भगवान राम की नगरी में सरयू तट पर उनकी विश्व भर में सबसे ऊंची प्रतिमा स्थापित करने का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ड्रीम प्रोजेक्ट कोर्ट के झमेले में फंस गया है. दरअसल, प्रदेश सरकार के निर्देश पर प्रदेश के पर्यटन विभाग द्वारा इस प्रतिमा के लिए भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई शुरू करते ही उससे प्रभावित 65 लोगों ने अयोध्या जिला प्रशासन पर मुआवजे के नाम पर गुमराह करने की तोहमत लगाते हुए हाईकोर्ट की शरण ले ली है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में दायर अपनी याचिका में उन्होंने जिला प्रशासन से यह पूछे जाने की गुहार लगाई है कि वह उन्हें उनकी अधिग्रहीत की जा रही भूमि का किस दर पर और कितना मुआवजा देगा?
खंडपीठ ने इस याचिका पर आगामी 15 जुलाई को सुनवाई करना तय किया है.
कानून के जानकारों के अनुसार अब अयोध्या जिला प्रशासन को उच्च न्यायालय में अपना पक्ष रखना और याचियों को संतुष्ट करना होगा. प्रतिमा के लिए भूमि मिलने की राह साफ उसके बाद ही साफ होगी.
ज्ञातव्य है कि भगवान राम की विश्व की सबसे बड़ी प्रतिमा की स्थापना के लिए पर्यटन विभाग द्वारा 28.2864 हेक्टेयर भूमि के अधिग्रहण की कार्रवाई की जा रही है. सरकारी तौर पर किये गये एक दावे के अनुसार इस प्रतिमा की ऊंचाई 151 मीटर होगी, जबकि 50 मीटर का उसका पेडेस्टल होगा. 20 मीटर के छत्र के साथ उसकी कुल ऊंचाई 221 मीटर होगी, जो अयोध्या के बाहर से भी दिखाई देगी.
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हाईकोर्ट में याचिका दायर करने वाले सभी 65 लोग भूमि अधिग्रहण की जद में आ रही अयोध्या की रामघाट कॉलोनी के निवासी हैं, जबकि इस कॉलोनी के एक सौ एक और परिवार प्रतिमा के लिए भूमि अधिग्रहण से प्रभावित हो रहे हैं.
इस सिलसिले में अयोध्या जिला प्रशासन के लिए राहत की बात महज इतनी सी ही है कि ये प्रभावित भूमि अधिग्रहण का विरोध नहीं कर रहे और अपनी मांग के अनुरूप बेहतर मुआवजा तय करने की मांग कर रहे हैं.
प्रभावित याचियों में प्रायः सभी ने साफ किया है कि वे भगवान राम की प्रतिमा लगाने के विरोधी नहीं हैं, लेकिन उन्हें यह तो बताया ही जाना चाहिए कि जिला प्रशासन उन्हें प्रतिमा के लिए अधिग्रहीत भूमि का किस दर पर और कितना मुआवजा देने जा रहा है. उनके अनुसार गत 14 जून को इस बाबत जिलाधिकारी और प्रशासन के अन्य अधिकारियों के साथ वार्ता की गई, तो उनका रवैया गुमराह करने वाला रहा.
वर्ष 1980-81 में किये गये ऐसे ही भूमि अधिगह्रण में प्रभावित लोगों को 39 लाख 81 हजार रुपए बिस्वा की दर से मुआवजा दिया गया था. लेकिन, अब भगवान राम की प्रतिमा के लिए भूमि अधिग्रहण से प्रभावित हो रहे लोगों का कहना है कि चूंकि उनकी भूमि के बगल ही अयोध्या रेलवे स्टेशन और बाईपास है, इसलिए वह बहुत कीमती है और उन्हें सर्किल रेट का चार गुना मुआवजा दिया जाना चाहिए. साथ ही उन्होंने जो निर्माण करा रखे हैं, उनकी लागत का दो गुना भुगतान किया जाना चाहिए.
उनके अनुसार गत 16 जून को मुआवजे के संबंध में हुई वार्ता के दौरान जिलाधिकारी अनुज कुमार झा ने आश्वासन दिया था कि सभी की सहमति से ही भूमि का अधिग्रहण किया जायेगा, लेकिन अब प्रशासन आपसी सहमति के नाम पर प्रभावित परिवारों को अन्यत्र जाने के लिए धमका रहा है. दूसरी ओर जिलाधिकारी का कहना है कि पर्यटन विभाग शासन के निर्देश के अनुसार ही भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई कर रहा है.
लेकिन, भगवान राम की मूर्ति के लिए भूमि अधिग्रहण का असर एकमात्र रामघाट कालोनी पर ही नहीं पड़ रहा. करीब आधा दर्जन आश्रम व मंदिर भी उसकी चपेट में आ रहे हैं. इनमें से एक प्रसिद्ध आश्रम फटिक शिला को बचाने के लिए सन्त-महंत भी लामबंद हो गए हैं. उनका भी कहना है कि वे राम की प्रतिमा लगाने का विरोध नहीं कर रहे, लेकिन धरोहरों को नष्ट नहीं होने देंगे.
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फटिक शिला से जुड़े रामाज्ञा दास बताते हैं कि जब वहां जंगल था, उस समय तपस्वी नारायण दास ने इस आश्रम की स्थापना की थी. उनके संकल्प के अनुरूप इस आश्रम में आज भी अखंड राम नाम कीर्तन अनवरत जारी है. रामाज्ञा दास ने कहा कि यह कोई सामान्य मन्दिर नहीं, राम नगरी की एक धरोहर है. विवादित राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का भी कहना है कि राम की प्रतिमा की स्थापना का कोई विरोध नहीं है. लेकिन उसके लिए किसी आश्रम या धरोहर को नष्ट नहीं किया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि साधु-संत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर फटिक शिला आश्रम की जमीन छोड़ देने के लिए आग्रह करेंगे, क्योंकि अधिग्रहण की जद में आने पर इस आश्रम का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा.
(लेखक जनमोर्चा अख़बार के स्थानीय संपादक हैं, यह लेख उनका निजी विचार है)