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Monday, 4 November, 2024
होममत-विमतबख़्तियारपुर के नामकरण को लेकर क्यों हो रहा विवाद, ये इतिहास का नहीं बल्कि राजनीति का मसला है

बख़्तियारपुर के नामकरण को लेकर क्यों हो रहा विवाद, ये इतिहास का नहीं बल्कि राजनीति का मसला है

बिहार के पटना ज़िले में स्थित इस बख़्तियारपुर के अलावा भी एक अन्य बख़्तियारपुर शहर भी है जो बिहार के सहरसा ज़िले में सिमरी बख़्तियारपुर के नाम से जाना जाता है.

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वर्ष 1901 की जनगणना के दौरान मात्र 234 लोगों का एक छोटा सा गांव जो अगले कुछ वर्षों में एक छोटे कस्बे के रूप में बिहार के मानचित्र पर उभरने वाला था और आज बिहार की राजनीति का किसी न किसी कारण से विवादों में घिरा हुआ है.

पटना से 51 किमी और नालंदा से 55 किमी की दूरी पर स्थित बख़्तियारपुर शहर बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री तथाकथित ‘सुशासन बाबू’ यानी कि नीतीश कुमार की नगरी है. पिछले वर्ष भाजपा के एक विधायक हरी भूषण ठाकुर ने बख़्तियारपुर का नाम बदलकर ‘नीतीश नगर’ करने का सुझाव दे डाला जिसे नीतीश कुमार ने बेतुका करार दिया.

इस सुझाव के पीछे भाजपा का नीतीश कुमार के प्रति प्रेम नहीं बल्कि मुस्लिम शब्दों के प्रति घृणा है. यह पहली बार नहीं है कि भाजपा के नेताओं ने बख़्तियारपुर का नाम बदलने की सलाह दी है.

पहली बार ऐसा सुझाव वर्ष 2004 में दिया गया था जब बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू था और वहां के राज्यपाल बूटा सिंह ने बख़्तियारपुर का नाम बदलने का सुझाव दिया था.

इसके बाद वर्ष 2018 में मोदी सरकार में मंत्री गिरिराज सिंह और कुछ दिन पहले भाजपा से राज्य सभा सांसद और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राकेश सिन्हा ने इस सुझाव को दोहराया.


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बख़्तियारपुर- ऐतिहासिक प्रमाण

बख़्तियारपुर शहर का नाम बदलने के पीछे सभी का तर्क है कि इस शहर का नाम मुस्लिम हमलावर मोहम्मद बख़्तियार ख़िलजी के नाम पर है जिसने बारहवीं सदी के अंतिम दशक के दौरान इस क्षेत्र पर हमला करके विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट किया था इसलिए हिंदुस्तान में किसी भी शहर का नाम ऐसे अत्याचारी हमलावर के नाम पर नहीं होना चाहिए.

हालांकि इतिहास का अध्ययन कुछ और ही कहानी बताती है.

वर्ष 1595, 1776, 1786, 1830 और 1883 में बनाए गए हिंदुस्तान के सर्वाधिक विस्तृत मानचित्रों में से किसी भी मानचित्र में बख़्तियारपुर का कहीं कोई ज़िक्र नहीं है. हालांकि बाढ़, मोकामा, बैकठपुर, फतुहा जैसे वर्तमान बख़्तियारपुर से छोटे और उसके पड़ोसी कस्बों का ज़िक्र उपरोक्त सभी पांचों मानचित्रों में है. इनमें से बख़्तियारपुर से बाढ़ की दूरी मात्र 20 किमी, बख़्तियारपुर से बैकठपुर की दूरी मात्र 12 किमी है.

गौरतलब है कि बारहवीं सदी से उन्नीसवी सदी के दौरान लिखी गई किसी भी किताब में भी बख़्तियारपुर का ज़िक्र नहीं है.

बख़्तियारपुर का पहला ज़िक्र वर्ष 1891 और 1901 की जनगणना में होता है. वर्ष 1907 में पटना ज़िला के लिए लिखे गए गज़ेटियर में भी बख़्तियारपुर का ज़िक्र होता है जिसमें इसका वर्णन एक छोटे से गांव के रूप में किया जाता है जिसकी आबादी मात्र 234 लोगों की थी.

बीसवीं सदी के पहले दशक के दौरान अंग्रेजों ने इस गांव में डाकखाना व टेलीग्राफ कार्यालय के साथ-साथ रेलवे स्टेशन भी बनवाया और बख़्तियारपुर से बिहार शरीफ के रास्ते नालंदा की तरफ राजगीर तक जाने वाली एक खिलौना ट्रेन भी चलवायी. इन सब के कारण बहुत जल्दी यह छोटा गांव एक छोटे कस्बे के रूप में उभर गया और इस तरह वर्ष 1931 में प्रकाशित हिंदुस्तान के मानचित्र में बख़्तियारपुर अपना जगह बना लेता है.

यह ऐतिहासिक समझ से परे की बात है कि एक विदेशी हमलावर जिसने मिर्ज़ापुर, वाराणसी, मनेर, बिहार शरीफ, नालंदा, लखनौती जैसे प्रसिद्ध शहरों पर कब्ज़ा किया उसके नाम पर किसी स्थान का नामकरण करने के लिए बख़्तियारपुर जैसे एक छोटे से गांव को कैसे चुना जा सकता है.

जिन मध्ययूगीन इतिहासकारों ने बख़्तियार ख़िलजी और उसके आक्रमण का ज़िक्र किया उनमें से किसी भी इतिहासकार ने बख़्तियारपुर शहर का कोई ज़िक्र क्यों नहीं किया?


