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Sunday, 24 November, 2024
होममत-विमतमोदी ने काबू नहीं किया तो बड़बोले नेता ही भाजपा की नाव डुबोएंगे: ज़फ़र सरेशवाला

मोदी ने काबू नहीं किया तो बड़बोले नेता ही भाजपा की नाव डुबोएंगे: ज़फ़र सरेशवाला

स्थिति भाजपा के नियंत्रण में नहीं रही, चीज़ें मोदी की पकड़ से छूट रही हैं. मोदी की पहले की कार्यशैली और भाजपा के मौजूदा तौर-तरीकों में भारी अंतर है.

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मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से करीब 13 वर्षों से नज़दीकी से जुड़ा रहा हूं. हालांकि, मेरा जुड़ाव हमेशा नरेंद्र मोदी तक सीमित रहा और भाजपा से कभी नहीं रहा – वास्तव में, मैं कभी ना तो गुजरात और ना ही दिल्ली में पार्टी के दफ़्तर में गया हूं.

लेकिन अपने संगठन ‘तालीम-ओ-तरबियत’ के आयोजनों में मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करने वाले भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के लोगों से मेरी पहचान हो गई. इनमें अरुण जेटली, राजनाथ सिंह, पीयूष गोयल और कई अन्य नेता शामिल हैं. कई भाजपा-शासित राज्यों ने मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के कैंपस बनाने के लिए ज़मीन आवंटित करने की सहमति जताई है – जिससे आखिरकार मुसलमानों को लाभ मिलेगा.

विगत वर्षों के अपने अनुभवों से मैं आश्वस्त हूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ना तो सांप्रदायिक हैं और ना ही मुसलमान-विरोधी; और बिना खेद जताए मैं आगे भी ऐसा मानता रहूंगा. मैं ये भी मानता हूं कि पिछले साढ़े चार वर्षों में भाजपा ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में मुसलमानों के खिलाफ़ कुछ भी नहीं किया है. इस सरकार के अच्छे या बुरे फैसलों से, बिना किसी भेदभाव के, सभी समुदायों का एकसमान भला या बुरा हुआ है. और, तीन तलाक़ विधेयक लाया जाना – जो कि शुरू में प्रस्तावित विधेयक का काफी हल्का प्रारूप है – भी सराहनीय है.

इन सबके बावजूद, कुछ ऐसी बातें हैं जो मेरे लिए परेशानी का सबब हैं. भाजपा के बेलगाम अतिवादी तत्व आज पूरी तरह नियंत्रण से बाहर हो रहे हैं. आज मुख्यधारा में आ चुकी हाशिये पर रहने वाली आवाज़ें 2014 में इतनी बुलंद नहीं थीं. तब गिरिराज सिंह, साध्वी प्रज्ञा, उमा भारती और साक्षी महाराज जैसे नेताओं के विद्वेषपूर्ण भाषण इतने खुल्लमखुल्ला नहीं होते थे. यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तत्काल इन्हें काबू में नहीं किया तो ये अनियंत्रित बड़बोले नेता ही भाजपा की नैया डुबोएंगे.

नियंत्रण गया

बीते साल मैंने भाजपा के एक अत्यंत वरिष्ठ नेता से कहा भी था कि मुझे पार्टी का बिज़नेस मॉडल समझ में नहीं आ रहा. यदि भाजपा सरकार एक चतुर व्यवसायी की तरह काम करती, तो पार्टी की रणनीति बिल्कुल अलग होती. एक व्यवसायी बनिया के तौर-तरीकों में धर्म जैसी बातों को कभी जगह नहीं दी जाती है क्योंकि उसे पता होता है कि पैसे का कोई धर्म नहीं होता. ठीक वैसे ही, वोट का भी कोई धर्म नहीं होता.

जब मैं ब्रिटेन में रहता था, वालमार्ट और टेस्को जैसे स्टोर शुरू में हलाल मांस नहीं रखते थे; पर समय बीतते-बीतते उन्हें अहसास हुआ कि मुसलमान भी उनके संभावित ग्राहकों में से हैं, उनकी संख्या चाहे कितनी भी कम क्यों ना हो. इस तरह इन स्टोरों ने अपना दायरा बढ़ाते हुए हलाल मांस रखना शुरू कर दिया. इसीलिए मैं कहता हूं कि बिज़नेस का कोई धर्म नहीं होता.

पर आज, भाजपा मुसलमानों की उपेक्षा कर रही है जो कि भारत की आबादी का 15 प्रतिशत हैं. इससे भाजपा को ही नुकसान होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पूर्व की कार्यशैली, और भाजपा के मौजूदा तौर-तरीकों में बड़ा अंतर है. और, मैं समझता हूं ये कहना ठीक होगा कि स्थिति पर भाजपा का नियंत्रण नहीं रह गया है. मामला इसके हाथ से निकल चुका है.

