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Monday, 18 November, 2024
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भाजपा ने जम्मू-कश्मीर की किस्मत बदल दी, अनुच्छेद-370 को निरस्त करना हमें यहां तक लेकर आया

जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार बन गई है, लेकिन मतदाताओं में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी भाजपा की है. उसे कुल वोटों का 25.5% मिला है, जो किसी भी अन्य पार्टी से ज्यादा है.

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मतपत्र गोली से ज़्यादा शक्तिशाली है. अब्राहम लिंकन की सदियों लोकोक्ति जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ गूंज रही है, जैसा कि केंद्रशासित प्रदेश में दस साल बाद हुए विधानसभा चुनाव 2024 में स्पष्ट हो गया है. नतीजे सामने आ चुके हैं, नेशनल कॉन्फ्रेंस को भारी बहुमत मिला है, जिसने 90 में से 42 सीटें जीती हैं और कांग्रेस ने 6 सीटें जीती हैं. सीट गणित के मामले में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने औसत से ऊपर प्रदर्शन करते हुए 29 सीटें हासिल की हैं — इस क्षेत्र में उसका अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन.

यह गौर करने वाली बात है कि जहां नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से सरकार बनाने और ऐतिहासिक राजभवन में बैठने का आह्वान कर रहे हैं, वहीं भाजपा ने कुल 25.5 प्रतिशत वोट प्राप्त करके अधिकतम मतदाता हिस्सेदारी का दावा किया है, उसके बाद नेकां को 23.4 प्रतिशत, कांग्रेस (जिसके राहुल गांधी कश्मीरी वंश का दावा करते हैं) को 11.9 प्रतिशत और महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) को 8.8 प्रतिशत वोट मिले हैं.

अब्राहम लिंकन के शब्दों में : “चुनाव लोगों के हैं. यह उनका फैसला है. अगर वह आग से मुंह मोड़ने और पिछले हिस्से को सेक देने का फैसला करते हैं, तो उन्हें अपने छालों पर बैठना होगा”. जम्मू और कश्मीर के लोगों ने स्पष्ट रूप से लोकतंत्र के पक्ष में मतदान किया है, आतंकवाद से मुंह मोड़ने और बंदूक का इस्तेमाल न करके गुच्ची (इस क्षेत्र की खासियत वाले बेहद महंगे मोरेल मशरूम) के पक्ष में मतदान किया है, जिससे इस क्षेत्र में प्रगति, शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त हुआ है. इसे न केवल लोकतंत्र की जीत माना जा सकता है, बल्कि भाजपा की भी जीत मानी जा सकती है, जिसने दुनिया को दिखाया है कि वह जो कहती है, उसे खुद भी करती है. यह संयुक्त राष्ट्र में पीएम मोदी के हालिया बयान के अनुरूप है: “मानवता की सफलता हमारी सामूहिक शक्ति में निहित है, युद्ध के मैदान में नहीं”.

जम्मू-कश्मीर की नई कहानी

पूरी दुनिया ने देखा कि अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बाद जम्मू-कश्मीर में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए और आज भाजपा की जीत हुई है, साथ ही संविधान की प्रस्तावना में निहित न्याय का मूल्य भी सही साबित हुआ है. यह जम्मू-कश्मीर का पहला चुनाव भी था, जिसमें बंदूक की ताकत छिपी हुई थी — ठीक उसी तरह जैसे बुर्का पहने महिला मतदाता तीनों चरणों में अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए उमड़ी थीं. महिलाओं ने महंगाई, बेरोज़गारी, विकास और मानसिक स्वास्थ्य जैसी चिंताओं को उठाया और अपने परिवारों की बेहतरी के लिए मतदान किया.

