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Wednesday, 20 November, 2024
होममत-विमतचीन को पाकिस्तान में अपने नागरिकों पर हमला करने वाले संदिग्धों की लंबी सूची को जांचने की जरूरत होगी

चीन को पाकिस्तान में अपने नागरिकों पर हमला करने वाले संदिग्धों की लंबी सूची को जांचने की जरूरत होगी

ये बीजिंग के ही हित में होगा अगर वो सावधानी के साथ उन कारणों को देखे, कि चीनी नागरिकों को न सिर्फ ख़ैबर पख़्तूनख़्वा, बल्कि सिंध और बलोचिस्तान जैसे सूबों में भी निशाना क्यों बनाया जा रहा है.

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पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी के लिए इससे ज़्यादा शर्मिंदगी नहीं हो सकती थी. उत्तरी पाकिस्तान के कोहिस्तान में एक बस में हुए धमाके में, 13 से ज़्यादा लोग मर जाते हैं जिनमें बांध पर काम करने वाले 9 चीनी कर्मचारी शामिल हैं. चीन के एक बयान के अनुसार, क़ुरैशी ने दुशांबे में एक बैठक में चीन के विदेश मंत्री वांग यी को बताया कि वो एक मशीनी ख़राबी थी जो गैस लीके होने की वजह से हुई थी. चीनी मंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि ऐसा नहीं था.

पता ये चला कि बीजिंग सही था. इससे दोनों देशों की क्षमताओं का अंदाज़ा होता है. लेकिन अजीब बात ये है कि इससे पहले कि पाकिस्तानी प्रतिष्ठान को सांस लेने की मोहलत मिल पाती, चीन ने सार्वजनिक रूप से ये कह दिया. ग़ुस्साए चीन ने पहले ही अपनी जांच टीम को वहां भेज दिया है, जो सबूतों को खोदकर निकालेगी. ये बीजिंग के ही हित में होगा अगर वो सावधानी के साथ उन कारणों को देखे, कि चीनी नागरिकों को न सिर्फ ख़ैबर पख़्तूनख़्वा, बल्कि सिंध और बलोचिस्तान जैसे सूबों में भी निशाना क्यों बनाया जा रहा है. भारत की ओर से विनाशकारी कार्रवाई का शोर मचाना एक हल्का विश्लेषण है. और अधिक गहराई में जाना होगा.

कोहिस्तान के दसू पन बिजली परियोजना में धमाका

धमाके में चाइना गेज़ूबा ग्रुप की एक बस को निशाना बनाया गया जो कोहिस्तान में सिंधु नदी पर दसू पनबिजली केंद्र बना रही है. बस में 41 लोग सवार थे जिनमें 28 चीनी नागरिक थे. परियोजना के दूसरे क्षेत्रों में पांच अन्य चीनी कंपनियां भी लगी हुई हैं, जिसे शुरू में विश्व बैंक वित्त-पोषित कर रहा था. चीनी दूतावास ने पुष्ट किया कि मरने वाले 13 लोगों में 9 उसके नागरिक थे, जिनमें कथित रूप से दो पाकिस्तानी सैनिक भी शामिल थे.

एक रिपोर्ट में इशारा किया गया है, कि हमले को एक सुसाइड बॉम्बर ने विस्फोटकों से भरे वाहनों के ज़रिए अंजाम दिया था. ये उस मशीनी ख़राबी या तोड़फोड़ की हरकत से बहुत आगे की बात थी, जिसकी स्थानीय अधिकारियों ने बात की थी. ये सब काफी हैरान करने वाली बात है. इस बीच चीनियों का ग़ुस्सा ठंडा करने के लिए, क़ुरैशी को आनन-फानन में बीजिंग भेजा जा रहा है, जबकि इंटीरियर मंत्री शेख़ रशीद अहमद ने आधे घंटे से अधिक समय तक चीन के सार्वजनिक सुरक्षा मंत्री के साथ ‘कनवर्सेशन’ में थे. इसके अलावा, संयुक्त समन्वय समिति की एक वर्चुअल बैठक टाल दी गई है.


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हर कोई चीनियों पर हमला करना चाहता है?

