नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में गैंगस्टर विकास दुबे की पुलिस के साथ लुका-छिपी के खेल और इस खेल के बाद हुए एनकाउंटर पर ब्राह्मण प्राइड और ब्राह्मण पीड़ित होने का पुनरुत्थान हुआ है. सोशल मीडिया के पोस्ट देखकर लगता है कि वो सबके लिए महज एक गैंगस्टर नहीं था. सबसे पहले वो एक ब्राह्मण था- एक ऐसा ‘टाइगर’ जिसने अपने समुदाय के प्यार और सम्मान के लिए कमान संभाली थी. उसे हिंदू भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम के ‘वंशज’ के तौर पर देखा जा रहा है. ऐसे मे दुबे की एनकाउंटर में हुई हत्या ने उत्तर प्रदेश में ठाकुर समुदाय के खिलाफ ब्राह्मण नेतृत्व वाले एक ‘युद्ध’ को प्रज्वलित किया है. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ठाकुर हैं.
‘आपने सिर्फ विकास दुबे को ही नहीं मारा है. आपने ब्राह्मणों के विश्वास को मारा है. आपने विकास नहीं विश्वास को मार दिया है. सारे मिश्रा, पांडेय, चौबे और भूमिहारों, सारे ब्राह्मणों को याद रखना चाहिए कि भगवान परशुराम ने किसके खिलाफ लड़ाई लड़ी थी.’ फेसबुक पर शिवम ब्राह्मण दादा भाई के नाम के एक यूज़र अपने फेसबुक लाइव में ये बात कहते हैं. वो आगे जोड़ते हैं, ‘दुबे पर फिल्म बनाने की हिम्मत मत करना. हम थिएटरों में आग लगा देंगे.’
बात चाहे फेसबुक की हो या ट्विटर या फिर व्हॉटसएप की. सोशल मीडिया पर शुक्रवार की सुबह दुबे के एनकाउंटर के बाद इस तरह की पोस्ट्स की जा रही हैं. यूपी के ब्राह्मणों द्वारा एक साफ संदेश देने की कोशिश की गई है- ये ठाकुर और ब्राह्मणों के बीच की लड़ाई है.
कई ब्राह्मणों का आरोप है कि सीएम आदित्यनाथ ब्राह्मण समुदाय की उपेक्षा करते रहे हैं. वे ऐसे कई उदाहरणों को सूचीबद्ध कर रहे हैं जहां एक ब्राह्मण की हत्या कर दी गई थी. साथ ही अपने समुदाय के अपराधियों की प्रशंसा कर रहे थे. वो ‘विकास दुबे’ को ‘ब्राह्मण बाहुबली’ बता रहे हैं.
इसलिए, ये एनकाउंटर भी राजनीतिक-आपराधिक सांठगांठ को उजागर करने की किसी भी संभावना को समाप्त कर देता है, जिसकी वजह से गैंगस्टर का उदय हुआ. लोग उम्मीद कर रहे थे कि कानपुर में गोलीबारी में आठ पुलिस अधिकारियों के मारे जाने के एक सप्ताह बाद मध्य प्रदेश के उज्जैन में एक मंदिर से गिरफ्तार किए गए विकास दुबे उत्तर प्रदेश में शीर्ष राजनीतिक नेताओं के साथ अपने संबंधों के बारे में बताएंगे. जिसमें भारतीय जनता पार्टी के नेता भी शामिल होंगे.
‘मीम्स, गुस्से में तब्दील हो गए’
गुरुवार तक सोशल मीडिया पर विकास दुबे को लेकर मीम बनाए जा रहे थे. उसके चातुर्य की चर्चा हो रही थी कि कैसे वो मीडिया, योगी सरकार और पुलिस की आंखों में धूल झोंक गया. गुस्सा मुसलमानों की तरफ था. पूछा जा रहा था कि तबलीगी जमात के मौलाना साद के साथ कब ऐसा किया जाएगा? लेकिन इस एनकाउंटर ने ये भावनाएं बदल दी हैं.
कई ब्राह्मण अब ठाकुर योगी आदित्यनाथ की सरकार गिराने की बात कर रहे हैं. वो भाजपा को यूपी में होने वाले 2022 के विधानसभा चुनावों की याद दिला रहे हैं. वो खुद को ब्राह्मणों और ठाकुरों के बीच इस जातीय प्रतिद्वंदिता के शिकार के रूप में देख रहे हैं. यही बात गोरखपुर में 2018 के विधानसभा उपचुनाव के दौरान सबसे अधिक दिखाई दी थी. गोरखनाथ मठ के वर्चस्व को लेकर चल रही इस प्रतिद्वंदिता को तब और ज्याद बल मिला जब भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद भूमिहार मनोज सिन्हा की अनदेखी करते हुए योगी आदित्यनाथ को सीएम चुना.
