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Saturday, 4 May, 2024
होममत-विमतलोग आशावान हैं, अर्थव्यवस्था अपनी चाल से आगे बढ़ रही है, अभी उसमें तेज़ी आने की उम्मीद नहीं है

लोग आशावान हैं, अर्थव्यवस्था अपनी चाल से आगे बढ़ रही है, अभी उसमें तेज़ी आने की उम्मीद नहीं है

‘वर्तमान आम आर्थिक स्थिति’ के आकलन पिछले दो साल से सुधार दर्शा रहे हैं, लेकिन सूचकांक 2019 के, जब आर्थिक सुस्ती आ गई थी, आंकड़े से ऊपर नहीं गया है.

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भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) उपभोक्ताओ और व्यापार जगत का समय-समय पर जो सर्वे करता है वह आर्थिक वृद्धि, मुद्रास्फीति जैसे व्यापक आर्थिक आंकड़ों के मुकाबले अक्सर ज्यादा कुछ उज़ागर कर जाते हैं.

ऐसे सबसे ताज़ा सर्वे से हासिल जानकारियां, व्यापार तथा वित्त जगत की राय कुल मिलकर इसी आशावादिता को प्रतिबिंबित करती हैं कि अर्थव्यवस्था का विस्तार हो रहा है और उसे स्थिरता के संकेतकों और मजबूत बैलेंसशीटों का सहारा मिल रहा है. सर्वे में शामिल किए गए आर्थिक भविष्यवक्ताओं की ओर से भी इसकी पुष्टि हुई है.

देश में जब त्योहारों का मौसम शुरू हो रहा है तब इन सामूहिक उम्मीदें की पुष्टि घटती मुद्रास्फीति, बढ़ते औद्योगिक उत्पादन, बेरोज़गारी में कमी, टैक्स से आय में वृद्धि, और कई सेक्टरों की अच्छी वृद्धि के ताज़ा आंकड़ों से हो रही है.

लेकिन बारीकियों और सूक्ष्म अंतरों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए उदाहरण के लिए, उद्योग के क्षेत्र में मैनुफैक्चरिंग पिछड़ रही है और वह गति पकड़ेगी, इसके संकेत भी नहीं हैं.

उदाहरण के लिए, मैनुफैक्चरिंग में क्षमता के दोहन का प्रतिशत महज 70 के आंकड़े के इर्दगिर्द ही बना हुआ है. पिछले सात-आठ साल से यही स्थिति बनी हुई है (सिवाय कोविड के दौरान तेज़ गिरावट के). जब क्षमता के दोहन का स्तर इससे ऊपर उठता है तब क्षमता वृद्धि के लिए अहम निवेश आने की उम्मीद होती है, लेकिन आर्थिक वृद्धि को गति देने वाली बात होती नहीं दिख रही.

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इसकी पुष्टि नए ऑर्डर्स के बारे में मैनुफैक्चरर्स की रिपोर्ट से होती है. ऐसे ऑर्डर्स में वृद्धि (एक साल पहले की तुलना में) में पिछली चार तिमाहियों में तेज़ी से घटी है. यह शानदार 40 फीसदी से अप्रैल-जून में लगभग शून्य पर पहुंच गई. उछाल न दिखने के बावजूद व्यवसाय अपेक्षा सूचकांक (यह आंकड़ा 2015-16 से लिया जा रहा है) अपने अब तक के उच्चतम स्तर 135.4 पर है.

इसी के साथ, उपभोक्ताओं का सर्वे इससे कम आशावादी मूड दर्शाता है. ‘वर्तमान आम आर्थिक स्थिति’ के आकलन पिछले दो साल से सुधार दर्शा रहे हैं, लेकिन सूचकांक 2019 के, जब आर्थिक सुस्ती आ गई थी, आंकड़े से ऊपर नहीं गया है.

जो लोग यह सोचते हैं कि उनकी स्थिति बदतर ही हुई है, उनकी संख्या उन लोगों से ज्यादा बनी हुई है जो अपनी स्थिति में सुधार (बेशक मामूली ही) देख रहे हैं. रोज़गार के मामले में भी यही स्थिति है. गिरावट देखने वालों की संख्या सुधार (मामूली) देखने वालों से ज्यादा है.

महंगाई चिंता का सबसे बड़ा सबब है. 80 फीसदी से ज्यादा लोगों का कहना है कि कीमतों में वृद्धि की रफ्तार तेज़ है. अगले साल कीमतों के काबू में आने की ज्यादा उम्मीद भी नहीं है.

उपभोक्ताओं का कहना है कि उनके खर्चे बढ़े हैं, लेकिन ज़रूरी चीजों पर ही. गैरज़रूरी चीज़ों पर खर्चे घटे हैं. सकारात्मक बात यह है कि एक द्विमासिक सर्वे से दूसरे सर्वे में उपभोक्ताओं का नकारात्मक मत घट रहा है; कई लोगों को अपनी स्थिति कठिन महसूस हो रही है मगर उनका प्रतिशत कम हो रहा है.

इसके अलावा, भविष्य को लेकर उम्मीद कायम है. लगभग सभी मामलों में भविष्य को लेकर उम्मीद वर्तमान स्थिति के मुकाबले बेहतर है.

कुछ बारीकियां टिप्पणी की मांग करती हैं. रोज़गार की स्थिति कुछ सुधरी है. इसकी वजह यह है कि स्वरोज़गार में लगे लोगों की संख्या बढ़ी है, जबकि वेतन वाली नौकरियों की संख्या घटी है. इसका अर्थ यह हुआ कि स्वरोज़गार वह खाई है जो उन बेरोज़गारों को सोख लेती है जिन्हें वेतन वाली नौकरियां नहीं मिलतीं या उन अनौपचारिक कामगारों को जिन्हें अपने औजारों का सहारा लेना पड़ता है. अगर ऐसा है तो रोज़गार के आंकड़ों में सुधार भ्रामक है.

एक और आंकड़ा, जिस पर व्यापक तौर पर टिप्पणी की जाती है वह है — बैंकों द्वारा दिए गए उधार में अच्छी वृद्धि के मामले में सबसे ज्यादा वृद्धि खुदरा और व्यक्तिगत कर्जों में आई है. इसकी वजह शायद यह है कि कई कंपनियों के पास भरपूर नकदी है और उन्हें उधार की ज़रूरत नहीं है. उधर उपभोक्ताओं को अपने भविष्य को लेकर भरोसा है और वे कर्ज लेकर वाहन, घर आदि खरीद सकते हैं.

आरबीआई ने यह चेतावनी देकर अच्छा किया है कि घरेलू कर्जों में वृद्धि के साथ जुड़े जोखिम पर नज़र रखने की ज़रूरत है.

इसलिए, अर्थव्यवस्था की कुल तस्वीर उम्मीदों के रंग से बनी दिखती है, जिसमें निराशा के भी कुछ रंग जुड़े हैं. इस तरह, अर्थव्यवस्था 6 फीसदी की ‘नई-पुरानी सामान्य दर’ से खरामा-खरामा आगे बढ़ रही है. दुनियाभर के देशों का जो हाल है उसके मद्देनजर यह रफ्तार उम्दा ही है, लेकिन हाल-फिलहाल में इसकी रफ्तार बढ़ने के संकेत नहीं हैं.

(बिजनेस स्टैंडर्ड से स्पेशल अरेंजमेंट द्वारा)

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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