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Tuesday, 12 November, 2024
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बुलडोज़र न्याय मुसलमानों को पीछे धकेल रहा है. महिलाएं और बच्चे सबसे ज़्यादा प्रभावित

नूंह के लोग पहले से ही सांप्रदायिक हिंसा से सदमे में थे, जिसमें उन्हें उनकी मुस्लिम पहचान के लिए निशाना बनाया गया था. बुलडोजर ने उनकी हालत को बद से बदतर कर दिया.

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जुलाई में हरियाणा के नूंह में सांप्रदायिक हिंसा भड़कने के बाद, राज्य सरकार ने मुसलमानों के कई घरों, दुकानों और कार्यालय पर बुलडोज़र चला दिया. इसने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट को मामले का स्वत: संज्ञान लेने और बुलडोज़र अभियान को रोकने के लिए प्रेरित किया. सबसे अहम, अदालत ने पूछा कि क्या यह ऑपरेशन राज्य द्वारा “जातीय सफ़ाई का अभ्यास” था.

31 जुलाई को विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और बजरंग दल द्वारा आयोजित यात्रा के बाद हिंसा शुरू हुई. जिसमें दो होम गार्ड समेत छह लोगों की मौत हो गई. हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने हिंसा को ‘पूर्व नियोजित’ बताया और इस सिलसिले में 202 गिरफ्तारियों के बारे में जानकारी दी. मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि कथित दोषियों को “बुलडोजर इलाज” मिलेगा. 3 अगस्त से अवैध अतिक्रमण का हवाला देकर नूंह में मुसलमानों की संपत्तियों को जमींदोज किया जाने लगा.


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घर और अर्थव्यवस्था पर बुलडोज़र

विध्वंस के समय ने अभियान को और अधिक संदिग्ध और सवालों के घेरे में ला दिया है. यह तब हुआ जब नूंह के लोग पहले से ही सांप्रदायिक हिंसा से सदमे में थे, जिसमें उन्हें उनकी मुस्लिम पहचान के लिए निशाना बनाया गया था. बुलडोजर ने उनकी हालत को बद से बदतर कर दिया.

बिना किसी चेतावनी या कानूनी नोटिस के, महिलाओं और बच्चों को मलबे के नीचे दबी हुई उनकी जिंदगी और सपनों को बचाने के लिए छोड़ दिया गया. घर लोगों को सुरक्षा की भावना देता है, खासतौर से महिलाओं को. चार दीवारों से घिरी उनकी उम्मीदें और सपने सुरक्षित भविष्य के लिए होती हैं. जब सरकार उसी घर को उजाड़कर ‘इंस्टेंट जस्टिस’ (त्वरित न्याय) लागू करने का निर्णय लेती है, तो उसकी सारी सुरक्षा की भावना और उम्मीदें ध्वस्त हो जाती हैं.

स्थानीय सामुदायिक विकास और आर्थिक प्रगति को केंद्र में रखते हुए सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (सतत विकास लक्ष्यों) को हासिल करना हमारी सरकार की जिम्मेदारी है. लेकिन सरकार की बुलडोजर सज़ा समुदाय और उसकी अर्थव्यवस्था दोनों को तोड़ देती है.

नूंह में उजड़े हुए परिवार, जो पहले से ही स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे थे, उन्हें सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक आधार पर और पीछे धकेल दिया गया. यह बिल्कुल साफ है कि राज्य की कार्रवाई समुदाय के बहिष्कार की दिशा में एक जानबूझकर उठाया गया कदम था.

बुलडोज़र की कार्रवाई और गिरफ़्तारी से आख़िरकार महिलाओं को सबसे ज़्यादा नुकसान पहुंचता है. पितृसत्तात्मक परिवारों में परंपरागत रूप से निर्णय लेने में कोई भागेदारी न होने के कारण, उन्हें ऐसी स्थिति में अगला कदम उठाना कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण लगता है. अपने घर के पुनर्निर्माण और आजीविका सुरक्षित करने में अपनी सारी ऊर्जा निवेश करने के बाद, महिलाओं को यह तय करने में कठिनाई होती है कि क्या वे राज्य के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकती हैं और न्याय की उम्मीद कर सकती हैं. इस सब में, उनके और उनके बच्चों के स्वास्थ्य, शारीरिक और मानसिक, दोनों पर भारी असर पड़ता है.

