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Thursday, 9 May, 2024
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जहरीली शराब बेचने पर MP में मुत्यु दंड का एक्ट, हाशिए पर रहने वाले समुदाय बनेंगे निशाना

अवैध शराब माफिया पर अंकुश लगाने के लिए पुलिस को सशक्त बनाने के लिए कड़े दंडात्मक शराब कानूनों की आवश्यकता है. डाटा से साफ है कि पुलिस प्रशासन वंचित समुदायों जैसे आदिवासियों के पारम्परिक आजीविका और संस्कृति को नियंत्रित करने में जुटी है.

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जहरीली शराब की बढ़ती घटनाओं के चलते, इसके रोकथाम के लिए मध्य प्रदेश सरकार द्वारा हाल ही में सम्पन्न हुए विधानसभा सत्र में मृत्यु दंड का प्रावधान प्रेषित किया गया है. जहरीली शराब के कारोबारियों को सबक सिखाने एवं इसके रोकथाम के लिए पूर्व में महाराष्ट्र, गुजरात एवं उत्तर प्रदेश आदि राज्यों ने अपने आबकरी अधिनियम में जहरीली शराब को पीने से हुई मौत के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान जोड़ा है.

इसी कड़ी में मध्य प्रदेश का भी समावेश अगस्त महीने में हुआ हैं. मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 9 अगस्त  को पारित किये गए आबकारी मध्य प्रदेश अधिनियम (संशोधन 2021) के नवीनतम प्रावधानों के अनुसार जहरीली शराब बेचने पर मृत्युदंड की सजा सुनाने का प्रावधान बनाया गया हैं, इसके साथ जमानतीय रकम का बढ़ाया जाना और कारावास के वर्षों में वृद्धि इस संशोधन के मुख्य बिंदु हैं. यह संशोधन 1915 के औपनिवेशिक मध्य प्रदेश आबकारी अधिनियम में किया गया है. इस कठोर कानून का सीधा असर उन समुदायों पर पड़ेगा जो परंपरागत तौर पर शराब बनाने का काम करते हुए आ रहे हैं जैसे कि विमुक्त, नोमेडिक और सेमि-नोमेडिक जनजातियां.

भारत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी का प्रतिशत क्रमशः 16% और 8% है. विमुक्त, नोमेडिक और सेमि-नोमेडिक जनजातियों की कुल आबादी के बारे में कोई आधिकारिक डेटा नहीं है, लेकिन अनौपचारिक अनुमान भारत की आबादी के 10% के बीच उनकी आबादी का अनुमान लगाते हैं. इन समुदायों को आदतन अपराधी माना जाता है जिसके कारण जेलों में मौजूदगी सबसे ज्यादा देखी जाती है. यह अति-प्रतिनिधित्व आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रणालीगत समस्याओं के कारण है, क्योंकि इन समुदायों को पुराने कानूनों जैसे आबकारी अधिनियम के तहत लक्षित किया गया है.


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आबकारी कानून और विमुक्त समुदाय

इन आबकारी अधिनियमों को पढ़कर प्रतीत होता है कि इनके अंतर्गत कार्यवाही निष्पक्ष होती है. माना जाता है कि यह अधिनियम शराब के आयात, निर्यात और लाइसेंस प्रणाली को नियंत्रित करता है. पर जमीनी स्तर पर वास्तविकता काफी अलग है. जब इन कानूनों की सतह पर जाते हैं तब मालूम होता है कि यह कानून औपनिवेशिकता और जातिवाद को बढ़ावा देते हैं. विमुक्त समुदाय विशेष रूप से आबकारी अधिनियम के तहत लक्षित हैं.

इस औपनिवेशिकता और जातिवाद को स्पष्ट रूप से दिखाने के लिए क्रिमिनल जस्टिस एंड पुलिस अकाउंटेबिलिटी प्रोजेक्ट की टीम ने मध्य प्रदेश के 3 जिलों के 9 पुलिस थानों में 2018-2020 में दर्ज हुई 540 एफआईआर और राज्य के 20 जिलों से 5,62,399 गिरफ्तारी रिकॉर्ड का अन्वेषण कर पता किया है. इस रिसर्च में पाया गया है की ज्यादातर गिरफ्तारियां एमपी आबकारी अधिनियम की जमानती धाराओं 34(1) और 36 के तहत की गई हैं. आबकारी से संबंधित गिरफ्तारियां मप्र में गिरफ्तारियों की कुल संख्या के एक-छठे से अधिक हैं.

