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Wednesday, 20 November, 2024
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वो तीन कारण जिसके लिए योगी आदित्यनाथ यूपी के शहरी स्थानीय निकाय चुनाव में पसीना बहा रहे हैं

यूपी में शहरी स्थानीय निकाय चुनाव योगी आदित्यनाथ और उनके शासन के बारे में हैं. गैंगस्टर मुठभेड़ों पर उनका माफिया-को-मिट्टी-में-मिला-देंगे वाला वाला बयान आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.

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कर्नाटक चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची में राज्य के बाहर के कई प्रमुख नाम शामिल थे- प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, उनके सात केंद्रीय कैबिनेट सहयोगी, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और अन्य लोगों के साथ तीन मुख्यमंत्री भी शामिल हैं. चुनाव प्रचार के दौरान पत्रकार स्वाभाविक रूप से यह जानने के लिए उत्सुक थे कि ये स्टार प्रचारक 10 मई के चुनाव से पहले जनता की राय को कैसे अपने पाले में बदलने के लिए किस तरह के हथकंडे अपना रहे हैं.

पिछले हफ्ते मैसूरु के रास्ते में, मैं जनता दल (सेक्युलर) के गढ़ मांड्या में एक बाजार में इकट्ठा हुए लगभग एक दर्जन लोगों के समूह के साथ बातचीत करने के लिए रुका. पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, नड्डा और उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने पिछले कुछ सप्ताह में मांड्या में जनसभाओं को संबोधित किया और रोड शो किया है.

मैंने पीएम मोदी के बारे में एक सवाल के साथ शुरुआत की: “उनका आपके लिए क्या संदेश था, डबल इंजन वाली सरकार?” इसने एक रोचक और जोशीली चर्चा शुरू की. यह भाजपा समर्थकों की भीड़ नहीं थी क्योंकि उन्होंने अपने राज्य में महंगाई, बेरोजगारी और शासन की कमी के बारे में शिकायत करनी शुरू कर दी. इसी बीच लगभग 60 की उम्र के हो रहे एक आदमी ने कहा, “लेकिन मोदी सरकार को 2024 (लोकसभा चुनाव) में समर्थन मिलेगा. और वहां के लिए कौन है ?” वहां खड़े कईयों ने सहमति में सिर हिलाया. जब मैंने मांड्या का दौरा करने वाले अन्य केंद्रीय भाजपा नेताओं के बारे में पूछना शुरू किया तो वे चुप हो गए और चुपचाप मुझे देखने लगे.

मैंने चुप्पी तोड़ने के लिए एक बार फिर कहा, “योगी आदित्यनाथ के बारे में क्या कहना है?” इस सवाल पर तत्काल प्रतिक्रिया मिली- “मुठभेड़ बाबा!” बुलडोजर बाबा!” “एनकाउंटर बाबा!” उनके पास उनके संदेश के बारे में कहने के लिए बहुत कुछ नहीं था लेकिन वे सभी एक स्वर में एक राग अलाप रहे थे.

दक्षिणी कर्नाटक के दूसरे भागों में यात्रा करने पर समान प्रतिक्रियाए ही मिलीं. पीएम मोदी के बाद, यूपी के सीएम यकीनन कर्नाटक के बाहर के एकमात्र नेता थे, जिनका नाम राज्य के भीतरी इलाकों में जाना-पहचाना लग रहा था. यूपी में बुलडोज़र और पुलिस मुठभेड़ों की ख़बरें दूर-दूर तक ज़रूर पहुंची हैं. आदित्यनाथ का कर्नाटक के साथ एक और मजबूत रिश्ता है. उनके गोरखनाथ मठ और दक्षिणी राज्य में कई प्रभावशाली संप्रदाय, जिनमें मांड्या में आदिचुंचनगिरी मठ और मंगलुरु में जोगी मठ शामिल हैं, नाथ पंथ परंपरा का पालन करते हैं.

कर्नाटक में आदित्यनाथ का प्रभाव है. उसे देखते हुए, राज्य में उनके सीमित अभियान (बहुत कम दिनों के प्रचार अभियान) को देखकर आश्चर्य हुआ. उन्होंने तीन दिनों में योगी ने अलग-अलग जगहों पर सिर्फ 10 सभाओं को संबोधित किया. कर्नाटक बीजेपी के एक पदाधिकारी ने इस रिपोर्टर को बताया, “यहां किसी साजिश को देखने की जरूरत नहीं है. उनकी (यूपी सीएम) बहुत मांग थी और हम चाहते थे कि वह कम से कम एक सप्ताह कर्नाटक में बिताएं. लेकिन वह यूपी में स्थानीय निकायों के चुनाव पर ध्यान केंद्रित करना चाहते थे. ”

यूपी के 760 शहरी स्थानीय निकायों- 17 नगर निगमों, 199 नगर परिषदों और 544 नगर पंचायतों में हो रहे चुनाव पर मुख्यमंत्री अपना ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं. आदित्यनाथ पिछले एक पखवाड़े में यूपी के 40 जिलों का दौरा कर पार्टी के लिए प्रचार कर चुके हैं.


