प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आत्मनिर्भर भारत रणनीति के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक है वाणिज्यिक कोयला खनन सेक्टर को खोलना. लेकिन खनन से जुड़ी मौजूदा समस्याओं से निपटने के लिए राज्यों की क्षमताओं में बहुत सुधार की आवश्यकता है.
हालांकि केंद्र सरकार कोयला ब्लॉकों की नीलामी करती है, लेकिन राज्य सरकारों को स्थानीय समस्याओं को कुशलता से और संवेदनशीलता के साथ संभालने की जरूरत है. राज्य सरकारों को कानून व्यवस्था बनाए रखते हुए पुनर्वास प्रक्रिया के संचालन तथा प्रभावित आबादी को रोजगार के नए अवसर और आर्थिक लाभ उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार के साथ मिलकर काम करना होगा.
दुर्भाग्य से, झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन वाणिज्यिक कोयला खनन का विरोध कर रहे हैं, जोकि हमारे राष्ट्रीय हितों के लिए नुकसानदेह है, क्योंकि इससे स्थानीय समस्याओं से निपटना मुश्किल हो जाता है और परिणामस्वरूप वाणिज्यिक खनन की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है.
आत्मनिर्भर भारत अभियान कृषि, अंतरिक्ष और रक्षा उत्पादन क्षेत्रों को व्यापक रूप से खोलने के साथ-साथ एक सुदृढ़ और स्वावलंबी भारत का निर्माण कर सकेगा.
इन क्षेत्रों को खोलने से विश्वस्तरीय उत्पादन क्षमता का विस्तार होगा, बेहतरीन उत्पाद और सेवाएं उपलब्ध कराई जा सकेंगी और भारत वैश्विक सप्लाई चेन से अधिक घनिष्ठता से जुड़ सकेगा. आखिरकार आत्मनिर्भर भारत का उद्देश्य भारत को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना है, ताकि हम अपनी आर्थिक ताकत बढ़ा सकें और अपने नियति को नियंत्रित कर सकें.
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कोयला क्यों है भारत के लिए महत्वपूर्ण
आज कोयला हमारा तीसरा सबसे बड़ा आयात है. 2019 में, हमने लगभग 235 मिलियन टन कोयले के आयात पर 1.71 लाख करोड़ रुपये या लगभग 23 बिलियन डॉलर खर्च किए. हम इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और रूस से थर्मल और कोकिंग कोल दोनों का ही आयात करते हैं. भारत में कोयले का विश्व का पांचवा सबसे बड़ा भंडार है, फिर भी हम दुनिया के दूसरे सबसे बड़े आयातक हैं. केवल चीन ही हमसे अधिक, प्रति वर्ष लगभग 300 मिलियन टन, कोयला आयात करता है.
भले ही तेल और प्राकृतिक गैस का आयात घटाना हमारे लिए मुश्किल हो, जिस पर कि हमने 2019 में करीब 120 बिलियन डॉलर खर्च किए थे, लेकिन निश्चय ही हम अपने घरेलू कोयला उत्पादन को बढ़ा सकते हैं. कोयला भंडार वाले शीर्ष पांच राज्यों में मेरे गृह राज्य झारखंड (26 प्रतिशत) के अलावा ओडिशा (24 प्रतिशत), छत्तीसगढ़ (17 प्रतिशत), पश्चिम बंगाल (11 प्रतिशत), और मध्य प्रदेश (8 प्रतिशत) शामिल हैं. इस समय भारत सालाना लगभग 729 मिलियन टन कोयले का उत्पादन करता है, जिसका एक बड़ा हिस्सा (602 मिलियन टन या 83 प्रतिशत) कोल इंडिया लिमिटेड के उत्पादन का है.
कोयला मंत्रालय के अनुसार अगले कुछ वर्षों में कोल इंडिया लिमिटेड का उत्पादन सालाना 1,000 मिलियन टन तक पहुंच सकता है. हालांकि, अपनी विकास ज़रूरतों को पूरा करने और आत्मनिर्भर बनने के लिए, भारत को प्रति वर्ष 1,500 मिलियन टन तक कोयला उत्पादन करना होगा.
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कोयला खनन योजना
इस उद्देश्य के खातिर प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने वाणिज्यिक खनन के लिए कोयला क्षेत्र को पूरी तरह से खोल दिया है. एक पारदर्शी प्रक्रिया के तहत 41 कोयला खदानों की नीलामी की जानी है. इन खदानों से उत्पादित कोयले पर उपयोग संबंधी कोई प्रतिबंध नहीं होगा. कोयले के गैसीकरण और तरलीकरण को प्रोत्साहित किया जाएगा. नीलामी में बोली लगाने वालों के लिए कोयला खनन के पूर्व अनुभव की शर्त नहीं होगी – उन्हें बस पेशगी के रूप में पर्याप्त राशि जमा करानी होगी. खनन योजना को 90 दिनों की बजाय अब 30 दिनों में मंज़ूरी मिल जाएगी.
