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Sunday, 13 October, 2024
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डिजाइनर बच्चे या जातिगत श्रेष्ठता का नाजीवादी अहंकार

क्या गर्भ-संस्कार के जरिए 'गोरा, लंबा और अनुकूलित बच्चा' पैदा करने की सोच के पीछे जर्मनी के हिटलर दौर की आर्य श्रेष्ठता का सिद्धांत काम नहीं कर रहा है?

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कुछ समय पहले ये खबर आई थी कि आरएसएस की चिकित्सा शाखा आरोग्य-भारती ‘गर्भ-संस्कार’ के जरिए बच्चों को गर्भ में ही ‘सुसंस्कारी’ बनाने का दावा कर रही है कि इसके जरिए प्रतिभाशाली ऑलराउंडर बच्चों को पैदा किया जा सकता है. तब दावा यह भी किया गया था कि इस विधि से साढ़े चार सौ संतानें जन्म ले चुकी हैं. इसी तरह की एक खबर ये भी आई थी कि आईवीएफ तकनीक से गर्भधारण करने के मामले में दंपति ब्राह्मणों के वीर्य को ज्यादा पसंद कर रहे हैं. ऐसी खबर भी छपी थी कि निस्संतान दंपति गोरे और हाई आईक्यू वालों के स्पर्म की मांग कर रहे हैं. इसी तरह विक्की डोनर फिल्म में डॉक्टर विक्की को बताता है कि वह आर्य है और उससे श्रेष्ठ बच्चे पैदा होते हैं. हाल में नेटफ्लिक्स पर लैला में भी मिश्रित बच्चों को माओं से दूर करने और एक तरह की शुद्ध प्रजाति विकसित करने की योजना का भयावह चित्रण किया गया था.

अगर इन बातों को मिलाकर देखें तो समझ पाना मुश्किल नहीं होगा कि भारत में सत्ताधारी सामाजिक समूहों के भीतर खुद को श्रेष्ठ मानने का चलन किस हद तक मौजूद है और इसके लिए वे किस हद तक मानवीय नैतिकता को ताक पर रख सकते हैं और किस तरह हास्यास्पद होने की हद तक निर्लज्ज हो सकते हैं. साथ ही ये भी पता चलता है कि श्रेष्ठता की भारतीय परिकल्पना कितनी नस्लवादी है और कमजोर और वंचित लोग भी इसके किस हद तक शिकार हैं. अगर ये न होता तो गोरेपन को सुंदरता का आधार क्यों माना जाता?

डिजाइनर बच्चा पाने की विधि!

बहरहाल, आरोग्य भारती में अपनाई जा रही प्रक्रिया ‘गर्भ विज्ञान संस्कार’ के तहत एक ‘परफेक्ट’ संतान पाने के लिए माता-पिता का तीन महीने का ‘शुद्धिकरण’, ग्रहों के मुताबिक संभोग, गर्भवती हो जाने के बाद पूरी तरह से परहेज और प्रक्रियात्मक और सही भोजन वगैरह नियमों का पालन करना होगा. यह ‘परफेक्ट’ संतान कैसी होगी? दावे के मुताबिक, ‘गर्भ संस्कार’ एक वैज्ञानिक रूप से सिद्ध तथ्य है. यह गर्भावस्था के दौरान गर्भ में अजन्मे बच्चे के शिक्षण और संबंध का अद्भुत तरीका है. दावा है कि अगर सही प्रक्रिया का पालन किया जाए, तो बच्चे का बौद्धिक स्तर काफी ऊंचा हो सकता है और कम लंबाई वाले और सांवले अभिभावक भी लंबी और गोरी संतान पा सकते हैं! इस बात को साबित करने के लिए उनके पास अभिमन्यु की कथा है जिसने गर्भ में रहने के दौरान ही चक्रव्यूह को तोड़ने की विधि सीख ली थी.


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एक काफी पुराना संदर्भ है कि 2001 में जर्मनी में भौतिक विज्ञान में नोबेल सम्मानित वैज्ञानिकों के सम्मेलन में ‘चाइल्ड वंडर’ तथागत तुलसी भेजा गया था. उनके पिता का तर्क था कि उन्होंने तथागत तुलसी को अप्रतिम प्रतिभा सहित पैदा करने के लिए पत्नी के गर्भधारण के समय कुछ नियमों का पालन किया था. सम्मेलन में भेजे गए तथागत तुलसी की काफी फजीहत हुई थी. तथागत तुलसी अब अपने जीवन में कोई चमत्कार नहीं कर रहे हैं. हालांकि, इसमें कोई शक नहीं कि वे प्रतिभाशाली हैं (हालांकि उतने नहीं, जितने का दावा था), लेकिन उनकी प्रतिभा और गर्भधारण के समय किए गए उपायों का संबंध वैज्ञानिक रूप से साबित नहीं किया जा सका है. ऐसा होने तक ये गप ही है.

