छोटे बच्चों से झूठ बोलने वालों के लिए नर्क में एक विशेष जगह आरक्षित है. एक युवा जो भी भयानक काम कर सकता है, उनमें से कुछ इससे भी बदतर हैं: जैसे कि आप बच्चों के मन में जहर और नफरत भर दें.
पाकिस्तान इसे आजमा चुका है. दिवंगत इतिहासकार जेएन ‘मणि’ दीक्षित ने मुझे एक बार एक अजीब शाम के बारे में एक कहानी सुनाई थी जब वह इस्लामाबाद में भारत के दूत के रूप में तैनात थे. दोस्ताना और नेकदिल पाकिस्तानियों द्वारा रात के खाने के लिए उन्हें आमंत्रित किया गया, तभी उसके मेजबानों की युवा बेटी ने कमरे में प्रवेश किया. उसके माता-पिता ने उससे कहा: ‘अंकल भारत से हैं!’ और बच्ची ने तुरंत नाचना शुरू कर दिया.
जिस कुर्सी पर दीक्षित बैठे थे, उसके चारों ओर वो नाचने लगी और जोर से गाने लगी “हिंदू कुत्ता, हिंदू कुत्ता.”
ये सब देखकर दीक्षित अचंभित रह गए.
उन्होंने मुझे बताया, “यही तो उन्हें स्कूल में पढ़ाया जाता है.” “यहां तक कि बहुत छोटे बच्चों के लिए पाठ्यपुस्तकों में भी, अगर वे दुनिया को ‘ज़ालिम’ दिखाना चाहते हैं तो वे एक सरदारजी का चित्र रखते हैं. हिंदुओं को चतुर, धूर्त और धनवान के रूप में चित्रित किया जाता है. उनके दिमाग में बनिया शब्द हिंदू का पर्यायवाची है.”
मैं दीक्षित की कहानी से भयभीत था, यही वजह है कि दो दशक बाद भी यह कहानी मेरे जहन में बनी हुई है. और जो झूठ पाकिस्तानियों ने बच्चों से कहा, वह यह समझाने में मदद कर सकता है कि आज उनके देश की क्या स्थिति है—बाकी दुनिया के बारे में नफरत, कांस्पीरेसी थ्योरी और गलत धारणाओं से भरा हुआ.
मुझे कभी नहीं लगा कि सहिष्णु, विविध और बहुलतावादी भारत में कभी ऐसा कुछ हो सकता है. इस तरह का व्यवहार- बच्चों में नफरत भरना- पाकिस्तान जैसे असफल राज्यों का लक्षण था. हम उससे बहुत, बहुत, बहुत बेहतर थे.
लेकिन अब मैं सुबह उठता हूं और खुद से पूछता हूं: क्या हम इससे बेहतर हैं? क्या हम जो करने की कोशिश कर रहे हैं, क्या वह वास्तव में उससे बहुत अलग है जो पाकिस्तानियों ने किया?
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पाठ्यपुस्तकों का पुनर्लेखन
जिस तरह कुछ पाकिस्तानियों ने अपने बच्चों को ‘हिंदू कुत्ता’ कहना सिखाया, उसी तरह हमारे शैक्षणिक प्रतिष्ठान में कई लोग हमारे इतिहास से मुसलमानों को बाहर निकालने की कोशिश कर रहे हैं.
एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों के पुनर्लेखन के बारे में हालिया विवाद से कोई संदेह नहीं है कि उनका इरादा क्या है. यह भारत को उसके इतिहास से वंचित करने और मुसलमानों को बर्बर के रूप में चित्रित करने की पहल का हिस्सा है, जिन्होंने भारत पर केवल बलात्कार, लूट और हत्या के लिए हमला किया. उन्हें ऐसे लोगों के रूप में चित्रित किया गया है जिनमें संस्कृति या कोई सभ्यतागत मूल्य नहीं हैं, जो सौंदर्य या कलात्मक महत्व की किसी भी चीज़ का निर्माण करने में अक्षम थे और जिनका भारत में शासन हमारे इतिहास का सबसे काला काल था, इतना अंधेरा, वास्तव में कि इसे पूरी तरह से हटा दिया जाना चाहिए.
शिक्षा इस स्वदेशीकरण का एक हिस्सा है. उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में हमारी साझा विरासत को सम्मान देने से इंकार करना दूसरी बात है. ताजमहल जैसे स्मारकों को या तो प्रचारित नहीं किया जाता है या इस तरह वर्णित किया जाता है कि उन्हें बनाने वाले श्रमिकों ने कितना कष्ट उठाया.
जब ऐसी चीज़ें काम नहीं करती, तो फ्रिंज तत्व इस स्मारक को हिंदुओं के लिए दावा करने की कोशिश करते हैं. फतेहपुर सीकरी जाहिर तौर पर एक हिंदू शहर था जिस पर मुगलों ने राज किया या इस तरह की बात कि ताजमहल एक हिंदू महल था.
ये कोई नए विचार नहीं हैं. जब मैं स्कूली छात्र था तो हम इतिहासकार पी.एन. ओक, जिन्होंने 1960 के दशक में इन विचित्र सिद्धांतों को आगे बढ़ाया था, पढ़ा करते थे. अगली शताब्दी तक ये विचार बने रहेंगे हमने कभी ऐसा नहीं सोचा था. लेकिन फ्रिंज तत्व तेजी से मुख्यधारा का रूप ले रहा है.
