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Monday, 23 December, 2024
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मोदी योगी के क्षेत्र में क्या प्रियंका बनेगी कांग्रेस का रामबाण

प्रियंका के कांग्रेस का महासचिव बनने के ऐलान से अचानक कांग्रेस यूपी में महत्वपूर्ण माने जाने लगी है. बीजेपी में थोड़ी अफरातफरी फैली है, तो कांग्रेसियों में जोश आया हैं.

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बीजेपी और उनके बड़े छोटे नेताओं और भक्तों ने कांग्रेस पार्टी के मुखिया राहुल गांधी की जो पप्पू छवि बना दी थी उसे राहुल ने बड़ी मेहनत से तोड़ा और एक जुझारू नेता के तौर पर उभरे पर उत्तर प्रदेश की सत्ता से अरसे से दूर बैठी कांग्रेस को अब भी क्षेत्रीय क्षत्रप गिन नहीं रहे. यूपी अब भी कांग्रेस और राहुल के लिए सिरदर्द का सबब बना हुआ है.

तीन सूबे जीतने के बाद कांग्रेस में नयी जान तो आ गयी और ये भी मालूम चल गया कि देश के चौकीदार के खिलाफ कांग्रेस या राहुल गांधी ने जो मुहिम छेड़ी थी, वह फिज़ूल नहीं जा रही. फिर भी लोकसभा चुनावों के लिए बेसब्री से साथी तलाश रही कांग्रेस पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश चुनौती बना हुआ है. ऐसे में प्रियंका गांधी वाड्रा की एंट्री के अलावा पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने कोई दूसरा अस्त्र बचा नहीं था. इसीलिए प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस ने पूर्वी उत्तर प्रदेश का महासचिव बना दिया है. किसको नहीं मालूम कि यूपी देश की सत्ता पर काबिज़ होने का दरवाज़ा है और पूर्वी उत्तर प्रदेश उस दरवाज़े की सांकल.

ये एक रणनीतिक फैसला

प्रियंका गांधी वाड्रा को पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान देना एक बहुत रणनीतिक कदम है. ये ही वह राजनीतिक भौगोलिक इलाका है जहां पहले क्षेत्रीय क्षत्रपों ने कांग्रेस को पटखनी दी और फिर बीजेपी ने क्षेत्रीय क्षत्रपों की रीढ़ तोड़ी. जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने अपना कार्यक्षेत्र बनाया और जहां से यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ आते हैं. जिसे जीतना हर पार्टी के लिए नंबर की होड़ के साथ नाक की बात रही है.

अवध और पूर्वांचल की हमेशा से अपनी अलग सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान रही है और ये ही वे इलाके रहे हैं जहां कांग्रेस का आज़ादी के बाद से 1990 के दशक तक लगातार प्रभुत्व रहा है. पश्चिमी यूपी की राजनीति इससे थोड़ा अलग रही है. पश्चिमी यूपी वो राजनीतिक इलाका है जहां से चौधरी चरण सिंह और जनसंघ या बीजेपी ने लगातार कांग्रेस को 50 से 70 के बीच चुनौती दी है. उसके बाद वह पश्चिमी यूपी ही है जहां मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी या कांशीराम और मायावती की बहुजन समाज पार्टी फलीफूली है. क्योंकि इस इलाके में राजनीति और वोट देने की वजहें अलग रहीं हैं, यहां के जातीय समीकरण और यहां की साम्प्रदायिक दरार की गहराई पूर्वी यूपी से बहुत अलग रहे हैं.

ऐसे में पूर्वी उत्तर प्रदेश को साधने के रास्ते बनाना कांग्रेस की सबसे बड़ी रणनीति है जहां पिछले तमाम सालों में जातीय और साम्प्रदायिक समीकरणों में कोई बदलाव नहीं आया है. जहां की ग़रीबी, अशिक्षा और बेरोज़गारी अब भी बाकी सूबे को खींचकर किसी भी इंडेक्स में सबसे नीचे ले आती है. जो पिछले साढ़े चार साल से मौजूदा प्रधानमंत्री और दो साल से मुख्यमंत्री का कार्यक्षेत्र होने के बावजूद वहीं खड़ा है जहां तब था जब नेहरू फूलपुर से लड़ते थे.