नीलामी की बोली में राजस्व हिस्सेदारी को मानदंड बनाया गया है और इसमें स्वचालित मार्ग के ज़रिए 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति है. विभिन्न ग्रेड के कोयले के मूल्य का निर्धारण एक पारदर्शी राष्ट्रीय कोयला सूचकांक के माध्यम से किया जाएगा.
कोयला मंत्रालय के अनुमान के अनुसार इन 41 कोयला खदानों से सालाना लगभग 225 मिलियन टन उत्पादन की संभावना है. इन खदानों को चालू करने के लिए 33,000 करोड़ रुपये के पूंजीगत निवेश की आवश्यकता होगी, जबकि कोयले की 1,500 से 2,000 रुपये प्रति टन की संभावित कीमतों पर इससे कोयला राजस्व के रूप में सालाना लगभग 34,000 से 45,000 करोड़ रुपये का योगदान हो सकेगा. इसके अतिरिक्त, राज्य सरकारें इन खदानों से रॉयल्टी के रूप में प्रति वर्ष संभवत: 20,000 करोड़ रुपये से अधिक प्राप्त कर सकेंगी: ओडिशा (9 खदान) – 10,648 करोड़ रुपये; छत्तीसगढ़ (9 खदान) – 4,399 करोड़ रुपये; झारखंड (9 खदान) – 3,242 करोड़ रुपये; मध्य प्रदेश (11 खदान) – 1,897 करोड़ रुपये; और महाराष्ट्र (3 खदान) – 432 करोड़ रुपये. अभी झारखंड की सालाना खनन रॉयल्टी 4,000 करोड़ रुपये से 5,000 करोड़ रुपये के बीच रही है, यानि ये खदानें मेरे राज्य के लिए रॉयल्टी में 60 से 75 प्रतिशत का इजाफा कर सकेंगी.
अनुमान है कि वाणिज्यिक कोयला खनन से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में 3 लाख से अधिक रोजगार सृजित होंगे. इससे सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के लिए अत्यंत ज़रूरी अवसर पैदा हो सकेंगे, जहां कि तालाबंदी के बाद बड़ी संख्या में श्रमिकों की वापसी हुई है. इसके अलावा, उम्मीद की जाती है कि ये 41 खदानें जिला खनिज फाउंडेशन फंड (डीएमएफएफ) में सालाना 112 करोड़ रुपये का योगदान कर सकेंगी.
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उत्पादन से जुड़ी चुनौतियां
भारत के अनेक समृद्धतम कोयला भंडार कर्णपुरा कोयला क्षेत्र में स्थित हैं, जोकि मेरे निर्वाचन क्षेत्र हज़ारीबाग़ में फैला हुआ है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत में कोयला उत्पादन का मुख्य केंद्र धनबाद से हज़ारीबाग़ स्थानांतरित होना शुरू हो गया है क्योंकि झरिया कोलफ़ील्ड में कोयले का भंडार कम होता जा रहा है, जबकि कर्णपुरा कोयला क्षेत्र में उत्पादन शुरू कर दिया गया है. परिणामस्वरूप, हमें खेती वाले इलाकों में कोयला उत्पादन में तेज वृद्धि से जुड़ी तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ा है.
ज़मीन के असल मालिकों की पहचान करना और उन्हें उचित मुआवज़ा देना शायद सबसे बड़ी व्यावहारिक चुनौती है. भूमि रिकॉर्ड अभी भी पूरी तरह से डिजिटल नहीं हुए हैं, और अभी भी उनको लेकर विवादों और मुकदमों का अंतहीन सिलसिला चलता है. इसके अतिरिक्त, भूमि रिकॉर्डों को लेकर धोखाधड़ी और आपराधिक गतिविधियां भी खूब होती हैं. यह भी आवश्यक है कि इन खदानों के कारण सृजित नौकरियां स्थानीय लोगों को दी जाएं. केवल असाधारण कौशल पर आधारित बेहद विशिष्ट नौकरियों के लिए ही बाहरी लोगों पर विचार किया जाना चाहिए. इसके अलावा खनन कंपनियों को, अपनी सीएसआर गतिविधियों के माध्यम से, उपलब्ध नौकरियों के लिए स्थानीय लोगों के पूर्ण प्रशिक्षण के हर संभव प्रयास करने चाहिए – खनन मशीनों के संचालन से लेकर लेखा कार्य तक के लिए.
