प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अयोध्या में राम मंदिर के लिए भूमिपूजन के बाद विपक्षी पार्टियों की तरफ़ से जिस तरीक़े की प्रतिक्रिया आयी हैं, उससे साफ है कि विपक्षी पार्टियां बीजेपी के बुने रणनीतिक जाल में पूरी तरह फंस गयी हैं.
कांग्रेस से बात शुरू की जाए तो इसके कुछ नेता देश को राम मंदिर के निर्माण की बधाई देते हुए बीजेपी को ‘राम’ पर राजनीति न करने की सलाह देते नजर आए तो कुछ ने मंदिर निर्माण का वास्तविक श्रेय राजीव गांधी को दिया क्योंकि राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान ही राम जन्मभूमि का ताला खुला था. मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने दिन भर हनुमान चालीसा का पाठ किया तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राम वनगमन पथ के निर्माण की रूपरेखा प्रस्तुत की.
सरलता, साहस, संयम, त्याग, वचनवद्धता, दीनबंधु राम नाम का सार है। राम सबमें हैं, राम सबके साथ हैं।
भगवान राम और माता सीता के संदेश और उनकी कृपा के साथ रामलला के मंदिर के भूमिपूजन का कार्यक्रम राष्ट्रीय एकता, बंधुत्व और सांस्कृतिक समागम का अवसर बने।
मेरा वक्तव्य pic.twitter.com/ZDT1U6gBnb
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) August 4, 2020
समूची कांग्रेस ये बताने में लगी रही कि ‘राम’ और ‘राम जन्मस्थान’ में उनकी कितनी आस्था है. इस कड़ी में सपा और बसपा ने एक क़दम और आगे जाते हुए परशुराम की मूर्ति और उनके नाम पर अस्पताल बनवाने की घोषणा की. बस यह तय होना बाक़ी रह गया है कि किस पार्टी द्वारा बनवायी मूर्ति सबसे ऊँची होगी.
राजनीतिक पार्टियों की प्रतिक्रियाओं से जाहिर है कि वो बीजेपी के बनाए रणनीतिक जाल में किस तरफ़ फँस गयी हैं और उन्हें कुछ सूझ ही नहीं रहा कि क्या किया जाए? इस लेख में यह समझने की कोशिश की गयी है कि विपक्षी पार्टियों के बीजेपी की रणनीति में फँसने का मुख्य कारण क्या है, और इसका भारत के लोकतंत्र पर व्यापक प्रभाव क्या होगा?
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2014 में देश की पार्टी सिस्टम बदल गया
इसके लिए हमें 2014 के चुनाव परिणाम के बाद हुई बहस को देखना होगा. उस आमचुनाव में जब बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आयी थी तो वह कई मायनों में अप्रत्याशित था, क्योंकि 1985 के चुनाव के बाद ये पहला मौका था जब कोई एक पार्टी अपने बलबूते पर चुनाव जीतकर पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आयी. उस जीत में पार्टी ने न केवल अपने बलबूते 30 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त किया बल्कि बड़ी संख्या में ऐसी सीटें भी जीती, जहाँ पर उसने कुल मतदान से 50 प्रतिशत से ज़्यादा मत प्राप्त किया. इन दोनों ही मामलों में पार्टी की स्थिति 2019 के चुनाव में और बेहतर हुई. बीजेपी की सफलता पर टिप्पणी करते हुए राजनीति विज्ञानी प्रो. प्रदीप छिब्बर और राहुल वर्मा ने तब बताया था कि भारत का ‘पार्टी सिस्टम’ अपने चौथे दौर में चला गया है, जिसमें अब बीजेपी ‘सिस्टम डिफ़ाइनिंग पार्टी’ होगी.
सिस्टम डिफ़ाइनिंग पार्टी अमूमन उस पार्टी को कहा जाता है जो कि अपने समय में किसी देश की अर्थनीति, विदेश नीति, सुरक्षा नीति और सामाजिक नीति को परिभाषित करती है. 2014 के बाद उभरे पार्टी सिस्टम में इन विषयों पर देश में बहस किस तरह होगी, और किन मुद्दों पर चर्चा होगी, यह बीजेपी तय करती है.
राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में योगेंद्र यादव का योगदान
भारत की राजनीति में पार्टी सिस्टम के विभिन्न चरणों की अवधारणा को ऐकेडेमिक रूप देने का श्रेय राजनीति विज्ञानी योगेन्द्र यादव को जाता है, जिन्होंने 1999 में इस अवधारणा को विकसित किया था. योगेन्द्र यादव के अनुसार तब भारत का लोकतंत्र तीसरे पार्टी सिस्टम के दौर से गुजर रहा था. पहला दौर 1952-67 तक का था जब देश में कांग्रेस का आधिपत्य था. तब के दौर में देश में कोई स्थापित विपक्ष नहीं था, बल्कि कांग्रेस के ही संगठन अपनी सरकार की नीतियों का विरोध करके विपक्ष का रोल अदा कर रहे थे.
पार्टी सिस्टम का दूसरा दौर 1967 से शुरू हुआ जब चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस से अलग होकर बीकेडी का गठन किया और देश में पहली बार कांग्रेस के ख़िलाफ़ राज्य और केंद्र स्तर पर विपक्षी पार्टियाँ खड़ी हुईं. कई राज्यों में इन दलों की मिली-जुली सरकारें भी बनीं. दूसरे पार्टी सिस्टम का दौर 1989 में समाप्त हुआ जब उस साल के लोकसभा चुनाव में किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और केंद्र में मिलीजुली सरकार बनी. 1989 के बाद के समय को तीसरे पार्टी सिस्टम का दौर कहा जाता है, जिसमें केंद्र में गठबंधन की सरकारें बनीं.
