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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतकोरोनावायरस से भारत में 30,000 लोगों की मौत हो सकती है, जून तक अस्पताल में बिस्तर खाली नहीं रहेगा : डाटा

कोरोनावायरस से भारत में 30,000 लोगों की मौत हो सकती है, जून तक अस्पताल में बिस्तर खाली नहीं रहेगा : डाटा

कोविड-19 वायरस के मामले में अलग-अलग राज्य अलग-अलग तरह से कार्रवाई करेंगे क्योंकि गरीब राज्यों में स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा बेहद कमजोर है.

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भारत में एक दिन में कोरोना के मामलों की संख्या में सबसे बड़ी वृद्धि के बाद भी ऐसा नहीं लगता कि हम समझ पाए हैं कि यह हमारे यहां भी एक महामारी का रूप ले चुकी है और अगले कुछ सप्ताहों में स्थिति ऐसी हो जा सकती है जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की होगी. जो आंकड़े हमारे पास हैं उनसे अंदाजा लगाया जा सकता है कि निकट भविष्य में क्या हो सकता है और नरेंद्र मोदी सरकार को क्या कुछ करना चाहिए.

चित्रण सोहम सेन के द्वारा/ दिप्रिंट

भारत में मामलों में असाधारण वृद्धि होने वाली है

भारत में कोरोना के पहले मामलों को 50 के आंकड़े पर पहुंचने में 40 दिन लगे, 100 के आंकड़े को छूने में और पांच दिन लगे, इसके तीन दिन के भीतर यह आंकड़ा 150 का हो गया और महज दो और दिनों में 200 का आंकड़ा पहुंच गया. अब इसके बाद इसका पहिया और तेजी से घूमने वाला है. पक्के मामलों की संख्या पांच या उससे भी कम दिनों में दोगुनी हो रही है, जबकि इस महीने के शुरू में ऐसा होने में छह दिन लग रहे थे. इस तरह भारत में भी इसकी रफ्तार दुनिया के दूसरे देशों में जो रफ्तार है उसके बराबर हो गई है, अमेरिका में मामले हर दो दिन पर दोगुनी रफ्तार से बढ़ रहे हैं.

चित्रण सोहम सेन के द्वारा/ दिप्रिंट

इटली में पहला मामला दक्षिण कोरिया में सामने आए पहले मामले के दस दिन बाद सामने आया था. इसके अगले 10 दिनों में इटली में 10 से भी कम मामले थे, जबकि दक्षिण कोरिया में गिनती लगातार बढ़ रही थी. लेकिन बस एक भयावह सप्ताह में इटली में मामलों में 100 गुना वृद्धि हो गई. इसके बाद के एक सप्ताह में दक्षिण कोरिया ने तो इसकी रफ्तार को तोड़ दिया, मगर इटली में मामले रॉकेट की रफ्तार से बढ़ रहे हैं और उसकी स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह विफल साबित हो रही हैं. भारत को इटली वाली रफ्तार हासिल करने से बचना होगा और यह काम तेजी से करना होगा. इसके लिए लोगों को इकट्ठा होने से रोकने के उपायों को, जिनकी घोषणा उसने कर भी दी है और भी कड़ाई से लागू करना होगा, भले ही सख्त लॉकडाउन से बचना पड़े.

वैसे, ये तो कोरोन पीड़ितों के पक्के मामले हैं. कुल मामलों की संख्या का जायजा लेने के लिए भारत को इन मामलों की कंजर्वेटिव टेस्टिंग व्यवस्था को मजबूत करना होगा. शुक्रवार को मोदी सरकार ने इस दिशा में एक छोटा कदम उठाया, उसने उन लोगों की भी जांच शुरू कर दी, जो सांस की बीमारी के कारण अस्पतालों में भर्ती हुए हैं और जो विदेश यात्रा करने वाले किसी व्यक्ति के संपर्क में नहीं आए.

 

चित्रण सोहम सेन के द्वारा/ दिप्रिंट

भारत में कोरोना के मामलों का विस्फोट हो सकता है

भारत में जिस रफ्तार से इसके मामले बढ़ रहे हैं उसे और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के मुताबिक पक्के मामलों में मौत की 3.4 प्रतिशत की दर को देखते हुए भारत में मई के अंत तक इसके 10 लाख से ज्यादा पक्के मामले सामने आ सकते हैं और 30,000 से ज्यादा लोग मारे जा सकते हैं. ये मोटे अनुमान हैं. बायो-स्टैटीस्टीसियनों की एक टीम ने अनुमान लगाया है कि ये आंकड़े और ऊंचे भी हो सकते हैं और 10 लाख मामले 15 मई तक ही सामने आ सकते हैं.

COV-IND-19 अध्ययन समूह | ग्राफिक सौजन्य: medium

मामलों का एक दिन में अचानक बेहद बढ़ जाना, अनुमानित मामलों में पक्के मामलों के अनुपात का बढ़ जाना-व्यापक परीक्षण व्यवस्था के अभाव में संख्या का पक्का अंदाज न लगा पाना. यह सब इन मामलों को और तेजी से बढ़ा सकता है. भारत के एक सॉफ्टवेयर उद्यमी मयंक छाबड़ा ने अनुमान लगाया है कि अगर यह मान लें कि पक्के मामलों की तुलना में अज्ञात मामलों की संख्या आठ गुना ज्यादा हो, तो मई के अंत तक 50 लाख से ज्यादा मामले सामने आ सकते हैं और 1.7 लाख मौतें हो सकती हैं.

