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Friday, 10 May, 2024
होममत-विमतमोदी सरकार की ई-श्रम पहल में डिजिटल साक्षरता नजरअंदाज, यह असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए मददगार नहीं होगा

मोदी सरकार की ई-श्रम पहल में डिजिटल साक्षरता नजरअंदाज, यह असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए मददगार नहीं होगा

असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के मामले में डाटा का अभाव कोई संयोग नहीं, बल्कि यह ढांचागत खामी का नतीजा है.

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असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों से संबंधित एक राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार करने के उद्देश्य से श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने हाल ही में ई-श्रम पोर्टल लॉन्च किया है. मंत्रालय का अनुमान है कि भारत में 38 करोड़ असंगठित कामगार हैं. पोर्टल पर पंजीकरण के बाद श्रमिकों को 12-अंकों की विशिष्ट संख्या वाला एक ई-श्रम कर्ड मिलेगा. इसके जरिये वे देश में कहीं भी विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के तहत कल्याणकारी लाभ हासिल कर सकेंगे. पोर्टल पर पंजीकरण के इच्छुक कामगारों की सहायता और उनके सवालों के समाधान के एक नेशनल टोल-फ्री नंबर—14434—भी शुरू होगा.

हालांकि, नरेंद्र मोदी सरकार की इस पहल में सही मायने में असंगठित क्षेत्र के कामगारों को लाभान्वित करने के लिए आवश्यक उपयुक्त प्रावधानों का अभाव है.

ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकरण की जिम्मेदारी श्रमिकों की है. श्रम प्रशासन के दृष्टिकोण से देखें तो सरकार ने पंजीकरण के लिए आवश्यक ढांचा तो मुहैया करा दिया है, लेकिन इस पहल की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी है कि कोई असंगठित श्रमिक पंजीकरण के लिए आगे आता है या नहीं. इस ढांचे में नियोक्ताओं की कोई भूमिका नहीं है. एक विकल्प यह हो सकता है कि सरकार असंगठित कामगारों की पहचान करे और उनका डाटा जुटाए. और नियोक्ता भी इस प्रक्रिया में शामिल किए जाएं. नियोक्ता-कर्मचारी संबंध, जो श्रम कानूनों के तहत सुरक्षा और संस्थागत सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने के लिए एक प्राथमिक आवश्यकता है, को भी इस पूरी प्रक्रिया में परखा जा सकता था.


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ई-श्रम इतना महत्वपूर्ण क्यों है

ई-श्रम कार्डधारक के लिए तात्कालिक लाभ यह है कि मृत्यु या स्थायी विकलांगता पर 2 लाख रुपये का दुर्घटना बीमा और आंशिक विकलांगता पर 1 लाख रुपये का बीमा मिलेगा. असंगठित क्षेत्र में काम कर रहा 16 से 59 वर्ष के बीच की आयु का कोई भी श्रमिक ई-श्रम कार्ड के लिए पात्र है— इसमें कृषि श्रमिक, मनरेगा मजदूर, मछुआरे, दूध वाले, आशा कार्यकर्ता, आंगनवाड़ी, प्रवासी कार्यकर्ता, दिहाड़ी श्रमिक, प्लेटफॉर्म श्रमिक, रेहड़ी-पटरी वाले, घरेलू कामगार, रिक्शा चालक और इसी तरह के व्यवसायों में लगे अन्य कामगार शामिल हैं.

श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के पोर्टल के आंकड़े बताते हैं कि 26 अगस्त 2021 को लॉन्च होने के बाद से ई-श्रम पोर्टल पर असंगठित क्षेत्र के 21 लाख श्रमिकों ने पंजीकरण कराया है. भारत के पास अपने असंगठित श्रमिकों के बारे में कोई विश्वसनीय डेटाबेस नहीं है. सारे आंकड़े अनुमान पर आधारित हैं. नरेंद्र मोदी सरकार उन प्रवासी श्रमिकों से संबंधित सही आंकड़ें जुटाने में नाकाम रही है जो 2020 में महामारी के कारण लागू लॉकडाउन से प्रभावित हुए या जिन्होंने अपनी जान गंवाई.

