लगभग 35 साल पहले जब मैंने अमेरिकी कांग्रेस में अपनी पहली नौकरी शुरू की, मैं सीनेटरों की इस चीज के लिए मदद करता था कि सुपरकंप्यूटिंग और एडवांस्ड नेटवर्किंग के लिए फेडरल प्रोग्राम का विस्तार कैसे किया जाए. उस वक्त, ‘एडवांस्ड नेटवर्किंग’ का मतलब था नेशनल साइंस फाउंडेशन नेटवर्क, या NFSNET, जो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं और फेडरल सुपरकंप्यूटर लैब्स को एक- दूसरे से जोड़ता था. अच्छे दिनों में, इससे हर सेकंड में 56,000 बिट्स तक ट्रांसमिट हो सकते थे- आपका आम वाई- फाई कनेक्शन आज कम से कम एक हजार गुना तेज है. उस नेटवर्क का डिजाइन और संचालन नेटवर्क इंजीनियरों ने किया था, जिसका फायदा मुख्य रूप से विश्वविद्यालयों और फेडरल रिसर्च लैब के लगभग 1 लाख दूसरे इंजीनियरों और वैज्ञानिकों को मिलता था. उस समय इंटरनेट को मैनेज करना आसान था.
कांग्रेस के कुछ दूरदर्शी सदस्यों और पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश के प्रशासन ने इस रिसर्च नेटवर्क की क्षमता को समझा. उन्होंने प्रस्ताव रखा कि इसे उन लोगों के लिए उपलब्ध कराया जाए जो पैसे चुकाकर इससे जुड़ना चाहते हैं. 1992 तक, गैर- लाभकारी और व्यावसायिक इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स, दोनों NSFNET से जुड़े और अमेरिका और उससे बाहर की रिसर्च कम्युनिटीज के लाखों यूजर्स को सर्विस दी. इस तरह व्यावसायिक इंटरनेट का जन्म हुआ था.
इंटरनेट का विकास
उन शुरुआती वर्षों में, ‘इंटरनेट पॉलिसी’ का मतलब था ज्यादा से ज्यादा लोगों और संस्थानों (खासकर स्कूलों और पुस्तकालयों) को आर्थिक मदद देना जो इंटरनेट से जुड़ना चाहते थे. नीति निर्माताओं ने इंटरनेट डिजाइन करने की या यह तय करने की कोशिश नहीं की कि यूजर्स क्या कर सकते हैं. ‘इंटरनेट गवर्नेंस’ इंजीनियरों और स्टैंडर्ड्स बॉडीज पर छोड़ दिया गया था जो तय करते थे कि नेट पर बिट्स किस रफ्तार से चलेंगे.
लेकिन 1990 के दशक के अंत तक, इंटरनेट बड़ा बिजनेस बन गया था, और ई-कॉमर्स की पहली लहर ने ऑनलाइन उद्यमियों को बेहद अमीर बनाना शुरू कर दिया था. वॉशिंगटन डीसी और दूसरी जगहों के नेताओं ने पुराने नियम- कायदों को हटाकर और डिजिटल हस्ताक्षर और ऑनलाइन पेमेंट को बढ़ावा देकर डिजिटल इकोनॉमी को चालू किया. नेटस्केप, सिस्को, अमेजॉन, एओएल, और याहू जैसी तेजी से बढ़ रही कंपनियों के लिए जनता के उत्साह से उनका हौसला बढ़ा था, जो उपभोक्ताओं और व्यावसायों को इंटरनेट कनेक्शन और नई सेवाएं दे रही थीं.
लेकिन 2010 के दशक तक, नेताओं ने ये बताना शुरू कर दिया कि इंटरनेट किस तरह गुप्त उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा है. नतीजा ये हुआ कि ऑनलाइन प्राइवेसी और डेटा प्रोटेक्शन, ऑनलाइन पोर्नोग्राफी, सरकारी निगरानी, और कारोबार के अनुचित तरीकों से जुड़े मुद्दों को ध्यान में रखते हुए कानून बनने लगा था. लेकिन, कानून टेक्नोलॉजी और नए बिजनेस मॉडलों के साथ कदम नहीं मिला सका. 2013 तक, दि इकोनॉमिस्ट ने एक ओपीनियन आर्टिकल में ‘टेकलैश’ शब्द गढ़ा जो टेक्नोलॉजी के बढ़ते डर और उससे पैदा हुए डिसरप्शन को बताता था. नेताओं ने इंटरनेट कंपनियों की बढ़ती ताकत और संपत्ति का जवाब ग्राहकों के डेटा का दुरुपयोग करने के लिए उन पर बंदिश लगाने या अरबों डॉलर का जुर्माना लगाने के नियमों के साथ दिया.