कुछ समय पहले जब चीन में ‘डीएनए’ में छेड़छाड़ करके पैदा कराई गई ‘डिजाइनर बेबी’ का मामला सामने आया था, तो इसकी तीखी आलोचना भी हुई थी. कुदरत के नियमों से छेड़छाड़ बताते हुए इसे न सिर्फ विज्ञान, बल्कि नैतिक तौर पर भी गलत बताया गया.

इसके उलट हमारे यहां कुछ सक्षम समुदायों के बीच से और ज्यादा क्षमता वाला बच्चा पैदा कराने के लिए ‘गर्भ-संस्कार’ जैसे हास्यास्पद तौर-तरीकों का सहारा लेने की कोशिश होती है और उसके जरिए जातीय श्रेष्ठता जैसी अमानवीय धारणाओं को मजबूत करने की कोशिश की जाती है.

वंचना और गुलामी की नई कथा

पहली नजर में देखें तो इससे किसे आपत्ति हो सकती है कि बच्चे बेहद बुद्धिमान हों. अगर आपकी मंशा है तो वे गोरे हों, लंबे हों, तो ये आपका निजी मामला हो सकता है, हालांकि ये बेहद नस्लवादी बात है. लेकिन अगर ‘गर्भ संस्कार’ की यह विधि सचमुच कारगर है और वही नतीजे देती है, जो बताया गया है, तो ऐसे बच्चे किनके होंगे? इन बच्चों की ‘उच्च बौद्धिक क्षमता’, उनके लंबा और गोरा होने का क्या इस्तेमाल किया जाएगा? अगर इसमें बेटा और बेटी चुनने का विकल्प होगा तो कितने ऐसे लोग होंगे जो बेटी पैदा करने का फैसला करेंगे?

फिलहाल इसे किसी अंधविश्वास से ज्यादा दर्जा नहीं मिल सका है, लेकिन अगर ऐसा होता भी है, तो समाज का एक बेहद छोटा हिस्सा ही इसके दायरे में आ सकेगा. आरएसएस की संस्था का यह ‘प्रोजेक्ट’ एक दशक से ज्यादा समय से गुजरात में चल रहा था और दावे के मुताबिक इस प्रक्रिया के तहत अब तक देश भर में साढ़े चार सौ बच्चों का जन्म हो चुका है. सवाल है कि बीते करीब डेढ़ दशक में लगभग पांच सौ गोरे, लंबे और बुद्धिमान पैदा हुए बच्चों के परिवार किस सामाजिक पृष्ठभूमि के होंगे? ‘गर्भ-संस्कार’ के वे गोरे, लंबे और बुद्धिमान बच्चे किस काम में लाए जाएंगे? क्या यह सामाजिक वर्चस्व का एक ऐसा नया ढांचा खड़ा किया जा रहा है, जहां न केवल मनोवैज्ञानिक रूप से, बल्कि भौतिक रूप से भी समाज के शेष पीछे रह गए समूहों को गुलामी और शासन के दायरे में रखा जाएगा?

किसके हाथ कौन तकनीक

दरअसल, इस गर्भ संस्कार के जरिए इंसानों की नई और मन-मुताबिक फसल उगाने का अनुष्ठान करने का काम जिन लोगों और समूहों ने अपने हाथ में लिया है, उससे यह समझने में मुश्किल नहीं होना चाहिए कि वे इस कथित ‘विधि’ या ‘संस्कार’ की क्या सीमा तय करेंगे. इसकी कामयाबी तो अभी संदिग्ध है, लेकिन इसके पीछे जो विचार है, उस पर गौर करने के बाद यह समझ में आता है कि अतीत में दुनिया के कई हिस्सों में नस्लीय श्रेष्ठता के अमानवीय सिद्धांत के तहत जीने वाले समूहों का दौर अभी खत्म नहीं हुआ है. क्या इस गर्भ-संस्कार के जरिए ‘गोरा, लंबा और अनुकूलित बच्चा’ पैदा करने की सोच के पीछे जर्मनी के हिटलर दौर की आर्य श्रेष्ठता का सिद्धांत काम नहीं कर रहा है?


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आखिर क्या वजह है कि हिटलर का नाजी श्रेष्ठता का सिद्धांत बर्बर, फर्जी और अमानवीय साबित हुआ? आधुनिक तकनीकी का आविष्कार चूंकि मनुष्य के हाथों होता आया है, इसलिए अपने हित में उसका उपयोग एक स्वाभाविक स्थिति है. लेकिन अगर किसी तकनीक का इस्तेमाल समाज के सत्ताधारी तबकों के वर्चस्व को प्राकृतिक स्वरूप देने में करने की कोशिश हो तो सवाल उठने लाजिमी हैं! ‘गर्भ संस्कार’ के जरिए जेनेटिक इंजीनियरिंग करके अपने हित में एक नए नस्ल की फौज खड़ा करने की मंशा और कोशिश भी इसी दिशा में बढ़ते कदम हैं. इस तरह की कवायदों से साफ है कि आरएसएस का सामाजिक-राजनीतिक दर्शन क्या है और वह किस तरह के ढांचे में जीने वाला समाज चाहता है.

(लेखक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक हैं और यह इनके निजी विचार हैं)

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