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Sunday, 13 October, 2024
होममत-विमतन्यूज़ चैनल और अखबारों में केजरीवाल के प्रति व्यवहार में बड़ा अंतर — लेकिन गाज़ा पर दिखाई एकता

न्यूज़ चैनल और अखबारों में केजरीवाल के प्रति व्यवहार में बड़ा अंतर — लेकिन गाज़ा पर दिखाई एकता

लगभग सभी न्यूज़ चैनलों ने अरविंद केजरीवाल को दोषी ठहराने और दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से उनके इस्तीफे की मांग की. वहीं अखबारों ने केवल न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा की टिप्पणियों पर खबरें छापी थीं.

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दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा अब समाप्त हो चुकी आबकारी नीति में कथित घोटाले के एक मामले में उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करने के बाद अरविंद केजरीवाल के लिए कोई सहानुभूति वोट नहीं है — कम से कम प्रमुख मीडिया आउटलेट्स में तो नहीं.

गाज़ा युद्ध शुरू होने के छह महीने बाद इज़रायल की सरकार के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रेस में और भी कम सहानुभूति है — वे संघर्ष को समाप्त करने या कम से कम युद्धविराम की मांग कर रहे हैं. ध्यान दीजिए : भारतीय मीडिया ने छह महीने तक चली हिंसा पर टिप्पणी करने से परहेज किया है जिसमें कम से कम 33,000 फिलिस्तीनी मारे गए हैं.

केजरीवाल पर बड़ा सवाल

केजरीवाल मामले में दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला टीवी न्यूज़ चैनलों और प्रमुख अंग्रेज़ी अखबारों में बहुत अलग था.

लगभग न्यूज़ चैनलों ने AAP पार्टी के प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में उनके इस्तीफे की मांग की — बुधवार के अखबारों ने न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा के आदेश में उनकी टिप्पणियों पर बिना किसी उत्साह या टिप्पणी के लंबी खबरें छापी थीं.

‘टाइम्स नाउ’ के अनुसार, टीवी पर फैसला “कठोर” था. ‘सीएनएन न्यूज़ 18’ पर एंकर ज़क्का जैकब ने कहा, “यह एक बड़ा झटका है…सीएम पर इससे अधिक गंभीर आरोप नहीं हो सकते”. फिर उन्होंने जल्दबाज़ी में कहा कि बेशक यह कोई सुनवाई नहीं है.

लेकिन, उन्होंने पूछा, “…क्या (केजरीवाल) को सच्चाई का सामना करना चाहिए…और इस्तीफा दे देना चाहिए?”

पद्मजा जोशी (टाइम्स नाउ) ने भी यही कहा: “क्या केजरीवाल इस्तीफा देंगे?” एक मनोरंजक बात यह है कि जब AAP के गेस्ट उन्हें देखकर मुस्कुराये तो वे थोड़ा नाराज़ हो गईं: मुख्यमंत्री जेल में हैं और “आप मुस्कुरा रहे हैं…क्या रहस्य है?”

‘एनडीटीवी 24×7’ के विष्णु सोम ने HC के फैसले को दिल्ली के सीएम और AAP के लिए “बड़ा झटका” बताया. उन्होंने पूछा, “क्या इससे केजरीवाल को पद छोड़ना ज़रूरी हो जाएगा?”

सभी चैनलों के पैनलिस्टों ने एक जैसी प्रतिक्रियाएं दीं : AAP नेताओं ने जोरदार ‘नहीं’ में अपना सिर हिलाया; भाजपा सदस्यों ने जोर देकर ‘हां’ में सिर हिलाया.

यह कहना पत्रकार नीरजा चौधरी जैसे टिप्पणीकारों पर छोड़ दिया गया था कि यह “कानूनी बनाम राजनीति” का मामला था. उन्होंने कहा कि उन्हें मध्यम वर्ग के बीच केजरीवाल के प्रति सहानुभूति मिली — यहां तक कि उन लोगों में भी जिन्होंने कभी AAP को वोट नहीं दिया — जबकि गरीबों के मन में हमेशा उनके लिए एक नरम स्थान था (एनडीटीवी 24×7).

