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Friday, 3 May, 2024
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चुनावी बॉण्ड कई सवाल उठाते हैं जिनका बीजेपी के पास कोई उत्तर नहीं है

मोदी को उस हमाम को बंद करने का श्रेय दिया जाता है जहां हर राजनेता और पार्टी नंगी थी. अब उन्हें चुनावी बॉन्ड पर बात दबाने की राजनीतिक आम सहमति को तोड़ना होगा.

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जनवरी 2018 में सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीशों द्वारा दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करने के कुछ सप्ताह बाद, एक विज़िटर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके आवास पर दोपहर के वक्त बातचीत के दौरान पूछा: “न्यायपालिका में एक प्रकार का संकट पैदा हो रहा है. क्या कोई ऐसा तरीका है जिससे आप आगे आकर चीजों को सुलझा सकते हैं?”

उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “अगर मैं कुछ करता हूं, तो xxx (एक प्रमुख पत्रकार का नाम लेते हुए) ट्वीट करेगा कि मोदी न्यायपालिका में हस्तक्षेप कर रहे हैं. फिर थोड़ा गंभीर स्वर में उन्होंने कहा, गंभीरता से, क्या आप जानते हैं कि कितने परिवार भारत की न्यायपालिका को नियंत्रित करते हैं?… 60, केवल 60 परिवार. आप उन्हें उंगलियों पर गिन सकते हैं…लेकिन मीडिया इसके बारे में नहीं लिखेगा.” मुझे उस बातचीत का ब्यौरा मिला था.

न्यायपालिका और उसे चलाने वालों के बारे में उनके विचार पिछले छह वर्षों में विकसित हुए होंगे. पिछले हफ्ते उन्होंने 600 वकीलों द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश को लिखा गया एक पत्र पोस्ट किया था. इसमें राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले लोगों द्वारा न्यायपालिका पर दबाव डालने की समस्या के बारे में लोगों को लेकर चिंता व्यक्त की थी, “विशेष रूप से भ्रष्टाचार के आरोपी राजनीतिक हस्तियों से जुड़े मामले” में. पत्र में किसी व्यक्ति या पार्टी का नाम नहीं लिया गया या किसी विशिष्ट उदाहरण का हवाला नहीं दिया गया था. जाहिर तौर पर पीएम मोदी को पत्र का आशय पता था. उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया, “दूसरों को डराना और धमकाना कांग्रेस की पुरानी संस्कृति है. पांच दशक पहले, उन्होंने ‘प्रतिबद्ध न्यायपालिका’ का आह्वान किया था…”.

कांग्रेस आज लोकसभा में सिमट कर 46 सदस्यों वाली पार्टी बन कर रह गई है. अगर प्रधानमंत्री और इतने सारे प्रतिष्ठित वकील कांग्रेस को आज देश की सर्वोच्च अदालत पर दबाव बनाने में सक्षम पाते हैं तो यह राहुल गांधी के लिए वही आंख मारने वाला क्षण कह सकते हैं. वैसे भी कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने शनिवार को पीएम मोदी की पोस्ट पर पलटवार किया. उन्होंने एक ट्वीट करके सुझाव दिया कि उस पत्र के पीछे न्यायपालिका पर दबाव डालने का प्रयास था क्योंकि चुनावी बांड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद घोटाले उजागर हो रहे हैं. उन्होंने कहा, ”न्यायपालिका पर नकारात्मक टिप्पणी करने के लिए प्रधानमंत्री का खुद मैदान में उतरना दिखाता है कि दाल में कुछ ज्यादा ही काला है. कुछ तो है जिसकी वजह से वह (पीएम) खुद घबराए हुए हैं.”

उन्होंने आरोप लगाया है कि प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो और आयकर विभाग द्वारा जिन 41 कॉर्पोरेट समूहों पर छापे मारे गए उन्होंने भाजपा को 2,592 करोड़ रुपये का चंदा दिया. उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि 38 कॉर्पोरेट समूहों ने केंद्र और राज्यों में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकारों से 3.8 लाख करोड़ रुपये के कॉन्ट्रैक्ट के बदले में भाजपा को 2,004 करोड़ रुपये का डोनेशन दिया. भाजपा ने प्रियंका वाड्रा के आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. अब उन्होंने प्रधानमंत्री को इस मामले में घसीट कर इसे और बड़ा कर दिया है. अजीब बात है कि सत्तारूढ़ दल इस तरफ ध्यान नहीं दे रहा है.

