अच्छे और बुरे लोगों का टकराव युगों-युगों से इस ब्रह्मांड में चला आ रहा है. अच्छे लोग हमेशा से शक्ति को बचाने में लगे हैं और बुरे लोग उस शक्ति को पाकर उसका गलत इस्तेमाल करने में. तीन भागों की श्रृंखला की इस पहली फिल्म में भी यही लड़ाई दिखाई गई है. फिल्म बताती है कि दुनिया में कई किस्म के अस्त्र हैं. ब्रह्मांश कहे जाने वाले कुछ लोग इन अस्त्रों की रक्षा कर रहे हैं. लेकिन सबसे बड़े अस्त्र ‘ब्रह्मास्त्र’ के तीन हिस्से तीन अलग-अलग लोगों के पास हैं. बुरे लोग इन हिस्सों को किसी भी तरह से हासिल करने में जुटे हैं और अच्छे लोग इन्हें बचाने में. उधर एक आम लड़के शिवा को अहसास होता है कि उसके पास कोई अनोखी शक्ति है. उसे कुछ घटनाएं दिखती हैं और वह अपनी दोस्त ईशा के साथ निकल पड़ता है अच्छे लोगों को बचाने. लेकिन यह लड़का आखिर है कौन?
कहानी नई भले ही न हो लेकिन इस तरह की पृष्ठभूमि और किरदारों की कल्पना हिन्दी फिल्मों के लिए अनोखी है. इस फिल्म की सबसे बड़ी और पहली खासियत इसकी भव्यता है. चकाचौंध कर देने की हद तक इसमें भव्य सैट्स तैयार किए गए हैं और कम्प्यूटर की मदद से ऐसे ज़बर्दस्त विजुअल्स रचे गए हैं जो आपको एक अलग ही दुनिया में ले जाते हैं. आप चाहें तो इसे देखते हुए गर्व कर सकते हैं क्योंकि किसी हिन्दी फिल्म में इतने ऊंचे स्तर के वी.एफ.एक्स. अभी तक तो नहीं आए हैं. आप इस फिल्म के बेहद तेज रफ्तार एक्शन सीक्वेंस को देख कर भी हैरान हो सकते हैं.
यह भी पढ़ेंः भरी-पूरी होने के बावजूद दर्शकों की प्यास क्यों नहीं बुझा पाई ‘लाल सिंह चड्ढा’
इस फिल्म को देखते हुए हॉलीवुड के मार्वल स्टूडियो की भव्य एक्शन और वी.एफ.एक्स. वाली फिल्मों की याद आती है, खासतौर से ‘एवेंजर्स’ सीरिज़ वाली फिल्में. अपने रूप-रंग में फिल्म भी वैसी ही है. मार्वल फिल्मों के फैंस जानते हैं कि उन फिल्मों को उनकी कहानी की गहराइयों या स्क्रिप्ट की बारीकियों के लिए नहीं बल्कि उनके विजुअल्स की रंगीनियों के लिए देखा जाता है. आप चाहें तो इस फिल्म को हिन्दी में बनी एक ऐसी ही चमकदार फिल्म का दर्जा दे सकते हैं जो बिना हॉलीवुड और बिना मार्वल के बनी है लेकिन उन्हें बराबर की टक्कर दे रही है.
हॉलीवुड से आने वाली चमकीली, रंगीन फिल्मों में भी अतार्किक ही सही, बढ़िया कहानी होती है और उससे भी बढ़ कर उनकी स्क्रिप्ट पर दम लगा कर काम किया जाता है. लेकिन इस फिल्म में यह मेहनत सबसे कम की गई है. ऐसी फिल्मों के डायलॉग ठहराव लिए और गहराई भरे होने चाहिए लेकिन यहां जबरदस्ती की कॉमेडी उपजाने के लिए उन्हें उथला और ओछा बना दिया गया. कई जगह किरदारों की सोच में भी गड़बड़ है. लड़का सपने देख कर खुद ही ब्रह्मास्त्र को बचाने की मुहिम से जा जुड़ा लेकिन गुरु जी के पास पहुंच कर ज़िम्मेदारी से भागने लगा, क्यों? विषय को भव्य बनाने पर की गई निर्देशक अयान मुखर्जी ने की मेहनत साफ झलकती है. लेकिन उन्हें विषय को मजबूत बनाने पर भी ज्यादा ध्यान देना चाहिए था.
रणबीर कपूर, आलिया भट्ट एक साथ जंचते हैं. इन दोनों की प्रेम-कहानी को बहुत ज्यादा फैलाया गया. अमिताभ बच्चन, नागार्जुन, शाहरुख खान आदि जमते हैं. डिंपल कपाड़िया की हल्की-सी मौजूदगी बताती है कि उन्हें अगले पार्ट में बड़ा रोल मिलेगा. मौनी रॉय असरदार रहीं, बाकी सब ठीक-ठाक. दो-एक गाने अच्छे हैं, देखने में भी, सुनने में भी. लेकिन गानों की बहुतायत चुभती है. बैकग्राउंड म्यूजिक बेहतरीन है. पौने तीन घंटे लंबी फिल्म कई जगह अझेल हो जाती है. फिल्म में ब्रह्मास्त्र, नंदी अस्त्र, शिवा जैसे नामों का सिर्फ इस्तेमाल है और बैकग्राउंड में श्लोकों-मंत्रों का उच्चारण भी, मगर पौराणिक आख्यानों या किरदारों से इसका कोई नाता नहीं है.
एक अच्छा टाइम पास मनोरंजन देने वाली इस फिल्म को इसकी भरपूर भव्यता के लिए देखा जाना चाहिए-परिवार के साथ, दोस्तों के साथ, बच्चों के साथ. लेकिन कहानी और पटकथा की बारीकियों पर गौर न करें, आपको निराशा ही हाथ लगेगी.
(दीपक दुआ 1993 से फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं. विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं.)
यह भी पढ़ेंः क्या फूटने लगा है साउथ इंडियन फिल्मों का बुलबुला, हिंदी के दर्शकों ने ‘लाइगर’ को नकारा