पांच साल तक भारतीय रेलवे के मंत्री और अधिकारी राष्ट्रीय राजधानी में शानदार, भविष्योन्मुखी, ग्लोबल लेवल के रेलवे स्टेशन के सपने दिखाते रहे. फरवरी 2021 में पूर्व रेल मंत्री पीयूष गोयल ने 6,500 करोड़ रुपये की लागत वाले इस प्रोजेक्ट की तस्वीरों के बारे में ट्वीट भी किया.
उन तस्वीरों को देखकर लाखों दिल गर्व से भर गए. नई दिल्ली रेलवे स्टेशन (एनडीआरएस) को भारत की बढ़ती वैश्विक स्थिति से मेल खाना चाहिए. पिछले साल जनवरी में जब गोयल के उत्तराधिकारी अश्विनी वैष्णव ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि रेलवे स्टेशन के नए स्वरूप की परियोजना से राजधानी के एक बड़े हिस्से में भीड़भाड़ कम होगी, तो दिल्लीवासी और खुश हो गए.
ये सारे बड़े-बड़े वादे शनिवार की देर शाम एक भद्दा मज़ाक लग रहे थे, जब एनडीआरएस में मची भगदड़ में 18 लोगों की मौत हो गई. यह एनडीआरएस में मची अब तक की सबसे भयानक भगदड़ थी. हमारे पास भीड़ प्रबंधन की कोई व्यवस्था भी नहीं है, जबकि हमारे राजनीतिक नेता महाकुंभ के लिए भेजी गई ट्रेनों की संख्या के बारे में शेखी बघारते रहते हैं. हेडलाइन मैनेजमेंट राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे शासन का केंद्रबिंदु नहीं बनना चाहिए. एनडीआरएस भगदड़ से तीन दिन पहले, वैष्णव रेल भवन में तीसरी मंजिल पर स्थित “वॉर रूम” में थे. एक आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, उन्होंने “प्रयागराज रेलवे स्टेशनों की भीड़ प्रबंधन स्थिति की समीक्षा की”. मंत्री ने प्रयागराज स्टेशन के रियल टाइम सीन भी पोस्ट किए, जिन्हें वे दिल्ली से देख रहे थे. मंत्रालय मुख्यालय में 24×7 वॉर रूम कथित तौर पर नई दिल्ली सहित सभी महत्वपूर्ण स्टेशनों पर भीड़ पर नज़र रखता है.
इस्तीफे का दौर नहीं
विपक्ष ने रेल मंत्री के इस्तीफे की मांग की है. उन्हें इसका जवाब पहले से ही पता है. बालासोर रेल दुर्घटना के बाद वैष्णव के साथ कुछ नहीं हुआ — जब करीब 300 लोग मारे गए थे. वास्तव में दुर्घटना के तुरंत बाद ही षड़यंत्र की बातें आने लगी. केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने रेलवे के तीन कर्मचारियों को गिरफ्तार किया. अक्टूबर 2023 में भारतीय रेलवे एसएंडटी मेंटेनर्स यूनियन सिग्नल और दूरसंचार (एसएंडटी) विभाग के तीन आरोपियों को सशर्त ज़मानत देने के ओडिशा हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत कर रहा था.
न्यायाधीश ने कहा, “यह सवाल उठता है…कि क्या दुर्घटना आरोपियों द्वारा किए गए किसी अपराध का परिणाम है…या, यह दुर्घटना…रेलवे ट्रैक और सिग्नल सिस्टम के रखरखाव में रेलवे अधिकारियों की ओर से की गई समग्र लापरवाही का नतीजा है.”
खैर, लापरवाही या जवाबदेही ऐसी चीज़ है जो षड्यंत्र की बातों के नीचे दब जाती है. इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कानपुर रेल दुर्घटना के पीछे “सीमा पार” से “साजिश” का सुझाव देने से हुई, जिसमें 2016 में 150 लोग मारे गए थे. उन्होंने 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए प्रचार करते हुए यह बात कही थी.
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने नवंबर 2016 में मामले को अपने हाथ में ले लिया था. तब से आठ साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी यह अभी भी जांच कर रही है.
मैं यहां यह नहीं कहना चाहता कि वैष्णव को नैतिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए या नहीं. मंत्रियों के ऐसा करने के दिन अब खत्म हो चुके हैं. याद कीजिए कि सितंबर 1956 में महबूबनगर आपदा के बाद जवाहरलाल नेहरू ने लाल बहादुर शास्त्री के इस्तीफे की पेशकश को कैसे अस्वीकार कर दिया था, लेकिन दो महीने बाद तमिलनाडु के अरियालुर ट्रेन दुर्घटना के बाद शास्त्री के आग्रह पर इसे स्वीकार कर लिया था. 1999 में पश्चिम बंगाल में गैसल दुर्घटना के बाद नीतीश कुमार ने अटल बिहारी वाजपेयी को अपना इस्तीफा स्वीकार करने के लिए मजबूर किया था. कुमार कुछ हफ्ते बाद बतौर कृषि मंत्री मंत्रिमंडल में वापस आ गए, लेकिन डेढ़ साल बाद उन्हें रेलवे विभाग वापस मिल गया. 2000 में दो ऐसी दुर्घटनाओं के बाद ममता बनर्जी ने इस्तीफा देने की पेशकश की थी, लेकिन वाजपेयी ने इसे अस्वीकार कर दिया था.
