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Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतक्या महाराष्ट्र में भाजपा के लिए शरद पवार की तोड़ हैं देवेंद्र फडणवीस

क्या महाराष्ट्र में भाजपा के लिए शरद पवार की तोड़ हैं देवेंद्र फडणवीस

महाराष्ट्र में नई बयार बह रही है पुराने जातीय और राजनीतिक समीकरण उलट-पुलट गए हैं. महाराष्ट्र कांग्रेस का गढ़ रहा है जहां आज भी गांधी टोपी पहने लोग दिखाई दे जाते हैं.

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महाराष्ट्र की राजनीति में तीन राजनेता चाणक्य जैसी राजनीतिक सूझ-बूझ और चतुराई के लिए जाने जाते हैं. अंग्रेजों और टीपू सुल्तान से मराठा साम्राज्य की रक्षा करने वाले मंत्री नाना फडणवीस, कई बार मुख्यमंत्री पद को विभूषित करने वाले शरद पवार. उनमें एक नाम और जुड़ गया है– महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस.

महाराष्ट्र में पिछले विधानसभा चुनाव के बाद जब देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने थे तो ज्यादातर राजनीतिक पर्यवेक्षक यही मानते थे कि वे ज्यादा समय तक चल नहीं पाएंगे और महाराष्ट्र की राजनीतिक अस्थिरता की परंपरा आगे भी बदस्तूर जारी रहेगी. 1960 में महाराष्ट्र के निर्माण के बाद 17 मुख्यमंत्री बने इनमें से केवल वसंतराव नाईक ही अपना कार्यकाल पूरा कर पाए. इसलिए राजनीतिक विश्लेषकों का खयाल था कि फडणवीस ठहरे ब्राह्मण. वो ब्राह्मण विरोधी महाराष्ट्र में कब तक टिक पाएंगे. मगर देवेंद्र फडणवीस ने उन्हें गलत साबित कर दिया. फडनवीस ने न केवल पांच साल सरकार चलाई वरन फिर मुख्यमंत्री बनने का दावा कर रहे हैं.

अपने विरोधियों को किया चारों खाने चित्त

पिछले चुनाव में भाजपा का नारा था – केंद्र में नरेंद्र और महाराष्ट्र में देवेंद्र .इस चुनाव में भी यही नारा है. महाराष्ट्र की राजनीति में नाना फडणवीस की राजनीति बड़ी विख्यात रही है – लोग उन्हें चतुर नाना कहते थे. देवेंद्र फडणवीस भी वैसे ही राजनीतिज्ञ के तौर पर उभरे. उन्होंने पार्टी और बाहर के अपने विरोधियों को चारों खाने चित्त कर दिया है. इसलिए यह तय है मुख्यमंत्री पद की कमान उन्हीं के हाथों में आएगी. अब तक महाराष्ट्र की राजनीति में पवार पावर की बड़ी चर्चा थी, मगर देवेंद्र फडणवीस ने उन्हें भी पानी पिला दिया है.

मगर महाराष्ट्र अपना इतिहास फिर से दोहरा रहा है. महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी ने जिस तरह मुगलों को चुनौती देकर मराठा साम्राज्य की स्थापना की उससे सारा देश परिचित है. मगर शिवाजी के वंशजों में वह दूरदृष्टि और समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की क्षमता नहीं थी. नतीजतन मराठा साम्राज्य के प्रधानमंत्री पेशवा असली कर्ता-धर्ता बन गए और छत्रपति के वंशज नाममात्र के शासक रह गए. कांग्रेस के शासनकाल में मराठा नेताओं ने कभी ब्राह्मणों को उभरने नहीं दिया. इतने मुख्यमंत्रियों में केवल शिवसेना के मनोहर जोशी ही ब्राह्मण मुख्यमंत्री रहे. उनके बाद देवेंद्र फडणवीस का नंबर आया है. मगर पहली बार महाराष्ट्र में नई बयार बह रही है पुराने जातीय और राजनीतिक समीकरण उलट-पुलट गए हैं. महाराष्ट्र कांग्रेस का गढ़ रहा है जहां आज भी गांधी टोपी पहने लोग दिखाई दे जाते हैं. कांग्रेस का मुख्य आधार मराठा जाति थी. यह जाति न केवल संख्या के लिहाज से सबसे बड़ी यानी 35 प्रतिशत आबादीवाली जाति है वरन आर्थिक और राजनीतिक शक्ति का केंद्र है. यह शक्ति सहकारिता क्षेत्र से निकलती है जिसमें चीनी मिलें, बैंक, डेरियां आती हैं.

