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Friday, 11 April, 2025
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भारत में क्रिएटिविटी एक जुर्म है. चलिए, मान लेते हैं कि सिर्फ वेगन आइसक्रीम ही असली इनोवेशन है

भारत के सबसे कामयाब अलग सोच रखने वालों को जब वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल खड़े होकर ये कहें कि वो ज़रा लीक पर चलें, तो यह अपने आप में एक मज़ेदार विडंबना लगती है.

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मैं पक्के तौर पर नहीं कह सकती हम इस मुकाम पर कैसे पहुंच गए, लेकिन इधर एक सप्ताह के भीतर ही हमें पता चला है कि ‘वेगन’ (निरामिष) आइसक्रीम और ‘ग्लूटन’ (आटा) फ्री कुकीज़ ही भारत को ‘डीप टेक’ (गहरी टेक्नोलॉजी) वाली स्टार्ट-अप की दुनिया में अगुआ बनने से रोक रही हैं.

भारत के व्यापार एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने हाल में स्टार्ट-अप महाकुंभ-2025 के दौरान स्टार्ट-अप संस्थापकों से भरे हॉल में सबको उपदेश पिलाया. अपने चेहरे पर घोर निराशा का भाव लाते हुए गोयल ने एक घिसा-पिटा सवाल उठाया, जो लिंकेडिन और रेड्डीट पर छा गया. उनका सवाल था: “आखिर, भारत क्या बनाना चाहता है? आइसक्रीम या सेमी-कंडक्टर के चिप्स?”

अपने ‘प्रेजेंटेशन’ में गोयल ने एक स्लाइड दिखाई जिसमें भारत और चीन के स्टार्ट-अप के बीच तुलना की गई थी. उन्होंने दावा किया कि भारतीय स्टार्ट-अप “फूड डेलीवरी एप, फ़ैंसी आइसक्रीम तथा कुकीज़, किराने के सामान की फौरन डेलीवरी, जुआ एवं फंतासी स्पोर्ट के एप, रील बनाने और प्रचार वाली अर्थव्यवस्था में व्यस्त हैं”, जबकि चीनी स्टार्ट-अप इलेक्ट्रिक वाहन, सेमी-कंडक्टर, एआइ, और रोबो बनाने पर ज़ोर दे रहे हैं.

भारत के सबसे कामयाब लोगों के सामने किसी मंत्री का खड़े होकर उन्हें लीक पर थोड़ी सफलता के साथ चलने के लिए डांटना अपने आप में एक दिलचस्प विडंबना है.

मंत्री महोदय की फटकार पर प्रतिक्रियाओं और जवाबी प्रतिक्रियाओं का शोर मच गया. ओला के भवीश अग्रवाल और boAt (बोट) के अमन गुप्ता ने फर्ज़ अदायगी करते हुए गोयल की प्रशंसा की और “ऊंचे लक्ष्य” रखने के सरकारी ‘नरेटिव’ से अपने जुड़ाव पर खुशी जाहिर की.

मंत्री जी का हकीकत से सामना

लेकिन हर कोई इसे पचाने को तैयार नहीं था. जेप्टो के सीईओ आदित पलीचा ने X पर लिखा कि उनकी कंपनी ने डेढ़ लाख से ज्यादा को रोजगार दिया और हर साल टैक्स के रूप में 1,000 करोड़ रुपये दिए, और कहा कि यह “भारतीय इनोवेशन में एक चमत्कार” है. (अपने इस काम के बदले, पालिचा को BJP नेता प्रवीण खंडेलवाल से अलग से एक नसीहत मिली, जिन्होंने कहा: “नौकरियां देने और टैक्स भरने का दावा करते हुए विदेशी पूंजी जलाकर भारत की छोटी मोहल्ला किराना दुकानों को खत्म करना कोई नवाचार नहीं है.”). ‘भारत-पे’ के पूर्व प्रबंध निदेशक अशनीर ग्रोवर ने एक कदम आगे बढ़कर सरकार पर तंज़ कसा: “चीन ने जो कुछ किया उसे करने की महत्वाकांक्षा रखना बेशक बड़ी बात है, और शायद नेताओं के लिए भी यह महत्वाकांक्षा रखने का समय आ गया है कि आज जो रोजगार पैदा कर रहे हैं उन सबको उपदेश देने से पहले वे 20 साल के लिए आर्थिक वृद्धि की दर 10 फीसदी के स्तर पर ले जाएं.”

