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Tuesday, 26 November, 2024
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सारी तोहमत चीन पर लेकिन क्या भारत अपने वेट मार्केट को नियंत्रित कर रहा है

भारत का एक बड़ा हिस्सा (जिसमें पश्चिम बंगाल, उत्तर पूर्वी राज्य और केरल शामिल हैं) जहां वेट मार्केट यानि मीट बाजार में जानवरों का मांस बेचा जाता है. लेकिन भारत पशुजन्य रोगों के नियंत्रण के कड़े नियम बनाकर इस मामले में अग्रणी बन सकता है.

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कोविड-19 के घटते मामलों के साथ, जैसे-जैसे चीन क़रीब 80 दिनों के लॉकडाउन से बाहर आ रहा है, वुहान प्रांत के अनेक गीले बाज़ार (सिवाय हुनान सीफूड होलसेल मार्केट के, जिसके आसपास पहला क्लस्टर हुआ था) कारोबार की तरफ लौट रहे हैं. ख़ासकर दक्षिण एशियाई देशों में, गीले बाज़ार बहुत आम हैं, जहां मछली, मांस ज़ैसी ख़राब होने वाली ताज़ा चीज़ें ख़रीदी जा सकती हैं.

दुनियाभर में पाई जाने वाली पारंपरिक चीज़ों के अलावा, चीन के गीले बाज़ारों में मांस के नाम पर चमगादड़ और पैंगोलिन जैसे विदेशी जीव भी बेचे जाते हैं. ये जीव चीनी लोगों की रोज़मर्रा ज़िंदगी का बहुत आवश्यक हिस्सा हैं. दुर्भाग्यवश, सितम्बर 2019 के आसपास, उनमें से एक विदेशी जीव, संभवत: चमगादड़ या फिर पैंगोलिन, किसी ऐसे भोजन के सम्पर्क में आया, जिसमें चमगादड़ की लार मिली हुई थी. इसके अंदर एक ऐसा घातक वायरस था, जो अलग-अलग प्रजातियों से गुज़रता हुआ, बहुत तेज़ी के साथ इंसानों को संक्रमित करने लगा. अब, जब वो गीले बाज़ार फिर से खुलने लगे हैं, तो पूरी दुनिया भय से पूछ रही है कि कोई नया वायरस भविष्य में यही कहानी फिर दोहराएगा?

पशुजन्य बीमारियों की समझ

किसी जानवर से इंसान के भीतर जाते हुए, जब कोई वायरस अपनी संक्रमित होने वाली स्पीशीज़ में बदलाव करता है, तो उस प्रक्रिया को ‘जूनोसिस’ कहा जाता है. जूनोसिस पहले भी हो चुका है, और भविष्य में भी ज़रूर होगा. मवेशियों और घरेलू जानवरों के क़रीबी सम्पर्क ने पक्षियों में इनफ्लुएंजा और एंथ्रेक्स नामक जूनोसिस को जन्म दिया था. भोजन, ख़ासकर मांस खाने से जूनोटिक इन्फेक्शन हो जाना काफी आम बात है. मसलन, सैलमन से होने वाला इन्फेक्शन, जिसमें दूषित मांस खाने से टाइफाइड या पैरा-टाइफ़ाइड हो सकता है. कीट पतंगों से भी आमतौर पर जूनोटिक इन्फेक्शन हो जाता है.

लेकिन, हाल ही में सामने आए जूनोसिस के कुछ नए अथवा ‘नॉवल’ घातक वायरस का संबंध मनुष्य की उस इच्छा से है, जिसमें वो अज्ञात में जाना चाहता है, ऐसे जंगलों में जिन्हें पहले छेड़ा नहीं गया. यहां उसका सामना नए पौधों, जीव-जंतुओं, और पैथोजेंस के एक विशाल भंडार से होता है. पिछली सदी में एचआईवी और इबोला के वायरस ने जूनोसिस के ज़रिए ही इंसानों को संक्रमित करना शुरू किया था. ये दोनों वायरस अफ्रीकी महाद्वीप के जंगलों में जानवरों (क्रमश: चिम्पैंज़ियों और चमगादड़ों) से इंसानों में आने शुरू हुए, और इन्हें ‘बुश मीट’ के उपभोग से जोड़ा जा सकता है.

बुश मीट शिकार किए गए जंगली जानवरों का मांस होता है, जिसे इंसान खाते हैं. ऊष्णकटिबंधीय अफ्रीका, एशिया, सेंट्रल और साउथ अमेरिका के बहुत से जंगली क्षेत्रों में, ये प्रथा आज भी जारी है. 1990 के दशक में बुश मीट के व्यापार में इज़ाफ़ा हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में चिम्पैंज़ी और दूसरे प्राईमेट्स, चमगादड़, मेंढक, और चूहों का शिकार किया गया.