इस मराठा वर्चस्व वाले महाराष्ट्र में भाजपा या उसका पूर्ववर्ती अवतार जनसंघ ब्राह्मण बनियाओं की पार्टी माना जाता था. मगर कांग्रेस के मराठा वर्चस्व की पार्टी होने का लाभ उसे मिला. तीस प्रतिशत आबादी वाले ओबीसी समुदाय के वे युवा जो राजनीति में अपनी जमीन बनाना चाहते थे उन्हें मराठा वर्चस्ववाली कांग्रेस में कोई जगह नहीं मिली थी जिसकी वजह से वे जनसंघ और शिवसेना के साथ जुड़े . इन पार्टियों ने उन्हें मौका भी दिया. ऊंची जातियों और ओबीसी के समर्थन से जनसंघ एक ताकत बन गई. फिर शिवसेना के साथ गठबंधन ने उसे कांग्रेस का प्रतिद्वंदी बना दिया. भाजपा ने महाराष्ट्र में शरद पवार की तोड़ का नेता ढूंढ़ लिया.

देवेंद्र फडणवीस के राज में मराठाओं को आरक्षण मिलने से मराठा भी केसरिया गठबंधन के साथ जुड़ने लगे हैं और अब यह गठबंधन अजेय गठबंधन बनता जा रहा है. रामदास आठवले के कारण कुछ दलित भी साथ हैं. देवेंद्र फडणवीस की लोकप्रियता का राज यह है कि उन्होंने ऊंची जातियों ओबीसी और मराठाओं का गठबंधन बनाया दूसरी तरफ महाराष्ट्र में बड़ा भाई बनने की उत्सुक शिवसेना की नाराजगी को को भी काबू में रखा. नतीजतन अगर वे दोबारा मुख्यमंत्री बनने की बात कर रहे हैं तो विकास का कोई तीर न मारने के बावजूद राजनीतिक विश्लेषक उन्हें कोई चुनौति नहीं दे पा रहे.


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फडणवीस की सबसे बड़ी राजनीतिक उपलब्धि यह रही कि शिवसेना और भाजपा में लाख मतभेद होने के बावजूद दोनों साथ साथ चुनाव लड़ रहे हैं. हालांकि शिवसेना गाहे-बगाहे यह दावा करती है कि केसरिया गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में रही है, मगर लोकसभा में उसकी भाजपा से कम सीटें है विधानसभा में वह भाजपा से कम सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार हो गई. जबकि पहले वह बराबर की सीटों की बात कर रही थी. यही बात मुख्यमंत्री के विवाद को लेकर है. वह मुख्यमंत्री पद पर भी दावा करती रही. बाद में उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश कर रही थी मगर अब उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि आदित्य को मुख्यमंत्री बनने में वक्त लगेगा. यह मुख्यमंत्री पद पर ज्यादा जोर न देने का ही संकेत है. फडणवीस ने शिवसेना के प्रति साम दाम दंड भेद की नीति अपनाई. फडणवीस ने एक तरफ शिवसेना के विधायकों को अच्छे पद दिए मगर दूसरी तरफ पार्टी तोड़ने की धमकी का भी इस्तेमाल किया. आज हालत यह है कि शिवसेना के कई विधायक उद्धव ठाकरे से ज्यादा फडणवीस के करीब हैं. इस कारण इस बार शिवसेना अपने विपक्षी तेवर ज्यादा दिखा नहीं पाई. शिवसेना अपने बयानों में भले ही दहाड़े मगर असल में चुनाव के बाद उसे पता चलेगा कि उसकी ताकत सिकुड़ती जा रही है. शेर को अब घास खाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

