चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग ने 11 मार्च को एक प्रेस कॉनफ्रेंस में कहा कि ‘हॉन्गकॉन्ग की निर्वाचन प्रणाली को सुधारने’ के नेशनल पीपुल्स कांग्रेस या एनपीसी के फैसले से ‘देशभक्तों का हॉन्गकॉन्ग में शासन करना’ और ‘एक देश दो प्रणालियों’ का सतत विकास करना सुनिश्चित हो जाएगा.
बीजिंग में एनपीसी के हाल ही में संपन्न हुए सत्र में हॉन्गकॉन्ग के लिए एक स्पष्ट संदेश है: चीन उन हॉन्गकॉन्ग वासियों को आगे बढ़ाएगा जिन्हें बीजिंग ‘देशभक्त’ समझता है.
हॉन्गकॉन्ग स्पेशल एडमिनिस्ट्रेटिव रीजन ने, संयुक्त राष्ट्र मान्यता प्राप्त, चीन-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा की वजह से सापेक्ष स्वायत्तता का फायदा उठाया है. ये समझौता 2047 में खत्म हो जाएगा.
हॉन्गकॉन्ग स्पेशल एडमिनिस्ट्रेटिव रीजन की चुनावी प्रणाली को सुधारने का एनपीसी का फैसला, चुनाव समिति के सदस्यों की संख्या 1,200 से बढ़ाकर 1,500 करके हॉन्गकॉन्ग की चुनावी व्यवस्था में, एक व्यापक बदलाव लाएगा. चुनाव समिति पर हॉन्गकॉन्ग के चीफ एग्ज़ीक्यूटिव का चुनाव कराने का ज़िम्मा होता है. बीजिंग ने संकेत दिया है कि नया फैसला चुनाव समिति में देशभक्तों का आगे बढ़ाएगा और वो लोग बाहर कर दिए जाएंगे, जिनका लोकतंत्र समर्थक रुझान है.
चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेंपरेरी इंटरनेशनल रिलेशंस में हॉन्गकॉन्ग व मकाओ स्टडीज़ के एक असोसिएट प्रोफेसर, ली हुआन ने कहा, ‘इसने हॉन्गकॉन्ग की चुनाव व्यवस्था में मौजूद, एक बड़ी कमी को पूरा कर दिया है और अलगाववाद या हॉन्गकॉन्ग की ‘आज़ादी’ की पैरोकारी करने वाला कोई भी शख़्स अब हॉन्गकॉन्ग के किसी भी चुनाव में खड़ा नहीं हो पाएगा’.
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कठोर नीति
हॉन्गकॉन्ग के लोकतंत्र समर्थक आंदोलन पर 2020 में शिकंजा कसना शुरू हुआ था, जब राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत, शहर में विरोध प्रदर्शनों पर पाबंदी लगा दी गई. लोकतंत्र समर्थक आंदोलन को कुचलने के लिए चीन ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत प्रमुख राजनेताओं को गिरफ्तार कर लिया.
6 जनवरी को हॉन्गकॉन्ग पुलिस ने लोकतंत्र समर्थक 53 राजनेताओं और प्रचारकों को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया. अन्य आरोपों के अलावा, गिरफ्तार किए गए लोगों पर हॉन्गकॉन्ग की सरकार को उखाड़ फेंकने की कोशिश का भी आरोप लगाया गया. कई अन्य कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर 2019 के लोकतंत्र समर्थक आंदोलन में शरीक होने का आरोप लगाया गया है.
चीन ने बीजिंग का ‘अंदरूनी मामला’ बताकर हॉन्गकॉन्ग पर लिए गए चुनावी फैसले को सामान्य दिखाने की कोशिश की है.
15 मार्च को चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ज़ाओ लीजियान ने कहा, ‘हम संबंधित पक्षों से अनुरोध करते हैं कि इस वास्तविकता का सामना करें, कि 24 साल पहले हॉन्गकॉन्ग चीन के पास वापस आ गया था और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को नियंत्रित करने वाले अंतर्राष्ट्रीय कानून तथा नियमों का पालन करें, तथा चीन के आंतरिक मामलों में दखल देना तुरंत बंद कर दें, जिनमें हॉन्गकॉन्ग के मामले भी शामिल हैं’.
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शक्तियों पर अंकुश
नए नियम के तहत एक ‘उम्मीदवार योग्यता समीक्षा समिति’ का गठन करके सुनिश्चित किया जाएगा कि लोकतंत्र-समर्थक उम्मीदवार विधायी परिषद में चुनकर न आ पाएं. हॉन्गकॉन्ग की सापेक्ष स्वायत्तता की गारंटी, हॉन्गकॉन्ग के मौलिक कानून और चुनाव व्यवस्था में दी गई थी जिसने अपने निवासियों को विधायी परिषद के सदस्य चुनने का अधिकार दिया था, जिन्हें उनके प्रतिनिधियों के नाते मौलिक कानून को बरकरार रखना था. ज़्यादा संभावना यही है कि नए कानून के तहत, चुनाव कमेटी को सशक्त बनाकर और विधायी परिषद के अधिकारों में कटौती करके, किसी भी लोकतंत्र-समर्थक को चीफ एग्ज़ीक्यूटिव की दौड़ से बाहर कर दिया जाएगा.
