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Sunday, 22 December, 2024
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दीपिका पादुकोण ने अपने ठहाके से सामाजिक बेड़ियां तोड़ दीं

अपनी शादी पर ठहाके लगाती हुई फोटो साझा कर दीपिका पादुकोण ने सदियों पुराने रोती हुई दुल्हन वाले रिवाज़ को चकनाचूर कर दिया है.

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दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह की शादी पर ठहाके लगाते हुए फोटो आई जिसने मेरा दिल जीत लिया. भारतीय उपमहाद्वीप में ऐसा बहुत ही कम देखने को मिलता है कि दुल्हन मुस्कुराती हुई दिखे. इसके लिए दीपिका की पीठ थपथपाई जानी चाहिए. भारतीय शादियों में एक खास बात यह है कि ज़्यादातर शादियों में दुल्हन विदाई के समय रोती हुई दिखाई पड़ती है.

बचपन से ही, मैं हमेशा दुल्हनों को ग़म में रोती हुई देखती थी और दूल्हा सदा खुश दिखता था. चाहे दुल्हन कितनी भी रईस, सुन्दर, पढ़ी-लिखी या राजनीतिक क्यों न हो, दुल्हन को शादी पर रोता हुआ देखना दुनिया के इस हिस्से में शादी का एक अहम् अंग है. साहित्य, फिल्में और संगीत सब इस रिवाज़ को बढ़ावा देते हैं.

दुल्हनें उदास हैं, क्योंकि वे एक अनिश्चित जीवन की ओर बढ़ रही हैं. दक्षिणी एशिया के इस भाग में ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि यहां दुर्भाग्यवश ज़्यादातर शादियां अरेंज ही होती हैं. लगभग सारे आदमी जो किसी भी धर्म से ताल्लुक क्यों न रखते हों, दहेज़ की अपेक्षा ज़रूर करते हैं. खैर मुसलमान मर्दों को शादी के वक्त ‘मेहर’ चुकानी पड़ती है, लेकिन उनके परिवारों द्वारा दहेज़ की मांग करना एक आम बात है. हम सब इस बात को भली-भांति जानते ही हैं कि दहेज़ न दे पाने की सूरत में कैसे उस महिला को प्रताड़ित किया जाता है, और कई बार तो ससुराल वाले जान से भी मार डालते हैं.

नारीद्वेष रखने वाली पैतृक संस्कृति की जड़ें दक्षिण एशिया में इतनी गहरी हैं कि लोगों से महिलाओं को इंसान की तरह मानने की अपेक्षा किया जाना लगभग नामुमकिन है.

बंगाली शादियों की एक रीति के अनुसार, दूल्हे को दुल्हन के घर पर जाने से पहले अपनी मां को यह कहना ही होता था, ‘मां मैं तुम्हारे लिए एक नौकरानी लाने जा रहा हूं. आज के दिनों में बंगाली दूल्हे शायद ऐसा न कह रहे हों, लेकिन वे फिर भी उस संस्कृति का पालन कर रहे हैं जिसमें वे सिर्फ इसलिए शादी करते हैं ताकि उनकी पत्नियां उनकी और उनके मां-बाप और उनके भाई-बहनों की सेवा कर सकें.

दुल्हन पति के घर आती है और उसे सभी अनजान लोगों के साथ घुल मिल जाने के लिए मजबूर किया जाता है, उसे सब लोगों को अपना सबसे करीबी रिश्तेदार मानने पर मजबूर किया जाता है, और उन्हें खाना बनाना और घर के सारे काम करने को कहा जाता है. उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे खुद के परिवार से ज़्यादा उनको प्राथमिकता दें. उन्हें सिर्फ बेगार करने वाली गृहिणी बना दिया जाता है.

इस बात में कोई आश्चर्य नहीं कि पुरुष अपनी शादियों में ज़्यादा खुश दिखाई पड़ते हैं- उनको तो दहेज़ का पैसा, घर के लिए नौकरानी, फ्री का खाना बनाने वाली, फ्री की सफाई करने वाली, फ्री का ख्याल रखने वाली, फ्री की माली, फ्री नर्स, सम्भोग के लिए एक मुफ्त ग़ुलाम, और फ्री की एक बच्चा पैदा करने वाली एक मशीन. और यदि महिलाओं को पीटा जाए, तो भी ज़्यादातर महिलाऐं इस बात को अपना भाग्य मान कर खून का घूंट पी लेती हैं. यही उनको एक आदर्श महिला बनाता है.

सच्चाई तो यह है कि शादी महिलाओं की ज़िन्दगी को सुरक्षित नहीं करती. वित्तीय आज़ादी ही उनको महफूज़ बनाती है. पितृसत्ता उनको बचपन में पिता पर निर्भर, जवानी में पति पर निर्भर और बुढ़ापे में बेटों पर निर्भर रहने को कहती आई है.

दीपिका पादुकोण एक स्वतंत्र महिला हैं. दीपिका और रणवीर एक प्रेमी जोड़ा हैं. वे अरेंज शादी से पीड़ित नहीं हैं. दीपिका को अपने पति और पिता पर निर्भर रहने की ज़रूरत नहीं. वे रणवीर व उनके घरवालों की नौकरानी नहीं हैं, उनका खुद का अपना एक घर है.

अपनी शादी पर दिल से ठहाके लगाते हुए फोटो साझा कर दीपिका पादुकोण ने सदियों पुराने भारतीय उपमहाद्वीप के इस बदनाम रोती हुई दुल्हन वाले रिवाज़ को चकनाचूर कर दिया है. इनके बाद प्रियंका चोपड़ा भी ऐसा कर सकती हैं. मैं चाहती हूं कि महिलाएं अपनी शादी पर अपने आंसू पोछें. चाहती हूं कि वे दीपिका पादुकोण की तरह खूब ठहाके लगाएं.

मैं चाहती हूं वे अरेंज शादियों को न कहें, पैसों पर निर्भर रहने को न कहें, दहेज़ को न कहें, घरेलू हिंसा को न कहें, वैवाहिक बलात्कार को न कहें, पितृसत्ता को न कहें, स्त्रीद्वेष को न कहें, पारम्परिक संयुक्त परिवारों को न कहें और खुद के उपनाम त्यागने को न कहें.

मैं आशा रखती हूं कि दीपिका अब दीपिका सिंह में न बदल जाएं. मैं आशा करती हूं कि वे दीपिका पादुकोण ही रहें- रणवीर की तरह जो शादी के बाद भी रणवीर सिंह ही रहेंगे.

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