आप भारतीय धर्मनिरपेक्षता को कितना वक्त देंगे? अगर आपने यह सवाल मुझसे पांच पहले पूछा होता तो मैंने कहा होता कि हमारी धर्मनिरपेक्षता की कोई समय सीमा नही है. यह तो भारत का दिल है. उसके बिना तो आधुनिक, लोकतांत्रिक भारत का वजूद ही नहीं है.
अब मुझे इस पर पूरा यकीन नहीं है.
समस्या यह नहीं है कि हम सांप्रदायिक मार-पीट या दंगों में उछाल देख रहे हैं. समस्या यह है कि दुनिया के सबसे महान, सबसे सहिष्णु धर्म के अनुयायी हिंदू लोग अल्पसंख्यक मुसलमानों को निशाना बनाने या उनके साथ दूसरे दर्जे के नागरिक या यहां तक कि दुश्मन की तरह पेश आने की बार-बार कोशिशों से हैरान या भयभीत नहीं हो रहे हैं.
हर दिन कुछ नई डरावनी कहानी आ धमकती हैं. गुजरात में पुलिस वाले कुछ मुसलमानों की सरेआम पिटाई करते हैं जो तथाकथित ‘हिंदू विरोधी गतिविधियों’ में शामिल थे, और साथ खड़ी भीड़ जयकारा लगाती है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के एक सांसद मुसलमानों के आर्थिक बायकॉट की बात करते हैं. पुलिस थाने के अंदर मुसलमानों की पिटाई का वीडियो वायरल हो रहा है. नेता मुस्लिम विरोधी बयान (कभी-कभी संकेतों में, कई बार एकदम खुलकर) उगलते हैं. मुसलमानों को गरबा से बाहर निकाल दिया जाता है, जो ऐसा अवसर हुआ करता था, जब हर जाति-धर्म के लोग एक साथ मिलकर जश्न मनाया करते थे.
जो लोग ऐसा करते हैं, वे बहुसंख्यक हिंदू नहीं हैं जो सहिष्णु हैं और नफरत से दूर हैं. लेकिन यह गौर कीजिए कि हर बीते हफ्ते के साथ, सामान्य हिंदू नफरत और पूर्वाग्रह की ऐसी घटनाओं पर चौंकता नहीं है. हर नई घटना हमें थोड़ा और निर्दयी बनाती जाती है. हम ऐसी स्थिति की ओर बढ़ रहे हैं, जब यह सब सामान्य लगने लगेगा और थोड़ा-सा भी चौंकाने वाला या परेशान करने वाला नहीं होगा.
विपक्ष पहले ही स्वीकार कर चुका है कि ऐसी नफरती वारदातों का विरोध करने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है. आप कांग्रेस से विरोध की कुछ आवाजें उठते सुनते हैं, लेकिन वे भी पहले से कुछ ज्यादा ही मुंह सिए रहते हैं. आम आदमी पार्टी (आप) तो इतनी चुप है कि मुझे कई बार हैरानी होती है कि कहीं अरविंद केजरीवाल का प्लान-बी हिंदू महासभा का महासचिव बनने का तो नहीं है. टीवी एंकर ऐसे पेश आते हैं जैसे यह सब सामान्य हो या इशारा करते होते हैं कि मुसलमानों के साथ तो यह सब होना ही था.
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पूर्वाग्रह की जड़ें
नफरत की वजहें और पूर्वाग्रह का नंगा, हिंसक प्रदर्शन के प्रति उदासीनता मुझे हमेशा हैरान करती रही है. 1920 के दशक में, हिंदुत्व की राजनीति के शुरुआती दिनों में, इसे राजनीतिक प्रतिष्ठान की मुसलमानों के ‘तुष्टीकरण’ के खिलाफ प्रतिक्रिया माना जाता था. और हां, इससे इनकार करना मूर्खता होगी कि वोट-बैंक की राजनीति की शिकायत की वजहें थीं. पर अब? कौन यह कह सकता है कि आज के भारत में मुसलमानों को खुश या तुष्ट किया जाता है? वह शिकायत अब कहां है.
फिर, इस्लाम से जुड़ा आतंकवाद और हिंसा भी पूर्वाग्रह का कारण बनी. लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था, ‘सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं, लेकिन सभी आतंकवादी मुसलमान हैं.’
इस उपमा ने मुसलमानों को हिंसा से जोड़ा (जैसा अमूमन समूचे समुदाय को ‘जिहादी’ बता दिया जाता है) और अंतत: पाकिस्तान के साथ जोड़ दिया.
खैर, भारत में बड़े आतंकी हमले हुए कुछ समय बीत गया है जिसका दोष मुसलमानों पर मढ़ा जा सकता है. इन दिनों नेता पाकिस्तान की रट कुछ कम लगाने लगे हैं. इसलिए पुरानी बातों का कोई मतलब नहीं है, जो कभी हुआ करता होगा.
दरअसल, मुसलमानों पर दोष मढ़ना लगातार मुश्किल होता जा रहा है, इसीलिए अब कट्टर तत्व इतिहास में तलाश रहे हैं. हमें बताया जाता है कि सदियों पहले कोई मुस्लिम शासक हिंदुओं के प्रति बड़ा क्रूर था. या, सैकड़ों साल पहले फलां मस्जिद उस जगह बनाई गई थी, जहां मंदिर हुआ करता था.