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ये निकाय चुनाव एक छोटे विधानसभा चुनाव की तरह हैं, जिसमें 4.3 करोड़ मतदाता शामिल हैं (पिछले विधानसभा चुनाव में 15 करोड़ के मुकाबले). वे नगर निगमों के लिए 17 महापौरों, 1,420 नगरसेवकों और नगर परिषदों और पंचायतों के लगभग 12,500 सदस्यों का चुनाव करेंगे.

जब उनकी पार्टी के सहयोगी कर्नाटक में बड़े पैमाने पर प्रचार करने और अपनी जन अपील साबित करने के लिए छटपटा रहे हैं. आदित्यनाथ का यूपी के शहरी स्थानीय निकाय चुनावों पर ध्यान केंद्रित करने के तीन कारण हैं.

पहला, वह हमेशा एक लोकप्रिय प्रधानमंत्री के साये में रहे हैं. यह उनके लिए इससे बाहर निकलने और यह दिखाने का समय है कि वह अपने दम पर भाजपा के लिए यूपी में चुनाव जीत सकते हैं. 2017 में, जब भाजपा ने यूपी विधानसभा चुनाव जीता, तो श्रेय पीएम मोदी को गया और यह उचित भी था. जब 2022 में पार्टी फिर से जीती, तो इसका श्रेय पीएम मोदी- उनकी लोकप्रियता और कोविड-19 के दौरान मुफ्त अनाज सहित केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के कारण- और सीएम आदित्यनाथ के बीच साझा किया गया. आदित्यनाथ के सीएम बनने के करीब आठ महीने बाद दिसंबर 2017 में जब बीजेपी ने मेयर पद की 16 सीटों में से 14 पर जीत हासिल की थी, तब पार्टी अध्यक्ष शाह ने कहा था कि यह लोगों के “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन और प्रदर्शन की बीजेपी की राजनीति में अटूट विश्वास” का एक और उदाहरण है. वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के स्पष्ट संदर्भ में शाह ने कहा कि इससे पता चलता है कि लोगों ने आर्थिक सुधारों को अपना लिया है.

आदित्यनाथ ने तब मोदी की विकास नीतियों और “अमित शाह के मार्गदर्शन” को जीत का श्रेय दिया था.

लेकिन 2023 के शहरी स्थानीय निकाय चुनाव उनके और उनके शासन से जुड़ा है. यह चुनाव गैंगस्टर से नेता बने अतीक अहमद, उनके भाई और बेटे की हत्या के ठीक बाद आया है. एक और खूंखार गैंगस्टर अनिल दुजाना पिछले हफ्ते मेरठ में पुलिस एनकाउंटर में मारा गया था. यूपी को सुरक्षित बनाने में उनका रिकॉर्ड- उनकी माफिया-को-मिट्टी-में-मिला-देंगे की टिप्पणी इसमें अंतर्निहित है और स्थानीय निकाय चुनावों में केंद्रीय मुद्दा है.

द इंडियन एक्सप्रेस ने पिछले मंगलवार को प्रयागराज में एक रैली में योगी आदित्यनाथ के हवाले से कहा, “दुनिया कर्म के नियम से चलती है… ये प्रकृति सबका हिसाब बराबर करती है.”

पुलिस हिरासत में गैंगस्टर से राजनेता और उनके भाई की हत्या के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार की सिविल राइट्स एक्टिविस्ट और राजनीतिक विरोधियों द्वारा खूब आलोचना की गई है. केंद्रीय भाजपा नेता राज्य के मुख्यमंत्री को अपने हाल पर छोड़ कर चुप्पी साधे हुए हैं . शहरी निकाय चुनाव आदित्यनाथ के लिए कानून और व्यवस्था के मोर्चे पर उनके द्वारा उठाए गए कड़े कदमों और उससे मिल रही लोकप्रियता दिखाने का एक अवसर है. कर्नाटक में चुनाव प्रचार के लिए सिर्फ तीन दिन का समय देते हुए, घरेलू मैदान पर इन चुनावों पर ध्यान केंद्रित करने का यह दूसरा कारण है.

तीसरा कारण आदित्यनाथ का 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले, पहले से ही निराश विपक्ष की कमर तोड़ने का प्रयास है. यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (सपा) स्थानीय चुनावों में सोशल इंजीनियरिंग के जरिए अपना आधार बढ़ाने की कोशिश कर रही है. मेयर चुनाव में पार्टी ने ब्राह्मणों, गैर-यादव ओबीसी, मुसलमानों और उच्च जातियों को टिकट देने के लिए किसी भी यादव उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा है.

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) जिसका चुनावी ग्राफ लगातार नीचे की ओर गिरता जा रहा है, अल्पसंख्यक समुदाय के 11 मेयर उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर मुसलमानों को लुभाने की कोशिश कर रही है. इसने 16 मेयर की सीटों में से दो पर जीत हासिल की थी, लेकिन इस साल मायावती की पार्टी सपा की कीमत पर अपने समर्थन आधार को मजबूत और विस्तारित करना चाह रही है.

हालांकि, भाजपा को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.

जब कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे 13 मई को यूपी शहरी स्थानीय निकाय चुनावों के साथ आएंगे, तो योगी आदित्यनाथ अपनी पार्टी के भीतर और बाहर अपने विरोधियों को चुप कराने की उम्मीद कर रहे होंगे.

डीके सिंह दिप्रिंट के राजनीतिक संपादक हैं. यहां व्यक्त विचार निजी हैं.

(संपादन- पूजा मेहरोत्रा)


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