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Saturday, 4 May, 2024
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ग्रोथ मोमेंटम के कारण कंज़्यूमर कॉन्फिडेंस 4 साल के उच्चतम स्तर पर, लेकिन रूरल सेक्टर पर खास ध्यान की जरूरत

शहरी उपभोक्ता वर्तमान आर्थिक स्थितियों के बारे में, जबकि ग्रामीण भारत के लोग 1 साल आगे की आय, आर्थिक और व्यावसायिक माहौल की उम्मीदों के बारे में अधिक आशावादी हैं.

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सामान्य तौर पर भारतीय उपभोक्ता, अर्थव्यवस्था की स्थिति के बारे में अधिक आशावादी हो गए हैं. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के उपभोक्ता विश्वास सूचकांक (Consumer Confidence Index) और सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के उपभोक्ता भावना सूचकांक (Consumer Sentiment Index) दोनों ने पिछले दो महीनों में उल्लेखनीय सुधार दिखाया है.

त्योहारी सीजन की शुरुआत से भी उपभोक्ताओं का विश्वास बढ़ा है. चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में अधिकांश हाई-फ्रीक्वेंसी संकेतकों ने बेहतर प्रदर्शन किया है. नवीनतम महीने के आंकड़ों से पता चलता है कि विकास की गति जारी है, हालांकि विनिर्माण और ग्रामीण क्षेत्र से जुड़ी चिंताएं बनी हुई हैं.

RBI के कंज़्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स में तेज़ उछाल

आरबीआई के सर्वेक्षण के अनुसार, उपभोक्ता विश्वास सूचकांक चार वर्षों में सबसे अधिक बढ़ गया.

आरबीआई का द्विमासिक उपभोक्ता विश्वास सर्वेक्षण परिवारों की वर्तमान धारणा और सामान्य आर्थिक स्थिति, रोज़गार परिदृश्य, समग्र मूल्य स्थिति और आय और व्यय की एक साल आगे की उम्मीद पर नज़र रखता है.

वर्तमान स्थिति को कैप्चर करने वाले करंट सिचुएशन इंडेक्स में जुलाई के सर्वे के 88.10 से बढ़कर सितंबर के सर्वे में 92.20 हो गया है. इस उछाल के साथ, करंट सिचुएशन इंडेक्स, प्रि-कोविड पीरियड के दौरान देखे गए स्तरों पर पहुंच गया है.

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महामारी ने उपभोक्ता विश्वास को बुरी तरह प्रभावित किया. कोविड की पहली और दूसरी लहर के दौरान, वर्तमान स्थिति सूचकांक में तेजी से गिरावट आई थी और यह 49 से 64 के बीच बना हुआ था. मार्च 2022 में ही सूचकांक में महत्वपूर्ण सुधार दर्ज किया गया था. तब से यह बढ़ता ही जा रहा है. नवीनतम सितंबर राउंड करंट सिचुएशन इंडेक्स में अधिक तेज़ उछाल का एक और उदाहरण है जो कि 4 अंक से से ज्यादा का था.

करंट सिचुएशन इंडेक्स में सुधार मुख्य रूप से सामान्य आर्थिक स्थिति और रोजगार को लेकर लोगों के आशावादी होने के कारण है.

जुलाई से सितंबर तक सामान्य आर्थिक स्थिति और रोजगार में सुधार की उम्मीद करने वाले परिवारों का प्रतिशत बढ़ गया है, जबकि आर्थिक स्थिति और रोजगार के बिगड़ने की उम्मीद करने वाले परिवारों का प्रतिशत कम हो गया है. मूल्य स्तर और खर्च पर परिवारों के आकलन में ज्यादा बदलाव नहीं देखा गया है.

घरेलू आय पर, सर्वेक्षण के पिछले दौर की तुलना में धारणा खराब हो गई है. पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्व की रिपोर्ट के अनुसार, रोजगार के संबंध में परिवारों के आशावाद में सुधार 2022-23 में आधिकारिक बेरोजगारी दर में उल्लेखनीय गिरावट में भी परिलक्षित होता है.

Graphic: Soham Sen | ThePrint
ग्राफिकः सोहम सेन । दिप्रिंट

एक साल आगे की एक्सपेक्टेशन को कैप्चर करने वाले सूचकांक ने जुलाई राउंड में 116.6 से बढ़कर सितंबर राउंड में 122.3 तक छलांग लगाकर और भी बेहतर प्रदर्शन किया है.

मौजूदा स्थिति की तुलना में परिवार एक साल आगे की आर्थिक स्थिति को लेकर आशावादी हैं. वे रोजगार, आय और खर्च की संभावनाओं को लेकर भी उत्साहित हैं. जबकि उत्तरदाताओं को आने वाले वर्ष के लिए मूल्य अपेक्षाओं के बारे में चिंता बनी हुई है, जुलाई दौर की तुलना में उनकी नकारात्मक भावनाएं या निराशावाद कम हो गया है.

दिलचस्प बात यह है कि शहरी उपभोक्ता कोविड काल के दौरान भी अपने भविष्य को लेकर अधिक आशावादी रहे हैं, जब उनका तात्कालिक आर्थिक माहौल चुनौतीपूर्ण था. हाल के महीनों में, वर्तमान स्थिति पर निराशावाद को दूर करने से वर्तमान मूल्यांकन और भविष्य की उम्मीदों के बीच अंतर कम हो गया है.


