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Thursday, 14 November, 2024
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मोहन भागवत की जनसंख्या ‘असंतुलन’ पर चेतावनी को आंकड़ों, वोट बैंक राजनीति से अलग देखें

आरएसएस प्रमुख ने जनसंख्या नियंत्रण पर सहमति बनाने और समान नागरिक संहिता को जनसंख्या संतुलन के लिए उपयोगी पहलू मानने की जरूरत पर जोर दिया.

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हर साल की तरह, आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत ने बुधवार को नागपुर में अपना विजयादशमी भाषण दिया. उसमें उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण पर सहमति बनाने पर जोर दिया और कहा कि जनसंख्या संतुलन हासिल करने के लिए समान नागरिक संहिता को उपयोगी पहलू के रूप में गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए.

आर्थिक वृद्धि, जीडीपी और संसाधनों के समान वितरण का जनसंख्या नीति से सीधा संबंध है. ऊंची जनसंख्या वृद्धि जरूरी नहीं है कि जनसंख्या लाभांश या आर्थिक बढ़त का साधन बने. दुनिया की जनसंख्या में 18.6 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले चीन की जीडीपी 122.4 खरब डॉलर की है, जबकि 4.3 फीसदी आबादी वाले अमेरिका की जीडीपी 193.9 खरब डॉलर और 5.8 फीसदी आबादी वाले यूरोपीय संघ की जीडीपी 172.8 खरब डॉलर की है.

चीन की एक-बच्चा नीति और फिर उसे पलटने से आर्थिक वृद्धि और सामाजिक मुद्दों पर उसके असर की समझ के लिए गहरे अध्ययन की जरूरत है. कहने की जरूरत नहीं कि भारत की सामाजिक-राजनीतिक पेचीदगियां गहरे विश्लेषण और स्वतंत्र नीतिगत सुझावों की मांग करती हैं.

भागवत ने अपने भाषण में यह संकेत भी दिया कि जनसंख्या वृद्धि में असंतुलन के मुद्दे के समाधान के लिए समान नागरिक संहिता एक उपाय हो सकती है. आज के संदर्भ में कुछ चुनौतियों को बताकर आरएसएस प्रमुख ने इस मुद्दे पर नीति-निर्माताओं का ध्यान खींचने के लिए अपने भाषण में अच्छा खासा जिक्र किया और सरकारी पहल में सामाजिक भागीदारी पर जोर दिया.


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जनसंख्या नियंत्रण के उपाय

जनसंख्या नियंत्रण पर फोकस की कोशिशें न तो नई हैं, न ही सिर्फ नीतिगत बहसों तक सीमित हैं. पहली साहसिक पहल 1951 में शुरू हुई. ‘जनसंख्या विस्फोट’ के पहले रोकथाम के कदम उठाने के लक्ष्य के साथ सरकार प्रायोजित परिवार नियंत्रण कार्यक्रम की शुरुआत की गई. इस पहल के तहत चुनौती की गंभीरता को समझने और रोकथाम के कदम उठाने के लिए कई कानून लाए गए, समीक्षा समितियां बनीं और उनकी रिपोर्टें आईं.

भारतीय महा-पंजीयक के मुताबिक, 2011 की जनगणना में देश में दशकीय वृद्धि दर 17.64 फीसदी थी. संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग की ‘विश्व जनसंख्या संभावनाएं 2019’ रिपोर्ट का आकलन है कि भारत की आबादी 2027 में 146.9 करोड़ होगी.

इसे ध्यान में रखकर सरकार परिवार नियोजन कार्यक्रम पर अमल करने को प्रतिबद्ध है. इसमें राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 और राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में स्थापित मानकों पर गौर किया जाना है, ताकि परिवार नियोजन की अधूरी जरूरतों को पूरा किया जा सके और जनसंख्या वृद्धि पर रोकथाम लगे.

राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 में कुल प्रजनन दर (टीएफआर) 2.1 की परिकल्पना की गई. हर पांच साल में जारी होने वाली हाल में प्रकाशित एनएफएचएस रिपोर्ट के उद्धरण से आरएसएस नेता ने बताया कि टीएफआर दरअसल 2.1 पर आ गई है. इसका मतलब है कि बड़े संयुक्त परिवार टूट रहे हैं और ‘अल्ट्रा न्यूक्लीयर परिवार’ उग रहे हैं, जो आरएसएस के मुताबिक असुरक्षा और सामाजिक मूल्यों के अभाव की जड़ है.

जनसंख्या वृद्धि तो ‘वास्तविकता’ है और उस पर गंभीरता से ध्यान देने की दरकार है, मगर बेतरतीब शहरीकरण, ग्रामीण इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास का अभाव और रोजगार तथा गैर-फायदेमंद खेती ऐसे मुद्दे हैं, जनसंख्यागत बदलाव और जनसंख्या असंतुलन को सीधे प्रभावित करते हैं. व्यापक अपील, काडर आधार और सरकारी नीतियों को प्रभावित करने की क्षमता रखने वाले आरएसएस को इन मुद्दों पर भी राष्ट्रीय बहस की पहल करनी चाहिए.

आंकड़ों से आगे जाएं

संयोगवश, आरएसएस प्रमुख से हाल ही में मुलाकात करने वाले मुस्लिम नेताओं में एक, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी ने भागवत की टिप्पणियों का स्वागत किया है और ‘भारतीय समाज के सभी वर्गों’ से परिवार नियोजन अपनाने की अपील की है. द पॉपुलेशन मिथ: इस्लाम, फैमिली प्लानिंग ऐंड पॉलिटिक्स इन इंडिया के लेखक कुरैशी और आरएसएस प्रमुख ने किसी खास समुदाय का जिक्र नहीं किया, मगर हैदराबाद के सांसद और एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने दावा किया है कि मुसलमानों की प्रजनन दर में भारी गिरावट आई है और इसलिए जनसंख्या नियंत्रण या संतुलन की कोई जरूरत नहीं है.

मुसलमान आबादी की वृद्धि दर में 1961-71 के 30.9 फीसदी से 2001-11 में 24.6 फीसदी की गिरावट आई है, देश की जनसंख्या में कुल वृद्धि में समुदाय का योगदान बढ़ गया है, जो 14.6 फीसदी (1901-2011) से 16.1 फीसदी (1951-2011) और 16.7 फीसदी (1971-2011) में हो गया. हालांकि मुस्लिम आबादी शहरी घेटो-जैसी बस्तियों में रहती है, जिससे अलगाव और अलग-थलग होने का भाव बढ़ता है, जिसे वोट बैंक राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

इसी संदर्भ में आरएसएस और मुस्लिम बुद्धिजीवियों के एक वर्ग के विचारों की बड़ी अहमियत है कि आंकड़ों से आगे जाकर सोचने और जमीनी सच्चाई को समझने की दरकार है. जनसंख्या वृद्धि के मुद्दे पर सकारात्मक और गैर-राजनीतिक माहौल में राष्ट्रीय स्तर पर बातचीत करने की दरकार है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखक ‘आर्गेनाइजर’ के पूर्व संपादक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @seshadrichari है. विचार निजी है)


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