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Sunday, 24 November, 2024
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कोरोनावायरस से जूझती दुनिया में पाकिस्तान इतनी तसल्ली से क्यों बैठा है

पाकिस्तान के एक मंत्री ने कोरोनावायरस को ख़ुदा का दंड बताया है. पंजाब सूबे के मुख्यमंत्री उलेमाओं को मस्जिदों को बंद नहीं करने का भरोसा दिला रहे हैं. और राष्ट्रपति अल्वी अभी-अभी चीन होकर आए हैं.

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महामारी के दौर में आम जनता अपनी सरकारों से दिशा-निर्देश की उम्मीद करती है. लेकिन पाकिस्तान में कोरोनावायरस या कोविड-19 को लेकर इमरान ख़ान सरकार की न तो कोई योजना है और न ही जनता के लिए कोई दिशा-निर्देश और तो और, पाकिस्तान के 70 वर्षीय राष्ट्रपति आरिफ़ अल्वी ऐसे समय चीन घूम आए, जब पूरी दुनिया चीन से दूरी रख रही थी. वे हाथ मिलाने से भी बाज नहीं आए, जो कि मौजूदा हाल में ख़तरे को आमंत्रण देने जैसा है. क्यों किया ये सब? अपने पक्के दोस्त चीन से पाकिस्तान की एकजुटता के प्रदर्शन के लिए. कोरोनावायरस फैलने के बाद वह बीजिंग पहुंचे पहले राष्ट्राध्यक्ष थे.

हालांकि, उन्होंने संकट का सामना करने के चीन के तरीके की जानकारी हासिल करने का दावा किया, पर पाकिस्तान में ऐसा कुछ नहीं हो रहा जिससे कि उनके दावे को सही ठहराया जा सके.

चीन ने महामारी के स्रोत वुहान समेत हुबेई प्रांत के कई शहरों में लॉकडाउन घोषित कर दिया था और लोगों के आवागमन पर रोक लगा दी थी. इसके विपरीत पाकिस्तान में कोविड-19 के मामलों में बड़ी वृद्धि के बाद भी सरकार ने प्रभावित इलाक़ों को लॉकडाउन नहीं किया गया है, न ही यात्राओं पर कोई रोक लगाई गई है.

वास्तव में, इमरान ख़ान सरकार को लगता है कि अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को ‘सिर्फ’ इस्लामाबाद, कराची और लाहौर के हवाईअड्डों पर ही आने देना मानो वायरस के फैलाव के खिलाफ एक ठोस उपाय हो, जबकि उसे मालूम है कि यात्रियों की जांच की व्यवस्था दोषपूर्ण है और प्रभावित व्यक्तियों को अलग-थलग रखने या क्वारंटाइन करने का कोई इंतज़ाम नहीं है.
देश में कोरोनोवायरस संक्रमण के कुल 296 मामलों में से सर्वाधिक 208 मामले सिंध प्रांत के हैं.

पाकिस्तान की चिंता की वजह

कोरोनोवायरस के मामलों में अचानक उछाल इमरान ख़ान सरकार की लापरवाही की वजह से आई है, क्योंकि सरकार ने पड़ोसी देश ईरान से बलूचिस्तान के सीमावर्ती शहर तफ़तान में आने वाले हज़ारों तीर्थयात्रियों की जांच और क्वारंटाइन की उचित व्यवस्था नहीं की. तीर्थयात्रिओं को गंदे टेन्टों में पर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं और साफ बाथरूमों के बिना ठूंस दिया गया था. आश्चर्य नहीं कि इससे कोरोनावायरस को फलने-फूलने का माहौल मिला होगा. सिंध में अधिकारी अब ये बता रहे हैं कि संक्रमण के नए मामलों में से अधिकांश तफ़तान के कथित रूप से क्वारंटाइन किए गए इलाकों से आने वाले यात्रियों में मिल रहे हैं. संकट को गंभीरता से नहीं लेने और बचाव की प्रभावशाली योजना नहीं बनाने का भला और क्या परिणाम निकल सकता है.

