सामने आना पड़ा, यह बताने को काफी है कि देश किस रसातल को छू रहा है.

ये दो ताजा उदाहरण हैं जो यह बताने के लिए काफी हैं कि बहुसंख्यकों का अत्याचार किस तरह बेकाबू हो रहा है और मुस्लिम विरोधी भावना का जहर कितनी गहराई तक पैठ गया है. पिछले कुछ वर्षों में ऐसे इतने ज्यादा मामले हो चुके हैं कि इस प्रवृत्ति की अनदेखी नहीं की जा सकती, चाहे वे मामले ‘गोमांस’ या चोरी के नाम पर मुसलमानों की भीड़ द्वारा बर्बर पिटाई और हत्या के हों, या ‘लव जिहाद’ जैसी मुहिमों के हों या हिंदुत्व से इतर बातों के खिलाफ ऑनलाइन नफरत उगलने के अभियान हों.


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विपक्ष भी उतना ही दोषी

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने शमी का समर्थन करते हुए उन पर ऑनलाइन हमले की निंदा की है. लेकिन इससे यह तथ्य नहीं छिपता कि विपक्ष ने भाजपा को अपना एजेंडा लागू करने, हिंदुत्व के वर्चस्व को स्थापित करने और बहुसंख्यकों के स्वर को भारत का प्रमुख आख्यान बनाने में हर तरह से मदद ही की है. वह खुद को सांत्वना भले दे सकता है कि उसका हिंदुत्व उतना जहरीला या ध्रुवीकरण करने वाला नहीं है जितना नरेंद्र मोदी की भाजपा का है. लेकिन सच यही है कि विपक्ष ने चुनावी लाभ के लिए और राजनीतिक कल्पनाशीलता की कमी के चलते खुशी से उसी का राग अलापना शुरू कर दिया.

इसलिए, राहुल गांधी जनेऊधारी ब्राह्मण बन जाते हैं, अहम विधानसभा चुनावों से पहले मंदिर-मंदिर घूमना शुरू कर देते हैं और चुनाव अभियान शुरू होते ही शिव के धाम की तीर्थयात्रा तक कर लेते हैं. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने मेरे सहकर्मी डी.के. सिंह से अगस्त 2018 में ही कहा था, ‘राहुल गांधी नरम हिंदुत्व नहीं बल्कि असली हिंदुत्व का पालन कर रहे हैं.’

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इन दिनों अयोध्या में राम जन्मभूमि में पूजा-अर्चना कर रहे हैं और इसके कुछ महीने बाद ही उनकी ‘आप’ पार्टी इस धार्मिक नगरी में ‘तिरंगा यात्रा’ निकालने जा रही है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य विधानसभा चुनाव के दौरान ‘चंडी पाठ’ करके यह प्रमाण पेश किया था कि वे हिंदू हैं.

गौरतलब है कि केजरीवाल और ममता, मोदी के सबसे मुखर विरोधी हैं और आज उनके सबसे मजबूत प्रतिद्वंदी हैं. अपने-अपने राज्य में हिंदुत्व के रथ की गति भंग करने वाले ये दो नेता भी राजनीतिक लाभ के लिए अगर हिंदुत्व का पत्ता खेलते हैं, तो डूबती कांग्रेस अगर हिंदुत्व को जीवनरक्षक नाव मान ले तो क्या आश्चर्य!

सपा के अखिलेश यादव भी मंदिरों की दौड़ लगा रहे हैं, तो बसपा प्रमुख मायावती ने उत्तर प्रदेश विधानसभा के आगामी चुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर देने के लिए अपनी दलित राजनीति में हिंदुत्व की छौंक लगाई है. और तो और, माकपा भी केरल में हिंदुत्व का सहारा ले रही है.

दरअसल, भाजपा ने भारतीय राजनीति को हिंदुत्व के रंग में रंग दिया है. और विपक्ष इससे लड़ने की जगह इसी दांव को सीख गया है और उसे आजमा रहा है. यह राजनीति सामाजिक ताने बाने और रोजाना की जिंदगी में भी समा गई है और इसने हमारे विमर्श को बहुसंख्यकों के ‘अधिकार’ बनाम अल्पसंख्यकों से आशंकित ‘खतरों’ में बांट दिया है. साफ कहें तो भारत को बहुसंख्यकवादी देश में, जिसमें मुसलमान से दूर से भी जुड़ी हर चीज को बुरा माना जाता हो, बदल देने की भाजपा की कोशिशों को सहारा देने और उन्हें आसान बनाने का काम ही करता रहा है.

जब हरेक राजनीतिक दल हिंदुओं के तुष्टीकरण में जुटा है और उनके वोट बहुमूल्य मान रहा हो, तब मोहम्मद शमी को तो इसका शिकार बनना ही पड़ेगा.

शमी और फैब इंडिया इस चलन के सबसे ताजा भुक्तभोगी भर हैं, वे उस व्यापक दुर्भावना के ताजा शिकार हैं जो देश के सामाजिक और राजनीतिक दायरों में इतनी गहराई तक पैठ गई है कि उसे मिटाना असंभव नहीं, तो बेहद टेढ़ी खीर साबित हो सकती है. विपक्ष इन मामलों के खिलाफ केवल बयान देकर और सद्भावना भरे ट्वीट करके अपनी पीठ नहीं ठोक सकता, जबकि ऐसे मामले सांप्रदायिकता की आग को और भड़का चुके हैं. उसे आईने में झांकने और यह कबूल करने की जरूरत है कि देश को असहिष्णु और संकीर्ण सोच वाला बनाने में भाजपा के साथ ही उसका भी हाथ है.

(व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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