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Thursday, 25 April, 2024
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क्या अमित शाह होंगे 2024 में भाजपा से प्रधानमंत्री उम्मीदवार ?

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पार्टी अध्यक्ष पहले से ही राज्य सभा के माध्यम से स्वयं को सरकार की आवाज बना रहे हैं।

“इस महान और ऐतिहासिक राज्यसभा के माध्यम से, मैं राष्ट्र निर्माण की चल रही प्रक्रिया का हिस्सा बनने जा रहा हूँ।” भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित अनिल चंद्र शाह ने इस प्रकार इस साल फरवरी में राज्यसभा में अपना पहला भाषण शुरू किया था।

जब अमित शाह को अगस्त 2017 में गुजरात के उच्च सदन में चुना गया था तो यह उनके लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था। शाह अब बैकरूम ‘मास्टर रणनीतिकार’ नहीं थे, उनको एक नेतृत्व की भूमिका निभानी थी। अब वह चंद्रगुप्त मौर्य उर्फ नरेन्द्र मोदी के लिए चुनाव जीतने वाले केवल ‘चाणक्य’ नहीं थे। वह ‘राष्ट्र निर्माण’ का हिस्सा बनने जा रहे थे।

राज्य सभा में अपने कुछ भाषणों से, शाह केवल पार्टी के ही नहीं बल्कि मोदी सरकार की आवाज के रूप में उभरे हैं। उनका पहला भाषण ही जीएसटी, बेरोजगारी, स्वच्छ भारत, ग्रामीण विद्युतीकरण सहित कानून और व्यवस्था से संबंधित कई मुद्दों पर था।

अभी तक वह, भाजपा के सदस्यता अभियान और विस्तार की योजनाओं, इसकी चुनावी रणनीतियों और राजनीतिक कथाओं के बारे में एक पार्टी कार्यकर्ता के रूप में बात किया करते थे। अचानक, वह मोदी सरकार के प्रदर्शन का बचाव कर रहे थे जैसे कि वह ख़ुद प्रधानमंत्री हों।

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राज्य सभा में सरकार की आवाज के रूप में शाह ने अरूण जेटली को लगभग प्रतिस्थापित कर दिया था। पिछले हफ्ते, गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने असम में एनआरसी पर विपक्ष के डर को दूर करने की माँगी की थी क्योंकि कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जा रहा था। लेकिन शाह ने असम में ‘विदेशियों’ की पहचान करने की हिम्मत न जुटा पाने के लिए कांग्रेस पर पूरी तरह से हमले का प्रयास करते हुए इस पूरे मुद्दे को राजनीतिक बना डाला।

पार्टी अध्यक्ष द्वारा इस तरह के बयान साधारण और अपेक्षित होते हैं, सिवाय इसके कि इस तरह के बयान संसद में दिए जाएं, यह सरकार की आवाज के रूप में आते हैं। शाह की बदलती प्रोफाइल ने उन्हें पार्टी से कुछ ज्यादा ही बना दिया है। आखिरकार, वह देश के दूसरे सबसे शक्तिशाली व्यक्ति हैं।

शाह अपनी चाणक्य की छवि को आगे बढ़ाना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि उनको एक बड़े नेता, एक विचारधारा के रूप में या प्रशासन में रूचि रखने वाले एक व्यक्ति के रूप में ही देखा जाए। शायद, प्रधानमंत्री भी उनसे यही चाहते हैं?