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फिर आखिर कैसे पड़ा बख़्तियारपुर का नाम?

15वीं से 18वीं सदी के दौरान बनाए गए मानचित्रों में से किसी भी मानचित्र में कोई सड़क का भी वर्णन नहीं है जो बख़्तियारपुर क्षेत्र को बिहार शरीफ या नालंदा से जोड़ता हो.

अलग-अलग ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के आधार पर अगर हम बख़्तियार ख़िलजी के बिहार-बंगाल पर हमले के रास्ते का मानचित्र तैयार करें तो मिर्ज़ापुर पर कब्ज़ा जमाने के बाद बार-बार वाराणसी और मनेर में लूटपाट करने के बाद ख़िलजी मनेर से सीधे बिहार शरीफ गया.

मनेर से बख़्तियारपुर की दूरी 80 किमी से अधिक है. बिहार शरीफ में ओदंतपुर विश्वविद्यालय तबाह करने के बाद बख़्तियार ख़िलजी ने नालंदा के रास्ते, भागलपुर, विक्रमशिला विश्वविद्यालय होते हुए नादिया के राजा को हराया और और वहां से पूर्णिया, लखनौती, देवकोट होते हुए चंबा घाटी के रास्ते तिब्बत चला गया जहां वर्ष 1206 में उसकी मृत्यु हो गई थी.

अगले गई दशकों तक लखनौती बख़्तियार के वंशजों के राज्य की राजधानी भी रही लेकिन उसके किसी वंशज ने कभी किसी कस्बे का नाम बख़्तियार के नाम पर नहीं रखा.

बख़्तियार ख़िलजी के नाम को थोड़ी देर के लिए पृथक कर दें तो उस दौर में हिंदुस्तान पर हमला करने वाले प्रमुख हमलावरों में से मोहम्मद गौरी और मोहम्मद गजनी का नाम मोहम्मद बख़्तियार के नाम से कहीं बड़ा है. लेकिन हिंदुस्तान का शायद ही कोई कस्बा होगा जिसका नाम इनमें से किसी भी हमलावर के नाम पर रखा गया था.

इतिहास हमें बताता है कि किसी राजा या सुल्तान या बादशाह के नाम पर किसी कस्बे का नामकरण करने की प्रथा सल्तनत काल के बाद शुरू हुई थी. इस प्रथा में भी ज़्यादातर नामकरण किसी सूफी संत या छोटे ज़मींदार या अधिकारी के नाम पर किया जाता था.

जैसा कि बख़्तियारपुर से 20 किमी की दूरी पर स्थित खुसरूपुर का नामकरण महान सूफी संत अमीर खुसरो के नाम पर किया गया है जबकि अन्य कस्बे जैसे सलीमपुर, सलीम चिस्ती के नाम पर, फतेहपुर सीकरी, बजीतपुर, मसूद बीघा आदि सभी किसी ना किसी सूफी संत के नाम पर नामकरण किया गया था.

इसी तरह बिहार में ही हाजीपुर शहर हाजी इलियास और समस्तीपुर शहर सुल्तान शम्सुद्दीन के नाम पर नामांकित है और ये दोनों शेरशाह सूरी के राज्य में उक्त क्षेत्र के आला अधिकारी थे.

इसलिए इसकी पूरी संभावना है कि बख़्तियारपुर गांव का नामकरण महान सूफी संत बख़्तियार काकी (1173-1235) के नाम पर किया गया होगा क्योंकि बख़्तियार काकी गंगा के दोआव क्षेत्र में काफी प्रचलित थे. यह भी संभावना है कि बख़्तियारपुर गांव का नामकरण शेरशाह सूरी के सेना कमांडर बख़्तियार तुबेक के नाम पर किया गया हो जिनके अंदर पटना से लेकर मुंगेर तक का जागीर था. इसी तरह शाहजहां के कार्यकाल के दौरान भी मुगल साम्राज्य के बिहार में तिरहुत क्षेत्र के एक फ़ौजदार का नाम भी मासूम बख़्तियार खान दखनी था.


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बिहार में एक और बख़्तियारपुर, लेकिन इस पर हंगामा क्यों नहीं?

बिहार के पटना ज़िले में स्थित इस बख़्तियारपुर के अलावा भी एक अन्य बख़्तियारपुर शहर भी है जो बिहार के सहरसा ज़िले में सिमरी बख़्तियारपुर के नाम से जाना जाता है.

सिमरी बख़्तियारपुर का ऐतिहासिक ज़िक्र अठारहवीं सदी से ही लगातार दिखता है जब उस दौर में सिमरी बख़्तियारपुर एक ज़मींदारी क्षेत्र हुआ करता था.

इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि क्यों पटना के बख़्तियारपुर का नाम बदलने के ऊपर पिछले दो दशकों से हल्ला हो रहा है लेकिन सहरसा में स्थित सिमरी बख़्तियारपुर का नाम बदलने के नाम पर कभी कोई आवाज़ तक नहीं उठी है.

ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि पटना का बख़्तियारपुर का संबंध वहां के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से है जबकि सिमरी बख़्तियारपुर शहर का संबंध न किसी महत्वपूर्ण नेता से है और न ही बिहार या देश की राजनीति के साथ.

इसलिए बख़्तियारपुर का नाम बदलने का मामला इतिहास का नहीं बल्कि वर्तमान समय की राजनीति का है.

(संजीव कुमार हाल ही में प्रकाशित पुस्तकजातिगत जनगणना: सब हैं राज़ी, फिर क्यूं बयानबाज़ी ’ के लेखक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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