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Friday, 20 December, 2024
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कोविड, पेगासस, चीन, पर्यावरण संकट- पृथ्वी पर जीवन एक ओरवेलियन दुःस्वप्न बनता जा रहा है

आज जो दहशत व्याप्त है उसमें बढ़ती विषमता आग में घी वाला काम कर रही है. इसने अमीर, गरीब, मध्य आय वाले देशों के समाजों की स्थिरता को खतरे में डाल दिया है.

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सतही खबरों से ज्यादा महत्व की खबरों को पढ़ते हुए स्वतः यह सवाल उठ खड़ा होता है कि क्या हम चीनी अभिशाप वाले ‘दिलचस्प दौर’ में रह रहे हैं जिसमें एक के बाद एक तमाम संकट धीरे-धीरे हावी होते जा रहे हैं? और ये संकट इस तरह हावी हो रहे हैं कि उनसे सार्थक तरीके से निबटना वर्तमान व्यवस्था और संस्थाओं के बूते के बाहर दिख रहा है. मसलन इस तथ्य को ही लीजिए कि जलवायु परिवर्तन के कारण लू चल रही है, आगजनी हो रही है, वह भी साइबेरिया और उत्तर-पश्चिम कनाडा जैसी जगहों में. इसके कारण यूरोप के आधा दर्जन अमीर देशों में बाढ़ आई है, जहां के लोग सुदूर पिछड़े इलाकों से आने वाली ऐसी खबरें पढ़ा करते थे.

इसले अलावा, लगभग हमेशा मेडिकल अलर्ट पर रहने का खतरा भी पैदा हो गया है. ‘फॉरेन अफेयर्स’ नामक पत्रिका में छपी एक खबर ‘स्थायी वायरस’ की बात करती है, जो एक दर्जन से ज्यादा विभिन्न प्रजातियों में फैल गया है जबकि सामुदायिक प्रतिरोध शक्ति हासिल करने की संभावना कम है. यह खबर बताती है कि ‘सार्स-कोवि-2 वायरस खत्म होनी की बजाय अगले कई वर्षों तक दुनियाभर में यहां से वहां चक्कर लगाता रह सकता है.’ इसका अर्थ है कि उम्मीद के मुताबिक ज़िंदगी जल्दी सामान्य नहीं हो पाएगी.

तीसरे, लोकतंत्र और उदारवाद को, चाहे वह जैसा भी था, खुले समाजों में राष्ट्रीय सुरक्षा के अबूझ और गैर-जवाबदेह औजारों की बढ़ती ताकत के कारण और उन तानाशाह नेताओं के कारण खतरा पैदा हो गया है जो निगरानी में रहने वाले समाज का निर्माण करने के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल करने को तत्पर हैं. विशाल कॉर्पोरेट संगठनों के घुसपैठिए पंजे भी कम चिंता के कारण नहीं हैं, उन्हें महज खतरा नहीं कहा जा सकता. इसलिए, जब तक सुधार की पहल नहीं की जाती तब तक विख्यात अंग्रेजी लेखक जॉर्ज ऑर्वेल के दुःस्वप्न के सच होने का खतरा बना रहेगा.

चौथी बात यह कि क्षेत्रीय स्तर पर अपना वर्चस्व कायम करने और कभी जो अमेरिकी साम्राज्य था उसे चुनौती देने पर आमादा चीन के बहुआयामी उत्कर्ष पर अंकुश लगाने की अमेरिकी कोशिशों के कारण वैश्विक सत्ता संतुलन बदल गया है. इस तरह का बदलाव प्रायः सैन्य टक्कर के साथ आता है. प्रथम विश्वयुद्ध के कई अनुमानित कारणों के मूल में यह तथ्य निहित था कि उस समय जर्मनी उत्कर्ष की राह पर था. इस महायुद्ध से एक दशक पहले रूस-जापान युद्ध के अप्रत्याशित नतीजे ने जापान के उत्कर्ष का संकेत दे दिया था.

