जब राजनीति की बात हो तो बाकी सभी चीजों और मुद्दों को शहीद किया जा सकता है. खासकर तब जब बात बीजेपी और एनडीए की हो. ऐसी स्थिति में बाकी सब कुछ हाशिए पर जा सकता है. सारे मुद्दे विश्राम कर सकते हैं. चाहे वो चीज कोरोना महामारी का बढ़ता प्रकोप, और लगातार बढ़ रहा मौत का ग्राफ हो या भारत-चीन सीमा पर 20 भारतीय सैनिकों की शहादत. लेकिन राजनीति नहीं रुकती.
इस साल की सर्दियों में यानी 19 नवंबर 2020 में बिहार विधानसभा का कार्यकाल खत्म हो जाएगा. अगर सब कुछ तय कार्यक्रम के मुताबिक हुआ, तो अक्टूबर-नवंबर में यानी अब से चार महीने बाद बिहार में विधानसभा चुनाव संपन्न होंगे. चुनाव आयोग ने इस संदर्भ में राजनीतिक दलों से बातचीत शुरू कर दी है.
इस बीच बीजेपी और एनडीए तूफानी रफ्तार से चुनावी तैयारियों में जुट गया है. इसमें प्रधानमंत्री से लेकर देश के गृहमंत्री और कैबिनेट के कई सदस्य लग गए हैं. वे चीन विवाद, सैनिकों की शहादत, अर्थव्यवस्था की पस्तहाली और इतिहास के अभूतपूर्व कोरोना संकट के बीच बिहार के लिए ढेर सारा समय निकाल पा रहे हैं.
– लद्दाख की गलवान घाटी में चीन के साथ हुई भिड़ंत में बिहार रेजीमेंट की एक टुकड़ी भारत की ओर से शामिल हुई. सेना में भर्ती का जो तरीका है, उसके मुताबिक ऐसी रेजीमेंट में कई राज्यों के सैनिक होते हैं. शहीद होने वाले सैनिकों में सिर्फ पांच बिहार के थे. इसके बावजूद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शहीदों को 20 जून को श्रद्धांजलि दी तो खास तौर पर बिहार के गौरव का जिक्र किया. राजनीतिक विश्लेषकों ने ही नहीं, सामान्य चेतना वाले लोगों के लिए भी ये समझना मुश्किल नहीं था कि प्रधानमंत्री बिहार का अलग से उल्लेख क्यों कर रहे हैं.
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Country is proud of the sacrifice made by our braves in Ladakh. Today when I am speaking to people of Bihar, I will say the valour was of Bihar Regiment, every Bihari is proud of it. I pay tributes to the braves who laid down their lives for the nation: PM Narendra Modi pic.twitter.com/RGOr3ThAqh
— ANI (@ANI) June 20, 2020
– 20 जून को ही प्रधानमंत्री ने अपने घर-गांव लौटे प्रवासी मजदूरों के लिए गरीब कल्याण रोजगार अभियान की शुरुआत की. इस योजना का घोषित उद्देश्य इन मजदूरों को काम देना और गांवों में बुनियादी सुविधाओं का विस्तार करना है. दिलचस्प है कि इस योजना की शुरुआत बिहार से की गई है. इस योजना में देश के छह राज्यों के 106 जिले शामिल हैं. उनमें से सबसे ज्यादा 32 जिले बिहार से हैं जबकि यूपी के सिर्फ 31 जिले ही इस योजना में शामिल किए गए हैं.
50,000 करोड़ रुपए की ये योजना सिर्फ 125 दिन यानी 4 महीने के लिए है. यानी बिहार चुनाव खत्म होने तक ये योजना भी खत्म हो जाएगी. योजना की घोषणा के समय ये भी कह दिया गया है कि बिहार के 12 और जिले भी इस योजना में शामिल किए जा सकते हैं.
