दिल्ली विधानसभा चुनाव संभवतः देश का पहला ऐसा चुनाव है जो औरतों के खिलाफ लड़ा जा रहा है. देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा जो खुद को विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती है, शाहीन बाग की औरतों को इस चुनाव का ‘मुख्य मुद्दा’ बना चुकी है. जहां गृह मंत्री अमित शाह अपनी रैलियों में ‘शाहीनबाग, शाहीनबाग’ चिल्लाते नज़र आते हैं वहीं भाजपा सांसद परवेश वर्मा समेत कई नेता शाहीन बाग की औरतों को ही दुश्मन बना चुके हैं. इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि शाहीन बाग की औरतों का प्रतिरोध 11 दिसंबर 2019 को पास हुए सिटिज़न अमेंडमेंट एक्ट के खिलाफ शुरू हुआ था.
वास्तव में दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए ये मुद्दा नहीं था, ये मुद्दा था गृह मंत्री के लिए जो पाकिस्तान से आए शरणार्थियों के लिए नागरिकता के प्रबंध का दावा कर रहे हैं और हिंदुस्तान में सड़कों पर आईं औरतों से बात करने से बच रहे हैं. लेकिन अमित शाह ने लगभग पैंतीस दिन इंतज़ार करने के बाद शाहीन बाग की औरतों को दिल्ली चुनाव का मुद्दा बना दिया. इसके लिए वो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ज़िम्मेदार बता रहे हैं. वहीं अरविंद केजरीवाल प्रदेश के मुखिया होने के बावजूद शाहीन बाग की औरतों से बात नहीं कर रहे क्योंकि उन्हें डर है कि बात करते ही अमित शाह इसको और बड़ा मुद्दा बना देंगे.
इससे इतर सोशल मीडिया पर भाजपा समर्थित तमाम समूहों के लोग शाहीन बाग की औरतों पर घटिया आरोप लगा रहे हैं. भाजपा के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने तो यहां तक दावा किया के ये औरतें पांच पांच सौ रुपये लेकर वहां बैठ रही हैं. इस बात के बाद इन औरतों को लेकर एक से बढ़कर एक सेक्सिस्ट मीम बने जिन पर सत्ताधारी दल ने कोई आपत्ति नहीं की.
गृह मंत्री अमित शाह ने एक बार भी अपने समर्थकों से ये नहीं कहा कि आप औरतों के खिलाफ इस तरह की बातें क्यों कर रहे हैं. बल्कि उन्होंने ये कहा कि जब जब भाजपा पर विपत्ति आई है उनके साइबर योद्धाओं ने कमान संभाली है. क्या भाजपा के साइबर योद्धा औरतों के खिलाफ गंदी बातें लिखने में अपनी वीरता दिखाते हैं?
प्रश्न ये है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में शाहीनबाग की औरतों का नाम क्यों आ रहा है? इससे चुनाव का क्या लेना देना? नागरिकता को लेकर गृहमंत्री अमित शाह के बयानों के बाद ही संशय और डर फैला है. उनके बयानों के बाद औरतें सड़कों पर आईं हैं. यही वो औरतें हैं जिन्हें लोग भारत माता कहते हैं. भारत की ये मांएं-दादियां ही तो भारत माता हैं.
और कौन है भारत माता?
मान लीजिए कि दिल्ली विधानसभा में भाजपा 70 सीटें जीत जाए तो शाहीन बाग की औरतों का क्या होगा? क्या भाजपा ये चुनाव शाहीन बाग की औरतों के खिलाफ लड़ रही है? शाहीन बाग की औरतों ने लगातार ये कहा है कि उनका आंदोलन संविधान और नागरिकता को लेकर है. वो अमित शाह की पार्टी के खिलाफ खड़ी नहीं हैं. ना ही उनकी पार्टी को हराने को लेकर उन औरतों ने कोई बयान दिया है. फिर वो गृह मंत्री की मुख्य प्रतिद्वंद्वी कैसे हुईं? गृह मंत्री कहते हैं कि क्या आप शाहीन बाग के साथ हैं या उनके खिलाफ. इस बात का मतलब क्या है? गृहमंत्री से सीधा सवाल है- आप भारत माता के साथ हैं या भारत माता के खिलाफ?
एक बार को आप मान लें कि शाहीन बाग में औरतों को बरगलाया गया है, उनकी अपनी समझ नहीं है, वो सीएए की महत्ता को नहीं जानतीं. तो फिर गृह मंत्री जाकर बताते क्यों नहीं? जब उन औरतों के पास गृह मंत्री के क्रोनोलॉजी समझाते हुए वीडियो पहुंचते हैं तो क्या ये गृह मंत्री की ज़िम्मेदारी नहीं है कि वहां जाकर उनसे बात करें? असम के मुद्दे पर बात करते हुए गृह मंत्री ने कहा था कि हमने सैकड़ों समूहों से बात की. तो फिर यहां क्या हिचक है?
आप दिल्ली में तमाम रैलियां कर रहे हैं, तमाम तरह की बातें कर रहे हैं. चुनाव तो हार भी सकते हैं, जीत भी सकते हैं. पर औरतों से संवाद क्यों नहीं कर सकते? फिर आपके जीतने हारने का मतलब क्या है? क्या वोटर सिर्फ आपकी व्यक्तिगत लक्ष्य को पूरा करने का माध्यम भर है? गृह मंत्री को इन सवालों का जवाब देना चाहिए क्योंकि वो अब भाजपा अध्यक्ष नहीं, भारत के गृह मंत्री हैं और भारत माता सड़कों पर हैं.