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Saturday, 21 December, 2024
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कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व और ओवैसी के लिए राजनीतिक संभावनाएं

कांग्रेस के ताजा स्टैंड से मुसलमान दोराहे पर आकर खड़े हो गए हैं. अब उनके लिए कांग्रेस और भाजपा एक ही सिक्के के दो पहलू हो गए हैं. उन्हें कांग्रेस के झंडे में अब भगवा पंजा नजर आ रहा है.

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अयोध्या में 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों राम मंदिर के लिए हुए भूमि पूजन के फौरन बाद जिस शख्स की प्रतिक्रिया सबसे ज्यादा वायरल हुई, वह हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी थे. उन्होंने भूमि पूजन के ठीक पहले कहा था– ‘बाबरी मस्जिद थी, है और रहेगी, इंशाल्लाह’. हालांकि ओवैसी ने भूमि पूजन के दौरान मोदी के भाषण को लेकर कई और बयान भी दिए लेकिन उनके सबसे पहले वाले बयान को मुसलमानों के छोटे से लेकर बड़े संगठनों और मौलानाओं ने अपनी प्रतिक्रिया में अनुसरण किया.

ओवैसी के बयान पर मुसलमानों का ऐसा रुझान पहले कभी नहीं देखा गया. ओवैसी ने 5 अगस्त की सुबह फज्र की नमाज पढ़ने के फौरन बाद इस बयान को ट्वीट किया था. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी इसी बयान पर अपना स्टैंड साफ कर दिया. यह वही बोर्ड है, जिसने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार किया था.

ओवैसी को मिला भरपूर समर्थन

9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने जब मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया था तो उस समय मुसलमानों की ऐसी प्रतिक्रिया नहीं आई थी. अगर भाजपा-आरएसएस 5 अगस्त को भूमि पूजन या मंदिर निर्माण को ज्यादा हाई प्रोफाइल इवेंट नहीं बनाते तो मुसलमानों की ऐसी प्रतिक्रिया शायद नहीं आती. लेकिन जब चुनाव में ऐसे मौकों का लाभ लेना हो तो फिर भला बीजेपी क्यों चूकती? 5 अगस्त को ओवैसी में अचानक भारत के 17 करोड़ मुसलमानों को अपनी आवाज दिखी तो उन्होंने प्रतिक्रिया में ओवैसी के बयान को अपने बयान की तरह पेश कर दिया. मुसलमानों की ऐसी प्रतिक्रिया के राजनीतिक और सामाजिक नतीजे दूरगामी निकलने वाले हैं.

इतिहास में जो दर्ज है, उसे आरएसएस-भाजपा या मोदी झुठला नहीं सकते. 7 दिसंबर 1992 का कोई भी अंग्रेजी या हिन्दी का अखबार अभिलेखागार या लाइब्रेरी से निकलवाकर देख सकता है, जिसमें कार सेवकों ने बाबरी मस्जिद गिराई जैसे शीर्षक दर्ज है. सबसे प्रमुख पत्रिका इंडिया टुडे ने तो इस घटना के कवर पर छापा और इसे राष्ट्रीय शर्म बताया.

इतिहास में दर्ज इस घटना को संघ या भाजपा इतिहास का पुनर्लेखन करवाकर भी नहीं हटवा सकते हैं. आने वाली पीढ़ियों के लिए यह सवाल तो रहेगा ही कि बाबरी मस्जिद क्यों गिराई गई थी, क्या हिन्दू वहां उससे पहले मंदिर होने का सबूत पेश कर सके थे या महज आस्था के नाम पर उस जमीन पर दावा जताया गया था.


