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Saturday, 21 December, 2024
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दो आंख, दो कान, एक नाक के आधार पर तबलीगी जमात और आरएसएस की तुलना न करें

दिप्रिंट में बुधवार को तबलीगी जमात और वीएचपी की तुलना किए जाने वाले रविकान्त चंदन के लेख पर आरएसएस के जानकार रतन शारदा ने उनके दावों को गलत बताया और उसका सिलसिलेवार जवाब दिया है.

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दिप्रिंट में रविकान्त चन्दन का आलेख पढ़ कर यह चुटकुला याद आ गया. इसमें अगर जोड दूं कि मोदी जी की और मेरे भाई की उम्र एक जैसी है तो उनकी सोच और काम भी एक जैसे हैं, तो रविकान्त जी के आलेख का सार आप समझ जायेंगे. मैंने ऐसा सतही लेख आज तक राजनैतिक विश्लेषण के नाम पर नहीं पढ़ा. मैं इस पर टिपण्णी भी न करता परन्तु ऐसे माहौल में जब तबलीगी लोगों पर थूक रहे हैं, पेशाब फेंक रहे हैं, डॉक्टरों और सहायकों को पीट रहे हैं, घृणा फैला रहे हैं, जबकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक अपनी जान को हथेली पर लेकर पीड़ितों की सेवा में लगे हैं. एक नहीं, दो नहीं बल्कि सभी प्रान्तों में 2 लाख से अधिक स्वयंसेवक काम में लगे हैं और अब तक 25 लाख नागरिकों, पीड़ितों और अस्पतालों की सेवा कर चुके हैं. तो ऐसे प्रेरित लेख का उत्तर देना जरूरी लगता है. शायद रविकान्त को पता नहीं कि संघ की इस सेवा के लाभार्थी बड़ी संख्या में मुसलमान भी हैं. आज ही, मेरे पड़ोस के नगर में कोरोना बंदी में फंसे 11 बंगाल के मुसलमान परिवारों को राशन मुहैया करवाया गया है.

रविकान्त की श्रद्धा तबलीग के प्रति उनकी आदरपूर्ण भाषा से ज़ाहिर होती है, वहीं कई झूठ के साथ कुछ भी जोड़-तोड़ कर संघ के समाज समर्पण को कलुषित करने के लिए अर्धसत्य का भी सहारा उन्होंने लिया है. वास्तव में यह कोई तुलना है ही नहीं.

कुछ साधारण तथ्य पहले रख दूं. तबलीगी जमात 1925 नहीं बल्कि 1926 के बाद स्थापित हुई. उसने अपना पहला गढ़ मेवात को बनाया 1993 के बाद नहीं, जैसा कि लेखक ने कहा है. इसका कारण था की मेवात के मेयो मुसलमान राजपूत से मुसलमान तो बन गए थे परंतु वे अपनी ‘कुफ्र’ की कई प्रथाओं को छोड़ नहीं रहे थे.

तबलीगी जमात मुस्लिम समाज का पुनरुत्थान नहीं बल्कि उन्हें 14वीं शताब्दी में ले जाना चाहती है. उसका कहना है कि मुस्लिम आधुनिक नहीं बल्कि वह जीवन जिए जो उनके पैगम्बर ने जिया. इसलिए ‘फिर मुसलमान बनो’ के नारे के तहत वहां मौलाना पहुंचे. 1946-47 में बंटवारे की विभीषिका में एक मेयोस्तान बनाने का आन्दोलन भी उन्होंने खड़ा किया, जो बलपूर्वक कुचल दिया गया. इसकी मूल सोच ‘केवल कुरान सच है, केवल अल्लाह एक मात्र सच है और उसको न मानने वाले काफ़िर हैं.’

इसी प्रखर इस्लामी सोच के कारण जो कुछ मुस्लिम आक्रांताओं ने भारत के हिन्दुओं के साथ किया हम सब जानते हैं. इसी ‘दुनिया को कुफ्र से बचाने के लिए या तो काफिरों को मुसलमान बनाओ, या मारो, उनको तबाह करो’ के तहत जो नरसंहार हुए उन्हें चाहे वामपंथी इतिहासकार नकारना चाहें, इतिहास इसका गवाह है.