‘योद्धा ऋषि परशुराम का जयकारा’
विकास दुबे के होने का जश्न मनाते हुए सोशल मीडिया पोस्ट्स का एक महत्वपूर्ण पहलू ये भी है कि योद्धा ऋषि परशुराम की बात बार-बार की जा रही है. लोक कथाओं के अनुसार, परशुराम ने पृथ्वी से 21 बार ‘क्षत्रियों’ का सफाया किया था. ठाकुर-ब्राह्मण प्रतिद्वंदिता, एक तरह से इस पौराणिक कथा पर वापस ले जाती है. आदित्यनाथ द्वारा भगवा को अपनाना और मठाधीशी (गोरखनाथ मठ का नेतृत्व) इस प्रतिद्वंदिता को बढ़ा देता है.
यहां तक कि अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन को भी अन्य जातियों के सदस्यों ने हाइजैक कर लिया है. पारंपरिक रूप से ब्राह्मण-बनिया पार्टी कही जाने वाली बीजेपी पर अक्सर ‘ब्राह्मणों’ को दरकिनार करने का आरोप भी लगाया जाता है. अब यह शक्तिशाली ‘नाराज राष्ट्रवादियों’ की पार्टी है. ब्राह्मण समुदाय अब उत्तर प्रदेश में सत्ता के बदलाव की वजह से राजनीति में अपनी उपस्थिति पर एक प्रश्न चिह्न लगा देखता है.
‘यूपी में जातीय गौरव बहाल करने के लिए बंदूकों की भूमिका’
हाथों में बंदूक लिए गैंगस्टर और निर्णय लेने वाले राजनेता जनता में जातिगत गौरव की भावनाएं पैदा करने में सक्षम होते हैं. विकास दुबे ने ब्राह्मण पुलिस अधिकारियों की हत्या की, जिन अधिकारियों ने उसकी इत्तला दी, वे भी ब्राह्मण थे और जिस स्थान पर कानपुर में गोलीबारी हुई, उसका नाम चौबेपुर है- ये सब ब्राह्मण प्रभुत्व की ओर इशारा करती है.
योगी आदित्यनाथ सरकार में ब्राह्मण समुदाय ने राजा के ‘सलाहकार’ के तौर पर अपनी पारंपरिक भूमिका देखी है. यूपी के मुख्य सचिव अवनीश कुमार अवस्थी एक ब्राह्मण तो हैं लेकिन वे ना ही गैंगस्टर हैं और ना ही कोई राजनेता. विकास दुबे की हत्या, ब्राह्मणों की नज़र में, ‘ताकत खोने’ की भावना को गहरा करती है. शायद इसी भावना का असर है जो कुछ लोग लिख रहे हैं- ‘सभी ब्राह्मणों को अब विकास दुबे बनना चाहिए.’
उन्हें ऐसा लग रहा है कि ‘एक ब्राह्मण के हाथ में बंदूक ही’ एकमात्र ऐसा तरीका है जो खोए हुए ‘जातीय गौरव’ को पुनर्स्थापित कर सकता है.
(व्यक्त विचार निजी हैं)
ह एक बात तो तय है कि बिकाश दुबे एक अपराधी था,लेकिन मेरे मन मे कुछ सवाल है जिसका उत्तर नही मिल रहा है, मन विचलित हो जाता है जब सोचता हूं तो, ल सरकार को कब याद आया कि वो एक अपराधी था, ? कैसे वो अपराधी बना?, किसने साथ दिया,? कौन कौन पुलिस वाले और कितने अधिकारी थे,? कौन खाकीधारी था जो बिकास दुबे का समर्थन किया ?
कानून के किस किताब में लिखा है कि किसी अपराधी का घर तबाह कर देना है , उसके सारे सामान( गाड़ी, ट्रैक्टर,)
वो सब कुछ जो घर मे था उसको तबाह करने है, ?? उसके घर मे बम मिला बम तो बाल्टी में रखा था पुलिस ने ये दिखाया भी तो फिर घर तबाह क्यों???
उसके बेटे को उसके पत्नी को अरेस्ट क्यों???अगर उसको भागना होता महाकाल के मंदिर में अरेस्ट क्यों होता???, और सबसे बड़ी बात गाड़ी पलटी तो रोड पर घिसटने की दाग भी नही है??? मीडिया क्यों क्यों रोका गया??? गाड़ी क्यों बदली गई???