दसू चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपेक) की ऊर्जा परियोजनाओं की सूची में नहीं है. इस कारण से ये हमला ज़्यादा हैरत में डालता है, चूंकि पाकिस्तान नियमित रूप से ‘विदेशी ताक़तों’ और भारत पर सीपेक के तहत ग्वादर पोर्ट जैसी परियोजनाओं को निशाना बनाने का आरोप लगाता रहता है. बहुत से तथ्य मिलकर इशारा करते हैं कि ये हमले उससे दशकों पहले शुरू हो गए थे, जब इन परियोजनाओं के बारे में सोचा भी नहीं गया था. पाकिस्तान में चीनी नागरिकों के खिलाफ पहले ज्ञात हमले 2004 में शुरू हुए थे, जिनकी ज़िम्मेदारी बलोच लिबरेशन फ्रंट ने ली थी. जुलाई 2007 में, चीनी नागरिकों पर पेशावर में हमला किया गया, लेकिन उसे उस साल पाकिस्तान के लाल मस्जिद पर चढ़ाई से जोड़ दिया गया. ये तब हुआ था जब मस्जिद के अंदर मौजूद कट्टर पंथियों ने चीनी सेक्स वर्कर्स की गतिविधियों का विरोध किया था, और सात चीनी महिलाओं को अग़वा कर लिया था. धर्मगुरुओं का कहना था कि वो चीन से दोस्ती की क़द्र करते हैं, लेकिन ऐसी अनैतिक हरकतों की इजाज़त नहीं देंगे.

उसके बाद कुछ बेतरतीब हमले हुए जैसा कि 2018 में दो चीनी नागरिकों पर हुआ, जो कॉस्को शिपिंग लाइन्स के लिए काम थे, एक ऐसी कंपनी जो 1980 के दशक से पाकिस्तान में काम कर रही थी. 2014 से 2016 के बीच क़रीब 44 हमले हुए, जिससे और अधिक संदिग्ध नज़र आने लगे. उन संदिग्धों में ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटिम) और बाद में पाकिस्तान तालिबान शामिल थे, जिन्होंने हाल ही में पेशावर लग्ज़री होटल पर ऐसे समय हमले की ज़िम्मेदारी ली, जब वहां चीनी राजदूत ठहरे हुए थे. ऐसा लगता है कि जितने हमले हैं उतनी ही संदिग्धों की संख्या है.

संदिग्ध नंबर 1: असंतुष्ट वीग़र, ETIM

चीन के साथ वीग़र की नाराज़गी का सिलसिला पीछे 1950 के दशक तक जाता है, जब उस्मान बतूर ने शींजियांग में एक विद्रोह की अगुवाई की थी, जिसका बुरी तरह दमन किया गया था. लेकिन ईटिम का गठन 1993 में किया गया, जो मुख्य रूप से पाकिस्तान से काम करती थी. उनसे अपनी गतिविधियां बंद करने के बार-बार अनुरोध के बावजूद, इस्लामाबाद उसके लीडर हसन महसूम को 2003 में जाकर मार पाया, जबकि इस पूरी अवधि में आर्थिक मदद के लिए वो चीनियों को दुहता रहा था. जैसा कि ऊपर कहा गया चीनियों पर हमले 2004 में शुरू हुए थे. लेकिन चीन धोखे में नहीं आया.

2011 में चाइना डेली कह रहा था, ‘ग्रुप के लीडरों ने पाकिस्तान में स्थित ईटिम कैंपों से आतंकी तकनीकें सीखीं, जिसके बाद वो शिंजियांग में घुस गए’. ये चीनी ग़ुस्से का स्पष्ट संकेत था. फिर अक्तूबर 2013 में तियानमेन स्‍क्‍वायर पर एक कार बम हमला हुआ, और उसके बाद कुछ और सिलसिलेवार हमले हुए. फिर सेना प्रमुख जनरल रहील शरीफ ने कार्रवाई का वादा किया, जिसके बाद क़बायली इलाक़ों में हवाई हमले किए गए. लेकिन तब तक, उसके अल-क़ायदा जैसे दूसरे संगठनों के साथ भी जुड़ाव हो चुके थे, जिसे अमेरिका ने भी स्वीकार किया और कुछ समय के लिए उसे आतंकी संगठन के तौर पर नामित किया.

