scorecardresearch
Saturday, 20 April, 2024
होममत-विमतसावित्री बाई फुले के योगदान को जिस तरह याद करना चाहिए, वैसे नहीं किया जाता

सावित्री बाई फुले के योगदान को जिस तरह याद करना चाहिए, वैसे नहीं किया जाता

सावित्री बाई फुले ने उस दौर में कैसे स्त्रियों के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सतीप्रथा, बाल या विधवा-विवाह जैसी कुरीतियों पर आवाज उठाई होगी?

Text Size:

शिक्षा किसी भी देश या समाज के विकास का आधारभूत ढांचा होता है. जिस देश की शिक्षा प्रणाली उच्च कोटि की होती है, उस देश का विकास बहुत तेज गति से होता है. आज दुनिया भर में यह प्रमाणित हो चुका है कि शिक्षा हर एक नागरिक का सम्पूर्ण विकास करती है. एक ओर जहां अधिकांश अफ्रीकी देश केवल 25 से 50 प्रतिशत साक्षरता के चलते गृहयुद्ध की स्थिति में दरिद्री झेल रहे हैं. वहीं, पाश्चात्य देश 100 प्रतिशत के निकट की साक्षरता के चलते फलफूल रहे हैं. भारत में वर्तमान में यह 75 प्रतिशत के आस-पास है.

शिक्षा मनुष्य के विचारों से लेकर उसकी सम्पूर्ण जीवन शैली को प्रतिबिंबित व प्रभावित करती है. आजादी के 72 साल बाद भी भारत की शिक्षा व्यवस्था अन्य देशों की तुलना मे काफी निम्न स्तर की है, जो भारत के लिए गंभीर समस्या है. यदि भारत को बहुत तेज गति से विकास करना है, तो उसे अपनी शिक्षा व्यवस्था मे सुधार करना होगा.

इस बात का जिक्र आज हम इसलिए कर रहे हैं कि आज देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले के योगदान को जिस तरह याद करना चाहिए, वैसे नहीं किया जाता. 19वीं सदी में जब देश में राजनैतिक गुलामी के साथ-साथ सामाजिक गुलामी का भी दौर था, तब सावित्री बाई फुले ने शिक्षा के महत्व को जाना, समझा और महिलाओं की आज़ादी के नए द्वार खोलकर उनमें नई चेतना का सृजन किया.

उससे पहले गुलाम भारत में महिलाओं को पढ़ने-लिखने का अधिकार नहीं था. आज उनकी जयंती पर उनके द्वारा किए गए योगदान को समझना और जानना और भी जरूरी हो जाता है कि कैसे उन्होंने उस दौर में स्त्रियों के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सतीप्रथा, बाल या विधवा-विवाह जैसी कुरीतियों पर आवाज उठाई होगी? कैसे उन रूढ़िवादी परंपराओ को तोड़कर महिलाओं को पढ़ने व आगे बढ़ने की राह दी होगी और देश की आधी आबादी महिलाओं को शिक्षा के माध्यम से मुख्यधारा में ला खड़ा किया होगा. लेकिन, ऐसी समाज सेविका जिन्होंने सामाजिक कुरीतियां के खिलाफ आवाज उठाई, क्या हम उनके योगदान और बलिदान के साथ न्याय कर पाए?

कौन थी माता सावित्री बाई फुले

जनवरी 1831 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित नायगांव नामक छोटे से गांव में जन्मी सावित्री बाई फुले ने अपने पति दलित चिंतक व समाज सुधारक ज्योतिराव फुले से पढ़कर सामाजिक चेतना फैलाई. देश की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले एक मिसाल, प्रमाण और प्रेरणा हैं कि अगर दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति हो तो समाज में नई चेतना का विस्तार किया का सकता है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें


यह भी पढ़ें : सावित्री बाई फुले के साथ मिलकर महिलाओं का पहला स्कूल खोलने वाली फातिमा शेख


जिस समय सावित्री बाई फुले ने शिक्षा की ज्योति जलाई उस समय लड़कियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता था, इसके बावजूद भी, उन्होंने नारी शिक्षा के बीड़े को अंजाम तक पहुंचाया और इसके बाद ही समाज से कुंठित वर्ग की नारियां भी शिक्षा ग्रहण करने के लिए आगे आने लगीं.

पिता के विरोध के बावजूद पढ़ाई की

मात्र 9 साल की उम्र में सावित्री बाई फुले का विवाह हुआ और जब उनका विवाह हुआ तब वह अनपढ़ थीं. ज्योतिबा फुले भी तीसरी कक्षा तक ही पढ़े थे. जिस दौर में सावित्री बाई फुले पढ़ने का सपना देख रही थीं. उस दौर में अस्पृश्यता, छुआछूत, भेदभाव जैसी कुरीतियां चरम पर थीं. उसी दौरान की एक घटना के अनुसार एक दिन सावित्री अंग्रेजी की किसी किताब के पन्ने पलट रही थीं, तभी उनके पिताजी ने देख लिया. वह दौड़कर आए और उनके हाथ से किताब छीनकर घर से बाहर फेंक दी कारण सिर्फ़ इतना था कि शिक्षा का हक़ केवल उच्च जाति के पुरुषों को ही था. दलित और महिलाओं के लिए शिक्षा ग्रहण करना पाप था.