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रविकान्त ने बड़े भोलेपन से निम्नजाति के हिन्दुओं का मुस्लिम पंथ को स्वीकार करना जाति व्यवस्था पर थोप दिया. वे तलवार के जोर पर इस्लाम का प्रचार और फैलाव भूल गए. इतिहासकार केएस लाल के अनुसार इस्लामी आक्रमण के कारण 1000 शती से 1525 शती के बीच ही भारत की आबादी लगभग 8 करोड़ से कम हुई. इनके अनुसार मात्र महमूद गजनी के आक्रमणों में 20 लाख हिन्दू मारे गए. (ग्रोथ ऑफ मुस्लिम पापुलेशन इन मेडिवल इंडिया (1000-1800 सीई). स्वयं इस्लामी इतिहासकारों के तथ्य इन नरसंहारों की पुष्टि करते हैं. तबलीगी जमात इन आक्रांताओं को अपना मानती है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिन्दू संस्कृति को पुनर्जीवित करने और हिन्दुओं को संगठित करने का उद्देश्य लेकर काम कर रहा है. एक हजार साल की गुलामी और जिल्लत भरे सामाजिक जीवन से न्यूनगंड शापित और अपने आप में सिकुड़े हुए परन्तु भाषा, पंथ, जाती के भेदभाव से बिखरे हिन्दू समाज को एकता के सूत्र में पिरोना था. संघ संस्थापक कोई मजहबी उन्माद से प्रेरित व्यक्ति नहीं थे.

डॉ. हेडगेवार क्रांतिकारियों के साथ, कांग्रेस के साथ कई वर्ष भारत की स्वतंत्रता के लिए काम करने के बाद सब कुछ छोड़ कर त्याग भाव से समाज की सोच को आमूल परिवर्तित करने की एक दूरदृष्टि के साथ निकले थे. उनका कार्य किसी धर्म या पंथ के विद्वेष से खड़ा नहीं हुआ. न ही किसी पुस्तक विशेष पर अन्धविश्वास के कारण. उनका मानना था कि समाज संगठित होकर यदि अपने देश के प्रति गौरव और समर्पण के साथ नहीं बढ़ा तो स्वतंत्रता मिलने के बाद भी शासक बदल जायेंगे, शासन तंत्र नहीं. समाज सुदृढ़ और अनुशासित होगा और आधुनिक सोचेगा तो ही देश का कल्याण होगा. यह स्पष्ट सोच थी.

हिन्दू धर्म का मूल ही सर्वसमावेशक है. इसलिए हिन्दू कभी तबलीगी सोच का हो ही नहीं सकता. हिन्दू व्यक्ति ने ‘एकम सत विप्रा बहुधा वदन्ति’ के सूत्र को आत्मसात किया है. केवल मेरे ही सत्य नहीं, तेरा भी सत्य, यह सोच है. डॉ. हेडगेवार पोंगा-पंथी सोच और अंध भक्ति के विरुद्ध थे.

विश्व हिन्दू परिषद को संघ ने ही स्थापित किया. उसपर कब्ज़ा नहीं किया जैसा लेखक कहना चाहता है. इसकी स्थापना में उस समय के सरसंघचालक श्री गुरूजी ने अपनी पूरी शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति को लगा दिया. ‘हिन्दू न पतितो भवेत्’ ‘सर्वे हिन्दवः सहोदरः’ (कोई हिन्दू पतित नहीं हो सकता, सभी हिन्दू एक ही मां की संतान अर्थात बंधू हैं) जैसे क्रान्तिकारी समाज सुधारक विचारों को न केवल प्रेरित किया, बल्कि सदियों से वर्णाश्रम और जाति व्यवस्था पालन करने वाले शंकराचार्यों और मठाधीशों को भी इसके लिए मनाया.

