scorecardresearch
Monday, 30 December, 2024
होममत-विमतनेशनल इंट्रेस्टBJP आज नहीं कल की लड़ाई लड़ रही है, केजरीवाल की गिरफ्तारी इस बात का सबूत है

BJP आज नहीं कल की लड़ाई लड़ रही है, केजरीवाल की गिरफ्तारी इस बात का सबूत है

केजरीवाल और उनकी पार्टी जिस ‘आइडिया’ के बूते उभरी थी वह भ्रष्टाचार के खिलाफ बेरोकटोक लड़ाई का था. इसीलिए मोदी सरकार ने उन पर, उनकी पार्टी तथा सरकार पर भ्रष्टाचार की कालिख पोती है

Text Size:

अपने पार्टी नेता और मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी पर दिल्ली सरकार की एक प्रमुख मंत्री आतिशी की पहली प्रतिक्रिया यह थी कि अरविंद केजरीवाल एक व्यक्ति भर नहीं हैं बल्कि वे एक विचार, एक ‘आइडिया’ हैं. इसका अर्थ यह है कि उनके मुताबिक, केजरीवाल की गिरफ्तारी से, या मंच से कुछ समय के लिए उनकी अनुपस्थिति से उनकी राजनीति, उनकी पार्टी या सरकार को कोई बड़ा झटका नहीं लगने वाला है.

यह एक अच्छी और काबिल-ए- गौर बात है. तो पहले तो हम इसी आशय को मान कर आगे बढ़ते हैं. अगले कुछ दिनों में साफ हो जाएगा कि उनकी पार्टी पर, और वह जिन दो राज्यों, दिल्ली और पंजाब में अपनी सरकार चला रही है उन पर इस गिरफ्तारी का क्या असर पड़ा है. लेकिन देखने वाली ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह होगी कि इसका राष्ट्रीय राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा.

सैद्धांतिक दृष्टि से कहा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी (‘आप’) अगर इस झटके को तब तक झेल जाती है जब तक केजरीवाल अंततः रिहा नहीं किए जाते, तब यह पार्टी और मजबूत होकर उभरेगी. तब केजरीवाल भाजपा की जेल से और बड़े करिश्माई नेता के रूप में उभर सकते हैं.

अगर आपकी बुनियादी साख कायम रहती है, और अगर आपके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों से आपके ‘जनाधार’ पर कोई असर नहीं पड़ता, तो प्रतिद्वंद्वी सरकार की जेल में बिताए गए समय से भारतीय नेता को कोई फर्क नहीं पड़ता. दूसरी ओर, अगर आपकी अनुपस्थिति से आपकी सरकार लड़खड़ाने लगती है, आपकी पार्टी में बिखराव शुरू हो जाता है और वह दलबदल के कारण पंगु होने लगती है, जिसकी पूरी कोशिश भाजपा करेगी, तब आपकी राजनीति का निश्चित पतन होने लगता है. ‘आप’ आज इसी मोड़ पर आ पहुंची है.

केजरीवाल आज अगर एक ‘आइडिया’ हैं, तो वे और उनकी पार्टी जिस ‘आइडिया’ के बूते उभरी थी वह भ्रष्टाचार के खिलाफ बेरोकटोक लड़ाई का था. इसी वजह से मोदी सरकार ने उन पर और उनकी पार्टी तथा सरकार पर उसी भ्रष्टाचार की कालिख पोती है.

वे व्यक्तियों के पीछे नहीं पड़े हैं, वे उस ‘आइडिया’ के पीछे पड़े हैं जो कभी केजरीवाल के नाम का पर्याय था; कि सार्वजनिक जीवन और बहस में शामिल हर कोई भ्रष्टाचार में लिप्त है, चाहे वह राजनीतिक नेता हो या कॉर्पोरेट हो या मीडिया हो या जज हो. उनके संगठन ‘इंडिया अगेन्स्ट करप्शन’ का युद्धघोष यही था कि ‘सब चोर हैं’, ‘सब मिले हुए हैं’. इसका निष्कर्ष यही निकलता था कि केवल केजरीवाल ही इन सबसे सच्ची लड़ाई लड़ रहे हैं.

इस तरह वे एक ‘आइडिया’ बने, और मोदी सरकार अब उसे भ्रष्टाचार के आरोपों से ध्वस्त करना चाह रही है कि ‘देखो, अब देखो उन्हें, जो इतने वर्षों से ढोल पीट रहे थे’.

पिछले एक दशक से, भाजपा देखती रही कि केजरीवाल नाम का यह ‘आइडिया’ किस तरह मजबूत होता गया. किस तरह इसने पंजाब को जीता, गोवा में भी कुछ वोट बटोरे, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह कि इसने गुजरात में भी पांच सीटें जीत लीं.

इसने मोदी-शाह के गढ़ में 13 फीसदी वोट हासिल करके, पालिकाओं के चुनाव में भी कुछ बढ़त हासिल करके खतरे की घंटी बजा दी थी. भाजपा अपनी पुरानी खुंदकों के आधार पर राजनीति भले करती हो, वह आज की लड़ाई आज नहीं लड़ती बल्कि किसी भी सुपरपावर की तरह वह आने वाले कल के बाद की लड़ाई आज लड़ती है, और अपने मैदान से दूर जाकर लड़ती है. 2022 के चुनावों ने साफ कर दिया कि ‘आप’ भाजपा के सबसे मूल्यवान मैदान, उसके दिल के सबसे अज़ीज क्षेत्र में उभर रही है. तभी फैसला हो गया और ‘आप’ को कल का ऐसा दुश्मन मान लिया गया जिसे आज ही ध्वस्त करना जरूरी था.