‘द हिंदू’ को छोड़कर, बुधवार को दिल्ली के अधिकांश अखबारों में हाई कोर्ट का फैसला मुख्य खबर था, जिसमें पेज 1 के निचले हिस्से में ‘केजरीवाल को तिहाड़ जेल में ही रहना होगा…’ लिखा था. ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने केजरीवाल के फैसले पर 10 खबरों के साथ बड़ी खबर छापी थी. इनमें जज की टिप्पणियां, बिंदु दर बिंदु, AAP-भाजपा की प्रतिक्रियाएं. ED की “फास्ट ट्रैक ट्रायल” की योजनाएं शामिल थीं.

अखबारों ने न्यायमूर्ति शर्मा को शब्दशः उद्धृत किया — इस मामले में यह मददगार था — पाठक उनके फैसले को समझ सकते थे और उनके तर्क की सराहना कर सकते थे.


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गाज़ा में मलबा

7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले के बाद गाज़ा में युद्ध की तबाही शब्दों और तस्वीरों में आपके सामने है, जिसमें लगभग 1,200 लोग मारे गए और 130 से अधिक लोगों को बंधक बना लिया गया.

खबरों या ऑपिनियन्स में पहली भावना युद्ध और उसके भयानक परिणामों से थकावट की थी. एलोन पिंकस ने इज़रायली अखबार ‘हारेत्ज़’ में कहा “Israel Fatigue”. ‘रॉयटर्स’ और ‘एक्सियोस’ की तस्वीरें स्पष्ट रूप से गाज़ा में युद्ध के बारे में वो सब कुछ दिखाती हैं जो आपको जानना चाहिए.

फ्रांसीसी अखबार ‘Le Monde’ ने लिखा, “इज़रायल अपने क्षेत्र में अपने इतिहास का सबसे लंबा, सबसे घातक और सबसे विनाशकारी युद्ध लड़ रहा है…”.

‘Daniel Estrin of NPR (US)’ ने कहा, “इस संघर्ष में उसके इतिहास में किसी भी अन्य की तुलना में अधिक फिलिस्तीनी मारे गए हैं…गाज़ी निवासियों को टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया है या मलबे के नीचे दबा दिया गया…युद्ध से बचने का कोई रास्ता नहीं है…”

‘वाशिंगटन पोस्ट’ ने भी मलबे को दिखाया: “गाज़ा का अधिकांश भाग, तीन गुना आबादी वाले लास वेगास के आकार की ज़मीन का एक टुकड़ा, मलबे में तब्दील हो गया है…” कई लोग रफाह के दक्षिणी शहर के आसपास के क्षेत्र में भाग रहे हैं, जहां वे बहुत कम भोजन और यहां तक कि कम उम्मीद के साथ गंदे कैंपो में रह रहे हैं.”

इज़रायल के अंदर, हॉस्टेज स्क्वायर पर हृदय विदारक कैंप है — वहां से भी अनगिनत दृश्य हैं : ‘Nili Bresler, The Times of Israel’ ने लिखा, “इस लंबे युद्ध का दुःस्वप्न हमारी कल्पना से परे है. हम अभी भी 7 अक्टूबर के सदमे में फंसे हुए हैं और हत्या और मौतें जारी हैं. इतनी ज़िंदगियां तबाह हो गईं…”

नेतन्याहू के लिए मुसीबत!

इस मध्य-पूर्वी संघर्ष के अंतर्राष्ट्रीय कवरेज में दूसरा आकलन यह सामने आता है कि तेल अवीव में बेंजामिन नेतन्याहू सरकार अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफल रही है. सरकार की आलोचना करने वाले इज़रायली पत्रकार अमोस हरेल इज़रायली अखबार ‘हारेत्ज़’ में लिखते हैं, “इज़रायली सेना अपने प्राथमिक लक्ष्य को पूरा किए बिना दक्षिणी गाज़ा से सैनिकों को हटा लेती है.”

‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ का तर्क है कि इज़रायल द्वारा इस संघर्ष को इसलिए खींचा जा रहा है क्योंकि वह “अपनी ज़मीन पर कब्ज़ा करने या वैकल्पिक फिलिस्तीनी नेतृत्व को अपना नियंत्रण हस्तांतरित करने की अनिच्छा के कारण सत्ता शून्यता पैदा कर रहा है”. उस शून्यता के कारण नागरिक व्यवस्था चरमरा गई है, जिससे अत्यधिक आवश्यक सहायता को सुरक्षित रूप से वितरित करना कठिन हो गया है.”

भले ही ईरान और इज़रायल में टकराव जारी है, लेकिन जैसी उम्मीद की जा सकती है, ईरान का ‘तेहरान टाइम्स’, जिसे वह इज़राइल की विफलता के रूप में देखता है, लगभग विजयी है. इसने ‘इज़रायली इच्छाधारी सोच’ लेख का शीर्षक देते हुए लिखा, “गाज़ा युद्ध में छह महीने बीत चुके हैं, इज़रायल और भी अधिक डूब रहा है. भयावह दलदल है क्योंकि यह अपने कथित सैन्य लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफल रहा है.”

युद्धविराम के आह्वान और घरेलू स्तर पर व्यापक विरोध प्रदर्शन के साथ, ‘बीबीसी’ के मध्य पूर्व संपादक जेरेमी बोवेन ने लिखा, “छह महीने बाद, युद्ध को समाप्त करने और बंधकों को मुक्त करने में विफलता के खिलाफ विरोध करना अब देशभक्तिपूर्ण नहीं माना जाएगा. इज़रायल में विभाजन एक बार फिर खुला है.”

अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में उजागर किया गया तीसरा असाधारण कारक लगातार बमबारी से इज़रायल के सहयोगियों की बढ़ती हताशा है. बुधवार की सुबह की सुर्खियों में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का युद्धविराम का आह्वान शामिल था.

‘द गार्जियन’ ने कहा कि बाइडन की टिप्पणियां और युद्धविराम नेतन्याहू की उनकी “सबसे कड़ी आलोचना” में से एक थी और “उनकी पिछली टिप्पणियों से एक बदलाव का प्रतीक है.”

इसका अधिकांश कारण एक अप्रैल को इज़रायली सेना द्वारा वर्ल्ड सेंट्रल किचन एनजीओ पर बमबारी से हो सकता है, जिसमें सात सहायता कर्मी — ज्यादातर पश्चिमी देशों से — मारे गए थे. ‘द इकोनॉमिस्ट’ ने कहा कि ये देश इज़रायली सरकार से “क्रोधित” थे. “जब इज़रायल को हथियार बेचने की बात आती है तो मौतें निश्चित रूप से ऐसी सरकारों पर अधिक घरेलू दबाव पैदा करेंगी. क्या वे बदलाव की ओर ले जाते हैं, जिस तरह से 33,000 फिलिस्तीनियों की मौतें नहीं हुईं, यह कम स्पष्ट है.”

तो यहां सवाल यह है : छह महीने बाद, क्या गाज़ा युद्ध का पथ इज़रायल और हमास के बीच युद्धविराम या वार्ता की ओर बढ़ रहा है? ‘हारेत्ज़’ को ऐसी आशा है लेकिन संदेह है: “स्पष्ट रूप से ऐसा महसूस हो रहा है कि ये दुर्भाग्यपूर्ण दिन हैं जब इज़रायल एक नाटकीय चौराहे पर खड़ा है. क्या यह एक विनाशकारी बहुपक्षीय युद्ध की ओर बढ़ रहा है, या मोक्ष की ओर…”

(लेखिका का एक्स हैंडल @shailajabajpai है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(टेलीस्कोप को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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