तमिलनाडु में एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके सरकार के खिलाफ राजनीति एआईएडीएमके द्वारा नहीं बल्कि दो पूर्व आईपीएस अधिकारियों द्वारा की जा रही है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दो सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारियों – राज्यपाल रवींद्र नारायण रवि और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई – को 2021 में अपना कार्यभार संभालने से पहले निर्देशित किया था. उन्हें बताया गया था कि डीएमके विरोधी और हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद के नैरेटिव की एक नींव बनानी है.
तमिलनाडु की राजनीति में नाटकीय बदलाव आया है. एक राज्य जो DMK (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) और AIADMK (ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) – करुणानिधि और जयललिता की राजनीति के बीच बंटा रहा- अब यहां दो सेवानिवृत्त अधिकारी कट्टर प्रतिद्वंद्वियों के तौर पर देखे जा रहे हैं.
रवींद्र नारायण रवि नई दिल्ली में खुफिया ब्यूरो में एक गुप्तचर थे. तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में, उनके पास वर्तमान में राज्य विधानसभा द्वारा पारित 25 विधेयक लंबित हैं. आरएन रवि स्टालिन की मंत्रिपरिषद द्वारा बढ़ाए गए कदम को ध्यान में रखेंगे. रवि सनातन धर्म की प्रशंसा करते रहे हैं और द्रविड़ संस्कृति की भूमि पर मंदिर पूजा का प्रचार करते रहे हैं.
राज्य भाजपा अध्यक्ष के अन्नामलाई अब द्रमुक विरोधी प्रचार का नेतृत्व कर रहे हैं. अन्नामलाई सभी 234 विधानसभा और 39 लोकसभा क्षेत्रों को कवर करने के लिए अप्रैल में पदयात्रा करने के लिए तैयार हैं.
क्या डीएमके को राज्य की राजनीति में आए नए मोड़ से चिंतित होना चाहिए?
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डीएमके का 18 महीने का शासन
पिछले 18 महीनों में, तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी DMK केंद्र-विरोधी, नरेंद्र मोदी-विरोधी नैरेटिव को आगे बढ़ा रही है. राज्य के वित्त की स्थिति दयनीय है. राज्य में कोई बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नहीं आया है. जीएसटी टैक्स क्लेम को लेकर केंद्र से अक्सर टकराव होता रहता है.
हाल ही में टाटा संस के चेयरमैन चंद्रशेखरन नटराजन ने सीएम स्टालिन से मुलाकात की थी. उन्होंने राज्य में भारी निवेश का आश्वासन दिया. बैठक में स्टालिन के बेटे उधयनिधि की उपस्थिति को लेकर डीएमके खेमे में सुगबुगाहट है, क्योंकि पिछली स्टालिन-नटराजन बैठक में सीएम के दामाद सबरीसन ने हिस्सा लिया था. विपक्षी दलों ने डीएमके पार्टी को लेकर सवाल खड़ा किया और सरकार पर वंशवाद की राजनीति करने का आरोप लगा रही हैं.
सुपरस्टार्स का दबदबा कम हो रहा है
रजनीकांत ने राजनीतिक पार्टी बनाने से किया इनकार कर दिया है. दूसरी ओर, कमल हासन 2019 के विधानसभा चुनाव में डीएमके से लड़ने में सबसे आगे थे. लेकिन स्टालिन के सत्ता में रहने के 18 महीनों में हासन की मक्कल निधि मय्यम (एमएनएम) ने कोई आंदोलन नहीं किया है. तमिलनाडु की सिनेमाई दुनिया ने विजय के उदय को देखा है, जिन्हें टिनसेल वर्ल्ड (चमकीली दुनिया) सुपरस्टार रजनीकांत के लिए एक चुनौती के तौर पर पेश कर रही है.
कंसल्टिंग फर्म ऑरमैक्स मीडिया के हालिया सर्वेक्षण में, विजय सबसे लोकप्रिय तमिल पुरुष स्टार के रूप में उभरे हैं, उनके बाद अजित कुमार, सूर्या, धनुष और विक्रम का स्थान रहा. तमिल सिनेमा के जुड़वां स्तंभ, कमल हासन और रजनीकांत भी सूची में शामिल हैं. हालांकि, वे 8वें और 10वें स्थान पर हैं. विजय की फिल्मों ने तमिलनाडु बॉक्स ऑफिस पर लगातार नए रिकॉर्ड बनाए हैं. वह उन कुछ सुपरस्टार्स में से एक हैं जो वैल्यू चेन में सभी स्टेकहोल्डर्स के लिए न्यूनतम सफलता की गारंटी दे सकते हैं. हासन की तरह विजय की भी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं रखते हैं.
हाल ही में हासन राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुए थे. वह डीएमके के बिना गठबंधन बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जैसा कि विदुथलाई चिरुथिगल काची (वीसीके) के नेता थोल थिरुमावलवन द्वारा इसे प्रमोट किया जा रहा है. तमिलनाडु ने DMK गठबंधन को 39 में से 38 सांसद चुनकर दिए हैं. लेकिन तमिलनाडु के लिए बड़ी परियोजनाओं को लाने के मामले में उनका प्रदर्शन निराशाजनक रहा है.