अगर भाजपा कामयाब हो जाती है और केजरीवाल नामक ‘आइडिया’ अब पतन की ओर बढ़ता है, तो यह राष्ट्रीय राजनीति को एक बड़ी दिशा देगा. यह साफ हो जाएगा कि अपने क्षेत्र का विस्तार करने की जो कोशिशें तमाम लोकप्रिय, ताकतवर, और महत्वाकांक्षी नेता कर रहे हैं वे नाकाम हो गई हैं.

हमने देखा कि पिछले तीन साल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने राष्ट्रीय मंच पर अपनी जगह बनाने की कोशिश में गोवा, त्रिपुरा, और मेघालय पर काफी समय, ऊर्जा और पैसा लगाया लेकिन विफल रही. ‘टीएमसी’ की नाकामी अगर नाटकीय रही, तो तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने अपनी पार्टी के नाम के साथ जुड़े ‘टी’ अक्षर की जगह ‘बी’ (भारत) अक्षर जोड़ने की जो कोशिश की वह बुरी तरह नाकाम साबित हुई. दूसरी प्रादेशिक पार्टियां भी अपनी क्षेत्रीय सीमाओं से आगे पैर पसारने का सपना तक नहीं देख सकतीं. कभी तमाम प्रदेशों में अपनी ताकत रखने वाला वाम दल भी अब केवल एक राज्य तक ही सीमित रह गया है.

केवल ‘आप’ ही अपना विस्तार करने में सफल रही, और भाजपा तथा कांग्रेस को छोड़ कर देश की वही एक पार्टी है जो एक से ज्यादा राज्य में सत्ता में है. यही वजह है कि भाजपा ने उसे उसकी औकात में रखने का फैसला किया. वह दूर भविष्य के खतरे से आज लड़ रही है.

केजरीवाल की गिरफ्तारी के कारण हुए राजनीतिक परिवर्तन के महत्व को समझने के लिए यह देखिए कि कौन पार्टी उनके और उनकी पार्टी के बचाव में जोरदार तरीके से सामने आई है. यह पार्टी है कांग्रेस, जिसे 2010-14 के दौर में केजरीवाल ने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलाकर और उसके बड़े मंत्रियों की गिरफ्तारी की लगातार मांग करके ध्वस्त कर दिया था.

फिर भी, कांग्रेस उनके बचाव में सबसे मुखर और सक्रिय क्यों है, वह परपीड़ा सुख क्यों नहीं उठा रही है? दिल्ली और गुजरात में उसने लोकसभा चुनाव के लिए ‘आप’ के साथ आंशिक तालमेल तो किया ही है, इसके अलावा दो और वजहों से वह उसका बचाव कर रही है.

पहली वजह यह कि, भाजपा विरोधी सभी दलों की तरह उसे भी मालूम है कि ‘आप’ के साथ आज जो हो रहा है वह कल उसके साथ भी हो सकता है. कर्नाटक, तेलंगाना, और हिमाचल प्रदेश में उसके मुख्यमंत्री इस घटनाक्रम पर करीबी नजर रखे हुए हैं. उनकी खास चिंता यह है कि ऐसी स्थिति का उनकी अपनी पार्टी और खासकर उसका कानूनी महकमा किस तरह सामना करेगा.

दूसरी वजह यह है कि कांग्रेस को मालूम है कि चाहे वह कितनी भी कमजोर क्यों न हो गई हो, वही एकमात्र ताकत है जो भाजपा को भारत को एकदलीय गणतंत्र में बदलने से रोक सकती है. क्योंकि अगर वह रास्ते से हट गई तो भाजपा क्षेत्रीय ताकतों को अपने में मिलाकर या ध्वस्त करके रास्ते से हटा सकती है. कांग्रेस को पता है कि अगली बारी उसकी ही आने वाली है.

इस घटनाक्रम का असली निष्कर्ष यह है कि ‘आप’ पर हमले ने भारत को दो राजनीतिक ताकतों, भाजपा और कांग्रेस का देश बना दिया है, चाहे दोनों की ताकत में जो भी फर्क हो.

अब यह कहा जा सकता है कि आने वाले वर्षों में, कम-से-कम 2029 तक तो कांग्रेस ही राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की प्रतिद्वंद्वी रहेगी, चाहे वह कितनी भी कमजोर क्यों न हो. लगातार पराजयों के बावजूद उसका वोट प्रतिशत करीब 20 फीसदी (कम-से-कम 2019 तक) बना हुआ है. आपकी तमाम कमजोरियों, डगमग नेतृत्व, और जीत की लगभग शून्य उम्मीद के बाद भी अगर पांच में से एक भारतीय आपको वोट दे रहा है तो आप खेल में बने रह सकते हैं. यह 20 फीसदी अगर 25 फीसदी में भी बदल गया तब खेल बदल जाएगा.

यह आपको ‘अच्छी बात’ लग सकती है, और एक पल के लिए आप चुपके से मुस्करा भी सकते हैं अगर आप कांग्रेस वाले हैं. लेकिन हकीकत का जायज़ा लें, तो पहला काम आपको यह करना है कि आगामी महीनों में भाजपा की ओर से ऐसे हमले से खुद को बचाने के उपाय कीजिए. इसके लिए आपको वही करना पड़ेगा, जो भाजपा कर रही है, आने वाले कल के बाद की लड़ाई आज लड़िए. इसीलिए कांग्रेस ‘आप’ के बचाव में जोरदार तरीके से आगे आई है. वह अपने वजूद के लिए, मैदान में और लड़ाई में बने रहने के लिए, और देश में दो दलीय व्यवस्था की अनिवार्यता को कायम रखने के लिए जद्दोजहद कर रही है.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ेंः ‘मुझे यह कहना बेतुका लगता है कि शाकाहारियों की ज़रूरतें पूरी नहीं की जानी चाहिए’ 


 

share & View comments