लेकिन प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को कोई कमी नहीं दिख रही. कोरोनोवायरस संकट पर राष्ट्र के नाम संबोधन में उन्होंने तफ़तान में काम के लिए बलूचिस्तान की सरकार और पाकिस्तानी सेना की भूरि-भूरि प्रशंसा की. सरकार की योजना यदि भ्रम में रहकर कोरोनोवायरस से पार पाने की है, तो 1971 के युद्ध के समान ही, हम अब तक कोविड-19 की लड़ाई जीत भी चुके होते.

दुनिया के नेता अपनी जनता को कोविड-19 के गंभीर खतरों के प्रति आगाह कर रहे हैं और इस संकट को चिंता का कारण बता रहे हैं. यहां तक कि पाकिस्तान के भीतर भी सिंध के मुख्यमंत्री सैयद मुराद अली शाह सावधानी बरतने की सलाह देते हुए लोगों को हेल्पलाइन के नंबर दे रहे हैं और जहां तक संभव हो घर से नहीं निकलने के निर्देश दे रहे हैं.

लेकिन, प्रधानमंत्री ख़ान बेहद लापरवाही से कह रहे हैं कि ‘आपने घबराना नहीं है’. प्रधानमंत्री की दलील ये है कि जांच में संक्रमित पाए गए लोगों में से खतरा मुख्यतया उन 3 फीसदी लोगों को है जो बुजुर्ग हैं और पहले से ही स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं. बाकी 97 फीसदी संक्रमित व्यक्ति ठीक हो जाएंगे. तो क्या 65 से ऊपर की उम्र के या कम उम्र के लोग, विभिन्न रोगों से ग्रसित होने के बावजूद चिंता नहीं करें?

बाकियों से सीख लेने से इनकार

लोगों को एक बात समझ में नहीं आ रही है कि सरकार ने अभी तक संकट के संबंध में सेना की मदद क्यों नहीं ली है, जबकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान की बागडोर एक मेजर जनरल के ही हाथ में है. भारत, कनाडा और अमेरिका जैसे देशों ने सैन्य ठिकानों का क्वारंटाइन केंद्रों के रूप में इस्तेमाल किया है, जबकि ब्रिटेन और अमेरिका फील्ड अस्पतालों की स्थापना के लिए अपनी सेनाओं पर भरोसा कर रहे हैं. लेकिन, पाकिस्तान की सरकार की अपनी सेना को लेकर भी कोई स्पष्ट नीति नहीं है. एकमात्र रणनीति कोरोनावायरस के संकट को कम कर आंकने की ही नज़र आती है.

सउदी अरब, तुर्की और ईरान जैसे इस्लामी देशों ने मस्जिदों में सामूहिक इबादत पर रोक लगा दी है. लेकिन पाकिस्तान में लगता नहीं कि जुमे की सामूहिक नमाज़ पर रोक लगाई जाएगी. सामूहिक सभाओं पर रोक नहीं लगाए जाने पर पाकिस्तान का हाल इटली जैसा होने की चेतावनियों के बावजूद सरकार बड़ी सभाओं और आयोजनों पर रोक लगाने की कोशिश नहीं कर रही है. इसके विपरीत, पंजाब के मुख्यमंत्री सरदार उस्मान बुज़दार उलेमाओं से मिलकर उन्हें मस्जिदों को बंद नहीं किए जाने का भरोसा दिला रहे हैं. शिया मौलवियों ने अपने धार्मिक आयोजनों और दरगाहों की यात्रा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है क्योंकि उनके अनुसार ऐसे आयोजन लोगों को ठीक करते हैं, उन्हें संक्रमित नहीं बनाते.

बरेलवी मौलाना मोहम्मद अशरफ़ आसिफ़ जलाली को पूरा भरोसा है कि वह 21 मार्च को लाहौर में अखिल पाकिस्तान सुन्नी सम्मेलन का आयोजन कर सकेंगे: ‘ख़ुदा की मर्ज़ी के बिना कोई बीमार नहीं हो सकता. यदि हमारे सम्मेलन की वजह से किसी को कोरोनावायरस का संक्रमण लगे तो आप (सरकार) मुझे फांसी पर चढ़ा देना.’ तो ये है कोरोनावायरस को लेकर हमारी बुनियादी समझ.

