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Tuesday, 18 November, 2025
होममत-विमतबिहार के वोटरों ने साफ संदेश दिया — न बांटने वाली राजनीति चलेगी, न पुराने ढर्रे की बातें

बिहार के वोटरों ने साफ संदेश दिया — न बांटने वाली राजनीति चलेगी, न पुराने ढर्रे की बातें

बिहार के वोटर वंशवादी राजनीति, अल्पसंख्यक राजनीति या जाति की राजनीति नहीं चाहते—ये सब कांग्रेस पार्टी द्वारा चलाए गए पुराने, पिछड़े और बांटने वाले हथकंडे हैं.

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बिहार चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की शानदार जीत के जश्न को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) मुख्यालय में देखते हुए मुझे एक बात समझ आई. आप जनता की इज़्ज़त के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते—मतदाताओं की समझदारी का अपमान लोगों को बिल्कुल पसंद नहीं आता और इसका नतीजा होता है करारी हार, जैसा इस बार बिहार में सर्वव्यापी महागठबंधन और जन सुराज पार्टी ने झेला.

बिहार के लोगों ने अपनी पसंद को शांति, लेकिन गरिमा के साथ दिखाया है. उन्होंने जाति की राजनीति और M–Y (मुस्लिम–यादव) समीकरण को पीछे छोड़ दिया, जिसने उन्हें एक खास सोच में बांध रखा था. इसके बजाय उन्होंने M–Y फॉर्मूले को अपने मुताबिक बदल दिया—महिला और युवा की आवाज़ बनाकर—वो भी विकास, कानून-व्यवस्था, तरक्की और लैंगिक समानता के लिए वोट देकर. राज्य की आवाज़ साफ है—विकसित और सुरक्षित बिहार ही आज की ज़रूरत है क्योंकि मोदी है तो मुमकिन है.

अब आइए देखें कि बिहार में एनडीए को इतनी बड़ी जीत और 202 सीटें कैसे मिलीं. बीजेपी 89 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी, उसके बाद नीतीश कुमार की जेडीयू 86 सीटों पर रही. कांग्रेस केवल 6 सीटें जीत सकी और प्रशांत किशोर की पार्टी गोल्डन डक के साथ खाता भी नहीं खोल सकी. प्रधानमंत्री मोदी ने इस जीत को सामाजिक न्याय और लोकतंत्र की जीत बताया और कहा कि एनडीए ने तुष्टिकरण की जगह संतुष्टिकरण को आगे रखा है. अब यह साफ है कि बिहार के लोग किसी के मूर्ख नहीं हैं और गांधी भाई-बहन की नकारात्मक राजनीति को खारिज कर चुके हैं. उन्होंने जाति और तुष्टिकरण की राजनीति को “टाटा, बाय-बाय” कह दिया है.

विकास और प्रगति के लिए वोट

2017 में मोदी ने लालू प्रसाद यादव की बिहार में सड़कों की बदहाली को लेकर कड़ी आलोचना की थी.

मोदी ने कहा था, “कुछ लोग कहते थे कि सड़कें तो सिर्फ उन लोगों के लिए होती हैं जिनके पास कारें होती हैं, गरीबों के लिए नहीं. देश को जितना नुकसान इन लोगों की टेढ़ी सोच ने पहुंचाया है, उतना किसी ने नहीं.”

बिहार के लोगों ने ऐसे ‘विज़नरी’ नेताओं को नकार दिया जिनका विज़न बिहार को गरीबी और बदहाली में ही रखना था. भाजपा के अमेरिका जैसा हाईवे बनाने, लखपति दीदी जैसे कार्यक्रम चलाने के वादे ने लोगों की उम्मीदों को नई उड़ान दी है. 2005 से 2025 के बीच, बिहार में नेशनल हाईवे की लंबाई 3,639 किमी से बढ़कर 6,147 किमी हो गई; स्टेट हाईवे 2,382 किमी से बढ़कर 3,638 किमी हो गए और मुख्य जिला सड़कें (MDR) 8,457 किमी से बढ़कर 16,296 किमी तक पहुंच गईं. अब लोग कार में यात्रा करने का सपना देख सकते हैं और सड़कें होने से गरीब भी आसानी से यात्रा कर सकते हैं.

बिहारी गर्व को संबोधित करना

जनवरी 2024 में बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया. उन्हें ‘जननायक’ कहा जाता था क्योंकि उन्होंने सामाजिक उत्थान के लिए लगातार काम किया. वे एक प्रगतिशील नेता थे जिन्होंने कम प्रतिनिधित्व वाले वर्गों को लाभ पहुंचाने के लिए कर्पूरी फार्मूला के तहत आनुपातिक आरक्षण लागू किया था.