मतदान प्रतिशत 63.88 रहा. कुल 873 उम्मीदवारों ने 90 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिनमें प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी और इंजीनियर रशीद की अवामी इत्तेहाद पार्टी के ‘निर्दलीय’ सदस्य भी शामिल थे. बहुत अधिक दुरुपयोग किए जाने वाले शब्द आज़ादी की बहुत कम चर्चा हुई, जो इस बार मतदान के अधिकार का प्रयोग करने की वास्तविक स्वतंत्रता में बदल गई.

पहली बार हुए शांतिपूर्ण चुनावों में हिंसा की छिटपुट घटनाओं को लोकतंत्र, कश्मीर के लोगों, उमर अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस और सबसे बढ़कर केंद्र सरकार चला रही भाजपा के लिए जीत-जीत माना जा सकता है, जो एक राष्ट्रीय पार्टी है. इसने अतीत में हिंसा से त्रस्त क्षेत्र में शांति और समृद्धि लाने का संकल्प लिया है. नतीजों ने कई मिथकों को तोड़ दिया और लोकतंत्र, आज़ादी, शांति, समृद्धि और भागीदारी पर एक नया दृष्टिकोण पेश किया है. कहानी जिहाद से न्याय, आज़ादी से आवाम और बंदूक से बेरोज़गारी में बदल गई है.

प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री शाह की दूरदर्शी टीम के साथ भाजपा के अलावा और कौन इस 180 डिग्री के बदलाव को ला सकता है और लाएगा? जम्मू-कश्मीर के लोगों को एहसास हो गया है कि उनके हित शेष भारत के व्यापक हितों के साथ जुड़े हुए हैं. कश्मीर में परिवर्तन की बयार है और श्रीनगर और जम्मू की सड़कों पर लोकतंत्र की लहर दौड़ते देखना हमारे देश के लिए गर्व का पल है.

जब कुछ पक्षपाती मीडिया घरानों की सुर्खियां चिल्लाती हैं, “भारत द्वारा कश्मीर की स्वायत्तता छीनने का विरोध करने वाली पार्टी सत्ता में आई” तो क्या यह इस तथ्य को झुठलाता है कि 1947 से 2017 तक कश्मीर के वंचित होने के बारे में अफवाहें फैलाना और डर फैलाना इस संकटग्रस्त राज्य के संबंध में बयानबाजी का हिस्सा रहा है? हालांकि, राजस्व सृजन के लिए एग्जिट पोल को मनोरंजन का साधन माना जा सकता है, लेकिन वास्तविक राजनीति की दुनिया में इसका कोई महत्व नहीं है.


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सभी कश्मीरियों के अधिकार

मताधिकार से वंचित होने की बात करें तो 1947 में पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर से दबाव में आकर इस क्षेत्र में आए कश्मीरी लोग थे — मीरपुरी. हालांकि, 75 वर्षों में उन्होंने कभी मतदान नहीं किया. अनुच्छेद 370 और 35-ए के निरस्त होने के कारण वह अंततः भारतीय नागरिक के रूप में अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग करने में सक्षम हुए.

वाल्मीकि, एक अनुसूचित जाति समूह, जिन्हें सफाई कर्मचारी के रूप में जम्मू लाया गया था और जिनके साथ हमेशा बाहरी लोगों जैसा व्यवहार किया जाता था, अंततः मतदान करने में सक्षम हुए. नेपाल से आए गोरखा, जिन्होंने गोरखा रेजिमेंट के हिस्से के रूप में कश्मीर में अपना बलिदान दिया, एक और वंचित समूह थे, जिन्हें लगभग एक सदी तक वहां रहने के बावजूद जम्मू और कश्मीर में कोई दर्जा नहीं मिला था.

यह समझना आसान है कि भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था में निहित स्वार्थ किसी व्यक्ति को उसके मौलिक अधिकारों से वंचित कर सकते हैं. प्रधानमंत्री मोदी का मंत्र, “सबका साथ सबका विकास” भाजपा की समावेशिता की नीति को दर्शाता है. लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने का यह अवसर जम्मू-कश्मीर में वंचित वर्गों के लिए इस चुनाव की सबसे बड़ी उपलब्धि है.