काफी तेजी से हो रही यह जबानी जंग एक ईमानदार संवाद करने की हमारी राष्ट्रीय अक्षमता को ही प्रतिबिंबित करती है. इस बीच, मंत्री जी की कड़ी टिप्पणियों ने कई स्टार्ट-अप संस्थापकों को भारत में ‘व्यवसाय करने की सुविधा’ के दावे की असलियत उजागर करने के दरवाजे खोल दिए. मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में आइटी सर्विसेज कंपनी ‘बिज़प्रोस्पेक्स’ चलाने वाले मुर्तजा अमीन ने व्यापक तौर पर पढ़े गए X थ्रेड पर लिखा कि सरकारी बाबुओं ने उनके और उनके सहकर्मियों के साथ “तीसरे दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार” किया, उन्होंने हर काम के लिए घूस मांगी. अमीन का सवाल था: “क्या हम डिजिटल इंडिया के निर्माण में योगदान नहीं दे रहे हैं? या यह हम जैसे आम लोगों के लिए एक जुमला भर है?”

एक सेमी-कंडक्टर स्टार्ट-अप के एक संस्थापक ने रेड्डीट पर गोयल के नाम एक खुले पत्र में लिखा : “आपका विभाग मेरी अर्जी पर दो साल तक बैठा रहा और फिर उसे यह मांग करते हुए वापस कर दिया… कि ‘और दस्तावेज़’ भेजो. इसके साथ यह भी लिखा कि ये दस्तावेज़ दाखिल करने के बाद आपकी अर्जी फिर उसी कतार में लगाई जाएगी (यानी दो साल और इंतजार). आपकी ओर से खारिज किए जाने के कुछ ही घंटे बाद मुझे किसी ‘बिचौलिये’ का फोन आया कि अगर मैंने ‘अपने दस्तावेज़ तैयार करने में’ उसकी सेवाएं ली तो मुझे तुरंत और शर्तिया नतीजे हासिल होंगे.”

इस बहस का सबसे निराशाजनक पहलू यह है कि गोयल की आवाज कमजोर भले हो मगर वे सच कह रहे हैं. भारत में ‘डीप टेक’ का विस्तार चीन में 6,000 कंपनियों वाली मजबूत ‘इकोसिस्टम’ (परिवेश), जिसने मिलकर करीब 100 अरब डॉलर पैदा की है, के मुक़ाबले छिछला ही है. हां, हमने उपभोक्ता केंद्रित तरह-तरह के एप पर जरूरत से ज्यादा ज़ोर दिया है जो अमीरों की ज्यादा सेवा करते हैं, भला हो कि हमारे यहां शोषण किए जाने वाले श्रमिकों की बहुतायत है जिनके पास कोई विकल्प नहीं होता. ये डेटा इसकी स्पष्ट पुष्टि करते हैं : हमारे स्टार्ट-अप को उपलब्ध कुल फंड का मात्र 5 फीसदी ही ‘डीप टेक’ के हिस्से में जाता है जबकि चीन में यह आंकड़ा 35 फीसदी का है. और, “77 प्रतिशत ‘वेंचर’ (उद्यम) पूंजीपतियों का कहना है कि कई भारतीय स्टार्ट-अप ऐसे हैं जिनमें नयी टेक्नोलॉजी या व्यवसाय के विशिष्ट मॉडल पर आधारित अग्रणी इनोवेशन की कमी है”.

लेकिन स्टार्ट-अप संस्थापकों पर उंगली उठाने वाले यह नहीं देखते कि ढांचागत अवरोधों का जाल इतना जटिल है कि इनोवेशन को शुरू में ही दबा दिया जाता है. चीन के साथ तुलना करते हुए गोयल बड़ी आसानी से यह भूल जाते हैं कि चीन की सरकार ने ऐसे ‘इकोसिस्टम’ के विकास की 20 वर्षीय योजना में निवेश किया जिसमें ‘डीप टेक’ फल-फूल सके. भारत में अनुसंधान एवं विकास पर खर्च इस बीच जीडीपी के 0.6 से 0.7 प्रतिशत के बीच झूलता रहा है.

इनोवेशन की हर कदम पर हत्या

व्यवस्थित इनोवेशन मंत्री के निर्देश पर रातोरात नहीं उभर आता, यह वर्षों के सतत प्रयास से हासिल होता है. भारत का सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश इनोवेशन के विचार का ही मूलतः विरोधी है.

इस मामले में पहला मोर्चा तो परिवार ही है, जो कोई जोखिम उठाने से रोकता है. इसके बाद नंबर आता है भारतीय शिक्षा व्यवस्था का, जिसे किसी भी रचनात्मक भाव को दबा देने के लिए तैयार किया गया है. शुरुआत में ही स्कूलों में रटंत विद्या को अर्थ की समझ से ज्यादा पुरस्कृत किया जाता है. ज्ञान देने वाली इन जेलों में लीक से अलग सोच को हतोत्साहित किया जाता है. छात्रों को तुरंत समझ में आ जाता है कि शिक्षक से सवाल करने या लीक से अलग विचारों की जांच करने से उन्हें कम नंबर मिलेंगे.

