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Wednesday, 20 November, 2024
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कंपनियां चांदी काट रही हैं, और सरकार की टैक्स से कमाई नहीं बढ़ी तो छूटों की समीक्षा करे

मोदी सरकार ने कॉर्पोरेशन टैक्स में परिवर्तन इस दृष्टि से किए थे कि इससे उसके राजस्व पर कोई असर नहीं पड़ेगा मगर वास्तव में ऐसा हुआ क्या? नहीं हुआ तो वित्त मंत्री को देखना चाहिए कि टैक्स में किन छूटों को खत्म किस जा सकता है.

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भारत के कॉर्पोरेट सेक्टर में नाटकीय सुधार आया है. कॉर्पोरेट वित्तीय स्थिति का अध्ययन करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय उपक्रमों को छोड़कर 2,600 से ज्यादा सूचीबद्ध निजी कंपनियों के बीच जो सर्वे कराया है वह बताता है कि इस वित्त वर्ष के पहले 6 महीने में ही उनका शुद्ध मुनाफा पिछले पूरे साल के मुनाफे के करीब 80 फीसदी के बराबर पहुंच गया है. अब इस साल की दूसरी छमाही में मुनाफे में वृद्धि की दर कम भी होती है तो भी रिजर्व बैंक के सर्वे में शामिल कंपनियों का 2021-22 का मुनाफा करीब 60 फीसदी वृद्धि दर्शा सकता है. गौरतलब है कि 2020-21 में मुनाफा दोगुना हुआ था, लेकिन यह इससे पिछले साल भारी गिरावट की भरपाई का ही मामला था.

यहां यह बताना अहम है कि कॉर्पोरेट सेक्टर का बड़ा हिस्सा रिजर्व बैंक के सैंपल डेटाबेस से बाहर है. मसलन गैर-सूचीबद्ध कंपनियां (जैसे हुंडई, कोक, पेप्सी, ऐक्सेंचर आदि); बैंक और विशाल सार्वजनिक उपक्रम (जैसे इंडियन ऑयल, ओएनजीसी, कोल इंडिया आदि). फिर भी, बैंक (सरकारी समेत) पहले से बेहतर कर रहे हैं, और यह मानने का कोई कारण नहीं है कि बड़े, गैर-सूचीबद्ध उपक्रम, सूचीबद्ध उपक्रमों से कमजोर प्रदर्शन कर रहे हैं. मुनाफे में वृद्धि का हिसाब गैर-बैंकिंग सेक्टर के उपक्रमों के आधार पर किया जाएगा. मान लें कि कम भी कर रहे हों, और लघु तथा मझोले उपक्रमों (कुल मुनाफे में जिनका योगदान छोटा ही होता है) के कमजोर प्रदर्शन का भी हिसाब कर लें तो भी कुल मुनाफे में इस साल वृद्धि ही होने की उम्मीद है.


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इस खुशखबरी के साथ दूसरी बातें भी हैं. रिजर्व बैंक के सैंपलों को बिक्री से होने वाली आय भी बढ़ी है (जुलाई-सितंबर की तिमाही में इसमें पिछले साल की इसी तिमाही में हुई आय के मुक़ाबले 30 फीसदी की वृद्धि हुई), इसके साथ ब्याज भुगतान की स्थिर दर को जोड़ दें तो शुद्ध मुनाफे का मार्जिन कहीं और ऊंचा हो जाता है. ‘बिजनेस स्टैण्डर्ड’ की खबर के मुताबिक, कॉर्पोरेट ऋण-इक्विटी अनुपात 6 साल में न्यूनतम स्तर पर है. इस तरह की आंकड़े कई बातों का खुलासा करते हैं, इस बात का भी कि शेयर बाजार में उछाल को जरूरत से ज्यादा मूल्यांकन क्यों माना जाता है. शायद ऐसा है भी, लेकिन आय जब बढ़ रही है तब कीमत और आमदनी के अनुपात भ्रामक संकेत देते हैं.

इस प्रदर्शन की उल्लेखनीय बात यह है कि यह क्षमता के कम इस्तेमाल और कई संकटग्रस्त सेक्टरों की मौजूदगी के बावजूद होता है. इसे ‘आउटपुट गैप’ कहा जाता है और यह संकेत देता है कि क्षमता बढ़ाने के लिए निवेश न करने के बावजूद बिक्री में और अधिक वृद्धि की गुंजाइश है, इसलिए नया कर्ज लेने की भी जरूरत नहीं है और इस तरह ब्याज के बोझ के कारण लागत बढ़ने का भी सवाल नहीं है. इसका अर्थ यह हुआ कि बिक्री बढ़ी तो मार्जिन भी और बेहतर होगा.
यहां सरकार के राजस्व पर असर पड़ने का जाहिर खतरा है. एक साल पहले अपने बजट में वित्तमंत्री ने 2021-22 में कॉर्पोरेट टैक्स के मद में 5,47,000 करोड़ रुपये हासिल करने की उम्मीद जताई थी. कोविड से प्रभावित 2020-21 में इस मद में हासिल 4,46,000 करोड़ रु. से यह 22.6 फीसदी ज्यादा था. लेकिन 2019-20 और 2018-19 में हासिल रकम से तो यह कम ही था. दो बार कम राजस्व का दंश भुगत चुकीं वित्तमंत्री ने वापसी को लेकर उम्मीद जताने में सावधानी ही बरती थी.

इस साल की पहली छमाही के लिए कॉर्पोरेट मुनाफे का रिजर्व बैंक ने जो आंकड़ा दिया है उस पर गौर करें तो पूरे साल के लिए मुनाफा 2018-19 में हुए मुनाफे से दोगुना होगा. उस साल कॉर्पोरेट टैक्स के मद में 6,64.000 करोड़ रु. की रिकॉर्ड उगाही हुई थी. इस साल उससे कहीं ज्यादा मुनाफे के बाद कॉर्पोरेट टैक्स का स्तर उस शिखर के पार नहीं जाता और बजट अनुमानों के मुक़ाबले भारी वृद्धि नहीं दर्शाता तो माना जाएगा कि कॉर्पोरेशन टैक्स व्यवस्था में कोई खोट है.
मोदी सरकार ने कॉर्पोरेशन टैक्स की दरों में जो चरणबद्ध बदलाव किए उनसे उम्मीद की गई थी कि राजस्व पर कोई असर नहीं पड़ेगा. नीची दरों की भरपाई छूटों में कटौती के जरिए की जानी थी ताकि प्रभावी टैक्स दर और अंकित टैक्स दर में बड़ा फर्क न रहे. उस सुधार में जिस बात पर ज़ोर दिया गया वह समझदारी भरी थी. और चीजों के अलावा, इसने अंकित दरों को दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में इन दरों के करीब ला दिया. अब बजट के दिन इस सवाल का जवाब दिया जाना चाहिए कि जो बदलाव किए गए उनसे राजस्व क्या सचमुच अप्रभावित रहा या उनके अलग नतीजे मिले. अब अगर इसका कॉर्पोरेशन टैक्स पर भी अलग असर पड़ता है तो वित्तमंत्री को गौर करना होगा कि टैक्स में किन छूटों में कटौती की जाए.

(बिजनेस स्टैंडर्ड से विशेष प्रबंध द्वारा)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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