जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए विशेष तौर पर प्रगति मैदान में तैयार किए गए कन्वेंशन सेंटर (भारत मंडपम) के उद्घाटन से एक बात तो स्पष्ट है कि अब विज्ञान भवन का दौर गुज़र गया है. जी-20 सम्मेलन से जुड़ा कोई कार्यक्रम इस भवन में नहीं हो रहा. राजधानी के दिल प्रगति मैदान में स्थित नया कन्वेंशन सेंटर 9 और 10 सितंबर में जी-20 के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी के लिए तैयार है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को इसका उद्घाटन किया.
बताया जा रहा है कि नया कन्वेंशन सेंटर दुनिया के शीर्ष 10 कन्वेंशन सेंटर्स में होगा, जो जर्मनी के हनोवर और चीन के शंघाई जैसे विख्यात कन्वेंशन सेंटर को टक्कर देगा. इसके लेवल थ्री पर सात हज़ार लोगों के बैठने की क्षमता है और ये सेंटर बहुत ही भव्य बना हुआ है.
पर एक दौर विज्ञान भवन का भी था. इधर 1956 से लेकर हाल तक न जाने कितने शिखर सम्मेलन, कॉन्फ्रेंस और अन्य सरकारी और गैर-सरकारी कार्यक्रम आयोजित हुए. 1955 में यूनेस्को सम्मेलन की मेज़बानी भारत को मिलने के बाद सरकार ने विज्ञान भवन का निर्माण करवाया था और 1956 में शानदार कार्यक्रम विज्ञान भवन में आयोजित किए गए. उसी साल यहां पर भगवान बुद्ध की 2500वीं जयंती के अवसर पर ‘कला, साहित्य एवं दर्शन पर बौद्ध धर्म के प्रभाव एवं योगदान’’ विषय पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया.
प्रधानमंत्री ने उद्घाटन के दौरान कहा, ‘‘21वीं सदी के लोगों के लिए भारत मंडपम की ज़रूरत है.’’
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा, ‘‘आज दुनिया यह स्वीकार कर रही है कि भारत ‘लोकतंत्र की जननी’ है. आज जब हम आज़ादी के 75 वर्ष होने पर ‘अमृत महोत्सव’ मना रहे हैं, यह ‘भारत मंडपम’ हम भारतीयों द्वारा अपने लोकतंत्र को दिया एक खूबसूरत उपहार है. कुछ हफ्तों बाद यहां जी20 से जुड़े आयोजन होंगे. दुनिया के बड़े देशों के राष्ट्राध्यक्ष यहां उपस्थित होंगे. भारत के बढ़ते कदम और भारत का बढ़ता कद इस ‘भारत मंडपम’ से पूरी दुनिया देखेगी.’’
लुटियंस दिल्ली के केंद्र में स्थित विज्ञान भवन आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के क्षेत्र में आता है. इस भवन का डिज़ाइन तैयार किया था प्रसिद्ध आर्किटेक्ट आर.ए. गहलोते ने जिनका संबंध सीपीडब्ल्यूडी से था.
उन्होंने ही कृषि भवन और उद्योग भवन का खाका भी तैयार किया था. न जाने कितने सरकारी बाबुओं की कितनी पीढ़ियों ने इन भवनों में सारी ज़िंदगी काम करके निकाल दी. गहलोते ने विज्ञान भवन का डिजाइन तैयार करते हुए हिंदू, मुगल तथा बौद्ध वास्तुकला का सम्मिश्रण किया. अब विज्ञान भवन को बने हुए साढ़े छह दशक से अधिक हो रहे हैं, पर अब भी ये किसी भी नई इमारत से उन्नीस नहीं है. गहलोते ने विज्ञान भवन को एक अलग मिज़ाज़ का प्रवेश द्वार दिया. ये काले मार्बल के पत्थर से बना है. आपको शायद ही किसी इमारत का इतना विशाल मुख्य द्वार मिले. उन्होंने छज्जों और जालियों के लिए विज्ञान भवन में स्पेस निकाला.
विज्ञान भवन को एक अलग पहचान यहां पर भित्ति चित्रों से मिलती रही. प्रख्यात मूर्तिकार अमरनाथ सहगल को विज्ञान भवन में भित्ति चित्र बनाने का काम दिया गया. अमरनाथ सहगल ने विज्ञान भवन में कांसे के भित्तिचित्र बनाए और यह कार्य वर्ष 1962 में पूरा हुआ. कितने लोगों को पता है कि जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) भी विज्ञान भवन से ही शुरू हुई थी. जब सरकार ने जी. पार्थसारथी (जीपी) को 1969 में जेएनयू का वाइस चांसलर बनाया तो उन्हें विज्ञान भवन में ही दफ्तर दिया गया था.