खुद को साबित किया फडणवीस

मराठा आंदोलन को भी फडणवीस ने कुशलतापूर्वक संभाला. विशाल और अद्भुत था मराठा आंदोलन. राज्य के कई शहरों में लाखों लोगों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन किए. कई बार तो लगा कि मराठा विपक्षी राजनेताओं के इशारों पर ब्राह्मण मुख्यमंत्री को हटाना चाहते हैं मगर फडणवीस इससे घबराए नहीं और हमेशा आंदोलनकारियों से बातचीत को तैयार रहे. अपने इस रवैये से उन्होंने मैदान मार लिया. जो कांग्रेस मराठा जनाधार की पार्टी होने के बावजूद मराठाओं को आरक्षण नहीं दे पाई वही काम फडणवीस ने सफलतापूर्वक कर दिखाया और वाह वाही लूटी. इससे मराठा समाज का बहुत बड़ा हिस्सा भाजपा के साथ आ गया है. कई मराठा नेता भी पाला बदलकर भाजपा के साथ गए है जिससे मराठा नेतृत्व खत्म हो गया है. जो नेता साथ नहीं आए उनके पीछे कोई न कोई एजेंसी पड़ी हुई है. उन्होंने इस बार शरद पवार जैसे नेता को भी नहीं बख्शा. एक तरफ पवार के घर में झगड़े उभर रहे हैं उस पर प्रवर्तन विभाग पीछा नहीं छोड़ रहा. उनके भतीजे पूर्व मंत्री अजीत पवार की जांच भी जांच शुरू हो गई है.

शरद पवार बने डूबती नैया

भाजपा की बल्ले बल्ले है विपक्ष की हालत खस्ता है.कांग्रेस के पास नेता नहीं है न केंद्र में न राज्य में. कार्यकर्ता पार्टी छोड़कर भाग रहे हैं. कांग्रेस चाहती है कि कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस का विलय हो जाए. तो शरद पावर उसके तारणहार बन सकते हैं. मगर पवार डूबती कंपनी में पैसा नहीं लगाना चाहते. राष्ट्रवादी के पास शरद पवार जैसा नेता है मगर वह पवार परिवार के सिमटी हुई है. फडणवीस ने ऐन चुनाव से पहले मेगा भरती करके दलबदल का खेल शुरू किया है इससे दोनों पार्टियों के होश उड़े हुए हैं. हालांकि इससे भाजपा पर भी गंभीर सवाल उठ रहे है कि भाजपा ने जितने बड़े पैमाने पर दलबदलुओं को टिकट दिए है इसलिए चुनाव के बाद सरकार भाजापा की बनेगी या आयारामों की. इस दलबदल से कांग्रेस राष्ट्रवादी का मराठा आधार खिसक गया है.