प्रियंका के सक्रिय राजनीति में उतरने की मांग यूपी में लगातार होती रही है. बस कुछ वक्त पहले की ही बात है लगता था कि कांग्रेस और गांधी परिवार गर्दिश में है. अरसे से राजनीतिक विश्लेषक ही नहीं गांव खेड़े का गरीब गुरबा भी मानते रहा है कि देश के सबसे पुराने राजनीतिक परिवार में एक प्रियंका गांधी हैं जो पार्टी को उबारने में बड़ी भूमिका निभा सकती हैं पर देश की राजनीति में जाना पहचाना यह चेहरा अभी तक सक्रिय राजनीति से दूर था. परदे के पीछे से सोनिया और राहुल गांधी की मदद करता था.

इस साल का लोकसभा चुनाव मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी दोनों के लिए बड़ी चुनौती हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ तो अमित शाह और अरुण जेटली जैसे सिपहसालार के साथ साथ संघ और बीजेपी के करोड़ों कार्यकर्ता और मोदीप्रेमी हैं पर कांग्रेस के मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जीतने के बाद भी राहुल के साथ कोई आने को तैयार नहीं दिख रहा, अखिलेश यादव और मायावती का ताज़ा कदम इसका सुबूत है.

इमेज का खेल

इमेज का राजनीति में बड़ा खेल है. मोदी जी ने अपनी इमेज राष्ट्रीय राजनीति में आने के बाद ज़बरदस्त बदली जिसके दम पर 2019 का चुनाव लड़ा जाने वाला है. उसी तरह पिछले एक साल में राहुल गांधी ने भी अपनी इमेज को खूब बदला है. आज राहुल गांधी का हिम्मती और ज़िद्दी नेता माना जा रहा है. प्रियंका गांधी की भी एक इमेज है. रायबरेली और अमेठी संसदीय क्षेत्रों में मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी का चुनावी प्रबंध करती प्रियंका के बारे में लोगों का मत है कि उनमें क्षेत्र के लोगों तथा कार्यकर्ताओं से घुलने-मिलने का एक सहज गुण है. देश की आम जनता उनमें उनकी दादी इंदिरा की छवि देखती हैं. प्रियंका भीड़ को प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं. प्रियंका की अपील पर रायबरेली की जनता ने अरूण नेहरू जैसे महत्वपूर्ण नेता की ज़मानत तक जब्त करा दी थी. तो ये छवि कांग्रेस के कुछ काम ना आयेगी, ऐसा कहना बेमानी होगा.

प्रियंका के कांग्रेस का महासचिव बनने के ऐलान से इतना तो हुआ है कि अचानक कांग्रेस यूपी में महत्वपूर्ण माने जाने लगी है. बीजेपी में थोड़ी अफरातफरी फैली है, तो कांग्रेसियों में जोश आया हैं. बीजेपी और दूसरी पार्टियों के बयान और प्रतिक्रियाएं इसका सुबूत हैं. सूबे के प्रमुख विपक्षी नेता भी यह मानते हैं. यही वजह है कि यह माना जा रहा है कि यूपी में अब बीजेपी को अखिलेश यादव, मायावती, राहुल गांधी के अलावा प्रियंका का भी मुक़ाबला करना होगा. यही नहीं दूसरे दलों को भी अब अपने तालमेल या मोलतोल में भी प्रियंका का खयाल रखना होगा.

परम महत्वाकांक्षा के इस राजनीतिक दौर में क्या बहन का साथ राहुल और कांग्रेस के लिए तुरुप का पत्ता साबित होगा और क्या प्रियंका गांधी इस बार के चुनाव में मुख्य चेहरा बनेंगी, इस पर सबकी निगाहें टिक गयी हैं. चंद महीनों में ही यह पता चल जायेगा कि प्रियंका का करिश्मा मोदी और योगी के साझा करिश्मे के सामने कैसे खड़ा होगा.

(अरुण अस्थाना वरिष्ठ पत्रकार है.)

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