यहां 1983 में हुए निर्गुट सम्मेलन को कौन भूल सकता है. इस दौरान 100 से अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्ष यहां पधारे थे. कुछ सालों बाद यहां राष्ट्रमंडल देशों का शिखर सम्मेलन और दक्षेस सम्मेलन भी आयोजित किया गया. यहां कई प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन भी हुए.
पर कुछ साल पहले यहां पर सरकार ने आसियान सम्मेलन का आयोजन न करके खुले तौर पर ये संदेश दे दिया था कि अब विज्ञान भवन का पहले वाला महत्व नहीं रहा.
यह भी पढ़ें: अंग्रेज़ों के ज़माने में यमुना नदी पर बना लोहे का पुल, जो तूफान में भी खड़ा है शान से
बेगम अख्तर का वो आखिरी शो
आप जब जनपथ से मौलाना आज़ाद रोड (पहले किंग एडवर्ड रोड) की तरफ जाएंगे तो सड़क के बायीं तरफ दो ही इमारतें हैं. पहली विज्ञान भवन और फिर उपराष्ट्रपति का आवास. इस सड़क का नाम मौलाना आज़ाद के नाम पर इसलिए रखा गया था क्योंकि देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना आज़ाद के बंगले का पता था 4 किंग एडवर्ड रोड और वे यहां 1947 से लेकर 22 फरवरी 1958 यानी अपनी मृत्यु के दिन तक रहे. उनके दिवंगत होने के बाद किंग एडवर्ड रोड का नाम बदल कर मौलाना आज़ाद रोड कर दिया गया था.
विज्ञान भवन एक बार उस समय चर्चा में आया जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वैचारिक अभिभावक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने घोषणा की थी कि वे 17 सितंबर से सरकारी सम्मेलन केंद्र, विज्ञान भवन में तीन दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला आयोजित करना चाहता है, वह भी आवश्यक अनुमतियों की प्रतीक्षा किए बिना.
बेगम अख्तर की ज़िंदगी का आखिरी खास कार्यक्रम 15 अक्टूबर, 1974 को इसी विज्ञान भवन में हुआ था. उस दिन दिल्ली में जाड़ा दस्तक दे रहा था. बेगम अख्तर को सुनने के लिए विज्ञान भवन खचाखच भरा हुआ था. उस विज्ञान भवन की महफिल में उन्होंने जब अपनी रेशमी आवाज़ में शकील बदायूंनी की लिखी गजल- “यूं तो हर शाम उम्मीदों में गुज़र जाती है…आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया…” गाई तो विज्ञान भवन वाह…वाह करते हुए गूंज उठा था.
बेगम अख्तर मुस्कारते हुए बड़े ही मन से गा रही थीं. उसके बाद उन्होंने शकील बदायूंनी की एक गजल “मेरे हमनफस, मेरे हमनवा, मुझे दोस्त बन के दगा न दे…” भी सुनाई थी. अपनी आवाज़ से दिल्ली को मदहोश करने वाली गायिका ने विज्ञान भवन के कार्यक्रम के 15 दिन बाद ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया था.
अगर हाल के दौर की बात करें तो केंद्र सरकार के अब निरस्त हो चुके तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चले आंदोलन को खत्म करवाने के लिए किसानों और सरकार के बीच वार्ता विज्ञान भवन में ही हुईं. याद नहीं आता कि इससे पहले विज्ञान भवन में कभी वार्ताएं हुई हों. बहरहाल, नया कन्वेंशन सेंटर इसका स्थान लेने वाला है.
क्योंकि ये विज्ञान भवन से हर लिहाज़ से बेहतर है. नए कन्वेंशन सेंटर को इंटरनेशनल मेगा इवेंट, अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन और असाधारण सांस्कृतिक आयोजनों की मेज़बानी करने के लिए तैयार किया गया है. इसमें तीन हजार लोगों के बैठने की क्षमता वाला शानदार एम्फीथियेटर भी है. पर ये तो कहना ही होगा कि विज्ञान भवन का भी अपना जलवा रहा है जो साक्षी है बेहद खास आयोजनों का.
(विवेक शुक्ला वरिष्ठ पत्रकार और Gandhi’s Delhi के लेखक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @VivekShukla108 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)
(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
यह भी पढ़ें: किस गांव से शुरू हुई हरित क्रांति, गेंहू निर्यात पर रोक से खुश हुए जहां के किसान