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कांग्रेस–राष्ट्रवादी के अलावा भी एक और गठबंधन था जो अस्त हो गया. वह था रिपब्लिकन नेता और आंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन आघाड़ी और ओवैसी की एमआईएम का जो इस चुनाव में टूट गया. मगर फडणवीस वंचित बहुजन आघाड़ी का हौसला बनाए हुए हैं. वे कहते है इस बार कांग्रेस राष्ट्रवादी का सेकुलर गठबंधन नहीं वंचित बहुजन आघाड़ी प्रमुख विपक्ष के रूप में उभरेगी. हालांकि आंबेडकर इसका खंडन करते हैं और कहते है कि वो क्यों विपक्ष बनेंगे वे तो सरकार बना रहे हैं. इस तरह के सपने देखने के लिए उन्हें महाराष्ट्र का मुंगेरीलाल कहा जा सकता है. राज ठाकरे की मनसे भी चुनाव मैदान में है और उन्हें उम्मीद है कि उनके इंजन में (चुनाव चिन्ह ) कोई न कोई डिब्बा जरूर जुड़ेगा. उनके पीछे भी प्रवर्तन मंत्रालय पड़ा है. एजेंसियों की जांच के दोहरे लाभ हैं विपक्षी नेता परेशान रहते हैं उस पर छवि यह बनती है सरकार भ्रष्टाचार को लेकर किसी को नहीं बख्शती. लोकसभा चुनाव में राज ठाकरे ने किसी कांग्रेसी और राष्ट्रवादी नेता से ज्यादा मोदी विरोधी प्रचार किया था. अब प्रवर्तन निदेशालय की जांच पीछा नहीं छोड़ रही. जानकार कहते हैं कि राज ठाकरे कोई दूध के धुले नहीं हैं. मगर राजनीति में ज्यादातर ऐसे ही नेता हैं.

पांच साल में बड़े काम किए

फडणवीस के समर्थक उनके विकास कार्यों की लंबी सूची पेश करते हैं. उनके विरोधी कहते फडणवीस के विकास कार्य खोज का विषय हैं. जमीन पर तो वे नजर नहीं आते. पक्ष और विपक्ष के अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने में उन्हें विकास कार्य करने की फुर्सत नहीं मिली होगी. यूं भी फडणवीस की राजनीतिक सूझबूझ और चातुर्य की तो चर्चा होती है मगर विकास कार्यों का जिक्र कम ही होता है. पर इतना तो मानना ही पड़ेगा की महाराष्ट्र जहां मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता वहां तीन प्रतिशत वाले ब्राह्मण समुदाय के होने के बावजूद उन्होंने न केवल कार्यकाल पूरा कर दिखाया वरन अगली बार भी उनका मुख्यमंत्री बनना तय है. यह रास्ता आसान नहीं था –उन्हें पार्टी के अंदर के अपने प्रतिद्वंदियों का सफाया करना पड़ा. इस बार जिस तरह से भाजपा के टिकट बंटे हैं उससे स्पष्ट है फडणवीस को भाजपा आलाकमान ने खुली छूट दी हुई थी. जिसका लाभ उठाकर उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी और पिछली बार मुख्यमंत्री पद के दो दावेदार एकनाथ खड़से और विनोद तावड़े का पत्ता साफ कर दिया. कई वरिष्ठ नेताओं जैसे प्रकाश मेहता आदि को टिकट नहीं दिए जिनपर भ्रष्टाचार के आरोप थे. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है राज्य में भाजपा नरेंद्र मोदी के नाम पर ही नहीं देवेंद्र फडणवीस के नाम पर टिकट मांगेगी.

जब फडणवीस विधानसभा में विपक्ष के नेता थे तब बजट और विकास कार्यों पर बहुत अच्छे भाषण देते थे. इसलिए जब वे मुख्यमंत्री बने तब लोगों को लगा था कि वे अच्छे प्रशासक साबित होंगे. विकास का चक्का तेजी से घूमेगा. मगर पांच साल के उनके शासन ने बता दिया कि वे चुनावी राजनीति के भी मंजे हुए खिलाड़ी हैं. वोटरों को लुभाना भी जानते हैं. यह विशेषता भी बहुत जरूरी है आखिर सरकार वही जो वोटर मन भाए और फडणवीस को दोबारा सरकार बनानी है.

(लेखक दैनिक जनसत्ता मुंबई में समाचार संपादक और दिल्ली जनसत्ता में डिप्टी ब्यूरो चीफ रह चुके हैं.पुस्तक आईएसआईएस और इस्लाम में सिविल वॉर के लेखक भी हैं . यह लेख उनका निजी विचार है.)

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