मोदी की शैली अलग है. उनकी सरकार कोई गलत काम नहीं कर सकती. जनवरी में ज़ेरोधा के संस्थापक निखिल कामथ को दिए इंटरव्यू में उन्होंने सिर्फ एक बार गलतियां करने का संकेत दिया था. उन्होंने कहा, “मैं इंसान हूं और गलतियां कर सकता हूं, लेकिन मैं बुरे इरादे से कुछ भी गलत नहीं करूंगा…हर कोई गलतियां करता है, जिसमें मैं भी शामिल हूं. आखिरकार, मैं एक इंसान हूं, कोई भगवान नहीं.”
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प्रधानमंत्री को कोई परेशानी नहीं
2001 में जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने, तब से यह पहली बार था जब मोदी ने कहा कि वे गलतियां कर सकते हैं और चूंकि, वे गलत नहीं हो सकते, तो वे सही मंत्रियों को चुनने में कैसे गलत हो सकते हैं? उन्होंने 2017 में घातक रेल दुर्घटनाओं के बाद सुरेश प्रभु का इस्तीफा तुरंत स्वीकार नहीं किया, बल्कि कुछ हफ्ते बाद उन्हें दूसरे मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया. यह प्रधानमंत्री मोदी की शैली है, जब उनके मंत्रियों की कथित विफलताओं का बचाव करने की बात आती है, तो वे किसी भी सार्वजनिक हंगामे या विपक्ष के दबाव से नहीं घबराते, लेकिन वे ठंडे दिमाग से इसकी सज़ा देते हैं. ज़रा देखिए कि आज सुरेश प्रभु कहां हैं.
वैष्णव की बात करें तो वे सरकार में सक्षम मंत्रियों में से हैं. मोदी के पास उन्हें इतने सारे विभाग देने के कारण हैं — इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी, सूचना और प्रसारण, रेलवे के अलावा. अमित शाह ने उन्हें विभिन्न राज्यों का प्रभारी बनाया, पिछली बार वे महाराष्ट्र में सह-प्रभारी थे. मोदी और शाह विपक्ष की मांग या सार्वजनिक आक्रोश के आगे झुकने के लिए जाने जाते नहीं हैं. वे जानते हैं कि सिस्टम कैसे काम करता है. उन्होंने बालासोर में सिग्नल और दूरसंचार में गड़बड़ी करने वाले कुछ अधिकारियों के लिए रेल मंत्री को दोषी नहीं ठहराया. ठीक उसी तरह जैसे वे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भीड़ प्रबंधन के लिए उन्हें दोषी नहीं ठहराएंगे. वे चौबीसों घंटे काम करने वाले राजनेता हैं, वे समझते हैं कि नैतिक जिम्मेदारी या जवाबदेही का चुनावी तौर पर कोई खास मतलब नहीं है.
आखिरकार, विधानसभा चुनाव से ठीक चार हफ्ते पहले अक्टूबर 2022 में गुजरात के मोरबी सस्पेंशन ब्रिज के ढहने से 141 लोग मारे गए. भाजपा ने मोरबी विधानसभा सीट सहित विधानसभा चुनाव जीते. बालासोर में हुए भयानक रेल हादसे का कोई चुनावी असर नहीं हुआ क्योंकि मतदाताओं ने ओडिशा में बमुश्किल एक साल बाद भाजपा को सत्ता में बैठा दिया.
तो हां, पीएम मोदी को यहां भगदड़ या वहां रेल दुर्घटना के बारे में ज्यादा चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि अमित शाह ने मणिपुर में किस तरह की गड़बड़ी की है और नागा शांति प्रक्रिया या उस रूपरेखा समझौते को पूरा करने में विफल रहे हैं, जिस पर भारत सरकार ने 2015 में इतने प्रचार और हो-हल्ले के साथ हस्ताक्षर किए थे. उन्हें वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पिछले बजट के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, जिसमें उनकी इंटर्नशिप योजना के तहत पांच साल में 10 करोड़ युवाओं को शामिल किया जाना था — औसतन हर साल दो करोड़. जैसा कि इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट की है, अगर आप कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के संसद में दिए गए जवाब पर गौर करें, तो इस साल जनवरी तक केवल 8,000 उम्मीदवार ही इस कार्यक्रम में शामिल हुए.