आप सोचिए,
कितना टैलेंट इन दिनों वापस अपने गांव लौटा है।
देश के हर शहर को गति और प्रगति देने वाला श्रम और हुनर जब खगड़िया जैसे ग्रामीण इलाकों में लगेगा, तो इससे बिहार के विकास को भी कितनी गति मिलेगी: PM @narendramodi— PMO India (@PMOIndia) June 20, 2020
– 7 जून को जब भारत-चीन सीमा विवाद शुरू हो चुका था, जब देश के गृहमंत्री अमित शाह ने एक घंटे से ज्यादा समय निकालकर बिहार के पार्टी कार्यकर्ताओं को वर्चुअल रैली के जरिए संबोधित किया. ये रैली यूं तो सभी राज्यों में हो रही है लेकिन जन संवाद रैली के तहत पहला राज्य होने का सौभाग्य बिहार को प्राप्त हुआ. इस रैली में अमित शाह ने चुनावी अंदाज में कहा, ‘बिहार ने लालटेन से एलईडी तक का सफ़र तय किया है.’ बीजेपी के मुताबिक इस रैली का वेबकास्ट 72,000 बूथों तक हुआ.
बिहार विधानसभा चुनाव का महत्व
बीजेपी के इस स्तर पर चलाए जा रहे चुनावी अभियान से एक बात तो स्पष्ट है कि बिहार चुनाव का दांव बहुत बड़ा है. इसकी एकमात्र वजह ये नहीं है कि बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. दरअसल इस चुनाव नतीजों से ये भी साबित होना है कि कोरोना संकट और इससे जुड़ी लोगों की तकलीफों से निपटने का मोदी और नीतिश सरकार की नीतियों पर लोगों की क्या राय है और चीन विवाद से सरकार जिस तरह से जूझ रही है, उसे लोग किस नजरिए से देखते हैं.
बिहार चुनाव इन दो मामलों में जनमत संग्रह साबित होगा.
लॉकडाउन की घोषणा से करोड़ों लोगों को जितनी तकलीफों का सामना करना पड़ा और प्रवासी मजदूरों का अनंत दिखने वाला रेला जिस तरह बिहार और यूपी समेत अन्य उत्तर भारतीय राज्यों की ओर आया, उससे कई विश्लेषकों ने ये निष्कर्ष निकाला कि बीजेपी और एनडीए से लोग नाराज हो जाएंगे. अगर एनडीए बिहार जीत लेता है तो वह ये कह पाएगा कि कोराना और चीन के मामले में उसकी नीतियों को जनता का समर्थन हासिल है. इसका फायदा उसे पश्चिम बंगाल समेत अन्य आने वाले विधानसभा चुनावों में भी होगा.
बिहार में एनडीए के पास राजनीतिक सत्ता है, नैतिक सत्ता नहीं
बिहार चुनाव के बारे में ये याद रखा जाना चाहिए कि 2015 में पिछले विधानसभा चुनाव में एनडीए को यहां बेहद बुरी हार का सामना करना पड़ा था, वो भी उस समय जब 2014 के बाद देश में तथाकथित मोदी लहर चल रही थी. बिहार की हार का बदला लेने के लिए बीजेपी ने नीतीश कुमार के साथ मिलकर 2017 में जेडीयू-आरजेडी सरकार से आरजेडी को हटा दिया और वहां एनडीए की सरकार बन गई. लेकिन इस सरकार की नैतिक सत्ता हमेशा कमजोर रही क्योंकि नीतीश कुमार ने बीजेपी को हराने का वादा करके चुनाव जीता था और आज भी बिहार विधानसभा में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी है.
2020 में एनडीए बिहार में उस नैतिक सत्ता को फिर से हासिल करने की कोशिश करेगी जो उसे अब तक हासिल नहीं है. इसके लिए कोई भी कसर- नैतिक या अनैतिक- नहीं छोड़ी जा रही है. चुनाव से ठीक पहले जेडीयू ने आरजेडी में विभाजन करके उसके पांच विधान परिषद सदस्यों को अपने पाले में कर लिया. बीजेपी ने चुनाव से पहले भारी भरकम राज्य कार्यकारिणी बनाई है, जिसमें 358 सदस्यों को जगह दी गई है. इसमें भौगोलिक और सामाजिक-जातीय समीकरणों का ध्यान रखा गया है.