बिहार की जनता ने इस सम्मान को एनडीए और उसके सहयोगियों के लिए वोट में बदल दिया.

समाजवादी नेताओं की जन्मभूमि

प्रधानमंत्री मोदी बिहार के समाजवादी नेताओं की विरासत को पहचानते हैं, जैसे जयप्रकाश नारायण, जिनका भारत के इतिहास और विकास में अमूल्य योगदान रहा है, लेकिन जिसे आज की युवा पीढ़ी भूलती जा रही है. उन्हें यह “अद्वितीय सम्मान” हासिल था कि वे देश के तीन बड़े जन आंदोलनों में सक्रिय रूप से शामिल रहे—‘भारत छोड़ो’ आंदोलन, ‘भूदान’ आंदोलन और स्वतंत्र भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन.

गैर-कांग्रेसी पार्टियों को एक मंच पर लाकर जनता पार्टी बनाने का श्रेय भी नारायण को ही जाता है. जनता पार्टी ही 1977 में बाद में भारतीय जनता पार्टी की पूर्ववर्ती पार्टी बनी. ऐसे प्रगतिशील और शिक्षित नेताओं को अक्सर कांग्रेस की अभिजात्य सोच ने अनदेखा और उपेक्षित किया है.

जंगलराज का अंत

‘जंगलराज’ शब्द का मतलब है—कानून-व्यवस्था और शासन का पूरी तरह ढह जाना, जैसा लालू प्रसाद–राबड़ी देवी के 1990 से 2005 के दौर में बिहार में हुआ था. यह शब्द पटना हाई कोर्ट ने 1997 में पटना की नागरिक हालत पर मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा था.

उस दौर की पहचान थी—अनियंत्रित अपराध, फिरौती राज, जातीय राजनीति, अफसरशाही में भाई-भतीजावाद, शासन का गिरना और अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण. बिहार की जनता ने इस जंगलराज की वापसी को वोट डालकर साफ तौर पर ‘पैवेलियन भेज दिया’ और अपराध-मुक्त, प्रगतिशील भविष्य के लिए वोट किया.

अब वक्त है कि मैदान ऐसे नेताओं के लिए खुला छोड़ा जाए—जैसे नीतीश कुमार और चिराग पासवान—जो राज्य को तरक्की और समृद्धि की ओर ले जाएंगे. महागठबंधन की हार का कारण यह भी हो सकता है कि तेजस्वी यादव का 50 से अधिक गाड़ियों वाला राजनीतिक काफिला, जिसमें हथियार लिए चरमपंथी नौजवान दिखते थे, लोगों को जंगलराज के दिनों की याद दिला रहा था. बिहार का युवा अब ऐसी राजनीतिक ताकत दिखाने में दिलचस्पी नहीं रखता.

भारत की सांस्कृतिक पहचान के रूप में छठी मैया

छठ पूजा कुछ हिंदू त्योहारों में से एक है जो बिना किसी मूर्ति पूजा के मनाया जाता है; यह सादगी का त्योहार है और प्रकृति की ताकत का सम्मान करता है—जहां सूर्य देव की पूजा की जाती है. इस प्राचीन त्योहार के महत्व और हिंदू धर्म में इसकी भूमिका को मान्यता देने में एक सांस्कृतिक परिवर्तन आया है. यह एक तरह का नवजागरण है जो हिंदुओं को फिर से प्रकृति से जोड़ता है.

विदेशों में बसे बिहारी भी इस त्योहार के पुनर्जीवन पर गर्व महसूस कर रहे हैं, खासकर कैरेबियाई देशों, मॉरीशस और फिजी में भारतीय मूल के लोगों में. छठी मैया अब समुदाय की भावना और समानता के प्रतीक के रूप में उभरी हैं, जो सांस्कृतिक जुड़ाव के जरिए बिहार की जड़ों का सम्मान करती हैं.

विकसित, सुरक्षित बिहार

कुमार और एनडीए गठबंधन के तहत बिहार में विकास बहुत तेज़ी से हो रहा है. कट्टा राज खत्म हो गया है. मोदी ने वादा किया है कि वह बिहार के मखाना को वैश्विक बाज़ारों तक पहुंचाएंगे. उनकी इंफ्रास्ट्रक्चर नीतियों के कारण गंगा पर कई जगहों पर नए मेगा पुल बने हैं. पटना मेट्रो और पटना–गया हाईवे एनडीए द्वारा शुरू किए गए बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट हैं. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गरीबों के लिए 60 लाख से ज्यादा घर बने हैं. ज़मीनी स्तर पर बदलाव साफ दिख रहा है और लोगों ने एक विकसित, सुरक्षित बिहार के लिए वोट किया है.