उन्हें उस काम के लिए दंडित किया जाता है जो उन्होंने नहीं किया. नतीजतन, इन महिलाओं में लंबे समय तक के लिए ट्रॉमा, विश्वास की कमी और सरकार और समाज के प्रति असुरक्षा बढ़ जाती है.

जस्टिस मदन बी लोकुर ने अपने एक लेख में लिखा, “विध्वंस एक अपरिवर्तनीय कार्रवाई है, जो अपमान और भावनात्मक आघात के अलावा तत्काल और लंबे समय तक वित्तीय संकट का कारण बनती है.”


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बुलडोज़र न्याय

सरकार ने जब भी किसी समुदाय के खिलाफ बुलडोज़र की कार्रवाई की है तो उन पर अवैध निर्माण या अतिक्रमण का आरोप लगाया है. अगर, नूंह में मुसलमानों की संपत्ति ग़ैरक़ानूनी थी, तो जुलाई में सांप्रदायिक झड़प होने से पहले राज्य ने कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की?

कई रिपोर्टों के अनुसार, राज्य सरकार ने गरीबी रेखा से नीचे के मुसलमानों के घरों को भी ध्वस्त कर दिया. ऐसे दो परिवार इंदिरा आवास योजना के तहत बने घर में रह रहे थे और उन्होंने अधिकारियों को उन्हें गिराने से नहीं रोका. अप्रैल में मध्य प्रदेश के खरगोन में रामनवमी जुलूस के दौरान हुई हिंसक झड़प के बाद जिला प्रशासन ने एक मुस्लिम मोहल्ले में पीएम आवास योजना के तहत बने मकानों को तोड़ दिया.

सरकार द्वारा लोगों के घरों को तोड़ने के बाद क्या होता है? क्या हरियाणा सरकार नूंह में संपत्तियों का पुनर्निर्माण करेगी या परिवारों का पुनर्वास करेगी? भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले प्रशासन ने अभी तक इस विषय पर कोई बात नहीं की है.

बुलडोज़र राजनीति के पीछे का इरादा सामूहिक दंड, हाशिये पर मौजूद समुदायों के भीतर भय और आतंक की भावना पैदा करने पर केंद्रित होता है.

बीजेपी सरकार हरियाणा में दंगों का इस्तेमाल मुस्लिम घरों को तोड़ने को उचित ठहराने के लिए कर रही है. राज्य सरकार हिंदू बहुसंख्यकों को खुश करने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के “बुलडोजर न्याय” को आंख मूंदकर लागू कर रही है.


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पीड़ितों की नजरअंदाजी

नूंह में पीड़ित परिवारों का आरोप है कि उनके घर तोड़े जाने से पहले उन्हें कोई सूचना या चेतावनी नहीं दी गई. अगर राज्य हकीकत में उन्हें कथित अतिक्रमण या अवैध निर्माण के लिए दंडित कर रहा है, तो आरोपियों को भी अपना पक्ष पेश करने का मौका दिया जाना चाहिए.

हरियाणा में प्राकृतिक न्याय की अवधारणा खत्म हो गई. एक न्यायशास्त्र जो पुनर्स्थापनात्मक न्याय (रेस्टोरेटिव जस्टिस) की जगह “मिसाल कायम करने” और “सबक सिखाने” को प्राथमिकता देता है.

भले ही नूंह के निवासी गैरकानूनी निर्माण के दोषी साबित हो जाएं, लेकिन क्या उनके घरों को ध्वस्त करना उचित है? कथित दोषियों को अपराध साबित होने से पहले ही सजा देकर, बुलडोजर निर्दोष लोगों, खासकर बच्चों की जिंदगियां बर्बाद कर रहा है जो सांप्रदायिक राजनीति को भी नहीं समझते हैं.

बुलडोजर न्याय कानून के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है जिसके अनुसार- 1,000 अपराधी बच जाएं, लेकिन एक निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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