‘स्कूल से मुक्ति’ की दिशा में काम करने वाली संस्था ‘शिक्षांतर’ की सह-संस्थापक विधि जैन छोटे बच्चों की उस ‘आर्ट’ वर्कशॉप को याद करती हैं जिसमें बच्चों ने वही ‘पहाड़-सूरज-नदी’ वाले चित्र बनाए थे जो भारत के तमाम स्कूलों की दीवारों पर टंगे मिल जाएंगे. बच्चों को जब यह सिखाया जाएगा कि उनका मूल्यांकन इसी आधार पर किया जाएगा कि वे पाठ्यपुस्तक में दिए गए ज्ञान को ही कितने सही ढंग से दोहराते हैं, या मनोरंजन को भी अगर एक खांचे में कैद किया जाएगा, तब हम इस बात पर क्यों आश्चर्य करें कि इन बच्चों को बड़े होकर लीक से हटकर काम करने में दिक्कत होती है?

ये बच्चे बड़े होने तक, जोखिम से परहेज करने का सबक गहराई से सीख लेते हैं. इंजीनियरिंग के हमारे ग्रेजुएट्स को इतिहास का कोई बोध नहीं होता और बिजनेस के छात्र केवल ‘केस स्टडीज़’ की तोता रटंत करते रहते हैं. यह व्यक्ति की कल्पनाशीलता की विफलता नहीं है बल्कि हमारी शिक्षा की कार्यप्रणाली की अपेक्षित देन है. इस वजह से हमें ऐसी जनसंख्या हासिल होती है जो किसी काम के योग्य नहीं होती, और जिसके कारण हम ‘ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स’ में 39वें नंबर पर हैं.

‘डीप टेक’ वाले इनोवेशन के लिए जिस हुनर की जरूरत होती है उसे निरंतर दबाया जाता है. इस हुनर में अनिश्चितता को थोड़ा कबूल किया जाता है, सोच बहुआयामी होता है, और विफलता के प्रति काफी सहिष्णुता होती है. विडंबना यह है कि भारत की विशाल इंजीनियरिंग प्रतिभा को ‘उठती लहर’ से मुक़ाबला करना पड़ रहा है. आखिर, हमारी शानदार प्रतिभाएं दूसरे देशों में इनोवेशन को आगे बढ़ा रही हैं और वे इनोवेशन हमारे यहां आ रहे हैं जबकि यहां बाकी लोगों को नयी कल्पनाएं करने के लिए नहीं बल्कि इन इनोवेशनों का इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग दी जा रही है.

इनोवेशन के इस परिदृश्य को ‘पिंग ब्राउज़र’ पर हुआ विवाद अच्छी तरह प्रस्तुत करता है. ‘पिंग ब्राउज़र’ ने इंडियन वेब ब्राउज़र डेवलपमेंट चैलेंज प्रतियोगिता में 75 लाख रुपये का पुरस्कार जीता है. सरकारी पहल से शुरू की गई इस प्रतियोगिता का उद्देश्य भारत की तकनीकी रचनात्मकता को मजबूत करना है. लेकिन इसने ‘ओपन सोर्स’ वाली ‘ब्रेव ब्राउज़र’ में दिखावटी फेरबदल से तैयार किए गए संस्करण को पुरस्कृत किया. इस ‘मेड इन इंडिया’ ब्राउज़र में ‘आत्मनिर्भरता’ वाला सबसे बड़ा तत्व यह है कि इसे मौलिक काम बताने का दुस्साहसी दावा किया गया है.

हमारा ‘इकोसिस्टम’ इनोवेशन विरोधी हो और हम इनोवेशन के लाभों की अपेक्षा करें, यह तो नहीं चल सकता. हम रचनाशीलता, पहल, जोखिम उठाने की प्रवृत्ति को सजा दें और इस बात का रोना रोएं कि अगली सेमीकंडक्टर क्रांति हमारी जमीन से क्यों नहीं फूट रही है, यह भी नहीं चल सकता.

क्या अफसर लोग इलेक्ट्रिक स्टार्ट-अप का सपना देखते हैं? हो सकता है, लेकिन तभी जब ऐसे स्टार्ट-अप सुस्त ‘इकोसिस्टम’ के मुताबिक चलें, सही अर्जियों की तीन कॉपियों पर दस्तखत करके जमा किया हो, और कभी कोई सवाल न उठाएं. जिस देश में प्रधानमंत्री तक लिखे हुए भाषण से अलग नहीं हट सकते वहां हमें रीब्रांडेड ब्राउज़र से संतोष करना ही पड़ेगा. और, ‘वेगन’ आइसक्रीम इतनी बुरी भी नहीं है, कम-से-कम वह यह तो सच-सच बताती है कि वह क्या है.

करनजीत कौर पत्रकार हैं. वह पहले Arré की एडिटर थीं और अब टू डिज़ाइन में पार्टनर हैं. उनका एक्स अकाउंट @Kaju_Katri है. व्यक्त विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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