M यानी महिला

एनडीए ने बिहार में महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल बनाया है, क्योंकि कट्टा सरकार को हटाया गया. महिलाओं को केंद्र में रखकर चुनावी वादे किए गए और महिलाओं ने खुशी-खुशी और जोश के साथ ऐसे राज्य के लिए वोट किया जो यौन उत्पीड़न और लैंगिक हिंसा से मुक्त हो.

मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना का लक्ष्य महिलाओं को स्वरोजगार और आजीविका के अवसर देकर सशक्त बनाना है. राज्य के हर परिवार की एक महिला को डायरेक्ट ट्रांसफर के जरिए 10,000 रुपये दिए जाएंगे और आगे और आर्थिक मदद मिलने की संभावना भी है. स्थानीय निकायों और नौकरियों में महिलाओं के लिए आरक्षण और महिला-नेतृत्व वाले स्टार्टअप के लिए 10,000 रुपये की शुरुआती मदद—इन सब लाभों ने महिला वोटरों को एनडीए के पक्ष में किया.

मतदान केंद्रों पर महिलाओं ने पुरुषों को पीछे छोड़ दिया—71.6 प्रतिशत महिलाओं ने वोट किया, जो 62.8 प्रतिशत पुरुष वोटिंग से नौ प्रतिशत ज्यादा है.

SIR और EVM

जब भी कांग्रेस राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे के नेतृत्व में चुनाव हारती है, तभी फिर से कागज़ी बैलेट की ‘आत्मा’ को जगाया जाता है, जैसे कोई पवित्र भूत उठ खड़ा हुआ हो, लेकिन हम भूल जाते हैं कि बैलेट पेपर सिस्टम में बूथ कैप्चरिंग, चुनावी अराजकता, हिंसा और गुंडा राज आम बात थी.

“नतीजे वाकई चौंकाने वाले हैं, चुनाव निष्पक्ष नहीं थे”—यह गांधी परिवार के उत्तराधिकारी का बयान था, बजाय इसके कि कांग्रेस अपने प्रदर्शन पर आत्मचिंतन करे, क्योंकि उसने 61 सीटों पर चुनाव लड़ा और सिर्फ छह सीटें जीतीं.

यह साफ दिख रहा है कि बिहार के मतदाता वंशवादी राजनीति, अल्पसंख्यक राजनीति और बिल्कुल भी जाति राजनीति नहीं चाहते—ये तीनों कांग्रेस पार्टी द्वारा चलाए गए पुराने, पिछड़े और बांटने वाले तरीके हैं. SIR एक चुनावी व्यवस्था सुधार था, जिसे संविधान ने अनिवार्य किया है, और विपक्ष अब अपनी हार से ध्यान हटाने के लिए इसे एक नया बहाना बना रहा है.

युवाओं की आवाज़

बिहार के जेन ज़ी युवा बेरोज़गारी, गरीबी और अपने भविष्य को लेकर चिंतित रहे हैं, खासकर नेपाल और बांग्लादेश में हुई युवा आंदोलनों के बाद. गांधी लगातार जेन ज़ी को ‘प्रेरित’ करते रहे और उन्हें अपनी आरोपों को ‘गंभीरता’ से लेने के लिए कहते रहे.

लेकिन बिहार के युवाओं ने विरोध दर्ज करने का तरीका बदला—उन्होंने बदलाव और विकास के लिए वोट किया और जंगलराज को बाहर का रास्ता दिखाया. युवाओं ने बेहतर शिक्षा, विकास और रोजगार के अवसरों के लिए वोट किया. कुमार ने राज्य में 1 करोड़ नौकरियां बनाने का वादा किया है.

महिलाओं, युवाओं और किसानों के वोटों पर एनडीए का यह सुनामी सत्ता में आई है.

बिहार ने संविधान पर अपना भरोसा जताया है और अब वक्त है कि हम पुरानी, पिछड़ी जाति राजनीति से दूर जाएं. नफरत और खराब भाषा लोगों को पसंद नहीं आती.

इंडिया टुडे के आंकड़ों के अनुसार, 2024 तक लगभग 9 प्रतिशत आईएएस अधिकारी बिहार से आते हैं. इसलिए बिहारियों की समझदारी पर सवाल उठाना गलत है—वे बखूबी जानते हैं कि क्या सही है और क्या गलत. बिहार में कोई ‘वोट चोरी’ नहीं हुई; सिर्फ दिल की चोरी हुई है.

(मीनाक्षी लेखी भाजपा की नेत्री, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनका एक्स हैंडल @M_Lekhi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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