प्रधानमंत्री मोदी को स्थिति को अपने नियंत्रण में लेना होगा. वरना 2014 के आम चुनाव से पूर्व और उससे पहले के 12 वर्षों में गुजरात में शासन के दौरान निर्मित सकारात्मक कथानक, जिसमें मुसलमानों को उनकी नीतियों का बराबर का लाभ मिला था, बहुत जल्दी उनके हाथों से छूट जाएगा. उन्हें समझना होगा कि लोगों ने मौजूदा स्थिति के लिए 2014 में वोट नहीं दिया था.

हिंदू धर्म पर राहुल गांधी की दावेदारी ने भी भाजपा की राजनीति को बड़ा नुकसान पहुंचाया है. लगातार मंदिरों का चक्कर लगाते रहकर वह इस धारणा को दूर करने में सफल रहे हैं कि कांग्रेस मुसलमानों का तुष्टिकरण करने वाली पार्टी है. यह बात और भाजपा के कतिपय नेताओं की घृणायुक्त बयानबाज़ी, संयुक्त रूप से भाजपा के लिए घातक साबित हो सकती है.

अल्पसंख्यकों की चुप्पी

मुस्लिम समुदाय की सराहना करनी होगी कि इसने तमाम भड़काऊ बातों पर प्रतिक्रिया करना बंद कर दिया है. हमें यह समझना होगा कि कतिपय नेताओं के शब्द बहुत पीड़ादायक हो सकते हैं, पर उन्हें मुस्लिम समुदाय को उकसाने के लिए ही बोला जाता है ताकि वे प्रतिक्रिया में कुछ करें. पर उनके चुप रह जाने पर, भाजपा नेता इस तरह की राजनीति को आगे नहीं बढ़ा सकते.

मुसलमान आज पूरी तरह तटस्थ हैं. कुछ साल पहले तक बहुत से मुसलमान वैसे किसी भी उम्मीदवार के साथ खड़े हो जाते थे जिसमें भाजपा को पराजित करने की संभावना हो. पर 2014 में, मुसलमानों के लिए ना तो मोदी को हराने और ना ही कांग्रेस का साथ देने का कोई कारण था. वास्तव में उस चुनाव में भाजपा 282 सीटें नहीं ला पाती, यदि उन्हें मुसलमानों का थोड़ा भी समर्थन नहीं मिला होता. अनेक मुसलमानों ने तब कहा था कि उन्होंने सभी को मौक़ा दिया है, तो फिर नरेंद्र मोदी को भी एक मौक़ा क्यों नहीं दिया जाए.

आज, प्रधानमंत्री मोदी या उनकी सरकार मुसलमानों को दूर नहीं भगा रहे. इसके लिए ज़िम्मेवार हैं पार्टी के बड़बोले नेता और उनके बयान.

बुलंदशहर इज्तेमा के समय अनेक भड़काऊ बातें और गड़बड़ियां सामने आईं – पर एक भी मुसलमान ने पुलिस से शिकायत तक नहीं की. यह प्रशंसनीय बात है. जब से मुस्लिम समुदाय ने भाजपा के अतिवादी तत्वों की बातों पर प्रतिक्रिया करना बंद कर दिया, उनका खेल ख़त्म हो गया है.

मुस्लिम समुदाय के लिए मेरा संदेश ये है: ‘प्रतिक्रिया मत करो. यदि वे कहते हैं कि वे अयोध्या में राम मंदिर बनाना चाहते हैं, तो उन्हें ऐसा करने दो. ‘हमें कहना चाहिए कि आप मंदिर बनाना चाहते हैं, जाइए बनाइए. पर हमारा इस्तेमाल नहीं कीजिए. राम मंदिर की राजनीति या समान नागरिक संहिता या तीन तलाक़ के अपने भंवर में हमें मत डालिए.’ एक समुदाय के रूप में हमें आंदोलनकारी रवैया छोड़ना होगा.’

इस देश में क़ानूनी साधन उपलब्ध हैं, हम किसी अव्यवस्थित देश में नहीं रहे. कोई देश अध्यादेशों के सहारे नहीं चल सकता. अध्यादेशों को भी क़ानून की कसौटी पर परखा जाएगा. हमारी न्यायपालिका दुनिया की बेहतरीन न्यायपालिकाओं में से एक है. हमारे समक्ष मौजूद हरेक चुनौती के लिए, क़ानूनी विकल्प मौजूद है.

और, मुसलमानों को शिक्षा, स्वास्थ्य एवं उद्यमिता पर ध्यान केंद्रित किए रहना होगा. हमें किसी भी सरकार, भाजपा समेत, का आकलन इन्हीं मानदंडों पर करना चाहिए.

(पत्रकार फातिमा असलम ख़ान से बातचीत पर आधारित.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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