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Friday, 26 April, 2024
होममत-विमतसपनों का घर अब भी सपना है- राज्य सरकारों, नगर निकायों को केंद्र के साथ मिलकर काम करने की जरूरत

सपनों का घर अब भी सपना है- राज्य सरकारों, नगर निकायों को केंद्र के साथ मिलकर काम करने की जरूरत

अगर रियल एस्टेट सेक्टर का ठीक तरह से प्रबंधन किया जाए तो यह न केवल वित्त क्षेत्र में जान फूंक सकता है बल्कि कई तरह के उत्पादों और सेवाओं के लिए मांग भी पैदा करेगा.

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भारत में हाउसिंग का बाज़ार घर के स्वामित्व वाले मॉडल पर चलता है, खास तौर से ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां किराया का चलन नगण्य है. शहरों में भी 70 फीसदी घर स्व-स्वामित्व में हैं. शहरों में किराया का बाज़ार शहरी बाज़ार का बमुश्किल एक चौथाई हिस्सा है. फिर भी, इसकी संख्या अच्छी-ख़ासी है. इस लिहाज से यह अच्छी बात है कि सरकार राज्य सरकारों के लिए एक मॉडल किराया कानून ले आई है. राज्यों को इस मामले में अपना कानून बनाने और विशेष अदालतें स्थापित करने में कुछ साल लगेंगे. फिर भी, नया मॉडल कानून किराये के कारोबार और हाउसिंग क्षेत्र में बुनियादी बदलाव ला सकता है.

तीन दशक पहले, घर बनाना अर्थव्यवस्था में मामूली हिस्सा रखता था. अधिकतर शहरों और महानगरों में इस पर सरकार का ही एकाधिकार था. इसका नतीज यह था कि भवन निर्माण का स्तर घटिया होता था, मकान देर से मिलता था, और आवास की भारी कमी थी. जब प्राइवेट देवलपरोन ने इसमें कदम रखा, दिल्ली के इर्द-गिर्द उपग्रह शहर उभरने लगे; कोलकाता और पुणे में नये उपनगर अभी नहीं बसे थे, जबकि बेंगलुरू और हैदराबाद में हाउसिंग में उछाल दूर की बात थी. जाहिर है, 1991 में हाउसिंग फाइनेंस जीडीपी के बमुश्किल 1 प्रतिशत के बराबर था.

जब गिरवी का व्यवसाय अपने पैरों पर खड़ा हो गया, तो यह अनुपात 2005 तक आकर जीडीपी के 7 प्रतिशत के बराबर हो गया, कुछ समय के लिए फिसल गया मगर अब 10 प्रतिशत है. इसमें कर्ज भुगतान में चूक की दर काफी नीची है, इसलिए यह कर्ज देने का सबसे सुरक्षित विकल्प है. अगर इस सेक्टर का ठीक से प्रबंधन किया जाए तो इसे अर्थव्यवस्था का ठोस आधार बन सकता है और न केवल वित्तीय क्षेत्र में जान फूंक सकता है बल्कि कई तरह के उत्पादों और सेवाओं के लिए मांग भी पैदा कर सकता है.


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लेकिन इस सेक्टर में गड़बड़ियों की भी कमी नहीं है. जमीन की कीमत में जान-बूझकर की गई वृद्धि के कारण रियल एस्टेट में लागत बहुत ऊंची है. इसलिए दो तिहाई घर केवल एक या दो कमरों वाले हैं जिन्हें खरीदने वाले को कई साल का अपना वेतन देना पड़ता है. इसके कारण हाउसिंग की लागत के हिसाब से किराया कम मिलता है— अधिकतर मामलों में महज 2 प्रतिशत के बराबर. किरायेदार को ज्यादा सुरक्षा देने वाले किराया कानूनों से बात नहीं बनती. आज करीब 1 करोड़ घर इसलिए खाली पड़े हैं क्योंकि मकान मालिक किराया लगाने का जोखिम नहीं उठाना चाहते, उन्हें डर होता है कि उन्हें अपनी संपत्ति गंवानी पड़ सकती है. यह परिसंपत्तियों का बेमानी दुरुपयोग है. इसकी तुलना जर्मनी से कीजिए, जहां 60 प्रतिशत मालिक अपने घरों को किराये पर लगा देते हैं. उन्हें अपनी बचत रियल एस्टेट में लगा देने की जरूरत नहीं पड़ती. मॉडल किराया कानून मकान मालिक और किरायेदार, दोनों के हितों को बराबर महत्व देकर संतुलन स्थापित करने में मदद दे सकता है.

मोदी सरकार ने इस सेक्टर के लिए अच्छा काम किया है. प्रधानमंत्री आवास योजना ने गांवों में 1.2 करोड़ घर बनाने में मदद की है. अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में प्रवासियों और कामगारों को किराये पर घर देने के लिए आवासीय बस्तियां बनाने का नया कार्यक्रम बुरे हालात में या शिफ्ट सिस्टम में बिस्तर लेकर रह रहे लोगों के लिए हाउसिंग के बाज़ार में बदलाव ला सकता है. और ‘रेरा’ नामक कानून ने निर्माण व्यवसाय के नियम बदल दिए हैं और फ्लैट ख़रीदारों को ज्यादा सुरक्षा प्रदान की है. इस सूची में मॉडल किराया कानून भी शामिल है.

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याद रहे कि 2011 की जनगणना ने मात्र 23 करोड़ आवासीय यूनिटों को ‘अच्छी’ हालत में बताया था. इसमें एक अवसर छिपा है, जिसका लाभ उठाया जाना है. यह नहीं उठाया जा सकेगा, अगर डेवलपर-नेता की मिलीभगत से जमीन घोटाले होते रहे. दिल्ली में डीडीए के पास अभी भी काफी जमीन खाली पड़ी है, जिसे विकास के लिए उपलब्ध नहीं कराया जा रहा. मुंबई में मलिन बस्ती पुनर्वास योजना अपेक्षित रूप से लागू नहीं की जा सकी है. आवासों की सघनता के नियम अस्त-व्यस्त हैं. हर जगह जमीन के जिन छोटे टुकड़ों को हाउसिंग मार्केट में डाला जाता है, तो वे कृत्रिम कमी पैदा करते हैं जिसका लाभ उठाना चालाक लोग जानते हैं (रॉबर्ट वाड्रा इसके अच्छे उदाहरण हैं).

परिवर्तन धीमा और जटिल है क्योंकि इसमें सरकार सभी तीन स्तरों पर जुड़ी है—पालिका, प्रदेश, और राष्ट्रीय स्तर पर. हरेक को अपना काम करना होता है, जबकि हाल के वर्षों में बड़े काम केंद्र ही करता रहा है. असली परिवर्तन तब आएगा जब प्रदेश और पालिका के स्तर पर काम होंगे. हाउसिंग को सचमुच सस्ता और साध्य निवेश का साधन बनाने के लिए अभी बहुत कुछ करना पड़ेगा.

(इस लेख अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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