वित्तमंत्री के पद पर निर्मला सीतारामण का यह चौथा साल है. बजट के मामले में कुछ दुस्साहसिक रुख से शुरुआत करके वे वास्तविकता के प्रति बढ़ते एहसास की ओर मुड़ी हैं. और उनके नजरिए में यह बदलाव उल्लेखनीय है.
शुरुआत अग्नि परीक्षा से हुई, और आंकड़े गलत साबित हुए. टैक्स से आमदनी में 18.4 फीसदी की तीखी गिरावट आई. इसकी कुछ वजह तो यह थी कि आर्थिक सुस्ती कोविड के आने से पहले आ गई थी. और कुछ वजह यह थी कि उन्होंने कॉर्पोरेट टैक्सों में अभूतपूर्व कटौती की घोषणा की थी, जो जाहिर है कि प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के चंद दिनों पहले की गई थी. प्रधानमंत्री वहां कॉर्पोरेट जगत के कुछ सूत्रधारों से भी मिलने वाले थे. नतीजन, साल के अंत में वित्तीय घाटा 4.6 फीसदी पर जा पहुंचा जबकि बजट में 3.4 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया था.
अगला साल भी कोई बेहतर नहीं रहा, जब कोविड के पूरे असर के कारण जीडीपी में भी गिरावट आई. कॉर्पोरेट टैक्स से आमदनी में 17.8 फीसदी की कमी आई और जीएसटी से आय भी 8.3 फीसदी घट गई.
दिलचस्प बात यह है कि इस धूमिल स्थिति में भी वित्तमंत्री को अवसर नज़र आ रहा था. उन्होंने फ़ैसला किया कि और ज्यादा बुरी खबरों से ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, सो उन्होंने अपने आंकड़े साफ किए और वित्तीय घाटे के आंकड़े में भारी हेरफेर को बंद किया. बैलेंसशीट से अलग लिये गए कर्ज को सरकारी खाते से में दर्ज करने से वित्तीय घाटे का आंकड़ा दोगुना होकर रेकॉर्ड 9.2 फीसदी पर पहुंच गया, लेकिन सरकारी खातों में भरोसा बढ़ा.
अपने तीसरे बजट में सीतारामण ने संकेत दिया कि उन्होंने बजट में चादर से ज्यादा पैर बढ़ाने की गलती को कबूल कर लिया है. पिछले वर्षों के विपरीत, उन्होंने 2021-22 के लिए राजस्व के संतुलित आंकड़े पेश किए. इसका नतीजा यह हुआ कि वास्तविक उगाही मूल अनुमान से 13.4 फीसदी ज्यादा हुई. इसने टैक्स से इतर स्रोतों से होने वाली आय में कमी की भरपाई करने की वित्तीय गुंजाइश बनाई और सरकार को कोविड के कारण गरीबों को मुफ्त राशन जैसी सुविधाएं देने की गुंजाइश बनाई. साल का अंत लगभग इतने वित्तीय घाटे के साथ हुआ जितने का अनुमान लगाया गया था.
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इस साल भी यह प्रदर्शन दोहराया जाने वाला है. टैक्स से आमदनी अनुमान से काफी आगे चल रही है, बावजूद इसके कि पेट्रोलियम पर टैक्स में कटौती की गई है. लेकिन खर्च के मोर्चे पर सब्सिडी में एक बार फिर वृद्धि हुई है. इसकी कुछ वजह यूक्रेन युद्ध के कारण खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तीखी वृद्धि है. सब्सिडी का लाभ किसानों को नहीं दिया गया. कुछ वजह यह है कि सरकार ने मुफ्त अनाज देना जारी रखा है.
इस सप्ताह वित्तमंत्री ने संसद में जो बयान दिया है उसके मुताबिक वे बजट घाटा जीडीपी के 6.4 प्रतिशत के बराबर रखेंगी. राजस्व के उन्होंने जो संतुलित अनुमान लगाए हाल के दोनों वर्षों में अनियोजित खर्चों के उथल-पुथल भरे दौर में भी उन्हें परेशानी से बचाया. अखबारी खबरों के अनुसाए, अगले साल का बजट टैक्स राजस्व में मामूली वृद्धि ही दर्शाएगा.
टैक्स नीति के मुताबिक, कॉर्पोरेट टैक्स दरें अब अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हैं जबकि बेहिसाब आमदनी के लिए अधिकतम टैक्स दरें बढ़ा दी गई हैं. दोनों उसी स्तर पर हैं जिस पर होना चाहिए, लेकिन जीएसटी की तरह कैपिटल गेन्स टैक्स में भी विविधता जारी है, जबकि शुल्कों में वृद्धि होती रही है. आगामी बजट में या जीएसटी काउंसिल की अगली बैठक में इन मसलों का निपटारा किए जाने की उम्मीद नहीं है. इसलिए काम अधूरा रहेगा और दरों में कतरब्योंत जारी रहेगी.
इस बीच, वित्तीय घाटा ऊंचा बना हुआ है, और कोविड से पहले वित्त वर्ष 2009-10 के 6.5 फीसदी के स्तर पर कायम है. रक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के लिए बड़ा बजट बनाते हुए इसे कैसे नीचे लाया जाएगा, यह एक चुनौती है.
तथ्य यह है कि भारत में सरकारों से जो अपेक्षाएं की जाती हैं उनके मद्देनजर बजट काफी छोटे पड़ते हैं. इसलिए सब्सिडीज और मुफ्त अनाज जैसी सुविधाओं में, जिनमें कोविड काल में भारी वृद्धि हुई, कटौती करने से बचा नहीं जा सकता. यह घाटे को जीडीपी के 6 प्रतिशत से नीचे ला सकता है, हालांकि सार्वजनिक कर्ज के ऊंचे स्तर के मद्देनजर अभी भी काफी ऊंचा है.
इसलिए अतिरिक्त खर्चे आमदनी से ही पूरे किए जा सकते हैं, जो संभवतः जीएसटी के औसत स्तर और इसके साथ ही दरों के तालमेल से ही हासिल हो सकती है.
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(बिजनेस स्टैंडर्ड से विशेष प्रबंध द्वारा)
(संपादन : इन्द्रजीत)
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