हॉन्गकॉन्ग चुनावी निर्णय का मुख्य सार ये है कि बीजिंग इस दिशा में आगे बढ़ना चाहता है कि ‘हॉन्गकॉन्ग का प्रशासन हॉन्गकॉन्ग के लोगों के हाथ में हो, जिनमें देशभक्त मुख्य रोल में हों’ और ‘अस्थिरता फैलाने वाले चीन-विरोधी तत्वों’ को हटा दिया जाए’.
एनपीसी के सत्र के बाद, एक हैशटैग ‘हॉन्गकॉन्ग की आज़ादी के लिए, हॉन्गकॉन्ग के युवाओं की लड़ाई ‘ स्पष्ट रूप से संगठित’, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वीबो पर ट्रेंड करने लगा. एक और हैशटैग जो वीबो पर ट्रेंड हुआ, वो था ‘हॉन्ग कॉन्ग के भाई देशभक्तों के शासन का समर्थन करते हैं’, जिसमें ही वेजुन नामक एक युवा देशभक्त का वीडियो भी था- जिसे अपने से बड़ी उम्र के एक लोकतंत्र-समर्थक कार्यकर्ता से बहस करते दिखाया गया है.
इस हैशटैग को वीबो पर 9.69 करोड़ बार देखा गया. वीडियो में जिसे वीबो पर 61 लाख बार देखा गया, ही वेजुन लोकतंत्र-समर्थक कार्यकर्ता पर आरोप लगाता है, बोलने की आज़ादी का इस्तेमाल करके, उसने हॉन्गकॉन्ग में अराजकता फैलाई थी. वीडियो में बुरी तरह कांट-छांट की गई है और लोकतंत्र-समर्थक कार्यकर्ता का पूरा जवाब नहीं दिखाया गया है.
बीजिंग और हॉन्गकॉन्ग के बीच खींचतान का एक और मामला हॉन्गकॉन्ग के 200 सिविल सर्वेंट्स की कहानी है, जिन्होंने उस घोषणापत्र पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया है, जिसमें हॉन्गकॉन्ग के मौलिक कानून तथा नए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को बरकरार रखने का वचन लिया गया है. हॉन्गकॉन्ग के एक सरकारी अधिकारी पैट्रिक निप के अनुसार, जो सिविल सर्वेंट्स घोषणापत्र पर दस्तखत नहीं करेंगे, उन्हें इस्तीफा देने के लिए कहा जाएगा.
इस घोषणापत्र को ऐसे सिविल सर्वेंट्स पर लगाम कसने की बीजिंग की इस कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है, जिनका रुझान लोकतंत्र-समर्थक हो सकता है.
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अंतिम लक्ष्य
हॉन्गकॉन्ग में चीन का अंतिम लक्ष्य, एशिया में वित्तीय बाज़ारों के केंद्र को मकाओ की तरह एक और विशेष प्रशासनिक क्षेत्र में तब्दील कर देना हो सकता है- जिसके कानून-निर्माता देशभक्त होंगे. मकाओ के चीफ एग्ज़ीक्यूटिव को चुने जाने के बावजूद- बीजिंग से स्वीकृत होना पड़ता है. इससे शी जिनपिंग को शहर के मामलों पर असीमित नियंत्रण मिल जाता है, जिसे एशिया का जुआ केंद्र कहा जाता है.
सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़ के जोनाथन रॉबिसन की दलील है कि ‘एक देश दो प्रणालियों’ को एक ‘संपूर्ण उदार-लोकतंत्र के फ्रेमवर्क के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए’. रॉबिसन आगे कहते हैं कि ‘एक देश दो प्रणाली’, हमेशा से एक अलिखित समझ रही है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी क्या सहन कर सकती है. हॉन्गकॉन्ग के लोकतंत्र-समर्थक आंदोलन में उम्मीद की गई थी कि एसएआर की स्वायत्तता जारी रहेगी लेकिन शी जिनपिंग के अंतर्गत चीन काफी बदल गया है.
अगर अमेरिका और चीन के बीच तनाव उबलता रहा और पूरी तरह एक ‘शीत युद्ध’ में तब्दील हो गया तो हॉन्गकॉन्ग दोनों शक्तियों के बीच प्रतिद्वंदिता के केंद्र में आ जाएगा.
हॉन्गकॉन्ग की दुर्दशा आज की स्थिति के लिए एक अलंकार है. ‘एक देश दो प्रणाली’ की चीन की चतुराई भरी व्याख्या, उन लोकतांत्रिक मूल्यों से तनिक भी मेल नहीं खाती, जिन्हें हॉन्गकॉन्ग तथा दुनियाभर में बहुत से लोग आगे बढ़ाना चाहते हैं.
अभी के लिए चीन को उम्मीद है कि एनपीसी का फैसला देशभक्तों को सत्ता में बिठा देगा और लोकतंत्र-समर्थक आंदोलन को पतन की ओर ढकेल देगा.
(लेखक एक स्तंभकार और स्वतंत्र पत्रकार हैं. वो बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में एक चीनी मीडिया पत्रकार रह चुके हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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