तमिलनाडु में विपक्ष की जगह सिमट रही है
तमिलनाडु की राजनीति के लिए यह दुखद है कि राज्य में कोई मुख्य विपक्ष नहीं है. पिछले 18 महीनों में AIADMK के वरिष्ठ नेताओं के बीच बढ़ी लड़ाई ने पार्टी को चार हिस्सों में बांट दिया है. चारों AIADMK के ‘दो पत्तियों’ के चुनाव चिन्ह पर दावा जताते हैं. चारों गुट डीएमके को खुले तौर पर चुनौती देने से डरते हैं. ये समूह जाति के आधार पर बंटे हैं – थेवर, गौंडर और अन्य. लिहाजा, विपक्ष की जगह के लिए बने शून्य को भाजपा भरने की कोशिश कर रही है.
नाम तमिलर काची (NTK), पट्टाली मक्कल काची (PMK) जैसे अन्य विपक्षी दलों के नेताओं को हाशिए पर धकेल दिया गया है. तमिलनाडु में अब बम विस्फोट, कथित धर्मांतरण और एनआईए के छापे देखे जा रहे हैं.
AIADMK नेताओं का यह भी आरोप है कि राज्य में ‘मादक पदार्थों का व्यापार‘ बड़े पैमाने बढ़ा है. और प्रभावी विपक्ष के बिना मामलों की दुखद स्थिति बढ़ जाती है. यहां तक कि तमिलनाडु से शुरू हुई राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का भी कोई खास राजनीतिक प्रभाव नहीं पड़ा. द्रविड़ विचारधारा, जो कभी तमिलनाडु की राजनीति की मार्गदर्शक शक्ति थी, अब यकीनन सिकुड़ रही है जबकि भाजपा जयललिता द्वारा खाली की गई जगह कब्जाने की कोशिश कर रही है.
घोषणा पत्र को लेकर पीछे चल रही है डीएमके
DMK ने अपने चुनाव पूर्व वादों पूरा करने में कैसे पीछे है? एमके स्टालिन ने 2021 के विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की, जिसमें डीएमके के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 234 सदस्यीय विधानसभा में 159 सीटें जीतीं. स्टालिन के पक्ष में लोगों के स्पष्ट जनादेश ने उन्हें थोड़ी बढ़त दी, हालांकि एआईएडीएमके के नेतृत्व वाले गठबंधन ने भी 75 सीटें हासिल की थीं.
डीएमके ने अपने घोषणापत्र में बड़े-बड़े दावे किए थे. लेकिन उन्हें पूरा नहीं कर पाई है. इसने डीजल की कीमत कम नहीं की, या NEET परीक्षा को समाप्त नहीं किया, या महिलाओं को 1,000 रुपये की नकद मदद नहीं दी. डीएमके अपने आश्वासनों को निभाने को लेकर जूझ रही है. राज्य में 18 महीने तक शासन करने के बाद उम्मीद जगाकर सत्ता में आए स्टालिन अब असंतुष्ट मतदाताओं की इच्छा पूरी नहीं कर पा रहे हैं.
फिर आंतरिक कलह का मामला है, जो शासन को प्रभावित कर रहा है, और युवा मामलों और खेल विकास मंत्री के रूप में उधयनिधि की पदोन्नति के साथ वंशवाद की राजनीति भी है. बीजेपी, सरकार पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगा रही है.
स्टालिन, बेटे उदयनिधि के लिए आगे की राह
तमिलनाडु में राजनीतिक परिदृश्य नाजुक है. जी.के. मणि की पीएमके, जो 6-8 जिलों में वन्नियार पर हावी है, अब अन्नाद्रमुक गठबंधन को छोड़ने और द्रमुक-कांग्रेस गठबंधन से हाथ मिलाने की योजना बना रही है. डीएमके निश्चित रूप से पीएमके का गले लगाकर स्वागत करेगी, लेकिन वीसीके थिरुमावलवन के संभावित तौर पर जाने साथ दलित वोटों को खो देगी, जिससे संभवतः एआईएडीएमके को फायदा होगा. एकमात्र अनिश्चितता है यह है कि यह पार्टी एडप्पादी के. पलानीस्वामी या ओ पन्नीरसेल्वम को चुनेगी?
डीएमके भी केंद्र सरकार को लेकर नरम पड़ रही है. केंद्र सरकार पर अब तीखा हमला कम हो गया है. नवंबर 2022 में स्टालिन की पीएम मोदी से मुलाकात को टर्निंग प्वाइंट कहा जा रहा है. क्या स्टालिन वाईएस जगन मोहन रेड्डी (आंध्र प्रदेश के सीएम) और ममता बनर्जी (पश्चिम बंगाल की सीएम) की शैली अपना रहे हैं? और फिर स्टालिन द्वारा अपने बेटे उधयनिधि को आगे बढ़ाने की बात है. क्या वह 2024 के लोकसभा चुनाव में कोई भूमिका निभाएंगे?
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(लेखक @RAJAGOPALAN1951 से ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)
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