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टेक टाइटंस का उदय
उन्हें पहले से स्थापित कंपनियां उत्साहित कर रही थीं जिसके बिजनेस मॉडल को नए “टेक टाइटंस” खतरे में डाल रहे थे. इन कंपनियों ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके कानून- निर्माताओं से ऐसे कानून बनवाए जो उन्हें फायदा पहुंचाते थे. साउथ कोरिया में, 2016 से शुरू करके, तीन बड़े नेटवर्क प्रोवाइडरों (जैसे कोरिया टेलीकॉम) ने कोरियाई सरकार को राजी किया कि वो उन्हें सब्सिडी दें और इसके लिए विदेशी और छोटी नेटवर्क कंपनियों से एक्स्ट्रा इंटरनेट कनेक्शन फीस वसूली जाए. आज, यूरोपीय टेलीकॉम कंपनियां ऐसे ही नियम बनाने और अपने कंज्यूमरों की सर्विसेज पर नियंत्रण हासिल करने के लिए यूरोपीय कमीशन को राजी करने की कोशिस कर रही हैं.
ऑस्ट्रेलिया में, प्रमुख मीडिया कंपनियों ने सरकार को फेसबुक जैसी सोशल मीडिया कंपनियों पर तथाकथित ‘मर्डोक टैक्स’ लगाने के लिए राजी किया, अगर वे वेब पर ऑस्ट्रेलियाई समाचार लेखों से जुड़ी हों। रूपर्ट मर्डोक के न्यूज कॉर्प जैसी प्रमुख मीडिया कंपनियों द्वारा इस तरह की किराए की मांग इंटरनेट के खुलेपन को खतरे में डाल रही है और उन सेवाओं और सूचनाओं को सीमित कर रही है जिनका इस्तेमाल यूजर्स कर सकते हैं – इससे सरकार- निर्मित एकाधिकार और अल्पाधिकार (सेवाओं पर कुछेक कंपनियों का नियंत्रण) पैदा होता है जिससे नए प्रतिस्पर्धियों के लिए मुश्किलें आती हैं.
वैश्विक इंटरनेट की खुली और एक- दूसरे से जुड़ी प्रकृति के लिए और भी गंभीर खतरा है- डिजिटल अर्थव्यवस्था को ‘हम बनाम वे’ के संदर्भ में देखने की राष्ट्रवादी नेताओं की बढ़ती प्रवृत्ति. इंटरनेट के शुरुआती 20 वर्षों में ‘शेयर एंड शेयर अलाइक’ मॉडल ने नेटवर्क क्षमता और नई सेवाओं दोनों को असाधारण ढंग से बढ़ावा दिया. मेटकाफ का नियम, जो इंटरनेट के शुरुआती दिग्गजों में से एक के नाम पर रखा गया है, हमें बताता है कि नेटवर्क कनेक्शन की संख्या को दोगुना करने से नेटवर्क की ताकत और उपयोगिता चार गुनी हो जाती है. इसका फायदा हर किसी को हो सकता है. लेकिन अब कंपनियां और देश लालची हो गए हैं, बेहद लालची.
उन्होंने चीन को देखना शुरू किया, जिसने ज्यादा से ज्यादा विदेशी इंटरनेट कंपनियों को चीन में काम करने से रोक दिया. ऐसा नहीं कि चीन इंटरनेट के इनोवेशन से खुद को अलग- थलग करना चाहता था, बल्कि वो इंटरनेट को छोटे टुकड़ों में बांटने का मॉडल विकसित कर रहा था. उदाहरण के लिए, आज, अमेरिकी कंपनियां दुनिया भर की सरकारों को शॉर्ट- फॉर्म वीडियो होस्टिंग सर्विस टिकटॉक पर रोक लगाने के लिए मनाने में लगी हैं. भारत ने भी चीन के ऐसे सैकड़ों ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया है. डेटा प्रोटेक्शन, प्राइवेसी की जरूरतों और राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं के आधार पर ऐसे कदमों को सही ठहराया जा सकता है. लेकिन अक्सर, ऐसे कदमों के पीछे मुख्य वजहें संरक्षणवाद और प्रतिस्पर्धा में लाभ चाहने वाली कंपनियां होती हैं. ‘तकनीक शीत युद्ध’ की मूर्खतापूर्ण बातें वैश्विक बाजारों तक पहुंचने की ऑनलाइन इनोवेटर्स की अगली पीढ़ी की क्षमता को सीमित करने का खतरा पैदा करती हैं.
