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Friday, 3 May, 2024
होममत-विमतचीन के 'चमत्कारी' आर्थिक वृद्धि के दौर को खत्म कर सकता है एवरग्रांदे कंपनी का संकट

चीन के ‘चमत्कारी’ आर्थिक वृद्धि के दौर को खत्म कर सकता है एवरग्रांदे कंपनी का संकट

चीन की इस विशाल हाउसिंग कंपनी का वित्तीय संकट उस ‘चमत्कारी’ आर्थिक वृद्धि के सिलसिले पर विराम लगा सकता है जिसने चीन को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाया और आर्थिक तथा रणनीतिक ताकत के मामले में उसे अमेरिका को चुनौती देने की स्थिति में पहुंचाया.

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एक अकेले देश के बतौर वैश्विक अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा योगदान चीन ही करता है. दुनिया के मैनुफैक्चरिंग अड्डे के रूप में और व्यापार में सबसे अग्रणी देश के रूप में वह वैश्विक मांग में बदलाव लाने में भी मुख्य भूमिका निभाता है. यही नहीं, वह लगभग हर वस्तु का व्यापार करता है.

इस साल चीन वैश्विक आर्थिक वृद्धि में एक तिहाई से ज्यादा का योगदान करने वाला है. इन बातों से यही निष्कर्ष निकलता है कि अगर चीन की रफ्तार सुस्त पड़ती है तो यह वैश्विक सुस्ती भी ला सकती है. और अगर चीनी मांग में गिरावट आती है तो तेल से लेकर इस्पात तक तमाम चीजों के दाम गिरेंगे. इसका असर विश्व वित्त बाज़ार से लेकर सभी बाज़ारों पर पड़ेगा.

इसलिए, चीन की सबसे बड़ी हाउसिंग कंपनी एवरग्रांदे में पैदा हुए संकट ने हर जगह के बाज़ार में घबराहट पैदा कर दी है. इस कंपनी के मालिक कभी चीन के सबसे अमीर व्यक्ति थे.

एवरग्रांदे का कारोबार विशाल है. वह 16 लाख घरों का निर्माण कर रही है, और इसके ऊपर 300 अरब डॉलर का कर्ज है (यह भारत के बड़े कॉर्पोरेट सेक्टर के कुल कर्ज के करीब बराबर है). वह बिजली से चलने वाले वाहन बनाने वाली उस कंपनी में दो-तिहाई हिस्से की मालिक है जिसका मूल्य फोर्ड मोटर से भी ज्यादा था जबकि उसने एक भी वाहन नहीं बनाया था. ऐसी विशाल कंपनी जब वित्तीय संकट के कगार पर पहुंचती है तब सारे बाज़ार सांसें रोक लेते हैं, जैसा कि उन्होंने पिछले सप्ताह किया.

एवरग्रांदे के शेयर की कीमत पिछले साल की कीमत के छठे भाग के बराबर पहुंच गई है. इसके बॉन्ड की कीमत डॉलर के 26 सेंट के बराबर पहुंच गई, यानी इसमें निवेश करने वालों को अपने निवेश का चौथाई हिस्सा ही वापस मिलता.

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शुक्रवार तक स्थिति थोड़ी सुधरी. एवरग्रांदे अपने कर्मचारियों को वेतन नहीं दे पा रही है, अपने वेंडरों के बिलों का भुगतान नहीं कर पा रही है. कुछ स्थानीय सरकारों ने नये फ्लैटों की बिक्री पर रोक लगा दी है. अगर यह कंपनी उलट जाती है तो इसका असर चीन की दूसरी हाउसिंग कंपनियों पर पड़ेगा और उभरते मार्केट बांड्स के लिए जोखिम प्रीमियम में इजाफा हो जाएगा. अगर कर्ज मिलना बंद हो जाता है तो चीन की दूसरी तरह से मजबूत कंपनियां भी अचानक देख सकती हैं कि वे भी अपना काम नहीं जारी रख सकती हैं.

फिर भी, चीनी अर्थव्यवस्था जिस पैमाने पर काम करती है उसकी तुलना में देखें तो यह एक छोटी समस्या लगती है जिसे आसानी से हल किया जा सकता है. एवरग्रांदे का 300 अरब डॉलर का कर्ज चीन के कुल कर्ज के 1 प्रतिशत के बराबर होगा. चीनी अधिकारी इस कंपनी का पुनर्गठन कर सकते हैं और असंबद्ध व्यवसायों (मसलन बिजली वाहन कंपनी) को बेच सकते हैं. सरकारी समर्थन का प्रमाण बाज़ारों को शांत करेगा और नुकसान को कम करेगा.


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क्या एवरग्रांदे को डूब जाने दिया जाएगा?

लेकिन एक पेंच है. एवरग्रांदे इसलिए संकट में है क्योंकि यह उस कहीं बड़ी समस्या का हिस्सा है जिसे चीन को पिछले साल बेलगाम कर्ज पर काबू करना पड़ा, और यह केवल हाउसिंग कंपनियों के लिए नहीं किया गया. जैसा कि सर्वविदित है, चीन पर उसकी जीडीपी के तीन गुना के बराबर कर्ज है और यह अनुपात हाल के वर्षों में दोगुना हुआ है.

पिछले साल ऋण के जो सख्त मानक घोषित किए गए उनका अर्थ था कि एवरग्रांदे जैसी कंपनियों को आगे उधार लेने में नयी सीमाओं का सामना करना पड़ेगा. चीन ने संकेत दिया कि वह इस मामले में गंभीर है और उसने कुछ कंपनियों को डूब जाने दिया. अब अगर वह एवरग्रांदे को उबारता है, तो दूसरी कंपनियां भी ऐसी अपेक्षा करने लगेंगी. यह वित्तीय सख्ती के मकसद को बेकार कर देगा.

आगे की दिशा इस पर तय होगी कि चीन वित्तीय छुआछूत और व्यवस्थागत जोखिम के बारे में क्या सोचता है. संक्षेप में, एवरग्रांदे का कर्ज चीन के कुल कर्ज के 1 प्रतिशत के बराबर होगा, तो क्या यह इतना ज्यादा है कि उसे डूब जाने दिया जाएगा?

एवरग्रांदे के डूब जाने का अंतरराष्ट्रीय वित्तीय परिदृश्य पर सीमित असर ही पड़ेगा क्योंकि उसका ज़्यादातर घरेलू कर्ज है, फिर भी इसका दूसरे चक्र में असर पड़ेगा.

ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर निर्बाध ऋण ने चीन की आर्थिक वृद्धि की तेजी बनाए रखी है, खासकर 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद, तो ऋण के सख्त पैमाने चीन की आर्थिक गतिविधियों की गति को जरूर प्रभावित करेंगे और अंततः ग्लोबल अर्थव्यवस्था को भी.

एवरग्रांदे अगर उबर भी जाता है तो बैलेंस शीट को दुरुस्त करने में वर्षों लगेंगे. भारत यह भुगत चुका है. जो भी हो, यह उस ‘चमत्कारी’ आर्थिक वृद्धि के लंबे चले सिलसिले पर विराम लगा सकता है जिसने चीन को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाया और आर्थिक तथा रणनीतिक ताकत के मामले में उसे अमेरिका को चुनौती देने की स्थिति में पहुंचाया.

अब पटकथा दूसरे तरह से लिखी जा सकती है.

(बिजनेस स्टैंडर्ड से विशेष प्रबंध द्वारा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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