तो, नया नारा है: चलो, मुस्लिम उपासना स्थलों पर हमला बोलो, मध्यकाल में मुसलमानों के बनाए स्मारकों को तवज्जो न दो, या दावा करो कि उन्हें हिंदुओं ने बनाया और मुसलमानों ने कब्जा कर लिया, यह न भूलो कि 16वीं सदी में हिंदुओं के साथ कैसा बुरा बर्ताव हुआ, वगैर-वगैरह. जब आपको आज के मुसलमानों को बदनाम करने के लिए इतिहास में इतना पीछे जाना पड़े, तो समझिए कि आपके पास आज उनके खिलाफ एक भी शिकायत नहीं.
और अब, एक नया शगल है: हिंदू देवी-देवताओं का अनादर. आप पाएंगे कि यह बार-बार उभर आता है. कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी को क्यों गिरफ्तार किया गया? क्योंकि उसे अगर रोका न जाता तो वह हिंदू-देवताओं का मजाक उड़ाता. गुजरात में मुसलमानों को क्यों पीटा गया? क्योंकि वे ‘हिंदू देवताओं का अपमान’ कर रहे थे.
मुसलमानों के बारे में सबसे हालिया शिकायतों में- मसलन, आमिर खान की नई फिल्म लाल सिंह चड्ढा में सेना और हिंदू भावनाओं का आहत करने का आरोप- इशारा यह है कि उन्होंने हिंदू धर्म और देवी-देवताओं का अपमान किया.
उपद्रव की तलाश
और निशाने पर सिर्फ मुसलमान ही नहीं है. कट्टरपंथी ऐसे पेश आ रहे हैं, मानो हिंदू देवी-देवताओं को सभी धर्मों और निचली जातियों के लोगों से बचाव के लिए ट्रोल आर्मी और ठगों की जरूरत है. आप ने दिल्ली के मंत्री राजेंद्र पाल गौतम को हंगामे के बाद बर्खास्त कर दिया, क्योंकि उन्होंने शपथ ली थी कि दलित हमेशा बौद्ध धर्म अपनाते हैं. इसे हिंदू देवी-देवताओं का अपमान माना गया. हालांकि भीमराव आंबेडकर ने स्वयं यह शपथ ली थी, और उन्हें आज भी आप और बीजेपी दोनों आदर देते हैं. लेकिन, जब हिंदू देवी-देवताओं के कथित अपमान की तलाश करनी हो तो इससे क्या फर्क पड़ता है.
वह समाज कितनी मुश्किल में है जब बिना उकसावे के नफरत के शोले भड़काए जाते हैं, जब असली वजहें खोजे न मिलें तो झूठी वजहों की तलाश की जाती है, और जब राजनीतिक नेता अल्पसंख्यकों को चुनकर उन्हें अपमानित करते हैं तो उसके लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं?
मैं कहूंगा कि जब ऐसा हो, तो हम गहरे, गहरे संकट में हैं. मैं इसे नाजी जर्मनी जैसा नहीं बताना चाहता, क्योंकि कम से कम अब तक, वे उस जैसे नहीं हैं. लेकिन तालिबान और कट्टरपंथी इस्लामवाद के साथ समानताएं जरूर हैं. विडंबना देखिए कि घोर नफरती तत्व भारत के मुसलमानों की तो तौहीन करते हैं, मगर सीख विदेशी इस्लामी कट्टरपंथियों से ही लेते हैं.
इस सब में मूल धारणा यह है कि मुसलमान यह सब चुपचाप सह लेंगे, और बाकी दुनिया खामोश रहेगी.
मुझे नहीं मालूम कि बाकी दुनिया की क्या प्रतिक्रिया होगी. कम से कम अब तक तो यही प्रतिक्रिया रही है कि चाहो तो अपने मुसलमानों पर हमला करो, लेकिन अगर इस्लाम के खिलाफ बोलोगे तो हमें दिक्कत होगी. नूपुर शर्मा के प्रकरण में हमने देखा कि ऐसा होने से नतीजे फौरी और बेहद बेइज्जती वाले हो सकते हैं.
लेकिन, क्या हम सचमुच यह उम्मीद करते हैं कि लगातार तौहीन उठाकर भी कोई अल्पसंख्यक चुप रहेगा? किसी मौके पर तो भावनाएं भडक़ेंगी. और जब वह होगा, तो हिंदू समुदाय में प्रतिशोध और घृणा की आग और जलेगी. लिहाजा, यह ऐसे सामाजिक टकराव को जन्म देगा, जिसे कोई भी समाज झेल नहीं सकता.
इसलिए हां, मैं भारतीय धर्मनिरपेक्षता के भविष्य को लेकर कम से कम आशान्वित हूं. इसलिए नहीं कि औसत हिंदू धर्मनिरपेक्ष नहीं है. वह यकीनन है, लेकिन रोजाना पूर्वाग्रह और नफरत की वारदातों की घुट्टी से हिंदू समुदाय निर्दयी और उदासीन होता गया है, वे भूल गए हैं कि किसी भी सभ्य समाज के फलने-फूलने के लिए, बहुसंख्यकों को सभी लोगों के अधिकारों के लिए खड़ा होना चाहिए, चाहे वे किसी भी धर्म के हों.
इस सिद्धांत को भूल जाइए, और आप तो उन मूल्यों को भी भूल बैठे हो, जिनकी बुनियाद पर आधुनिक भारत की स्थापना हुई.
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(वीर सांघवी भारतीय प्रिंट और टीवी पत्रकार, लेखक और टॉक शो होस्ट हैं. उनका ट्विटर हैंडल @virsanghvi है. व्यक्त विचार निजी हैं)
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