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आबकारी कानून के तहत अपराधीकरण की जातिवादी प्रकृति स्पष्ट रूप से देखी गयी. 35% गिरफ्तार व्यक्ति अनुसूचित जाति (9.87%), अनुसूचित जनजाति (21.53%), अन्य पिछड़ा वर्ग (15.64%) और विमुक्त समुदाय (6.86%) से थे. प्राथमिकियों में शामिल 562 आरोपियों में से, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और विमुक्त समुदायों का बहुमत क्रमशः 14%, 15%, 16% और 11% पाया गया. इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि कानून के तहत पुलिस की विवेकाधीन शक्तियों का इस्तेमाल हाशिए पर रहने वाले समुदायों को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है.

ये अपराध गैर-जमानती धाराओं 34 (2) और 49-ए की तुलना में अपेक्षाकृत कम ‘गंभीर’ हैं, जो शराब की बिक्री को उपभोग के लिए अयोग्य घोषित करता है.

जबलपुर जिले के घमापुर पुलिस स्टेशन में विमुक्त कुचबंदिया समाज के लोगों विशेष रूप से महिलाओं को प्रताड़ित किया गया. पारम्परिक तौर से आजीविका चलाने हेतु महुआ से शराब बनाने वाले समुदायों को वंचित किया जा रहा है. बैतूल, भोपाल तथा जबलपुर जिले में दर्ज किये गए प्रथम सूचना रिपोर्ट में 92% केस महुआ शराब से सम्बंधित है. इसके अतिरिक्त पकड़ी गयी शराब की मात्रा 73% मामलों में महज़ 1-10 लीटर के बीच में थी तथा मुखबिर की सूचना के आधार पर 89% मामलों में प्राथमिकी दर्ज की गयी है.

शराब की जप्ती के लिए कानून में स्वतंत्र गवाहों का उपस्थित होना आवश्यक है. लेकिन हमारे द्वारा अध्ययन की गई एफआईआर में स्टॉक गवाह थे यानी ऐसे व्यक्ति जो एक से अधिक एफआईआर में गवाह बन रहे थे.

मृत्यु दंड से कौन प्रभावित होगा

कानून के मजबूत होने से पुलिस की शक्ति मैं भी बढ़ोत्तरी हुई है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (‘NCRB’) की ‘भारत में अपराध 2019’ की रिपोर्ट से पता चलता है कि एमपी में आबकारी कानूनों के तहत अपराधों की दर सबसे अधिक है (105.6 प्रति 1,00,000 व्यक्ति). आम राय यह है कि अवैध शराब माफिया पर अंकुश लगाने के लिए पुलिस को सशक्त बनाने के लिए कड़े दंडात्मक शराब कानूनों की आवश्यकता है. किंतु डाटा के विश्लेषण से यह साफ़ होता है कि पुलिस प्रशासन वंचित समुदायों जैसे आदिवासियों के पारम्परिक आजीविका और संस्कृति को नियंत्रित करने में जुटी है. जबकि लाइसेंसधारी शराब विक्रेता जिनमें से कुछ इंदौर और खरगोन में घटी घटना के लिए जिम्मेदार हैं बिना किसी जवाबदेही के उनका व्यवसाय जारी रखा है. आबकारी पुलिसिंग ब्राह्मणवादी शक्ति को मजबूत करने का माध्यम बन गई है.

(निकिता सोनावने और पल्लवी दिवाकर भोपाल स्थित सीपीए प्रोजेक्ट  के सदस्य हैं. उन्होंने सीपीए प्रोजेक्ट के अन्य सदस्यों के साथ मध्य प्रदेश आबकारी अधिनियम पर एक शोध रिपोर्ट का सह-लेखन किया है. यहां व्यक्त विचार निजी हैं.)


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