सीतारमण ने 2025-26 का बजट पेश करते हुए अपने पिछले बजट के मुख्य बिंदु — इंटर्नशिप कार्यक्रम के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा. आप समझ सकते हैं कि क्यों. किसी ने भी 2014 में बनाए गए बहुचर्चित कौशल विकास मंत्रालय की उपलब्धियों के बारे में नहीं पूछा. बस मंत्रालय की वेबसाइट पर जाएं. इसमें “एक उचित कौशल विकास ढांचा विकसित करने, कुशल जनशक्ति की मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को दूर करने…शैक्षणिक संस्थानों, व्यापार और अन्य सामुदायिक संगठनों के बीच मजबूत साझेदारी बनाने…उद्योगों के साथ साझेदारी करने की बात की गई है, जिन्हें कुशल जनशक्ति की आवश्यकता है” और इसी तरह की अन्य बातें आपको मिल जाएंगी. कौशल विकास मंत्रालय को एक दशक तक वही करना था जो सीतारमण ने अंतत: अपने 2024-25 के बजट में किया.
धर्मेंद्र प्रधान के दो कार्यकाल सहित चार कौशल विकास मंत्री रहे हैं. इतने महत्वाकांक्षी और विशाल मंत्रालय के रहते हुए, वित्त मंत्री को इंटर्नशिप कार्यक्रम शुरू करने की क्या ज़रूरत पड़ी? यह कौशल विकास मंत्रालय की विफलता की सार्वजनिक स्वीकारोक्ति की तरह है.
वैसे भी, मैं यहां मंत्रालयों के कामकाज या उपलब्धियों में नहीं जा रहा हूं. जैसा कि मैंने कहा कि मोदी को मंत्रियों या मंत्रालयों के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. आखिरकार, लोग उन्हें वोट देते हैं और उनका पीएमओ तय करता है कि कौन क्या करता है, लेकिन क्या मोदी चाहते हैं कि उनके ब्रांड को रेल दुर्घटनाओं, मणिपुर की विफलता, ‘स्किल इंडिया’ मिशन की विफलताओं और ऐसी ही अन्य चीज़ों से दूर से भी जोड़ा जाए? उनके मंत्रियों की विफलताएं उनके टेफ्लॉन या टाइटेनियम कोट में छेद कर रही हैं.
ब्रांड मोदी
खैर, पीएम मोदी को अपने ब्रांड को बचाने के लिए उन्हें हर मंत्री की जवाबदेही के बारे में जनता की धारणा को बदलने की ज़रूरत है. सबसे पहले, उन्हें आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू से सीख लेनी चाहिए. उनके मंत्री पद की रैंकिंग देखिए. पिछली रैंकिंग में, उन्होंने खुद को छठे स्थान पर, अपने बेटे लोकेश को आठवें स्थान पर और अपने डिप्टी पवन कल्याण को 10वें स्थान पर रखा था.
कल्याण परेशान हो सकते हैं — और यह एक ऐसी बात है जिस पर हम किसी और वक्त चर्चा करेंगे, लेकिन तथ्य यह है कि नायडू इसे व्यवस्थित तरीके से करते हैं. वे अपने मंत्रियों के पास जाने वाली सभी फाइलों पर नज़र रखते हैं और देखते हैं कि वे उन्हें कितनी जल्दी निपटाते हैं. उनके पास सर्वेक्षण एजेंसियां हैं जो उन्हें बताती हैं कि उनके मंत्रियों में से कौन लोगों की शिकायतों का जवाब देता है और कितनी जल्दी. उन्होंने विजयवाड़ा बाढ़ के दौरान IVRS या इंटरैक्टिव वॉयस रिस्पॉन्स सिस्टम भी लगवाया था ताकि वे हर छह घंटे में छतों पर बैठे लोगों को कॉल कर सकें और पूछ सकें कि राहत सामग्री उन तक पहुंचने में कितना समय लगा और वे सरकार की कोशिशों को कितनी रेटिंग देंगे. यह लोगों से सीधे फीडबैक लेना था.
नायडू इसी तरह अपने मंत्रियों और अधिकारियों को अलर्ट रखते हैं. अब वक्त आ गया है कि मोदी नायडू को फोन करें और चर्चा करें कि इसे राष्ट्रीय स्तर पर कैसे दोहराया जाए. उन्हें यह संकेत देना चाहिए कि चाटुकारिता या ‘मोदी भक्ति’ काम का विकल्प नहीं है क्योंकि यह ब्रांड मोदी को नुकसान पहुंचा रहा है.
(डीके सिंह दिप्रिंट के पॉलिटिकल एडिटर हैं. उनका एक्स हैंडल @dksingh73 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)
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