आज जो दहशत व्याप्त है उसमें बढ़ती विषमता आग में घी वाला काम कर रही है. इसने अमीर, गरीब, मध्य आय वाले देशों के समाजों की स्थिरता को खतरे में डाल दिया है. निम्न वर्ग में फैलती चेतना कठोर सच्चाइयों से भाग कर सांस्कृतिक पहचानों और जातीय कटुताओं- जिन्होंने पहले कभी देखे गए बेहतर आर्थिक भविष्य के सपनों का स्थान ले लिया है- का दामन थाम रही है. इस बीच, नीति निर्माता वित्तीय और मौद्रिक नीति में प्रयोगों की सीमाओं का अंदाजा लगाते हुए मुद्रास्फीति तथा अस्थिरता का जोखिम मोल ले रहे हैं.


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‘हम तो इससे उलटी दिशा में जा रहे हैं’

ये तमाम चीजें उन शक्तियों की वजह से हो रही हैं जिनकी जड़ें इन बातों में छिपी हैं- आर्थिक व्यवस्थाओं, नेटवर्क वाले समाज की कमजोरियों, ऐतिहासिक स्मृतियों, अधिक सत्ता तथा संपत्ति की आदिम कामनाओं और टेक्नोलॉजी के अबाध अभियान में, जो एंथ्रोपोसीन युग (मनुष्य की सर्वसत्ता के युग) को परिभाषित करता है और ऐसी सभ्यता (ऐसा लग सकता है) को जन्म देता है जिसे विशिष्ट शक्तियों से लैस प्रजातियों की और विकास के अगले चरण में धरती नामक ग्रह से बाहर निकलने की जरूरत महसूस होती है. विडंबना यह है कि इनमें से हरेक चीज ने कभी यह भ्रम पैदा किया था कि ‘हम सब इकट्ठे स्वर्ग की ओर जा रहे हैं’ लेकिन जैसा कि महान लेखक डिकेंस कहते हैं, अंततः यह समझ में आ जाता है कि ‘हम तो इससे उलटी दिशा में जा रहे हैं’.

इन प्रवृत्तियों का सामना कैसे किया जाए? जलवायु परिवर्तन के खतरों से दुनिया रू-ब-रू हो चुकी है लेकिन सीमा तो बहुत पहले ही पार हो चुकी और इसकी कीमत चुकानी ही पड़ेगी. समाजों में विषमता और इसके राजनीतिक खतरों के मद्देनजर नयी सामाजिक सहमति की जरूरत पड़ेगी जिसमें अमीरों को अपने अल्पकालिक हितों से आगे देखना पड़ेगा. यहां यह याद करना उपयोगी होगा कि जिस शख्स को उसके नस्लवादी साम्राज्यवाद के लिए सही ही गालियां दी जाती हैं उसने पिछली सदी में एक युवा ब्रिटिश मंत्री के रूप में क्या किया था.

एक सुधारक की अप्रत्याशित भूमिका में विंस्टन चर्चिल ने खान मजदूरों के लिए आठ घंटे काम करने, न्यूनतम वेतन और भोजन अवकाश, रोजगार कार्यालय, सरकारी मदद से बेरोजगारी बीमा योजना और शोषण करने वाले मालिकों को सजा देने के नियम लागू किए थे. उन्होंने संपत्ति कर लागू करने के लिए भी मुहिम चलाई थी, इसलिए नहीं कि वे एक वामपंथी थे बल्कि इसलिए कि बेहतर शर्तें लागू करके वे मौजूदा व्यवस्था को जारी रखना चाहते थे. आज भी बेहतर शर्तों की पेशकश की जरूरत है, खतरे में पड़े लोकतंत्र और संस्थाओं की रक्षा के लिए नयी ओट बनाने की जरूरत है, जिसके बिना हम गहरी बीमारियों का इलाज नहीं कर सकते.

(बिजनेस स्टैंडर्ड से विशेष प्रबंध द्वारा)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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