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असंगठित श्रमिकों के मामले में डाटा का अभाव कोई संयोग नहीं बल्कि ढांचागत खामी का नतीजा है. श्रम बल को अनौपचारिक इसलिए बनाया जाता है ताकि उसे अनियमित और बेनाम रखकर श्रम लागत को कम किया जा सके. दुनियाभर में पिछले तीन दशकों से उत्पादन ढांचे का जो विकेंद्रीकरण हो रहा है, उसका नतीजा सस्ते श्रम स्थलों पर केंद्रित ग्लोबल सप्लाई चेन के फलने-फूलने और अनौपचारिक श्रम क्षेत्र बढ़ने के रूप में सामने है.

ई-श्रम की बाध्यताएं

मोदी सरकार ने पंजीकरण कराने की जिम्मेदारी असंगठित कामगारों पर डालकर आसान रास्ता चुना है. ऐसा प्रावधान लागू करने के लिए कानूनी रास्ता कुछ समय पहले ही लागू सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 और व्यवसायगत सुरक्षा स्वास्थ्य कार्य स्थितियां संहिता 2020 (ओएसएचडब्ल्यूसी कोड 2020) की कुछ धाराओं से निकलता है. सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 की धारा 109 और 113 के तहत क्रमशः केंद्र और राज्य सरकारों को असंगठित और दिहाड़ी/प्लेटफॉर्म मजदूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाएं तैयार करनी हैं. वहीं, ओएसएचडब्ल्यूसी कोड 2020 की धारा 21(2) के तहत केंद्र सरकार को प्रवासी अनौपचारिक श्रमिकों के स्व-पंजीकरण के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल बनाना था. ई-श्रम पोर्टल की शुरुआत को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए. इस प्रक्रिया में कई गंभीर बाध्यताएं हैं.

सबसे पहली बात तो यह कि असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों में ऐसी सुविधा मिलने की शुरुआत के बारे में जागरूकता की भारी कमी है. श्रम प्रशासन में ऐसी सूचनाओं का ठीक से प्रसार न हो पाना एक गंभीर मुद्दा है. पुराने अनुभव बताते हैं कि जब भी विभिन्न राज्य सरकारों ने सामाजिक सुरक्षा योजनाएं शुरू कीं, तो लाभार्थियों के पंजीकरण कराने में बहुत समय लगा और कई बार तो एक दशक या उससे भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी एक बड़े वर्ग को इसके बारे में कोई जानकारी तक नहीं थी. उदाहरण के तौर पर सभी राज्यों में गठित निर्माण कल्याण बोर्ड के तहत निर्माण मजदूरों का पंजीकरण 15 साल या उससे भी अधिक समय के बाद भी असंतोषजनक स्थिति में ही है.

दूसरा, अधिकांश असंगठित कामगार ऑनलाइन पंजीकरण करने में असमर्थ हैं. सीधी बात कि उन्हें नहीं पता कि ये कैसे करना है. सामान्य तौर पर किसी भी व्यक्ति द्वारा आवश्यक दस्तावेज अपलोड करके ऑनलाइन पंजीकरण कर लेना बहुत आसान काम लगता है और इसमें डिजिटल साक्षरता और ऐसे साधनों तक पहुंच के तथ्य को नजरअंदाज कर दिया जाता है. हालांकि, हकीकत में चीजें इतनी आसान नहीं होती हैं.