अभी स्थिति ये है कि वीग़र लोग पाकिस्तान में बने हुए हैं, और उनमें से कुछ स्वीकार करते हैं, कि वो शिंजियांग प्रांत के कुख्यात हो चुके बंदी शिविरों से भाग निकलने में, अपने साथी नागरिकों की सहायता करते हैं. इसलिए दहशतगर्दी का एक संभावित कारण शायद सबसे सीधा है- जो बुरी तरह प्रभावित हैं वो पलटवार कर रहे हैं, जहां और जब भी मुमकिन हो. और स्पष्ट है कि ये सबसे आसानी के साथ पाकिस्तान के अंदर से किया जा सकता है, जो बहुत लंबे से कट्टरपंथी नैरेटिव का ‘दोस्त’ बना हुआ है.


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संदिग्ध नं-2: पाकिस्तान तालिबान और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में अशांति

फिर हैं पाकिस्तानी तालिबान, जो 2007 से पाकिस्तान सेना की राह का कांटा बने हुए हैं, जब बैतुल्लाह महसूद ने पहली बार तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) का गठन किया था, जो एक पूर्व ‘मुजाहिदीन’ था जिसे पहले रूसियों, और फिर अफगान तालिबान से लड़ने के लिए भर्ती किया गया था. उसे एक करिश्माई लीडर बताया जाता था, जिसके समय में सिलसिलेवार ख़ूनी हमले हुए, ख़ासकर पाकिस्तानी सेना के खिलाफ, जिनमें आईएसआई मुख्यालय पर हुआ हमला भी शामिल था. 2009 में अमेरिकी ड्रोन हमले में महसूद की मौत के बाद, टीटीपी छोटे छोटे टुकड़ों में बिखर गई, जिनमें से कुछ तो पाकिस्तानी सेना के ही हाथ की कठपुतली बन गए. इसकी एक मिसाल थी अहसानुल्लाह एहसान का संदिग्ध रूप से निकलना, और बाद में टर्की से उसका एक इंटरव्यू (एक ज्ञात पाकिस्तान मित्र), जिससे संकेत मिलता था कि उसने मिलिटरी इंटेलिजेंस के साथ एक ‘सौदा’ कर लिया था.

लेकिन, टीटीपी के फिर से खड़े होने की अहसान की भविष्यवाणी सही थी, जैसा कि अप्रैल 2021 में पेशावर होटल की बमबारी से ज़ाहिर हो गया. लेकिन ऐसा लगता है कि ख़ासतौर से चीन के लिए नहीं था, और चीनी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने भी इस बात को कहा, कि ग्रुप ‘चीनी नागरिकों को निशाना बनाकर ज़्यादा हल्ला मचाना चाहता था…ताकि ‘एक दुर्भावनापूर्ण घरेलू एजेंडा’ को आगे बढ़ाया जा सके, और चीनी सूत्रों का हवाला देते हुए उसने कहा, कि स्थानीय लोग बिल्कुल भी चीन-विरोधी नहीं थे.

लेकिन इन इलाक़ों के लोगों में पाकिस्तानी सेना के खिलाफ नाराज़गी भरी हुई है. ये सबसे ज़्यादा नज़र आता है पीटीएम (पश्तून तहफ्फुज़ मूवमेंट) में, जो एक पूरी तरह अहिंसक ग्रुप है जो दशकों से चल रहे स्थानीय लोगों के अपहरण और अपमान का विरोध करता रहा है. इसकी लोकप्रियता पूरे मुल्क में फैल गई है, जिसकी वजह से तिनका भर सबूत के बिना, इसपर विदेशी फंडिंग का ठप्पा लगाया जाता रहा है, और इसके नेताओं की दिन-दहाड़े हत्याएं हुई हैं.

2018 में क़बाय़ली इलाक़ों के ख़ैबर पख़्तूनख्वा के साथ ‘ऐतिहासिक’ विलय के बाद, जिसका उस समय भी बहुत से क़बीलों ने विरोध किया था, ये नाराज़गी और बढ़ी है, जिसमें बुज़ुर्ग लोग विलय को रद्द करने की मांग कर रहे हैं, जबकि अशांत ख़ैबर में उसके खिलाफ 1 जून को काला दिवस मनाया गया. कुल मिलाकर, इस्लामाबाद के सख़्त रवैये के खिलाफ वास्तविक शिकायतों ने एक विस्फोटक स्थिति पैदा कर दी है, जिसमें राज्य के किसी भी दोस्त को दुश्मन की तरह देखा जाता है.