कई लोग अभी भी समझ नहीं पा रहे हैं कि आगे कितना बड़ा संकट खड़ा हो सकता है. ये आंकड़े भारत के संदर्भ में खास तौर पर इसलिए महत्वपूर्ण हैं कि यहां अधिकतर कामगारों को रोजगार की सुरक्षा नहीं हासिल है. संकट का जो लंबा समय आ सकता है उसके मद्देनजर पूरे भारत के लिए वैसे मुआवज़ा पैकेज की घोषणा जरूरी है, जैसी केरल ने की है.

चित्रण सोहम सेन के द्वारा/ दिप्रिंट

तब हमारी स्वास्थ्य सेवाएं पस्त हो सकती हैं

2017 में भारत में प्रति 1000 आबादी पर अस्पताल के मात्र 0.5 बिस्तर उपलब्ध थे. जाहिर है, आगामी महीनों में भारत की स्वास्थ्य सेवाओं के मौजूदा ढांचे पर भारी बोझ पड़ सकता है. कोरोना के पक्के मामलों की संख्या जिस दर से बढ़ रही है उसके चलते जून आने तक भारत में अस्पतालों में बिस्तर खाली नहीं मिलेंगे. छाबड़ा का कहना है कि बिस्तरों की जो उपलब्धता है और मामलों की संख्या जिस दर से दोगुनी हो रही है उसे देखते हुए लगता है कि भारत में अप्रैल में ही सारे बिस्तर भर जाएंगे. यहां गंभीर मामलों के लिए बिस्तरों और वेंटिलेटरों की अधिकृत संख्या उपलब्ध नहीं है मगर माना जाता है कि इनकी भारी कमी है. अनुमान है कि देश भर में आइसीयू के 70,000 बिस्तर हैं. अगर मई के अंत तक, प्रति 10 में से एक मामले के लिए आइसीयू बिस्तर की जरूरत पड़ी तो भारत में पहले नहीं तो तब तक ऐसे सारे बिस्तर भर जाएंगे.
अमीर देशों को भी जद्दोजहद करनी पड़ी है. इटली में डॉक्टरों को यह असंभव फैसला करने के लिए भारी संघर्ष करना पड़ा है कि किसे वेंटिलेटर पर रखें और किसे नहीं, मेडिकल सामग्री के उत्पादन के लिए सेना को बुलाना पड़ा है.

अमेरिका भी उसी हाल की ओर बढ़ रहा है. अनधिकृत अनुमान के अनुसार भारत में कुल करीब 4000 वेंटिलेटर हैं. मोदी सरकार ने यह आश्वासन तो दिया है कि ‘पर्याप्त वेंटिलेटर हैं’ लेकिन यह नहीं बताया है कि गंभीर मामलों के इलाज की व्यवस्था को और बढ़ाने के लिए वह क्या कर रही है.

कुछ राज्यों को भारी संकट से जूझना पड़ेगा

स्वास्थ्य सेवाओं से लेकर तमाम क्षमताओं के मामले में भारत के राज्यों में काफी अंतर है. गरीब राज्य स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में भी काफी कमजोर हैं. जून 2019 में नीति आयोग ने स्वास्थ्य सेवाओं के मामलों में राज्यों की जो रैंकिंग बनाई थी उसके मुताबिक ‘कुछ राज्यों में स्वास्थ्य सेवाएं मध्य-आय और उच्च आय वाले कुछ देशों की स्वास्थ्य सेवाओं के समकक्ष हैं (मसलन, नवजात शिशु मृत्युदर, एनएमआर के मामले में केरल ब्राज़ील या अर्जेंटीना के बराबर है), जबकि कुछ राज्यों में स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर दुनिया की सबसे गरीब देशों की स्वास्थ्य सेवाओं के समकक्ष है (मसलन, एनएमआर के मामले में ओडिशा सिएरा लीओन के बराबर है).’

बिहार में प्रति एक लाख लोगों के लिए अस्पताल का एक बिस्तर उपलब्ध है, जबकि गोवा में 20 बिस्तर उपलब्ध हैं. इसकी तुलना में इटली में आज प्रति 1280 लोगों पर एक व्यक्ति संक्रमण का शिकार है. छतीसगढ़ में ज़िला अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 71 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं. निश्चित उपचार योजना के बावजूद उत्तर प्रदेश में टीबी के नए पक्के मामलों के उपचार की सफलता दर मात्र 64 प्रतिशत है. बिहार में प्रथम रेफेरल यूनिटों में से केवल 15 प्रतिशत ही काम कर रहे थे.

अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है कि मोदी सरकार इन राज्यों को उनकी स्वास्थ्य सेवाओं के कमजोर ढांचे को देखते हुए कोई सहायता कर पाएगी या गंभीर होते हालत में भी मदद कर सकती है.

पहल करने का समय तो कल ही बीत चुका.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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6 टिप्पणी

  1. इस तरह की संभावित नकारात्मक लेख‌ लिखने का क्या तात्पर्य है ?

  2. होने को तो कुछ भी हो सकता है और बचाव की कोशिशें भी जारी है परन्तु कुछ प्रिंट मीडिया का नकारात्मक रवैया सवालों के घेरे में जरुर आता है

  3. Easa kuch bhi nahi hoga. Bharat sarkar ache faisle le rahi h aur natije ache aayenge. Mana death report badegi per apke anuman jitni nahi…….hum Bhartiyo ke jajbat BHT majboot h… May tak hi hum surksit categiri mai aa jayenge. Jai Hind

  4. हमे सब को सतर्क और sabdhan रहने की आवश्यकता है. Lock down का पूर्ण पालन होना चाहिए.

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