तीसरे पार्टी सिस्टम के शुरुआत के दस साल काफ़ी उथल पुथल वाले रहे लेकिन 1999 के बाद पार्टियाँ का कांग्रेस और बीजेपी के इर्द-गिर्द ध्रुवीकरण होने लगा. 2014 के चुनाव में स्थितियाँ बदल गयी, जब बीजेपी ने अकेले पूर्ण बहुमत हासिल किया. उस चुनाव के बाद भारत की राजनीति चौथे पार्टी सिस्टम के दौर में पहुंच गयी है.
बीजेपी का जीवन के हर क्षेत्र में विस्तार
इस नए दौर के पार्टी सिस्टम में बीजेपी न केवल चुनाव जीत कर आ रही है बल्कि उसने बिजनेस घरानों, संवैधानिक संस्थानों, विश्वविद्यालयों, बालीवुड, खेलकूद, मीडिया, सोशल मीडिया आदि में मजबूती से प्रवेश किया है. धार्मिक संस्थानों पर पार्टी की पकड़ पहले से ही रही है. अपनी उक्त पकड़ की बदौलत पार्टी न केवल विपक्षी पार्टियों के एजेंडे को प्रभावहीन कर देती है, बल्कि यह भी निर्धारित करती है कि देश में किस विषय पर बातचीत होगी.
मसलन भारत कोरोना के बुरे दौर से गुजर रहा है, दिन प्रतिदिन हालात खराब हो रहे हैं. भारत सरकार का इस महामारी को लेकर मिसमैनेजमेंट दुनियाभर में चर्चा का विषय है. लेकिन भारत में इस पर बहस नहीं हो रही. टीवी डिबेट में प्रतिदिन कुछ न कुछ हिंदू-मुसलमान या सुशांत सिंह जैसे मुद्दे चलते रहते हैं. चीनी सेना के हाथों 20 भारतीय सैनिकों की शहादत के बाद राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर विडियो बनाकर इस मुद्दे को उठाने की कोशिश की, लेकिन राम मंदिर के भूमि पूजन के बाद वह ख़बर भी ग़ायब हो गयी. यह सभी चीजें बताती हैं की भारत के लोकतंत्र में अब लोग कैसे सोचेंगे, इसको भी काफ़ी हद तक बीजेपी निर्धारित करेगी.
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विपक्षी पार्टियां इस वास्तविकता को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं. कांग्रेस जहां अभी भी सत्तर-अस्सी के दशक में राजनीति शुरू करने वाले नेताओं के क़ब्ज़े में है, जो कि अपनी पार्टी की स्थिति को तब के दौर से आंकते हैं, वहीं सपा, बसपा जैसी विपक्षी पार्टियों के समर्थक राजनीति को अपने महापुरुषों की आंखों से देखने की कोशिश करते हैं, इसलिए उन्हें सिर्फ़ इतिहास दिखाई देता है, वर्तमान नहीं, और भविष्य तो बिलकुल नहीं.
(लेखक रॉयल हालवे, लंदन विश्वविद्यालय से पीएचडी स्क़ॉलर हैं .ये लेखक के निजी विचार हैं)
लेखक ने विदेशी विश्व विद्यालय से पढ़ाई की हुई है ।।।इसलिए बो देश की नब्ज को नहीं समझ सकते आज भी देश के तथाकथित लिब्रालस को समझ नहीं आ रहा कि देश की वर्तमान इस्थी क्या है और बो इसको कैसे समझे।।
सिर्फ बीजेपी के इर्दगिर्द ही बातो को घुमा कर अपना और दूसरी का टाइम खराब करते है।।।।बीजेपी आज रूलिंग पार्टी जरूर है लेकिन कल कोई और भी सत्ता हासिल कर लगा लेकिन बड़ा सवाल है कि देश कैसे आगे बढ़ेगा।।।
क्या आप इस बात से इंकार कर सकते है कि भ ज प को देश कि सर्व प्रिय पार्टी बनाने में छ्दम सेकुलाइस्म का सब से बड़ा योग दान है , जिसको कांग्रेस्स और लेफ्ट पार्टियो ने अपना एक मात्र नारा व धीयये बना रखा था । जब तक यह पार्टिया सेकुलाइस्म को सही प्रीपेक्ष में नही समझती और उस को सही अर्थो में लागू करती , तब तक भ ज प ही देश कि नंबर एक पार्टी और इकलोती शासक पार्टी रहेगी । भ्रष्ट कांग्रेस्स का अब कोई भविषय नही रहा । वह तो एक भ्रष्ट परिवार कि वयक्ति गत संपाति बन के नष्ट होने को अग्रसर है । उस के नेताओ को बार्डर पर दुश्मन देश कि सेनाओ के जमावड़े के वक्त भी मोदी विरोधी और देश विरोधी राजनीति करने का अवसर दिखता है। ऐसे नेताओ को अब भारत कि जनता कभी माफ नही करने वाली । बाकी हर पार्टी देश को अपने अजेंडे से ही चलती है । इस मे कुछ बुरा नहीं है ।