घर वापसी या परावर्तन यह अपने घर वापस आने का मार्ग है. यह बरगलाना कैसे हुआ? भारत की बहुमतवादी सोच ने इसकी हिन्दू आत्मा को अलग-अलग रंग रूप से प्रस्तुत करने को सदैव स्वीकार किया. प्रकृति की पूजा और उसके हर प्रगटीकरण को पूजना, चाहे वह नदी हो, पहाड़ हों या जानवर, यह इसी सोच का परिणाम है. इसलिए हमारे देवी-देवताओं की सवारी भिन्न-भिन्न पशुओं की बतायी गयी है. इसमें आदर भाव और उनके संरक्षण का विचार है. इसे अलग धर्म बताना अंग्रेजों और ईसाईयों का खेल था. ताकि बृहद हिन्दू समाज बांटा जा सके. उदाहरणार्थ नाग पूजा केवल नाग नहीं करते. सारे दक्षिण में विशेषरूप से नाग पूजा होती है. नाग पंचमी सारे भारत में मनाई जाती है. संघ या विश्व हिन्दू परिषद इसे लेकर नहीं आया.


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ईसाई और मुस्लिम पंथ परिवर्तन करने वाले यदि साथ में अपने अनुयायियों की श्रद्धा केवल पंथ तक सीमित रखते और उन्हें अपनी संस्कृति की जड़ें काटने के लिए प्रेरित न करते तो इस पंथ परिवर्तन से समस्या न होती. इस पंथ परिवर्तन के साथ उनको अपने समाज से काटना, उनके मूल श्रद्धा स्थानों को तोड़ना, उन्हें निकृष्ट बताना और अपने मूल समाज से घृणा करना सिखाना भारत की सामाजिक समस्याओं की जड़ है. इससे विपरीत संघ के सेवा कार्यों का पूरा लाभ मुस्लिम समाज भी उठाता है. विद्याभारती के विद्यालय से एक मुस्लिम विद्यार्थी का असम प्रांत में प्रथम आना यह ताज़ा ही उदहारण है.

संघ किसी भी सेवा कार्य में न तो भेदभाव करता है, न ही किसी का पंथ परिवर्तन करता है. संघ प्रेरित संस्थाओं द्वारा पूर्वोत्तर में चलाए जा रहे विद्यार्थी गृह में सैंकड़ों इसाई बच्चे पढ़ते हैं, कभी किसी का पंथ परिवर्तन नहीं किया गया है. स्वयं मैंने 2001 में गुजरात में आए भूकंप में संघ द्वारा चलाए जा रहे सहायता केंद्र में उनकी नमाज़ की व्यवस्था देखी है.

औरंगाबाद में डॉ. हेडगेवार अस्पताल में मुस्लिम रोगी को आत्मशक्ति देने के लिए संघ के स्वयंसेवक को कुरान पढ़ते और साथ में नमाज पढ़ते देखा है. कोई तबलीगी अपने मरकज़ में ऐसी व्यवस्था करेगा क्या? यह प्रश्न मन में आता है.

तबलीगी जमात के ऊपर विश्व में कई देशों में दहशतगर्दी फ़ैलाने के तथ्यों के आधार पर आरोप हैं. तबलीगी होना आतंकवादी होने की एक सीढ़ी मानी गयी है, इतिहास गवाह है. यदि सम्पादक चाहें तो इस विषय पर पूरा एक आलेख तो छोड़ें पूरी एक आवृत्ति लिखी जा सकती है. तबलीगियों ने कितने आतंकवादियों और घृणा फ़ैलाने वालों की निंदा की है? समाचार तो यह है कि सूफी विचारों के बरेलवी सम्प्रदाय की लगभग 80% मस्जिदें उन्होंने अपने कब्जे में ले ली हैं. भारत का सर्वसाधारण मुसलमान सूफी संप्रदाय के अधिक करीब था, उसे कट्टर तबलीगी और वहाबी सोच में ले जाना उसे मुख्य धारा से काटने का प्रयास है.