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प्रधानमंत्री मोदी कम से कम अपनी पार्टी से तो प्रियंका पर पलटवार की उम्मीद कर ही सकते थे क्योंकि वह खुद हर विपक्षी नेता के साथ तर्क-वितर्क नहीं कर सकते. हम जानते हैं कि भाजपा उनके पीछे पड़ गई होती, खासकर तब जब उनके पति रॉबर्ट वाड्रा कथित भूमि सौदे और मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में फंसे हुए हैं. लेकिन बीजेपी चुप रही. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जब प्रियंका पीएम मोदी पर हमला कर रही हैं तो बीजेपी का उन्हें जवाब न देना अचंभित करने वाला था.

संयोग से, उनके पति रॉबर्ट वाड्रा से जुड़े कथित गुड़गांव भूमि घोटाले में, भाजपा के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार ने अप्रैल 2023 में उच्च न्यायालय को सूचित किया कि (वाड्रा की फर्म से डीएलएफ को भूमि के हस्तांतरण में) नियमों या विनियमों का कोई उल्लंघन नहीं हुआ था. जैसे ही वाड्रा ने इसका स्वागत किया और भाजपा पर उसके ‘झूठे आरोपों’ के लिए हमला बोला, तो गुस्साई हरियाणा सरकार ने सफाई दी कि यह क्लीन चिट नहीं है और जांच अभी भी जारी है.

2018 में गुड़गांव भूमि सौदे में पुलिस मामला दर्ज करने और कथित क्लीन चिट के बीच, रियल स्टेट टाइकून डीएलएफ ने छह किश्तों में 170 करोड़ रुपये के चुनावी बांड खरीदे और उन सभी को भाजपा द्वारा भुनाया गया. जरा सोचिए, जब भूमि घोटाले के मामले में जांच चल रही थी तो भाजपा को रियल स्टेट दिग्गज डीएलएफ से डोनेशन स्वीकार करने में कोई परेशानी नहीं हुई. लेकिन पीएम मोदी पार्टी को मिलने वाले हर चंदे और पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा दी गई हर क्लीन चिट का हिसाब नहीं रख सकते.


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बहुत सारे संयोग

एक और गंभीर मामला देखिए, जैसा कि दि इंडियन एक्सप्रेस की एक विस्तृत रिपोर्ट में बताया गया है.

अरबिंदो फार्मा के निदेशक शरत् चंद्र रेड्डी को 10 नवंबर 2022 को कथित दिल्ली आबकारी नीति घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार किया था. पांच दिन बाद, 15 नवंबर को अरबिंदो फार्मा ने 5 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे. भाजपा ने इन बांड्स को छह दिन बाद – 21 नवंबर को भुनाया. रेड्डी ने 25 अप्रैल 2023 को ईडी को अपना बयान दर्ज कराया, जिसे एजेंसी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सबूत के रूप में माना है.

मई में ईडी ने उनकी जमानत याचिका का विरोध नहीं किया. जून में, एक विशेष अदालत ने उन्हें सरकारी गवाह बनने की अनुमति दी और उन्हें माफ कर दिया. चार महीने बाद 8 नवंबर को अरबिंदो फार्मा ने 25 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे. नौ दिन बाद बीजेपी ने इन्हें भुना लिया. संयोग से, रेड्डी की गिरफ्तारी से पहले अरबिंदो फार्मा द्वारा खरीदे गए बॉन्ड को भारत राष्ट्र समिति, तेलुगु देशम पार्टी और भाजपा सहित कई पार्टियों ने भुनाया था. लेकिन रेड्डी की गिरफ़्तारी के बाद उनकी कंपनी द्वारा खरीदे गए सभी बॉन्ड भाजपा के पास चले गए.

इतने सारे संयोग का क्या मतलब है इसे बीजेपी ही बता सकती है.

