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Wednesday, 20 November, 2024
होममत-विमतचीन ने G20 से पहले 2 लक्ष्य पा लिए - BRICS का विस्तार और भारत को विश्वास दिलाना कि सब कुछ 'सामान्य' है

चीन ने G20 से पहले 2 लक्ष्य पा लिए – BRICS का विस्तार और भारत को विश्वास दिलाना कि सब कुछ ‘सामान्य’ है

चीनी बयान द्विपक्षीय संबंधों से सीमा मुद्दे को अलग करने पर बीजिंग की स्थिति को दोहराता है. ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में तनाव की संभावना कभी नहीं थी.

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जापान द्वारा फुकुशिमा पावर प्लांट से निकले ट्रीटेड न्यूक्लियर वेस्ट वॉटर छोड़े जाने पर चीन राष्ट्रवाद को भड़का रहा है. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ब्रिक्स 2023 में मुलाकात की, लेकिन दोनों पक्ष इंगेजमेंट की प्रकृति पर असहमत थे. ग्रुप का विस्तार करने को मंजूरी मिल गई है, लेकिन इंडोनेशिया इसमें शामिल होने से पहले मेकैनिज़म के बारे में विचार करेगा. चाइनास्कोप आपको बताता है कि पिछले सप्ताह चीन और दुनिया में क्या हुआ – इसके अलावा और भी बहुत कुछ.

सप्ताह भर में चीन

24 अगस्त को, टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर (टेप्को) ने फुकुशिमा दाइची पावर प्लांट से लो लेवल ट्रिटियम के साथ 1 मिलियन टन रेडियोएक्टिव पानी छोड़ा – यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो 30 सालों तक बनी रहेगी. बीजिंग में इस पर तत्काल प्रतिक्रिया हुई.

चीन के सामान्य सीमा शुल्क प्रशासन ने टोक्यो के फैसले को गैर-जिम्मेदाराना बताते हुए जापान से सभी जलीय उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया. लेकिन इस प्रतिक्रिया का संबंध अपशिष्ट जल छोड़े जाने के प्रभाव से अधिक राजनीति से है.

चीनी स्टेट मीडिया ने इस अवसर का उपयोग समाचार और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर राष्ट्रवादी भावना को भड़काने के लिए किया. प्रोपेगैंडा साइट्स के माध्यम से, बीजिंग ने सुझाव दिया है कि चीनी लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जापानी उत्पादों का बहिष्कार करें.

अपशिष्ट जल छोड़े जाने के विरोध में गुइझोउ प्रांत में एक रेस्तरां मालिक द्वारा अपने जापानी शैली के रेस्तरां में दीवार की डेकोरेशन को गिराने का एक वीडियो सामने आया.

पिछले कुछ दिनों में चीन में सोशल मीडिया ट्रेंड में फुकुशिमा हावी रहा. हैशटैग “दि ट्रुथ ऑफ फुकुशिमा” को वीबो पर 700 मिलियन से अधिक बार देखा गया. यह घटना कई दिनों तक सर्च इंजन Baidu पर टॉप ट्रेंड में रही. बीजिंग ने चीन में जापानी राजदूत हिदेओ तारुमी को बुलाकर औपचारिक राजनयिक शिकायत भी दर्ज कराई.

इस मुद्दे पर बीजिंग का राजनीतिकरण बिल्कुल स्पष्ट है – अतीत में, चीन ने फ़ुज़ियान प्रांत में फुकिंग परमाणु ऊर्जा संयंत्र और झेजियांग प्रांत में क़िनशान परमाणु ऊर्जा संयंत्र से कहीं अधिक उच्च स्तर का ट्रिटियम जारी किया है. 2021 में, क़िनशान पावर प्लांट ने 218 ट्रिलियन बेकरेल ट्रिटियम जारी किया, जो फुकुशिमा वॉटर के लिए निर्धारित सीमा से 10 गुना अधिक है, जो प्रति वर्ष 22 ट्रिलियन बेकरेल है.

इस असफलता से एक बार फिर पता चलता है कि बीजिंग कैसे अपने नागरिकों के बीच राष्ट्रवादी आक्रोश भड़का सकता है, खासकर मौजूदा इन्फॉर्मेशन बबल में, जो हमें भविष्य के संकटों के बारे में जानकारी देता है. संभावित अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा संकट में, बीजिंग एक ऐसे सूचनात्मक माहौल में दुश्मन को फंसाने के लिए प्रचार का उपयोग करेगा, जिसके देश में बहुत कम विदेशी संवाददाता हैं.

इस बीच, सीमावर्ती प्रांत में नए उभार के लिए, दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से लौटते समय शी झिंजियांग में रुके. राष्ट्रपति ने “झिंजियांग के खुलेपन और आत्मविश्वास के नए माहौल” के बारे में सकारात्मक प्रचार फैलाने का आह्वान किया.

उरुमकी में शी ने कहा, “पार्टी केंद्रीय समिति द्वारा निर्धारित नीतियों और उपायों को लागू करना, सैनिकों और इलाकों के बीच शतरंज के खेल का पालन करना और आतंकवाद विरोधी और स्थिरता बनाने में एकीकरण प्रयासों को बढ़ाना आवश्यक है.”