बस उसी दिन से वह किताब वापस लाकर प्रण कर बैठीं कि कुछ भी हो जाए वह एक न एक दिन पढ़ना जरूर सीखेंगी. इसी लगन से उन्होंने एक दिन ख़ुद पढ़कर अपने पति ज्योतिबा राव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले. उन्होंने 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में देश के सबसे पहले बालिका स्कूल की स्थापना की थी और अठारहवां स्कूल भी पुणे में ही खोला गया था. उन्‍होंने 28 जनवरी, 1853 को गर्भवती बलात्‍कार पीड़ितों के लिए बाल हत्‍या प्रतिबंधक गृह की स्‍थापना की.

प्रताड़ित किए जाने पर भी स्कूल जाना नहीं छोड़ा

जब भी सावित्री बाई फुले स्कूल जाती थीं, तो लोग उन पर पत्थर और गोबर फेंक दिया करते थे. ऐसा हर रोज़ होता था. लेकिन, वह पीछे नहीं हटीं और उन्होंने इसका हल भी ढूंढ लिया. वह अपने साथ एक अतिरिक्त साड़ी भी लेकर जाने लगीं.

सावित्री बाई फुले और ज्योतिबा ने 24 सितंबर, 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की. उन्होंने विधवा विवाह की परंपरा भी शुरू की और इस संस्था के द्वारा पहला विधवा पुनर्विवाह 25 दिसंबर 1873 को कराया गया. ज्योतिबा के निधन के बाद सत्यशोधक समाज की जिम्मेदारी सावित्रीबाई फुले पर आ गई. उन्होंने इस जिम्मेदारी को बख़ूबी निभाया.

सावित्री बाई फुले को आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत भी माना जाता है. वह अपनी कविताओं और लेखों में हमेशा सामाजिक चेतना की बात करती थीं. उनकी बहुत सी कविताएं हैं जिससे पढ़ने-लिखने की प्रेरणा मिलती है, जाति तोड़ने और ब्राह्मण ग्रंथों से दूर रहने की सलाह भी मिलती है. सावित्री बाई फुले इस देश की पहली महिला शिक्षिका होने के साथ-साथ, समाज के वंचित तबक़े ख़ासकर स्त्रियों और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए हमेशा याद की जाएंगी.

ऐसी क्रांतदर्शी, दलित एवं महिला हितैषी महामना महिला के कामों को आगे बढ़ाने हेतु ही दिल्ली सरकार ने दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था पर खासा ज़ोर दिया है. शिक्षित राष्ट्र, समर्थ राष्ट्र सिर्फ एक नारा नहीं है, यह सपना है दिल्ली सरकार का जिसे पूरा करने के उद्देश्य से ही वह अपने कुल बजट का 26 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करती है. आज दिल्ली के सरकारी स्कूलों के स्तर में गुणात्मक और गणनात्मक सुधार हुआ है, जिससे इन बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ा है.

अब यह बच्चे भी प्राइवेट स्कूलों के बच्चों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे है. इसका जीता जागता उदाहरण है, दिल्ली सरकार की जय भीम मुख्यमंत्री प्रतिभा विकास योजना, डॉ. भीमराव आंबेडकर उच्च शिक्षा फेलोशिप योजना, स्कूल मैनेजमेंट कमेटी, प्राथमिक शिक्षा में मिशन बुनियाद कक्षा 3 से 5 तक गणित में 20 प्रतिशत इजाफा, हिंदी में 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी, एंटरप्रेन्योर माइंडसेट करिकुलम, देशभक्ति करिकुलम, कक्षा 9 के लिए मिशन चुनौती, विदेशों और अन्य संस्थानों में लगभग 2300 शिक्षकों को ट्रेनिंग देना शामिल है.

(राजेंद्र पाल गौतम वर्तमान में दिल्ली सरकार में सामाजिक कल्याण मंत्री हैं)

share & View comments

1 टिप्पणी

  1. ये वात बिल्कुल सही है मेरा मानना है की हम सभी क़ो शिक्षक दिवस 3 जनवरी क़ो मानाना चाहिए जिसके लिए हम सभी क़ो आगे आना चाहिए और खुद इनके जन्म दिन क़ो शिक्षक दिवस के रूप मे मनाना चाहिए और सभी क़ो इनके बारे मे इनके द्वारा किए गए कार्य के बारे मे पूरे देश वासियों क़ो बताना चाहिए इन्होने ने अपने जीवन मे कितना संघर्ष किया है महिलाओ क़ो शिक्षित बनाने के लिए आज इन्ही की देन है की अपने देश मे सभी महिलाए पूरी आजादी के साथ शिक्षा ले भी रही है और लोगो क़ो शिक्षा दे भी रही है औऱ देश मे हर विभाग मे नौकरियां भी कर रही है समाज सेवा और देश की सेवा भी कर रही है हम सभी क़ो इनके जन्म दिन क़ो शिक्षिका के रूप मे पूरे देश मे मनाना चाहिए जव हम मनाने लगेंगे तो धीरे धीरे सभी लोग़ मनाना शुरू कर देगे

Comments are closed.