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने चुनाव परिणाम को लोकतंत्र के लिए “अद्भुत जीत” करार दिया और कहा, “यह क्षण एक न्यायपूर्ण और समावेशी भविष्य की शुरुआत का प्रतीक है जो हर कश्मीरी की उम्मीदों का सम्मान करता है.”

जबकि कुछ लोकतंत्र पेपर बैलेट से जूझ रहे हैं, जम्मू और कश्मीर में हुए हालिया चुनावों ने निर्वाचन आयोग, उसकी प्रक्रियाओं, सुरक्षा बलों, प्रशासनिक उपायों और ईवीएम की विश्वसनीयता को स्थापित किया है. इन प्रोटोकॉल ने एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित किए, जो अपने आप में भारत के लिए एक बड़ी जीत है. क्या हमें कोई ऐसी आवाज़ सुनाई देती है कि ईवीएम में छेड़छाड़ की गई? यहां तक ​​कि AIMIM प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी ईवीएम पर चुनाव हार का दोष मढ़ने की कांग्रेस की प्रवृत्ति को स्वीकार किया: “ईवीएम को दोष देना बहुत आसान है. आप (कांग्रेस) ईवीएम की वजह से जीतते हैं और जब आप हारते हैं, तो यह गलत होता है”.

नेशनल कॉन्फ्रेंस को बधाई देने वालों में एक भी आवाज़ नहीं सुनाई देती जो अनुच्छेद-370 के बाद जम्मू-कश्मीर में बीजेपी की तथाकथित हार के लिए दोषपूर्ण ईवीएम को ज़िम्मेदार मानती है. बीजेपी इस ‘हार’ को सम्मान की निशानी के तौर पर पहनती है और इसे भारत के लोगों, जम्मू-कश्मीर और संविधान की जीत बताती है.


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शिष्टाचार से परे

पीएम मोदी ने राजनेता की सच्ची भावना से नेकां को उसकी जीत पर बधाई दी. उमर अब्दुल्ला ने पीएम को धन्यवाद देते हुए जवाब दिया और कहा: “हम संघवाद की सच्ची भावना में एक रचनात्मक संबंध की आशा करते हैं ताकि जम्मू-कश्मीर के लोग निरंतर विकास और सुशासन से लाभान्वित हो सकें.”

शिष्टाचार के अलावा समावेश और विकास का मार्ग भी है जिस पर उमर अब्दुल्ला की सरकार को काम करना होगा, खासकर जम्मू के लिए. जम्मू के लोगों ने अपने पिछले अनुभवों के कारण नेकां के प्रति गहरा अविश्वास और मोहभंग प्रदर्शित किया है. चुनावों ने 2011 की जनगणना के आंकड़ों, पक्षपातपूर्ण बजट आवंटन, जम्मू क्षेत्र के विकास और समावेशन के हस्तांतरण और परिसीमन की प्रक्रिया में विसंगतियों को और उजागर किया है. भारत के लोग उम्मीद करते हैं कि अब्दुल्ला यह पहचानेंगे कि वे जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री हैं और इसलिए उन्हें सुशासन के वादे को पूरा करना चाहिए और जम्मू के साथ अलग व्यवहार नहीं करना चाहिए.

दुनिया देख रही है, खासतौर पर हमारा दुष्ट पड़ोसी, जिसका एजेंडा हमारे पूज्य ऋषि कश्यप की भूमि को नष्ट करना है. यह ज़रूरी है कि अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कॉन्फ्रेंस आतंकवाद के भूत को पीछे छोड़ दे और भारत के गौरव कश्मीर में शांति और समृद्धि लाने के लिए आगे आए.

भाजपा न केवल कहानी बदलने में सफल रही है, बल्कि जम्मू-कश्मीर के लोगों की नियति भी बदल दी है.

(मीनाक्षी लेखी भाजपा की नेत्री, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनका एक्स हैंडल @M_Lekhi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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