2005 के आसपास, इनके व्यवसायिक शिकार और कारोबार को, जैविक-विविधता के लिए एक ख़तरा माना गया. घटते वन क्षेत्रों में बढ़ती आबादी और उसकी मीट की बढ़ती मांग को देखते हुए, शिकारी उन वनों का रुख़ कर रहे हैं जहां पहले कोई नहीं गया था. इससे उनके ऊपर नए पैथोजन संक्रमित जानवरों से आए नॉवल वायरस का शिकार होने का ख़तरा बढ़ जाता है.

एचआईवी का जूनोसिस ‘कट हंटर हाईपोथीसिस’ के नाम से भी जाना जाता है. ये एचआईवी ‘एसआईवी’ या ‘सीमियन इम्यूनो-डेफीशिएंसी वायरस’ की तरह होता है, जो चिम्पैंज़ियों में पाया जाता है. माना जाता है कि 20वीं शताब्दी के पहले हिस्से में, एसआईवी से संक्रमित एक चिम्पैंज़ी का मांस तैयार करते हुए, शिकारी के शरीर पर एक खुला हुआ घाव था, जिसके रास्ते वायरस उसके शऱीर में घुस गया. परिवर्तन के दौर से गुज़रते हुए, एचआईवी के अपने मौजूदा रूप में आने तक, वायरस को आधी सदी का समय लग गया. इसमें अभी भी परिवर्तन हो रहे हैं.

इबोला वायरस भी लगभग एचआईवी जैसे जूनोसिस के रास्ते पर ही चलता है. और, जैसा पहले ही कहा जा चुका है, ऐसा माना जा रहा है कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के लिए ज़िम्मेदार वायरस, सार्स-सीओवी-टू भी, इसी तरह अलग-अलग प्रजातियों से होकर आया है.

ज़ूनोसिस पर नियंत्रण: कैसे संभव है?

चीन के गीले बाज़ारों में विदेशी जंगली जानवरों की मौजूदगी, कोविड-19 के फैलने के बाद से आलोचनाओं का शिकार रही है. हुनान बाज़ार के जंगली जानवरों के हिस्से में, जिसे महामारी का मुख्य केंद्र माना जाता है, सांप, ऊदबिलाव, पॉर्क्यूपाइन्स, बेबी क्रोकोडाइल्स, चमगादड़ और पैंगोलिन जैसे बहुत से जानवरों की ज़िंदा और मारी हुई प्रजातियां बेंची गईं थीं. इन बाज़ारों की निगरानी अवश्य होनी चाहिए.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के निर्देश हैं कि एक स्वस्थ फूड मार्केट किस तरह चलना चाहिए. दस्तावेज़ में एक पूरा अनुबंध है कि पक्षियों के इन्फ्लुएंज़ा को गीले बाज़ार से कैसे दूर रखा जाए. इसमें पिंजरों की सफाई, कटाई के साफ-सुथरे माहौल, और विक्रेताओं तथा हैण्डलर्स के लिए निजी सुरक्षा उपकरणों (पीपीई) को ऊंची प्राथमिकता दी गई है. साथ ही अलग-अलग तरह के मांस को दूषित होने से रोकने के लिए मार्केट ज़ोन बनाने, हाथों की अच्छे से धुलाई, गीले बाज़ार के कामकाज को लेकर शिक्षा और जागरूकता, और बाज़ार की निगरानी पर भी ज़ोर दिया गया है. अगर इन निर्देशों का ठीक से पालन कर लिया जाता, तो हम उस वैश्विक संकट से बच जाते, जिससे आज दो-चार हैं.

लेकिन, किसी एक देश पर सारा दोष मढ़ना, या सिर्फ उस देश के गीले बाज़ारों को नियंत्रित करना ही, भविष्य की जूनोसिस के नियंत्रण या उसकी रोकथाम का एकमात्र उपाय नहीं है. क्योंकि, जैसा पहले भी कहा जा चुका है, भारत समेत बहुत से विकासशील देशों में, ऐसे गीले बाज़ार एक आम चीज़ हैं. और बहुत से देशों में भोजन के लिए वन्य जीवों का शिकार एक आम प्रथा है. इसके पीछे बहुत से पेचीदा कारण हैं, जिनमें भोजन की पारंपरिक आदतों से लेकर, घोर ग़रीबी तक शामिल है.

जूनोसिस- वनों को छेड़ने का परिणाम

साल 2014 में स्मिथ एट अल ने अपना काम प्रकाशित किया, कि 1980 के दशक से जूनोसिस की दर कैसे तेज़ हुई. जोन्स एट अल ने वन्य जीवों से होने वाले जूनोसिस को विश्व के स्वास्थ्य के लिए, सबसे अहम और सबसे तेज़ी से बढ़ता ख़तरा करार दिया. (डेविड क्वामेन जैसे) कुछ एक्सपर्ट्स की राय में, बढ़ी हुई जूनोसिस का संबंध वनों के विनाश, वनों के इको-सिस्टम, और इंसान तथा वन्य जीवों के बीच बढ़ते मेल-मिलाप से हो सकता है.