शी ने जिस नए आत्मविश्वास का संकेत दिया, वह शिनजियांग में उइघुर मुसलमानों के लिए ‘पुनर्शिक्षा’ कार्यक्रम की सफलता और इस्लाम के चीनीकरण पर जोर देने का मिशन था. शी ने कहा, इस्लाम के चीनीकरण का उद्देश्य “विभिन्न अवैध धार्मिक गतिविधियों को नियंत्रित करना” था.


यह भी पढ़ेंः सैन्य स्तर की बातचीत से चीन को भारत से ज्यादा फायदा हुआ, शी को ब्रिक्स और जी-20 में मिली जगह 


भारत के लिए, शिनजियांग के संबंध में बीजिंग की अतिसंवेदनशीलता का अफगानिस्तान सहित क्षेत्रीय सुरक्षा मामलों पर प्रभाव पड़ता है. शिनजियांग नीति की सापेक्ष सफलता से पता चलता है कि बीजिंग पड़ोसी कजाकिस्तान और अफगानिस्तान में अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए अपने प्रभाव का विस्तार करने का प्रयास करेगा.

ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान, मोदी और शी ने थोड़ी देर के लिए मुलाकात की; हालांकि, बैठक के दो अलग-अलग विवरण सामने आए हैं. एक बार फिर, ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की तैयारी में बनाया गया प्रचार फीका पड़ गया क्योंकि दोनों पक्षों के बीच बातचीत बेहद संक्षिप्त रही.

जबकि बीजिंग ने बैठक को “द्विपक्षीय बातचीत (bilateral exchange)” करार दिया है, भारत के विदेश मंत्रालय ने इसे “बातचीत (conversation)” कहा है.

चीनी विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस बात पर जोर दिया कि चीन-भारत संबंधों का सुधार और विकास दोनों देशों और उनके लोगों के साझा हितों के अनुरूप है.”

बयान में “शीघ्र विघटन और तनाव घटाने” पर चर्चा करने के बजाय केवल “सीमा मुद्दे को ठीक से संभालने” का उल्लेख किया गया है, जैसा कि भारतीय पक्ष ने तैयार किया है. परिणामस्वरूप, चीनी बयान सीमा मुद्दे को द्विपक्षीय संबंधों से अलग करने पर बीजिंग की स्थिति को दोहराता है.

यहां तक कि नई दिल्ली में चीन के प्रभारी मा जिया ने हाल ही में एबीपी लाइव के लिए एक लेख लिखते हुए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के स्लोगन ‘साझा नियति का समुदाय (community of common destiny)’ और संस्कृत वाक्यांश ‘वसुधैव कुटुंबकम’ यानी ‘पूरी दुनिया एक परिवार है’ के बीच समानता खोजने की कोशिश की.

मा ने सीमा विवाद का उल्लेख नहीं किया – फिर से संकेत दिया कि बीजिंग गतिरोध को हल करने में जल्दबाजी नहीं कर रहा है. हम जानते हैं कि चीन ने जी-20 दस्तावेजों में ‘वसुधैव कुटुंबकम’ को शामिल करने का विरोध किया था और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के उदय के बीच बीजिंग को भारत के साथ रणनीतिक स्थान साझा करने में कोई दिलचस्पी नहीं है.

ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में तनाव की संभावना कभी नहीं थी; बैठक की प्रकृति पर असहमति से पता चलता है कि कलह बहुत गहरी है और दोनों पक्ष केवल सैन्य स्तर की वार्ता कर रहे हैं, जो लंबे समय तक जारी रह सकती है. बातचीत डिसइंगेजमेंट में देरी करने का एक साधन है, जो वर्तमान संदर्भ में बीजिंग के पक्ष में काम करता है.

चीनी स्टेट मीडिया ने ब्रिक्स के विस्तार को “ऐतिहासिक” कहा – आखिरकार, यह बीजिंग के लिए एक सफलता थी, क्योंकि इसने नई दिल्ली को समूह का विस्तार करने के लिए मना लिया.

इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने कहा है कि देश अभी भी ग्रुप में शामिल होने की संभावनाओं पर विचार कर रहा है. बीजिंग जो नैरेटिव गढ़ रहा है उसके मुताबिक ब्रिक्स में शामिल होने के निमंत्रण का स्वाभाविक रूप से मतलब है सदस्य के रूप में शामिल होना – जो सच्चाई से बहुत दूर है. आमंत्रित देशों को ब्रिक्स में शामिल होने के लिए औपचारिक रूप से आवेदन करना होता है क्योंकि कुछ अभी भी समूह में शामिल होने के लाभों पर विचार करना चाहेंगे.

दो सप्ताह में जी-20 पर धूल जमने के बाद जो होगा उससे बीजिंग की दीर्घकालिक रणनीति का पता चलेगा. फिलहाल चीन ने दो लक्ष्य हासिल कर लिये हैं. ब्रिक्स का विस्तार और यह धारणा बनाना कि भारत और चीन के बीच संबंध ‘सामान्य’ हैं.

इस सप्ताह अवश्य पढ़ें

दि किंग कॉन्सेप्शन ऑफ स्ट्रेटीजिक स्पेस – जेम्स मिलवर्ड

इसाबेल क्रुक, 107, डाईज़; हर लाइफ इन चायना स्पैन्ड ए सेंचुरी ऑफ चेंज – क्ले राइजेन

शी एज ऑफ स्टैगनेशन – इयान जॉनसन

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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