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CMIE सूचकांकों में दिखा Consumer Sentiment

जबकि आरबीआई का कंज्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स शहरों में उपभोक्ता विश्वास का आकलन प्रस्तुत करता है, सीएमआईई का उपभोक्ता भावनाओं का सूचकांक शहरी और ग्रामीण दोनों उपभोक्ताओं को कवर करता है.

संपूर्ण भारत के लिए उपभोक्ता भावनाओं का सीएमआईई सूचकांक सितंबर में 99.11 से बढ़कर अक्टूबर में 101.95 हो गया. महामारी की शुरुआत से पहले सूचकांक का मान 100 से ऊपर देखा जाता था.

Graphic: Soham Sen | ThePrint
ग्राफिकः सोहम सेन । दिप्रिंट

सेंटीमेंट्स में सुधार काफी व्यापक है क्योंकि शहरी और ग्रामीण दोनों उपभोक्ताओं की भावनाओं में वृद्धि दर्ज की गई है. फिर, आरबीआई के सूचकांक के समान, सीएमआईई के समग्र सूचकांक में दो घटक होते हैं: वर्तमान आर्थिक स्थितियों का सूचकांक और कंज़्यूमर एक्सपेक्टेशन का सूचकांक.

शहरी और ग्रामीण उपभोक्ता वर्तमान आर्थिक स्थितियों और एक साल आगे की आय और आर्थिक और व्यावसायिक माहौल की उनकी अपेक्षाओं के आकलन में भिन्न हैं.

शहरी उपभोक्ता वर्तमान आर्थिक स्थितियों को लेकर अधिक आशावादी हैं क्योंकि वर्तमान आर्थिक स्थितियों को दर्शाने वाला सूचकांक अक्टूबर में शहरी उपभोक्ताओं के लिए लगभग 6 प्रतिशत बढ़ गया.

हाई फ्रीक्वेंसी संकेतक उपभोक्ता खर्च में सुधार दर्शाते हैं

हाई फ्रीक्वेंसी संकेतक उपभोक्ता खर्च में सुधार को दर्शाते हैं. उपभोक्ता खर्च का आकलन करने का एक उपयोगी तरीका पिछले चार वर्षों की इसी अवधि के साथ चालू वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में प्रमुख संकेतकों की ट्रैजेक्टरी की तुलना करना है. साल-दर-साल विकास दर आधार वर्ष से भ्रमित हो सकती है, इसलिए इन संकेतकों के पूर्ण स्तर को देखना उपयोगी है.

चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में यात्री वाहनों की बिक्री, इस्पात और पेट्रोलियम उत्पादों की खपत, हवाई अड्डों पर यात्रियों की आवाजाही, रेलवे माल ढुलाई सभी में तेजी देखी गई है.

Graphic: Soham Sen | ThePrint
ग्राफिकः सोहम सेन । दिप्रिंट
Graphic: Soham Sen | ThePrint
ग्राफिकः सोहम सेन । दिप्रिंट

हालांकि, ट्रैक्टर की बिक्री जैसे ग्रामीण मांग को कैप्चर करने वाले कुछ संकेतक में चालू वर्ष में लगातार सुधार दिखना बाकी है.

त्योहारी सीज़न की शुरुआत ने उपभोक्ता खर्च को बढ़ावा दिया है, जो बढ़ते कंज़्यूमर कॉन्फिडेंस में परिलक्षित होता है. अक्टूबर में यात्री वाहनों की बिक्री नए शिखर पर पहुंच गई. अक्टूबर में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह और यूपीआई लेनदेन भी मजबूत खपत को दर्शाते हैं.

चिंता के कुछ क्षेत्र अभी भी बने हुए हैं

भारत की विनिर्माण गतिविधि के एक प्रमुख पैमाने, परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) में अक्टूबर में विस्तार की सबसे धीमी दर देखी गई. सूचकांक पिछले महीने के 57.5 की तुलना में आठ महीने के निचले स्तर 55.5 पर था. धीमी वृद्धि मुख्य रूप से कुछ उत्पादों की कमजोर मांग के कारण थी.

ग्रामीण क्षेत्र में, बुआई गतिविधि कंज़्यूमर सेंटीमेंट का एक प्रमुख निर्धारक है. यदि बुआई में देरी हुई तो गेहूं जैसी फसलों की पैदावार पर असर पड़ेगा. इससे खाद्य मुद्रास्फीति पर दबाव बढ़ सकता है, जिससे उपभोक्ता विश्वास में कमी आ सकती है.

कुल मिलाकर, हाई-फ्रीक्वेंसी वैरिएबल्स के रुझान कंज्यूमर कॉन्फिडेंस सर्वे के निष्कर्षों की पुष्टि करते हैं. हालांकि, कंज़्यूमर सेंटीमेंट्स में निरंतर सुधार के लिए ग्रामीण मांग संकेतकों में निरंतर वृद्धि देखने की जरूरत है.

[राधिका पांडे एक एसोसिएट प्रोफेसर हैं और प्रमोद सिन्हा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) में फेलो हैं.]

(व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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