एक इको-सिस्टम अगर काम कर रहा हो और स्वस्थ हो (जैसे कोई स्वस्थ प्राचीन जंगल), तो वो इंसानों को भी फायदा पहुंचाता है. वन पोषक तत्वों के चक्र, मिट्टी की बनावट, प्राइमरी उत्पादन, नियमन और सांस्कृतिक सेवाओं आदि में मदद करते हैं. वनों में नियमित करने वाली एक सेवा है बीमारियों का नियंत्रण. ऐसा करने की एक प्रक्रिया है पैथोजन कैरी करने वाले ऑर्गेनिज़्म को, इंसानी सम्पर्क से दूर, अपने भीतर रोक कर रखना.

लेकिन, जब वनों के इको-सिस्टम को छेड़ा जाता है, तो उससे जानवरों के व्यवहार में बदलाव आत है, और इंसानों और पालतू जानवरों से उनका सामना बढ़ जाता है, जिससे नए वायरस को एक से दूसरी प्रजाति तक जाने का रास्ता मिल जाता है. मिसाल के तौर पर, अपने आवास नष्ट हो जाने से जंगली फल खाने वाले चमगादड़ों को, मजबूरन इंसानी बस्तियों के पास फलदार वृक्षों पर आना पड़ा. इससे पालतू जानवरों के साथ उनकी मुठभेड़ बढ़ गईं, जिसने अंतत: एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति में फैलने वाले, नीपा और हेंद्रा वायरस को जन्म दिया.

भारत को क्यों चिंतित होना चाहिए. भारत का एक बड़ा हिस्सा (जिसमें पश्चिम बंगाल, उत्तर पूर्वी राज्य और केरल शामिल हैं) वन्य जीवों से होने वाली जूनोसिस के, भारी ख़तरे वाले ज़ोन में आता है. दक्षिण एशिया के किसी भी दूसरे देश की तरह, भारत में भी बहुत से गीले बाज़ार हैं. और इनमें से कुछ गीले बाज़ारों में (जैसे उत्तर पूर्वी राज्यों में हैं), बहुत से विदेशी जानवर मांस के लिए बेचे जाते हैं (हालांकि उनमें से कुछ जानवर वन्य जीव क़ानूनों द्वारा संरक्षित हैं). दुर्भाग्यवश, इन बाज़ारों से जूनोसिस के अनुकूल वैसे ही हालात पैदा होते हैं, जिन्हें मौजूदा महामारी में नॉवल कोरोनावायरस के लिए ज़िम्मेदार माना जा रहा है.

क्या किया जा सकता है

पूरी दुनिया निकट भविष्य में, धीरे-धीरे लेकिन यक़ीनी तौर पर, मौजूदा संकट से निकल आएगी पर कोई भी देश जिसमें गीले बाज़ार और छेड़े गए वन हैं, कोई भी देश जहां विदेशी जीव और बुश मीट खाने की प्रथा है, उसे याद रखना चाहिए कि जूनोसिस के नए पैथोजन का प्रकोप कभी भी सामने आ सकता है. ये वैश्विक महामारी अंतिम नहीं होगी.

जूनोसिस या जानवरों से पैदा होने वाले नए पैथोजंस एक स्वाभाविक प्रक्रिया हैं. इनसे पूरी तरह बचा नहीं जा सकता लेकिन ठीक से उठाए गए एहतियाती क़दमों से, इसे धीमा या क़ाबू किया जा सकता है. जूनोसिस की प्रक्रिया और इसके ख़तरों के बारे में जागरूकता, डब्ल्यूएचओ के निर्देशों के हिसाब से गीले बाज़ारों की निगरानी, बुश मीट पर निर्भर समुदायों के खान-पान की आदतों में बदलाव, और वन्य जीवों के कारोबार पर पाबंदियां ही वो उपाय हैं जिन्हें अपनाकर, भविष्य के संभावित ख़तरों से निपटा जा सकता है.

ये प्रथाएं दुनियाभर में आवश्यक हैं, लेकिन भविष्य में जूनोसिस की संभावनाओं को नियंत्रित करने के लिए कड़े नियम बनाकर, इस लॉकडाउन के समाप्त होते ही, भारत एक अगुआ देश बन सकता है. आख़िरकार, कुछ प्रथाओं पर नियंत्रण और उनकी निगरानी, कहीं ज़्यादा सुविधाजनक है, बजाय इसके, कि कोई नई जूनोसिस आने पर, एक नई महामारी फैले, और पूरे देश को लॉकडाउन कर दिया जाए.

(जया ठाकुर ओआरएफ कोलकाता में एक जूनियर फेलो हैं जो वर्तमान में अर्थव्यवस्था और विकास कार्यक्रम के के साथ काम कर रही हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)

(यह लेख को पहली बार ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन पर प्रकाशित किया गया है.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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1 टिप्पणी

  1. Mere khyal se indian meet market Mai chmadagad ka mans nahi milta…na hi kutte billi..sanp ka…

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