राज्य सभा में शाह की तरक्की सरकार पर उनके बढ़ते प्रभुत्व के साथ हुई है। जब पार्टी सांसद राज्य सभा में अनुपस्थित थे तब शाह वह शाह ही थे जिन्होंने सबकी फटकार लगाई थी। पिछले साल जब मंत्रीमंडल में फेर बदल किया गया तो प्रधानमंत्री ने नहीं बल्कि पार्टी अध्यक्ष शाह ने चार मंत्रियों को बुला कर उनसे इस्तीफ़ा माँगा था। इन चीजों से पता चलता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं अपने लेफ्टिनेंट पर काफी हद तक निर्भर हैं। मोदी सरकार को मोदी-शाह सरकार कहे जाते हुए भी ज्यादा समय नहीं बीता है। पार्टी का एक वफादार सेवक पार्टी में अब हर समय एक जरूरत बन गया है।
राज्यसभा चुनाव जीतने के तुरंत बाद, भाजपा नेताओं और सहयोगियों ने लेखों के द्वारा शाह का एक ऐसा व्यक्तित्व दर्शाया जैसा की प्रधानमंत्री मोदी का दर्शाया गया था।


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उनके हमराज देवेंद्र कुमार, एक चुनाव विश्लेषक, ने इकोनॉमिक टाइम्स के एक लेख में शाह को “एक चुनाव मशीन से कहीं बढ़कर” बताया। अमित शाह अपने लिए एक ऐसी रणनीति बना रहे हैं जिसमें उनकी राज्य सभा में प्रवेश की योजना पूरी तरह से उचित बैठ रही है।

कुमार लिखते हैं, “भाजपा अध्यक्ष के रूप में शाह को कम आँकने के कई मामलों में से एक सरकार की समग्र कार्यसूची के साथ सहजता से आगे बढ़ने की उनकी क्षमता है। समूचे भारत के लाखों मतदाता भाजपा पार्टी और केंद्र में उनकी सरकार के बीच कोई अंतर नहीं देखते हैं।” दूसरे शब्दों में कहें तो वह न सिर्फ पार्टी की सफलताओं के लिए ही बल्कि सरकार की सफलताओं के लिए भी श्रेय चाहते हैं।

सार्वजनिक कार्यालय के स्वामित्व में सक्षम राजनेता शाह के बारे में कुमार ने बताया, “शाह एक उल्लेखनीय प्रशासकीय और शासन विशेषज्ञ हैं- यह एक ऐसा हुनर है जिसके बारे में गुजरात के बाहर के लोग कम ही जानते हैं। उन्होंने लगभग एक दशक तक गुजरात के गृहमंत्री के रूप में महत्वपूर्ण कार्य किए। पार्टी अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने केंद्रीय मंत्रियों को आपसी बातचीत में महत्वपूर्ण जानकारी दी है। अब, राज्यसभा सदस्य के रूप में, यह बात स्वाभाविक है कि वह नीतियों के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।”

राजनीतिक क्षेत्रों में व्यापक रूप से यह माना जाता है कि शाह गुजरात के मुख्यमंत्री बनना चाहते थे और पार्टी अध्यक्ष पद से पदच्युत होना चाहते थे, लेकिन प्रधानमंत्री इससे सहमत नहीं थे। जब शाह ने आनंदीबेन पटेल, जिनसे वे घृणा करते हैं, को हटाकर उनकी जगह अपने प्रतिनिधि को दे दी(विजय रूपानी), तब भी वह स्वयं के लिए नीति और प्रशासन प्रोफाइल बनाना चाहते थे।

लेकिन क्यों?

फिर से, कुमार का लेख हमें एक संकेत देता है, “53 वर्षीय आधुनिक चाणक्य की कहानी के राज अभी भी खुल रहे हैं। आने वाले महीनों और वर्षों में एक चुनाव मशीन के अलावा देश उनके कई छिपे हुए पहलुओं को देखेगा।”

इस बात को नकारा नहीं जा सकता है की अमित शाह, जो अपने परामर्शदाता मोदी से उम्र में 14 साल कम हैं, स्वयं को मोदी का उत्तराधिकारी मानते हैं। यही कारण है कि उन्हें राज्यसभा में सरकार की आवाज होने की जरूरत है।

बेचारे योगी आदित्यनाथ को इंतजार करना होगा।

Read in English : BJP’s Mission 2024: Prime Minister Amit Shah?

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