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Saturday, 23 November, 2024
होममत-विमततानाशाह या डेमोक्रेट्स, किसने कोरोना को बेहतर तरीके से संभाला है और मोदी का भारत कहां है

तानाशाह या डेमोक्रेट्स, किसने कोरोना को बेहतर तरीके से संभाला है और मोदी का भारत कहां है

स्कॉलर रिचर्ड हास कहते हैं कि कोरोनावायरस के इस काल में तानाशाही या लोकतंत्र नहीं, विपत्ति के समय पूरी बात इस पर निर्भर करती है कि आपका नेता और उसका नेतृत्व कैसा है.

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नई दिल्ली: रविवार का दिन देश और देशवासियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि पिछले पांच दिनों से निर्मला सीतारमण का पीएम मोदी के 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणाओं का आखिरी दिन था और दूसरा लॉकडाउन 3.0 का भी. इसी बीच अमेरिका के जाने-माने स्कॉलर रिचर्ड हास ने एक ट्वीट कर दुनिया वालों से एक बड़ा सवाल कर दिया है. उन्होंने पूछ लिया कि कोरोना काल में दुनिया में कौन सी सरकार ने अच्छे से काम किया है. लोकतंत्र वाली ने या तानाशाह वाली ने. लोकतंत्र जर्मनी, अस्ट्रेलिया, ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में हैं और वहां अच्छा कामकाज हो रहा है लेकिन फिर सवाल उठता है कि लोकतंत्र तो अमेरिका और ब्राजील में भी है तो वहां के हालत क्यों खराब हैं.

इसी बीच रिचर्ड हास ने ये भी सवाल उठाया है कि तो क्या जब देश पर सबसे बड़ी क्राइसिस आई हो तो तानाशाही वाले देश अच्छा काम कर रहे हैं. चीन और वियतनाम जैसे देशों ने अच्छा काम किया है लेकिन फिरहास चीन पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं और कहते हैं चीन के आंकड़ों पर भरोसा नहीं है लेकिन वियतनाम ने इस विपत्ती के दौर में कोरोनावायरस को दबा कर एक जुट होकर हटा दिया है. वहीं उन्होंने ईरान और रूस का भी उदाहरण भी दिया है.

कोरोना से लड़ने में नेतृत्व और नेता कैसा है

इन सब बातों के बीच हास फिर कहते हैं कि ना तो तानाशाही और लोकतंत्र बल्कि किसी भी विपत्ती के समय पूरी बात इस बात पर निर्भर करती है कि आपका नेता कैसा है और उसका नेतृत्व कैसा है.

नरेंद्र मोदी जब 2013 में देश में होने वाले 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए कमर कस ली थी और देशभर में घूम-घूम कर सोनिया गांधी के अधिकारों वाली योजनाओं का काफी मजाक भी उड़ाया करते थे. लेकिन रविवार को जब उन्होंने मजदूरों की बात की तो उन्होंने उसी मनरेगा योजना में 40,000 करोड़ अतिरिक्त डालने की बात कही है.

वहीं एक बार फिर मनरेगा को लेकर सवाल खड़ा किया जा रहा है कि अगर 60 साल बाद भी मनरेगा एक फेल्योर स्कीम थी तो आज 60 साल बाद भी उस योजना को क्यों दोहराया जा रहा है. इसका मतलब है भारत आज भी वहीं खड़ा है जहां 60 साल पहले खड़ा था.

भारत, कोरोनावायरस और मोदी

अब सवाल उठता है कि कोरोनावायरस के इस क्राइसिस को भारत ने कैसे संभाला है. दुनियाभर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कोरोनावायरस संक्रमण के मामले में लिए गए सभी फैसले की बहुत सराहना की गई है. और उनके सभी फैसले को सही ठहराया गया है लेकिन इन सब के बीच मोदी से जो सबसे बड़ी गलती हुई की वह मजदूरों को भूल गए. उनकी नजर में लॉकडाउन का फर्क सिर्फ मध्यवर्गीय लोगों और गांव वालों को खेती-किसानी करने वालों पर ही पड़ने वाला था लेकिन उन्होंने मजदूर वाली नई वर्किंग क्लास को बिलकुल नजरंदाज किया या फिर उसे भूल गए.

यही नहीं उन्होंने फिर एक गलती की कि मजदूरों के पलायन को रोकने के लिए एक बार भी आकर उन्हें ढांढस बंधाने की कोशिश नहीं की कि आप जहां हैं वहां रहिए आपके ठेकेदारों, फैक्ट्री मालिकों से हम बात कर रहे हैं..आपके रहने की हम व्यवस्था कर रहे हैं.

पीएम मोदी की इसी भूल ने भारत के सारे किए कराए पर पानी फेर दिया है और भारत के मजदूरों के पलायन की वजह से दुनियाभर में छीछा-लेदर हो रही है. भारत की छवि को मजदूरों के पलायन से गहरा धक्का लगा है. पीएम मोदी को मजा आने लगा है देशवासियों को झटका देने में. अगर वह कोई भी सूचना पांच दिन पहले दें और बता दें तो इंसान अपने आपको तैयार रख सकता है लेकिन वह अचानक ही हर बात की घोषणा करते हैं.

रविवार को लॉकडाउन 4.0 की घोषणा, इसमें क्या कदम उठाए जाने हैं इसकी घोषणा वह 17 को लॉकडाउन खत्म होने के तीन दिन पहले भी कर सकते थे लेकिन नहीं. नोटबंदी के दौरान भी उन्होंने यही किया था, उस समय उनकी बात समझ आती है लेकिन अब समझ नहीं आ रही है.

भारत एक गरीब लोकतंत्र है और अगर इसमें मोदी जी ने जरा भी सही कदम उठाया होता तो रिचर्ड के ट्वीट में जर्मनी, अस्ट्रेलिया के साथ भारत भी होता. भारत और भारतवासियों को हर दिन अचंभित करने की जरूरत नहीं है.

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