एक बार खनन शुरू होने के बाद, तमाम तरह की मुश्किल समस्याएं सामने आती हैं जिनके लिए निरंतर प्रशासनिक और राजनीतिक हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है. कोयला खनन संभव करने के लिए गांवों का अन्य क्षेत्रों में पुनर्वास करना होता है. जल्दी ही कोयले से जुड़े सड़क और रेल यातायात को संभालना कठिन हो जाता है. आम जनजीवन को कोयले से जुड़े यातायात के दबाव से बचाने के लिए नई सड़कों, तथा कन्वेयर संयंत्रों, रेलवे साइडिंग, रेल ओवरब्रिज एवं अंडरब्रिज और अन्य बुनियादी ढांचों का निर्माण आवश्यक हो जाता है. कोयले की धूल हर जगह फैलती है, जिससे कृषि उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है और कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होती हैं. खनन और परिवहन से जुड़ी गतिविधियों में आपराध माफिया और जबरन वसूली वाले गिरोह में शामिल हो जाते हैं. साथ ही, वनों के विनाश और पर्यावरणीय क्षति को कड़ाई से नियंत्रित करने की आवश्यकता है.
वाणिज्यिक कोयला खनन आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है. नीलामी प्रक्रिया से देश की ऊर्जा सुरक्षा का मार्ग प्रशस्त होगा और हम अपने समृद्ध कोयला भंडारों का लाभ उठा सकेंगे. इसके अलावा, निजी क्षेत्र की भागीदारी के कारण तीव्र गति से निवेश और रोजगार सृजन होगा तथा सरकार के राजस्व में वृद्धि होगी.
(जयंत सिन्हा संसद की वित्त मामलों की स्थायी समिति के अध्यक्ष और झारखंड में हज़ारीबाग़ से लोकसभा सांसद हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)
[प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आत्मनिर्भर भारत रणनीति के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक है वाणिज्यिक कोयला खनन सेक्टर को खोलना. लेकिन खनन से जुड़ी मौजूदा समस्याओं से निपटने के लिए राज्यों की क्षमताओं में बहुत सुधार की आवश्यकता है.]
भारत में खनन उद्योग देश के सबसे भ्रष्ट उद्योगों में से एक है ।
इस उद्योग में जब तक पर्याप्त चेकिंग न हो , तब तक यह पता ही नहीं लग सकता है कि कितना माल खोद कर निकाला गया है और कितने पर रायल्टी चुकाई गई है ।
यानी मोदी जी के राज में खनन उद्योग भ्रष्टाचार का बेपैंदी का स्रोत है ।
प्रश्न देश की क्षमता के दोहन का नहीं है । समस्या देश में व्याप्त भ्रष्टाचार की है ।
प्रश्न यह है कि क्या मोदी जी देश के सरकारी उपक्रमों को और सरकारी विभागों को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाना चाहते हैं । सरकारी कामकाज को पारदर्शी बनाना चाहते हैं ।
वास्तविकता में तो ऐसा नजर नहीं आ रहा है ।
वास्तविकता में तो देश का भ्रष्टाचार निरोधक कानून ही भ्रष्ट है ।
ज्ञातव्य है कि पिछले 6 सालों में देश में एक भी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ़ रिश्वत खाने की एक भी FIR देश के किसी भी थाने में दर्ज नहीं हुई है ।
इसी से स्पष्ट है कि कोयला खनन को मोदी जी निजी क्षेत्र को इसलिए सौंपना चाह रहे हैं ताकि फकीर का झोला चंदे से हमेशा लबालब रहे । जब तक कोयला खदानें सरकार के स्वामित्व की रहेंगी , तब तक तो फकीर को वहाँ से एक धेला भी मिलने वाला नहीं है । जय श्री राम ।
Mera yah jawab hai Sarkar dwara aam aadami kab aage badhega mere hisab se jab tak Sarkar bade logon Ko jyada mahatva degi tab tak aam aadami aam hi rahega Aaj nahin badhega koi bhi Yojana koi bhi Labh aam Janata Tak pahunchne se pahle kahin Ho ruk jata hai Karan kya hai iska kyon hota hai Aisa aam aadami jagruk hogi per iski jankari e koi Yojana pariyojna koi theka chahe kuchh bhi Ho kisi bhi prakar ke Yojana ho chuka Labh Ho agar Janata Tak nahin puchega to Janata saksham kahan se hogi Sarkar jiska bhi ek rasta nikalna chahie Varna aam aadami aam Tak rahega aage padhne mein kaise Safal hoga is baat per sochana bahut jaruri hai agar aam aadami Ko badhana hai to unki tere sochana padega Sarkar chahe kitni Yojana nikale pariyojna nikaliye bahut ka Labh unka bahut kam pahunch raha haiagar aam aadami se 10 pratishat log aage badh Gaye na to iski pk 20 pratishat log aur badhenge agar 20 pratishat aur padenge iska matlab samajh lijiye yah routine chalta rahega chalega to Desh aage badhega Varna piche hi rahegaab aankhon se kuchh nahin hone wala hai jo bhi hoga vah karke dikhana hai tab hi hoga Varna kuchh nahin hone wala hai