संदिग्ध नं 3: बलोचिस्तान का ‘आतंकवाद’ और दशकों का दमन

बलोचिस्तान में भी यही कहानी दोहराती है, जहां बलोच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने चीनी दूरसंचार प्रतिष्ठानों पर सिलसिलेवार हमलों की ज़िम्मेदारी ली, और कई कर्मचारियों को पकड़ लिया. इसका आरोप है कि इस्लामाबाद यूनिवर्सल सर्विस फंड फाइबर ऑप्टिक सर्विस के ज़रिए उनकी जासूसी करता है. 5.11 अरब पाकिस्तानी रुपए मूल्य का ये प्रोजेक्ट, पिछले साल चीनी कंपनियों को दिया गया था. पाकिस्तान आधिपत्य के बलोच विरोध का सिलसिला पीछे मार्च 1948 तक जाता है, जब पाकिस्तान ने कलात के ख़ान के साथ विश्वासघात किया था.

दमन और बलोच का साहस इतिहास इतना लंबा है, कि उसका यहां पर्याप्त रूप से उल्लेख किया जाना संभव नहीं है, लेकिन इतना कहना काफी होगा कि तथाकथित ‘अंतर्राष्ट्रीय समुदाय’ बरसों से बलोच युवाओं पर हुए हज़ारों जघन्य हमलों की अनदेखी करता रहा है. लेकिन ये अभी भी है और बढ़ रहा है, जैसा कि हाल ही में हुई सम्मानित बलोच नेता उस्मान कक्कड़ की हत्या. पाकिस्तानी मीडिया ने उसकी मौत का मातम मनाती भारी भीड़ के मंज़र को पूरी तरह नज़रअंदाज़ किया, जिन्हें अब काफी हद तक पाकिस्तान ने अपने वश में कर लिया है. लेकिन उस नाराज़गी के चलते बलोच लोग चीनियों को भी, उसी तरह कब्ज़ा करने वाली सेना की तरह देखते हैं जैसे पंजाबियों को, जो अपना एजेंडा आगे बढ़ाते हैं.

और अब ‘अभियुक्त’ के लिए

कहीं पर कुछ भी हो जाए पाकिस्तानी बुनियादी तौर पर हर समय भारत और अमेरिका पर आरोप लगाते रहते हैं, जिसमें वित्तीय कार्रवाई कार्यदल (एफएटीएफ) की कार्रवाइयां भी शामिल है, एक ऐसी इकाई जिसका काम दुनिया भर से आतंकवाद की फाइनेंसिंग को जड़ से ख़त्म करना है. बहुत से मौक़ों पर इज़राइल के मोसाद से एक्सिस का शोर मचाया जाता है. दशकों से ज़बरदस्त साक्ष्य दिखाते रहे हैं कि पाकिस्तान न सिर्फ हर तरह के आतंकवादियों की एक आरामगाह बन गया है, बल्कि इसकी अपनी सरकार का भी दक्षिण पंथ की ओर झुकाव बढ़ता दिख रहा है. प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को ‘तालिबान ख़ान’ ऐसे ही नहीं कहा जाता था.

अब ऐसा लगता है कि हमेशा की तरह इस बार भी सेना सही है. नजम सेठी बताते हैं कि सेना के शीर्ष नेतृत्व ने सरकार और मीडिया को चेतावनी दी है, कि अफगान तालिबान को आकर्षक न बनाएं, क्योंकि उससे पाकिस्तान की भूमिका का और पर्दाफाश होगा. लेकिन ज़्यादा मुद्दे की बात ये है कि उसने कहा है कि बलोचिस्तान और क़बायली इलाक़ों में, पाकिस्तान तालिबान की गतिविधियों की ख़बरें प्रेस में न आएं. ऐसा लगता है कि एक बहुत गंभीर ख़तरा है जो प्रतिष्ठान के दरवाज़ों पर दस्तक दे रहा है, और बिल्कुल देश के अंदर ही है. बीजिंग उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं करेगा.

(लेखिका इन्स्टीट्यूट ऑफ पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट स्टडीज़, नई दिल्ली में एक प्रतिष्ठित फेलो हैं. उनका ट्विटर हैंडल @kartha_tara है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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