रक्षा मंत्री परवेज़ खटक ने पूरे आत्मविश्वास से पाकिस्तान में कोरोनावायरस पर नियंत्रण का ऐलान किया है, क्योंकि उनके अनुसार सरकार ने सभी जनसभाओं और राजनीतिक रैलियों पर रोक लगा दी है. हालांकि उन्होंने ये घोषणा नौशेरा में कथित रूप से ‘प्रतिबंधित’ ऐसी ही एक रैली में की. इससे पता चलता है कि पाकिस्तान में कोरोनावायरस कितने ‘नियंत्रण में’ है.

बड़बोलापन और देसी नुस्खे

ख़ान की पार्टी पीटीआई के एक मंत्री हैं फ़य्याज़ुल हसन चौहान, जो कोरोनावायरस को ख़ुदा का दंड बताते हैं जोकि उनके अनुसार मां-बाप के बुरे कर्मों की वजह से निशक्त बच्चे पैदा होने के समान ही है. इस मंत्री का ये भी दावा है कि कोरोनावायरस से उसी तरह निपटा जाएगा जैसे पाकिस्तान ने आतंकवाद को पराजित किया है. हालांकि उन्होंने ये नहीं बताया कि इसमें कितने दशक लग सकते हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की सलाह है कि जितना अधिक संभव हो संक्रमण के संदिग्ध मामलों का परीक्षण किया जाए. जबकि प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की सलाह है: परीक्षण के लिए अस्पतालों की दौड़ नहीं लगाएं, घर पर रहें और अपने हाथ धोते रहें. बेशक बचाव महत्वपूर्ण है और कोरोनावायरस के खिलाफ हमारा सबसे प्रभावी हथियार भी, लेकिन ये संक्रमण संबंधी परीक्षणों का विकल्प नहीं सकता और बहुतों को तो ये भी लगता है कि जागरुकता अभियान शुरू करने में ही हम दो महीने की देरी कर चुके हैं.

दुनिया के बाकी नेता जहां कोरोनावायरस संक्रमण के उपचार के तरीकों और इससे बचने के उपायों पर फोकस कर रहे हैं, वहीं इमरान ख़ान को पाकिस्तान के कर्ज़े माफ कराने की पड़ी है. कोरोनावायरस की आड़ में वह दुनिया को आगाह कर रहे हैं कि यदि मौजूदा संकट गंभीर हुआ तो पाकिस्तान के पास चुकाने के लिए पैसे नहीं होंगे, हालांकि वह देश में अपने प्रचार वाली योजनाओं में निवेश जारी रखे हुए हैं. स्वास्थ्य आपदा के माहौल में भला इसकी क्या ज़रूरत है? पाकिस्तान एक तरफ तो दुनिया भर से मदद चाहता है, वहीं कोविड-19 को लेकर सार्क की योजना में शामिल होने के लिए कहे जाने पर वह ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान’ के रवैये पर उतर आया. वो भी स्वास्थ्य सलाहकार ज़फ़र मिर्ज़ा के ज़रिए, जिन पर दो करोड़ फेसमास्कों की तस्करी का आरोप है.

जहां तक कोरोनावायरस के इलाज के देसी नुस्खों की बात है, तो बलूचिस्तान के मुख्यमंत्री जाम कमाल ख़ान ने एक फॉर्वार्ड संदेश हमसे साझा करने की कृपा की: नमक और सिरके से कुल्ला करें. फोटोशॉप निर्मित एक तस्वीर में कोरोनावायरस संबंधी बैठक की अध्यक्षता करते दिखने मात्र से उनके ऊंचे कद को गंभीरता से लेने की ज़रूरत हो जाती है.

जहां तक सामाजिक दूरी बनाने की सलाह की बात है तो इस बारे में इमरान ख़ान के मंत्री फ़वाद चौधरी की बात को अंतिम सत्य माना जाना चाहिए, ‘इंसान क्वारंटाइन होने के लिए नहीं बना है और हमारी परस्पर निर्भरता समाज और जीवन की पूर्वशर्त है. अलग रखे जाना महज एक अल्पकालिक उपाय है. मानव जाति का कल्याण विज्ञान और वैज्ञानिकों पर निर्भर करता है कि वे कितनी तत्परता से कोरोना वायरस प्रकोप की चुनौती से निपटते हैं.’

हम विस्मित हैं कि चौधरी ने यदि हमें इतनी गूढ़ जानकारी नहीं दी होती तो हम क्या करते.

(लेखिका पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

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