केंद्र सरकार इस बीच ओबीसी क्रीमीलेयर की सीमा को 8 लाख रुपए सालाना से बढ़ाकर 12 लाख रुपए सालाना करने पर काम कर रही है, ताकि समृद्ध ओबीसी के एक हिस्से का समर्थन उसे मिल सके. साथ ही ओबीसी के बंटवारे यानी अति पिछड़ी जातियों को हक देने के लिए बनाई गई रोहिणी कमीशन का कार्यकाल 9वीं बार बढ़ा दिया गया है, ताकि प्रभावशाली पिछड़ी जातियां नाराज न हो जाएं.
इस लेख में हम इस बात की चर्चा नहीं कर रहे हैं एनडीए की तैयारियों के मुकाबले सेकुलर मोर्चे में क्या चल रहा है. इसकी दो वजहें हैं. एक, ये बात इस लेख के दायरे से बाहर है और दो, उस मोर्चे में ज्यादा कुछ हो नहीं रहा है.
फिलहाल ये कहा जा सकता है कि जीत और हार की संभावनाओं के परे, चुनावी तैयारियों के मामले में एनडीए ने बिहार में बढ़त बना ली है. केंद्र और राज्य दोनों जगह सरकार होने के कारण सरकारी मशीनरी और योजनाओं की घोषणा करने जैसे लाभ उसे मिल रहे हैं.
अगर हम एनडीए की संभावित रणनीति की बात करें तो उसके कुछ सूत्र हमें दिखाई दे रहे हैं. हालांकि इसमें बाद में बदलाव हो सकता है और खासकर कोई सांप्रदायिक मुद्दा इसमें जुड़ सकता है. फिलहाल ये लिस्ट ऐसी नजर आती है.
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1. चुनाव से पहले सरकार बिहार के गरीबों के खाते में मामूली ही सही, पर कुछ रकम ट्रांसफर करेगी. ये पैसा गरीब कल्याण योजना के खाते से आ सकता है और इसके लिए कुछ अस्थायी रोजगार उपलब्ध कराए जा सकते हैं. इस तरह प्रवासी मजदूरों की आपदा को एनडीए अवसर में बदल सकता है!
2. एनडीए को बिहार में सवर्ण जातियों का लगभग पूर्ण समर्थन हासिल है. इस समर्थन को और मजबूत करने पर एनडीए काम करेगा. इन जातियों का समर्थन मिलते ही एनडीए को मीडिया और समाज में विचार बनाने में सक्षम लोगों का समर्थन मिल जाता है. किसी भी लहर को बनाने में इस वर्ग की सबसे बड़ी भूमिका होती है.
3. एनडीए आरजेडी और कांग्रेस में दलबदल कराने की कोशिश करती रहेगी. इससे विपक्षी खेमे में हमेशा आंशका और भगदड़ का माहौल बना रहेगा. कुछ छोटे दलों और नेताओं को एनडीए विरोधी तेवर के साथ चुनाव मैदान में उतारा जाएगा. ये एनडीए विरोधी वोटों को बांटेंगे. एक प्रमुख चुनाव प्रबंधक पर नजर रखनी चाहिए कि वे क्या करते हैं.
4. एनडीए खासकर बीजेपी की चुनाव मशीनरी को मजबूत बनाने पर काम करेगी. आरएसएस भी उनके लिए हमेशा की तरह सक्रिय रहेगा.
5. एनडीए की कोशिश होगी कि इस दौरान लालू यादव जेल से बाहर नहीं आएंगे. इसके लिए कानूनी तौर पर जो भी संभव होगा, वह किया जाएगा.
(लेखक पहले इंडिया टुडे हिंदी पत्रिका में मैनेजिंग एडिटर रह चुके हैं और इन्होंने मीडिया और सोशियोलॉजी पर किताबें भी लिखी हैं. लेख उनके निजी विचार हैं)