यह भी पढ़ें: हागिया सोफिया मस्जिद से लेकर अयोध्या तक धर्म और राजसत्ता के रिश्तों की कहानी


कांग्रेस का ढुलमुलपन और दोराहे पर मुसलमान

ओवैसी के बयान के बाद मुस्लिम समुदाय में मंथन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. दरअसल, कांग्रेस को फिर से एक उम्मीद के रूप में देख रहे मुसलमानों को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा समेत कांग्रेस के कुछ नेताओं के उस बयान से झटका लगा, जिसमें वे भूमि पूजन पर बधाई देते हुए नजर आ रहे हैं या ऐतिहासिक घटना बता रहे हैं. मुसलमानों को कांग्रेस के सॉफ्ट हिन्दुत्व से उतनी चिढ़ नहीं रही, जितनी 5 अगस्त को कांग्रेस नेताओं के बयान से हुई. हाल ही में राहुल गांधी ने आरएसएस के खिलाफ बयानबाजी कर जो मोर्चा खोला था और मुस्लिम युवकों के बीच थोड़ी बहुत अपनी छवि बनाई थी, लेकिन 5 अगस्त को कांग्रेस नेताओं के बयान ने उसे जबर्दस्त चोट पहुंचाई है.

कांग्रेस के मुस्लिम नेता चाहते थे कि पार्टी इस पर खुलकर कुछ बोले ही नहीं. एक दिन का इवेंट आता और चला जाता. एक चुप्पी सारे इवेंट पर भारी पड़ती. लेकिन भाजपा जिस लाइन पर कांग्रेस को लाना चाहती थी, कांग्रेस ने हिन्दुओं का दिल जीतने के लिए बयान देने में देर नहीं लगाई. उसके बाद दिग्विजय सिंह जैसे नेता कांग्रेस के स्टैंड को सही ठहराने में जुट गए.

बहरहाल, अयोध्या पर कांग्रेस के ताजा स्टैंड से मुसलमान दोराहे पर आकर खड़े हो गए हैं. अब उनके लिए कांग्रेस और भाजपा एक ही सिक्के के दो पहलू हो गए हैं. उन्हें पंजे के निशान में तीन रंगों की जगह अब भगवा पंजा नजर आ रहा है. इसका फायदा ओवैसी की पार्टी को मिल सकता है और वे देश के कई हिस्सों में मुसलमान पार्टी के नाम से अपना आधार मजबूत कर सकती है. हालांकि कांग्रेस ओवैसी को भाजपा का एजेंट बताकर प्रचारित करती रही है लेकिन अब शायद मुसलमान कांग्रेस की इस बात पर यकीन न करें.

ओवैसी के लिए 5 अगस्त का घटनाक्रम मुफीद साबित हो सकता है. बिहार चुनाव में इसकी परीक्षा भी हो जाएगी. ओवैसी बिहार विधानसभा चुनाव में हर सीट पर अपना प्रत्याशी उतारने का सपना देख रहे हैं. निश्चित रूप से इस गणित का नुकसान आरजेडी को होना है और जेडीयू-भाजपा को फायदा होना है. लेकिन खेल बिगड़ चुका है. भाजपा ने राजनीतिक रूप से मुसलमानों को हाशिए पर लाने का जो खेल खेला है, उसमें यही शह और मात की बिसात बिछती रहेगी.

तो क्या करे मुसलमान

मुसलमानों के हाथ देर या सवेर दूर दूर तक कोई ऐसा मौका नजर नहीं आ रहा है, जिसके जरिए वे किसी पार्टी के लिए राजनीतिक ताकत बनें या उसकी मजबूरी बनें. ओवैसी की एमआईएम या किसी पार्टी के साथ जाने में बुराई कोई नहीं है लेकिन उसके खतरे ज्यादा हैं. यह हकीकत है कि ओवैसी की अब तक की राजनीतिक गतिविधियों से दक्षिणपंथी राजनीतिक दलों को ही फायदा पहुंचता रहा है. वैसे भी ओवैसी अपनी पार्टी को राष्ट्रीय दल की शक्ल नहीं दे पाए हैं. हो सकता है कि मौजूदा हालात में ओवैसी के हाथ यह मौका लग जाए लेकिन इतनी जल्दी वे बिहार, यूपी या बंगाल में अपना काडर नहीं खड़ा कर सकते.

मुसलमानों का दिल कांग्रेस से भर चुका है. बाबरी मस्जिद का ताला खोले जाने में भूमिका निभाने के लिए उसने कांग्रेस को जबर्दस्त सबक सिखाया लेकिन अब वह जब उसे माफ करने के मूड में आ रही था तभी 5 अगस्त को लेकर कांग्रेस नेताओं के बयानों ने उन्हें निराश कर दिया. मुसलमानों के पास चुनाव के दौरान क्षेत्रीय दलों से हाथ मिलाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है.