इन सारे सवाल का जबाब अभी तक नही मिल रहा है, और बिकास दुबे की हत्या के बाद अब नही मिलेगा,
वाह योगी जी देख लिया आपका राम राज्य, आपको सबसे ज्यादा समस्या इन 3 सालो में बस रावणो से हुई है, बस हम भी प्रतीक्षा कर रहे है,कोई परशुराम भी होगा,
शायद 2022 तक मिल जाये,
ब्रह्म उपासक को केवल सत्य के पक्ष में खड़े होना चाहिए। अपराधी का समर्थन और कट्टरवाद ब्राह्मणत्व को नष्ट कर देंगे। ब्राह्मण बनिए आतंकवादी नहीं।
आवेश में आकर लिखी टिप्पणियों से ब्राह्मण की मर्यादा खंडित हुई है।
बहुत सही कथन
Kanoon sammat karyawahi honi chahiye thee.
यह लेख पूर्वाग्रह युक्त है।इस तरह के बकवास लेख को कैसे किसी प्रतिष्ठित न्यूज पोर्टल पर जगह मिल जाती है,यह आश्चर्यजनक और पीड़ादायक है।अगर इसी प्रकार किसी यादव, दलित अथवा मुस्लिम दुर्दांत अपराधी की हत्या पुलिस मुठभेड़ में हुई होती तो ये लोग देश प्रदेश में एकजुट होकर रोड पर उपद्रव शुरू कर देते। परंतु ब्राह्मण वर्ग ने ऐसा बिल्कुल भी नहीं किया। इस लेख में एक जगह भी यह उल्लेख नहीं है कि और तो और विकास दुबे के खुद के परिजनों तक ने कोई विरोध प्रकट नहीं किया उल्टा उन्होंने इस कारवाई का समर्थन किया। अपराधी चाहे जिस किसी जाति धर्म का हो उसे कोई समर्थन नहीं मिलना चाहिए। ब्राह्मण जैसे सहिष्णुतावादी वर्ण पर लांछन लगाना आसान है लेकिन दूसरे पर लांछन लगाने से पहले अपने गिरेबान में झांक लें।
मुझे विकास दुबे की मौत पर इतना दुख नहीं है पर वास्तव में जब से योगी सरकार आई है तब से अनन्य ब्राह्मणों की हत्या उत्तर प्रदेश में लगातार होती जा रही है और इस पर कोई भी कार्यवाही नहीं हो रही जैसे कि कमलेश पांडे और जल्द ही होने वाली घटना जिसमें दो बेटी बाप और बेटे समेत लोग मौत के घाट उतार दिए गए थे इन सब तभी बातों पर तो कार्रवाई होनी चाहिए थी
लेकिन ऐसा नहीं हुआ
वास्तव में मैं खुद बीजेपी का बहुत बड़ा सपोर्टर हूं लेकिन मेरा ध्यान भंग हो रहा है
आदरणीया ज्योति यादव जी,सोशल मीडिया पर विकास दुबे के बारे में केवल नाम मात्र के लोग ही उसके मारे जाने का विरोध कर रहे हैं या ऐसे ब्राह्मण व ठाकुर के मध्य की लड़ाई बता रहे हैं..95से99 प्रतिशत ब्राह्मण विकास दुबे को एक अपराधी मानते है और उसके एनकाउंटर का समर्थन भी करते है क्योंकि उसने किसी आम व्यक्ति को नहीं बल्कि 8 पुलिस वालो को मारा था,जिनमें से कुछ ब्राह्मण भी थे..
तो आपका यह आर्टिकल इसलिए अनुचित है क्योंकि आपने उन 99 प्रतिशत लोगों की भावनाएं ना व्यक्त कर केवल नाम मात्र के लोगो की भावनाएं व्यक्त की है जो समाज में केवल जातिवाद या अपराधी प्रवृति को बढ़ावा देते है..
आप बहुत अच्छी पत्रकार है और में यह भी नहीं कह सकता कि यह आर्टिकल अच्छा नहीं है या इसमें कोई गलत तथ्य पेश किए गए हैं पर आपसे में यह उम्मीद करता हूं कि आप किसी भी घटना का हर पहलू चाहे वो पोजिटिव हो या नेगेटिव, दोनो को साथ या दोनो की मिलिजुली भावनाएं और विचार लिखें जिससे आम लोग भी उस आर्टिकल को पढ़ कर अपने मन से यह निर्णय कर सके कि ऐसी घटनाओं से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े कोन लोग सही है और कोन गलत है..??♥️??