हिन्दू समाज विश्व भर में जहां भी गया है, उस समाज के साथ समरस हो गया है, दूध में शक्कर की तरह. संघ और विश्व हिन्दू परिषद ने इसी सोच को पोषित किया है. वहां भी उन्होंने उस समाज के साथ मिलकर उसकी उन्नति के लिए काम किया है. तबलीगियों की तरह किसी समाज में कभी विद्रोह खड़ा नहीं किया. उन्होंने कट्टरपंथी मुस्लिम नेताओं की तरह यह नहीं सिखाया कि समाज में पानी और तेल के समान रहें, जो कभी समरस हो ही नहीं सकते. तबलीगी समाज ने यह किया है. हर जगह अपनी शर्तों पर अपने पंथ का और शरिया का तकाजा करते हुए वहां के समाज को बदलने की कोशिश की है, स्वयं को नहीं बदला है.


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संघ समाज जोड़ने वाला, समाज सुधारने वाला, देश सेवा को प्रेरित करने वाला संगठन है. संघ सूर्य के समान अपने तप से भारत और विश्व में कीर्ति स्थापित कर रहा है. उसकी तुलना अपने ही धर्मांध कोने में अपने ही दिए को पकड़ के बैठी हुई जमात के साथ करना हास्यास्पद है. इसलिए, दो आंख, दो कान, एक नाक के आधार पर कृपया दोनों संगठानों का साम्य दिखा कर अपना उपहास न करवाएं.

(रतन शारदा की आरएसएस पर पीएचडी है और संघ पर चार किताबें लिख चुके हैं, वह स्तंभकार और टीवी पैनलिस्ट हैं)

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10 टिप्पणी

  1. Bahut badiya lekh…PR sir in vampanthi or tabligi samarthak logo ko koi bat samkj nahi aati yah sirf Sangha virodhi hai…Baki unko Matlab nahi Sach or jhuth se

  2. Aap bahut achhe hain maan liya, muslims virodh ka article aap rss ke constitution se nikalenge sir, Lynching hui muslims aur Dalits ki aapne kya kiya.aapke hindu bharat main muslims ke liye kya hai? muslims ke khilaf aapke dil main nafrat kyun hai?

    • Kya aapne RSS constitution padha hai? Varna aap aisi baat na karte. Kripaya pahle padhein. Isme ek bhi line, ji haan, ek bhi line Islam ya kisi anya panth ke baare mein nahin hai.

  3. नेहले पे देहला। जवाब देना जरूरी था।

  4. अति उत्तम लेख । आपने सिलसिलेवार जवाब देकर आजकल हिन्दू धर्म के खिलाफ शामिल कुछ निकृष्ट मानसिकता के लेखकों , पत्रकारों , और अन्य कुबुद्धजीवियो के कुचक्र को तोड़ने का काम किया है । हाल में इन लोगो का समाज के कुछ तथाकथित वंचित तबके के लोगों से सांठगांठ करके आपसी सहयोग और शक्ति प्रदर्शन कर , सरकार के खिलाफ कई मोर्चे खड़े किए है । साथ ही राष्ट्रहित की अनदेखी कर के संविधान का हवाला दिया है ।CAA, NRC के विरोध में इनका गठबंधन खुलकर देखने को मिला है और इसके आड़ में कुछ हद तक सरकार भी वोट बैंक के चक्कर मे विवश दिखी है

  5. आरएसएस और तबलीगी जमात के चाल चरित्र और चेहरे एक हैं। जैसे हाथी के दांत खाने और दिखाने के लिए अलग-अलग होते हैं। डॉ रविकांत जी की तुलना बहुत ही सटीक है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आर एस एस और तबलीगी जमात अपने अपने लोगों को कट्टर और अंधविश्वासी बना रही है।

  6. Very difficult to wake a person pretending to sleep
    Shakeel is one of them wo bothering to read and cross check he has reacted typically
    The present happenings of covid 19 has exposed the fanaticism in tabligi and followers Stone pelting type does anyone need any further to explain
    Shakeel did not read the line that tabligis have always worked on cutting the cultural ties of converted Muslims since its formation
    Who is against Islam / Muslims Mr Shakeel ?
    We are talking of Bharat of which you were born in RSS ISVs talking of all religions are equal how many Muslims do you know have been forcibly converted?
    I am still searching ?
    But do you want the list of not thousands but millions converted by force !
    To begin with your fathers were one who must have cried bitterly the day they were forced to convert
    Wake up my dear its a known fact Hinduism does not convert nor does it harbours any wishbone of spreading its wings

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