तीसरा, यदि असंगठित कामगार अपना पंजीकरण करा लेते हैं, तो सरकार की तरफ से लागू सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लाभ पाने के हकदार बन जाते हैं. लेकिन, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लाभ और संस्थागत श्रम कानूनों के तहत मिलने वाले अधिकार पूरी तरह से भिन्न होते हैं. विभिन्न सरकारों की तरफ से लागू की जाने वाली सामाजिक सुरक्षा योजनाएं राज्य की सामाजिक कल्याण पहल होती हैं. श्रम अधिकार इससे पूरी तरह अलग होते हैं. उदाहरण के तौर पर मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत 26 सप्ताह के सवेतन अवकाश का मातृत्व लाभ नियोक्ता की तरफ से दिया जाता है. जबकि, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के तहत मातृत्व लाभ के तौर पर आमतौर पर लगभग 10,000 रुपये या उससे अधिक की नकद सहायता दी जाती है. ऐसी सहायता कभी 26 सप्ताह के सवैतनिक अवकाश के बराबर नहीं हो सकती. असंगठित कामगार श्रम अधिकारों और विधायी संरक्षण के लाभों के हकदार हैं. ई-श्रम पोर्टल बहुत होगा तो सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के तहत पात्रता सुनिश्चित कर सकता है. ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकरण का श्रम अधिकारों से कोई लेना-देना नहीं है. ऐसी प्रक्रिया में एक कामगार की पहचान कमजोर होती है वह सिर्फ सामाजिक सुरक्षा योजना के तहत एक लाभार्थी ही होता है.

इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि भारत में असंगठित कामगारों का एक डेटाबेस तैयार करने की जरूरत है. ई-श्रम की शुरुआत को इस दिशा में एक सही कदम माना जा सकता है. लेकिन इस दौरान, अनौपचारिक क्षेत्र के साथ-साथ संगठित क्षेत्र के अनौपचारिक ढांचे में नियोक्ता-कर्मचारी संबंध को औपचारिक बनाने का एक अवसर गंवा दिया गया है. अनौपचारिक को औपचारिक स्वरूप देना काम करने के लिए सुरक्षित माहौल देने की प्रतिबद्धता और आईएलओ की अनुशंसा संख्या 204 से जुड़ा है जो अर्थव्यवस्था को अनौपचारिक से औपचारिक में बदलने की बात करता है. अनौपचारिक कार्य व्यवस्था में नियोक्ता-कर्मचारी संबंध स्थापित करने के साथ डेटाबेस तैयार करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सकता है.

व्यापक श्रम कानून ढांचे के भीतर श्रम अधिकार सुनिश्चित करने में नियोक्ता की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है. अनौपचारिक श्रम व्यवस्था नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों को गोपनीय बनाए रखने पर आधारित है, जिस प्रक्रिया में नियोक्ता तमाम श्रम कानूनों में निहित अपनी जिम्मेदारियों से पूरी तरह बच जाता है. डेटाबेस तैयार करने और अनौपचारिक कार्यक्षेत्र में नियोक्ता-कर्मचारी संबंध निर्धारित करने को राज्य की तरफ से एक तय समयसीमा के भीतर उचित ढंग से की जाने वाले श्रम जनगणना से जोड़ दिया जाना चाहिए. यह डेटाबेस तैयार करने का एक अधिक उपयुक्त तरीका हो सकता है.

यही नहीं, सामाजिक सुरक्षा, आकस्मिक मृत्यु और घायल होने आदि की स्थिति में मुआवजा और व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य जैसे लाभ मुहैया कराने की जिम्मेदारी नियोक्ता की होनी चाहिए. आखिरकार श्रम उत्पादकता से होने वाला लाभ नियोक्ता ही उठाते हैं और विभिन्न श्रम कानूनों के तहत दी जाने वाली सुविधाओं से संबंधित कुछ प्रावधानों के लिए उन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए. ई-श्रम पोर्टल नियोक्ताओं को ऐसी जिम्मेदारियों से बाहर रखता है और इसे सरकार और असंगठित कामगारों के बीच का मामला बनाता है. ई-श्रम पोर्टल में स्वत: पंजीकरण के लिए जिस पूरी प्रणाली की परिकल्पना की गई है, उसमें नियोक्ताओं की भागीदारी शामिल नहीं है. इसे हमारे देश में श्रम अधिकारों के लिए शुभ संकेत नहीं माना जा सकता है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(किंग्शुक सरकार वी.वी. गिरि राष्ट्रीय श्रम संस्थान, नोएडा में एक स्वतंत्र शोधकर्ता हैं और फैकल्टी भी रह चुके हैं. उन्होंने जेएनयू, नई दिल्ली से अर्थशास्त्र में पीएचडी की है. व्यक्त विचार निजी हैं और इनका उन संगठनों से कोई संबंध नहीं है जिनसे वह संबद्ध हैं.)


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