नीति निर्माताओं को क्या करना चाहिए
डेटा एक ऐसा संसाधन है जिसका इस्तेमाल आप बार- बार कर सकते हैं. आप लाखों बार इसकी कॉपी बना सकते हैं, और इसे दूसरे लोगों के साथ साझा कर सकते हैं ताकि वे इसे दूसरे अलग डेटा के साथ मिलाकर कुछ नए और बेहतर इस्तेमाल की तलाश कर सकें. इसी वजह से डिजिटल इकोनॉमी 20वीं शताब्दी के मध्य की उस अर्थव्यवस्था से बुनियादी तौर पर अलग है, जो कोयला, तेल और इस्पात जैसे सीमित संसाधनों से बनी थी.
डिजिटल बदलाव का मतलब सिर्फ मशान लर्निंग, क्लाउड कंप्यूटिंग, और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) जैसी ताकतवर, नई प्रौद्योगिकी नहीं है. इसके दायरे में डेटा- संचालित नए बिजनेस मॉडल और सहयोग के नए मॉडल भी आते हैं. नीति निर्माताओं को नए कानूनी उदाहरण अपनाने की जरूरत है ताकि उनके देश डिजिटल इनोवेटर्स और उनके ग्राहकों द्वारा बहुत बड़े पैमाने पर विकसित किए जा रहे डेटा का फायदा उठा सकें.
ऐसा तभी होगा जब वे किसी एक कंपनी का पक्ष लेने की कोशिश बंद कर दें या ऐसा ना सोचें कि वे उनके देश की अर्थव्यवस्था को तेजी से तभी बढ़ा सकते हैं जब वे अधिक उत्पादक और सक्षम बनने के लिए दूसरे देशों द्वारा इस्तेमाल हो रहे डेटा और सर्विसेज से खुद को अलग कर लें. इसके बजाय, उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए अपने नागिरकों को सशक्त बनाना – बेहतर डिजिटल टूल्स तक उनकी पहुंच बनाना, सूचना और डेटा को साझा करने की ज्यादा काबिलियत देना, और अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित करना ताकि वे समझ सकें कि किस तरह कुछ सरकारें और कंपनियां उनके फायदे उठा सकती हैं.
जिस तरह शुरुआती इंटरनेट इंजीनियरों ने उस नेटवर्क को डिजाइन किया जिसे वे इस्तेमाल करना चाहते थे, आज के यूजर्स के पास उनकी पसंद का इंटरनेट चुनने की आजादी और टूल्स होने चाहिए.
माइकल आर. नेल्सन कार्नेगी एंडाउमेंट्स टेक्नोलॉजी एंड इंटरनेशनल अफेयर्स प्रोग्राम में सीनियर फेलो हैं, जो डिजिटल टेक्नोलॉजी, बायोटेक्नोलॉजी, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस समेत उभरती प्रौद्योगिकियों के प्रभावों का अध्ययन करता है. उनका ट्विटर हैंडल है @MikeNelson. यहां उनके निजी विचार व्यक्त किए गए हैं.
यह लेख प्रौद्योगिकी की भू-राजनीति की पड़ताल करने वाली सीरीज का हिस्सा है, जो कार्नेगी इंडिया के सातवें ग्लोबल टेक्नोलॉजी समिट की थीम है. विदेश मंत्रालय के साथ संयुक्त मेजबानी में ये समिट 29 नवंबर से 1 दिसंबर तक हुई. प्रिंट इसमें डिजिटल सहयोगी है. सभी लेख यहां पढ़ें.
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(अनुवाद: आदिता सक्सेना)
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