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हालांकि बहुत बुरे के मुकाबले कम बुरे को चुनने की हालत में कांग्रेस नामक विकल्प हरदम मौजूद है. कुल मिलाकर किसी भी पार्टी के साथ जाने में पसोपेश की स्थिति तो जरूर रहेगी लेकिन राजनीति को खेल की तरह जब तक नहीं खेलेंगे तब तक वो आपका शिकार करती रहेगी. किसी समय दलितों के साथ मिलकर मुसलमानों ने यूपी में मजबूत समीकरण देने की कोशिश की थी लेकिन बीएसपी सुप्रीमो ने जिस तरह बार-बार बीजेपी के समर्थन से सरकार चलाई, उसके बाद वह संभावना भी जाती रही.

राजनीतिक हल के अलावा मुसलमानों के पास इसका सामाजिक हल भी है. मुसलमान सबसे पहले फिरकों से बाहर निकलें. अपने घर में बच्चों को दीनी तालीम देना शुरू करें और जरूर दें. साथ ही अंग्रेजी, उर्दू-हिन्दी के अलावा एक और भाषा का ज्ञान हासिल करने पर जोर दें. मुस्लिम समाज के पैसे वाले लोग बड़े पैमाने पर गैर मुस्लिम नामों वाले स्कूल खोलें. ऐसे लोग इस समस्या को कैसे डील करेंगे, उन्हें बहुत ज्यादा ज्ञान देने की जरूरत नहीं है, वे जानते हैं कि उन्हें क्या करना है. कुछ लोग इस दिशा में पहल कर चुके हैं लेकिन बहुत ज्यादा करने की जरूरत है. तमाम मौलाना और मुस्लिम एनजीओ अपने-अपने इलाके बांटकर एक-एक घर की मैपिंग करें कि किस घर में लड़के-लड़कियों को तालीम नहीं मिल रही है. उन बच्चों की पढ़ाई का इंतजाम करें.

(यूसुफ किरमानी वरिष्ठ पत्रकार हैं और व्यक्त विचार निजी हैं)

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4 टिप्पणी

  1. Tum ptekarbke name or kalank ho….tum sidhe sidhe Muslim ki bhadka rahe ho…..tmko sharm aani chiye…….isliy tumko desh ka gaddar bola jata hai…..tum log dunia Mai kahin b raho gandgi hi failate ho….tmko apna desh mil gaya iske bad b nafrat faiala rahe ho……..his din tum is nafrat ko khatam karoge us din tum sahi raste or aaoge

  2. जितनी कट्टरता भाजपा में है, उतनी ही इस लेख में है। ये इस देश का दुर्भाग्य रहा की सब अपने अपने धर्म के रहे, वो हिंदू तो आप मुसलमान , भारत का कोई नहीं रहा। यहाँ सेक्युलरिज़म का मतलब रहा एण्टी हिंदू और प्रो मुस्लिम। इसी का फ़ायदा भाजपा ने उठाया। जैसे आपने Congress के सॉफ़्ट हिंदुत्व की बात की वैसे ही हिंदू तमाम पार्टियों जैसे सपा, तृणमूल के सॉफ़्ट इस्लामियत की बात करते हैं। मेरा प्रिंट से निवेदन है की इस तरह के लेख पहले से बंटे भारत को और बाँटते हैं, इन्हें अपने यहाँ जगह ना दें।
    जय हिंद

  3. Mandir ka saboot mangte ho..? Supreme court ko nahi maante ye kaho,…Babar koun tha..? Kashi vishwanath mandir ko dekha hai kabhi, chale aate hain niji vichaar sajha karne… Apna DNA test karwao tum, hindu na nikle to kehna….Voters ko local communal parties ka paath padha rahe ho niji vichaar bolkar..? vichàar whatsApp par failao idhar nahi… Tum sir community giri karo… Humanity to kuchh hoti nahi..? My Boots on your thoughts… My Individual opinion!!

  4. ये पत्रकार है या इस्लामिक प्रवक्ता।
    ऐसे न्यूज एजेंसी को बैन कर देना चाहिए।

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