इतिहास की किताबों को फिर से लिखने का प्रयास ताकि मुगल काल को या तो हटा दिया जाए या बिना किसी सकारात्मक विशेषताओं के चित्रित किया जाए. लेकिन मेरे लिए यह सबसे खतरनाक है. आपको इतिहास पर राय देने का पूरा अधिकार है. शायद अकबर इतना महान नहीं था. लेकिन आप ऐसा बहुत बाद में करते हैं जब बच्चे पहले से ही बुनियादी तथ्यों को जानते हैं और यदि आप बुनियादी तथ्यों को भी विकृत या छुपाते हैं, तो अकबर महान था या नहीं, इस पर किसी भी तरह की बहस या चर्चा कैसे होगी? क्या यह कभी संभव होगा?
हम सबके पास अपने-अपने तर्क हैं. भारतीय इतिहास का लेखन, स्वतंत्रता के बाद ‘वामपंथी इतिहासकारों’ को सौंप दिया गया था. उन्होंने ऐसा इतिहास लिखा जो उनके मार्क्सवादी पूर्वाग्रहों से रंगा हुआ था.
मैं इस सब पर विवाद नहीं करता. न ही मैं इस बात पर विवाद करता हूं कि विभाजन के बाद के दशकों में और उसके साथ हुए रक्तपात का इतिहास लिखते समय किसी ने हिंदू-मुस्लिम दुश्मनी की हद को कम करने की कोशिश की होगी और यहां तक कि भारत में मुस्लिम शासकों द्वारा किए गए अत्याचारों पर भी ध्यान नहीं दिया होगा ताकि सांप्रदायिक भावनाएं न भड़के.
और मुझे भारतीय इतिहास के एक संशोधनवादी स्कूल का समर्थन करने में बहुत खुशी हो रही है जो शुरुआती इतिहासकारों के लिए एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है जो स्वतंत्रता के बाद के भारत में सर्वोपरि थे.
लेकिन क्या यह अजीब नहीं है कि वे हमारे इतिहास के केवल उन हिस्सों की परवाह करते हैं जो हिंदू-मुस्लिम मुद्दे हैं? सभी तथाकथित संशोधनवादी बुरे-मुस्लिम-अच्छे-हिंदू फॉर्मूले का पालन क्यों करते हैं? यह स्कॉलरशिप है या प्रोपेगैंडा?
और मैं बच्चों के लिए बनी पाठ्यपुस्तकों में हमारे इतिहास के पूरे हिस्से को छांटने पर एक लकीर खींचता हूं. जो कुछ भी भारत की विविध विरासत को चित्रित करता है, उसे इसलिए फिर से लिखा जा रहा है कि हम सिंधु घाटी सभ्यता के समय से ही एक गौरवशाली हिंदू राष्ट्र थे (जो कि एक गौरवशाली आर्य हिंदू गणराज्य था, जैसा कि अब हमें बताया गया है) और यहां बसने वाले किसी भी अन्य धर्म के सभी लोग, बर्बर और बिना किसी गुण के थे.
यह महत्वपूर्ण है कि, जैसा कि द इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट किया है, यहां तक कि हिंदू-मुस्लिम एकता में एमके गांधी के विश्वास और इससे हिंदू अतिवादियों के बीच पैदा हुए गुस्से से संबंधित अंश भी हटा दिए गए हैं. इस लिहाज से, मुझे लगता है कि कुछ वर्षों में, हमें बताया जाएगा कि नथूराम गोडसे एक महान देशभक्त था (यह पहले से ही हो रहा है), कि मुस्लिम लीग ने गांधीजी की हत्या कर दी और गरीब बूढ़े, निर्दोष गोडसे को हत्या के आरोप में फंसा दिया गया.
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मानवता के खिलाफ अपराध
जो हो रहा है उस पर आपत्ति जताने के कई कारण हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एक शिक्षा प्रणाली जो बच्चों के साथ झूठ बोलती है, वो माता-पिता के भरोसे को भी धोखा देती है.
लेकिन एक और कारण है: ये सिर्फ झूठ नहीं हैं. ये जहरीले झूठ हैं. मंशा बच्चों को इस दृष्टि से बड़ा करना है कि मुसलमान उनके दुश्मन हैं, उनका भारत में कोई स्थान नहीं है, जो हमेशा एक हिंदू राष्ट्र था और रहेगा.
बच्चों के दिमाग में जहर भरना मानवता के खिलाफ अपराध के स्तर तक पहुंच गया है. लेकिन यहां एक व्यावहारिक आपत्ति भी है: यदि आप बहुसंख्यकों को उनसे नफरत करना सिखाते हैं तो आप कम से कम 14 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले देश को कैसे चला सकते हैं? क्या मुसलमानों को नहीं लगेगा कि भारत में उनकी कोई हिस्सेदारी नहीं है? क्या यह गृह युद्ध को हवा नहीं देगा?
पाकिस्तान में नफरत की शिक्षा ने पहले से ही वहां रहने वाले कुछ हिंदुओं के खिलाफ भयानक भेदभाव को बढ़ाया है. भारत पर क्या असर पड़ेगा? क्या विविधता से भरा राष्ट्र हमारे बच्चों में नफरत की शिक्षा से बच सकता है?
नफरत का पाठ पढ़ाने वालों और उनके राजनीतिक आकाओं को ये सवाल खुद से करने चाहिए.
(वीर सांघवी प्रिंट और टेलीविजन पत्रकार और टॉक शो होस्ट हैं. वह @virsangvi पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
(संपादन: कृष्ण मुरारी)
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