इंडियन एक्सप्रेस ने 31 मार्च को रिपोर्ट दी कि हैदराबाद स्थित मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को चुनावी बॉन्ड खरीदने के “ठीक पहले या तुरंत बाद” सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से कॉन्ट्रैक्ट मिला. कंपनी ने 966 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे, जिसमें से 584 करोड़ रुपये बीजेपी के पास गए. इसके बाद बीआरएस का स्थान था, उसे 195 करोड़ रुपये मिले थे. अन्य दलों को बस थोड़ा बहुत ही मिला.

ऐसी कई कंपनियां हैं, जिन्होंने अपनी प्रॉफिट से कई गुना ज्यादा के चुनावी बॉन्ड खरीदे. जिन्हें वास्तविक बिजनेस ऑपरेशन नहीं कहा जा सकता. यदि एक सामान्य व्यक्ति चुनावी बांड को लेकर इन विसंगतियों को स्पष्ट रूप से देख सकता है, तो कल्पना करें कि गहन जांच करने पर क्या-क्या पता चल सकता है..

पीएम को बोलना चाहिए

पीएम मोदी को दोष देना आसान है क्योंकि उन्हीं की सरकार इन बॉन्ड्स को लेकर आई थी और शीर्ष अदालत के अंदर और बाहर उनका बचाव किया है. अंत में, यह भी समझ में आता है कि सरकार ने पारदर्शिता की कीमत पर डोनर्स के निजता के अधिकार का जोरदार बचाव क्यों किया. वास्तविकता यह है कि हर सत्ताधारी दल ने इसे पसंद किया- चाहे वह बीजेपी हो, तृणमूल कांग्रेस हो, डीएमके हो या बीआरएस हो.

बीजेपी ने हमेशा की तरह इन आरोपों का जवाब उल्टा आरोप से देने की कोशिश की है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक मीडिया कार्यक्रम में कहा, “बीजेपी के 303 सांसदों को 6,000 करोड़ रुपये मिलते हैं और 242 सांसदों वाली पार्टियों को 14,000 करोड़ रुपये मिलते हैं. फिर यह पूरा हंगामा क्यों खड़ा किया जा रहा है?”

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने एक अन्य कार्यक्रम में कहा कि बॉन्ड सभी पार्टियों द्वारा भुनाए गए थे और इसलिए “किसी को बोलने का क्या नैतिक अधिकार है?”

तो, क्या बात बस इतनी सी है? इस हमाम में सभी नंगे हैं और इसलिए किसी को आपत्ति जताने का अधिकार नहीं है! टीएमसी, बीआरएस, डीएमके और कई अन्य भाजपा प्रतिद्वंद्वियों ने सैकड़ों करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड भुनाए. लेकिन भाजपा ने लेनदेन के इन मामलों में कोई सवाल नहीं उठाया है.

चुनावी बॉन्ड मामले को दबाने के लिए पार्टियों के बीच आम सहमति बनती दिख रही है. सबसे पहले तो सत्तारूढ़ भाजपा यह बिल्कुल नहीं चाह रही थी कि डोनर्स की डीटेल्स सामने आए. कांग्रेस को छोड़कर कोई भी विपक्षी दल इस मामले को आगे बढ़ाने को उत्सुक नहीं है. यह रविवार को दिल्ली के रामलीला मैदान की रैली में गैर-कांग्रेसी भारतीय गुट के नेताओं की चुप्पी से भी स्पष्ट हुआ. उनके संयुक्त प्रस्ताव, जिसे प्रियंका वाड्रा ने पढ़ा, ने बांड की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग की, लेकिन नेताओं ने बड़े पैमाने पर अपने भाषणों में इसका ज़िक्र नहीं किया.

पीएम मोदी को अपने बीजेपी फंड मैनेजरों से भी कड़े सवाल पूछने की जरूरत है. मोदी को उस हमाम को बंद करने का श्रेय दिया जाता है जहां हर राजनेता और पार्टी नंगी थी. अब उन्हें चुनावी बॉन्ड पर बात दबाने की राजनीतिक आम सहमति को तोड़ना होगा.

(डीके सिंह दिप्रिंट में राजनीतिक संपादक हैं. उनका एक्स हैंडल @dksingh73 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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