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Thursday, 19 December, 2024
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कंडोम एड : बैन नहीं, बढ़ावा देने की है ज़रूरत

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‘कामसूत्र’ कंडोम का पहला विवादास्पद विज्ञापन बनाने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले शख्स का कहना है कि कंडोम के विज्ञापनों को बच्चों के लिए अनुपयुक्त बताकर उन्हें टीवी चैनलो पर प्रतिदिन रात 10 बजे तक के लिए प्रतिबंधित करने का जो फैसला सरकार ने किया है उसका उलटा ही असर होगा.

वैसे, सब कुछ कंडोम के विज्ञापनों पर निर्भर करता है. क्या वे बच्चों को जानबूझकर आकर्षित करने की कोशिश करते है? और अगर आप 15 साल के बच्चों की बात कर रहे हैं, तो आप गलत सदी में जी रहे हैं. खासकर शहरों के भारतीय युवा बहुत जानकार हो गए हैं, भला हो इंटरनेट तथा सूचनाओं तक बढ़ती पहुंच का. अगर सरकार को लगता है कि इन विज्ञापनों को देखकर 15 साल से कम उम्र के बच्चे कंडोम का इस्तेमाल करने की सोचने लगेंगे, तो मेरा कहना है कि सुरक्षित सेक्स को बढ़ावा देने के लिए यह अच्छा आइडिया है. उन्हें एड्स सहित अन्य यौनरोगों से बचाना महत्वपूर्ण है. इसलिए ऐसे विज्ञापनों पर रोक लगाने से मकसद नहीं पूरा होगा. इससे उलटे यह होगा कि जिसे प्रतिबंधित किया गया है उसके लिए उन युवाओं में दिलचस्पी बढ़ेगी जिन्हें हम बच्चे मानते हैं. बच्चे प्रतिबंधित चीजों की और ज्यादा भागते हैं.

संचार-प्रसार के क्षेत्रों में पचास से ज्यादा वर्षों से काम करते हुए मैंने यही पाया है कि जब भी आप किसी चीज पर रोक लगाते हैं, युवा लोग उसके पीछे दौड़ने लगते हैं. इसमें उन्हें मजा आता है और इस तरह वे उस काम में लग जाते हैं, जो उनका नहीं है. इसलिए इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाकर सरकार गलती ही करेगी. अगर वह यह मानती है कि कंडोम के विज्ञापन लोगों क सेक्स को लेकर प्रयोग करने के लिए प्रेरित करते हैं, तो वह गलत सोच रही है.

इसकी जगह उसे स्कूलों में सेक्स संबंधी शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए. सेक्स के बारे में जानकारी के लिए कॉलेज तक इंतजार करने से काफी देर हो जाती है. आबादी में तेज बढ़ोतरी यही बताती है कि युवा हो या उम्रदराज, सभी सेक्स कर रहे हैं. यौनाचार के कारण होने वाले रोगों में खतरनाक गति से वृद्धि हो रही है. सेक्स के प्रति हमारा रुख काफी पुरातनपंथी है. जब भी रूपक अलंकार का प्रयोग किया जाता है, उसका छिद्रान्वेषण होने लगता है. यह बहुत पुराना नजरिया है, जिससे मुक्ति पाना होगा.

भारत में एक वर्ग- जिसमें 50 की उम्र से ऊपर के लोग भी शामिल हैं- ऐसा है जिसका रुख नहीं बदला है, जो कहता है कि आप जो चाहे कर सकते हैं, बशर्ते यह गुप्त रहे. उनका मानना है कि जैसे ही यह मुख्यधारा के मीडिया में पहुंचता है, एक तरह की शर्म और अनावश्यक दुराव-छिपाव का भाव हावी हो जाता है. ऐसे लोग युवा पीढ़ी को, उनके मुताबिक, ‘शैतानी कंडोम’ से बचाने में जुट जाते हैं.

मैं कामसूत्र कंडोम का विज्ञापन बनाने में शामिल था. मेरी विज्ञापन एजेंसी ने उस अभियान को चलाया था. उस समय इसके कारण कुछ विवाद भड़का था और सार्वजनिक तौर पर काफी असंतोष उभरा था. जब मुझे भारतीय विज्ञापन मानक परिषद के सामने तलब किया गया, हम लोगों से उस विज्ञापन के नारे, ‘फॉर द प्लेजर ऑफ मेकिंग लव’ (‘सेक्स में आनंद के लिए!’) को लेकर सवाल पूछे गए. हमने जाहिर-से सवाल उठाए- ‘कंडोम का भला और क्या उपयोग है?’, ‘क्या यह होली में रंग का बैलून बनाकर लोगों पर फेंकने के लिए बना है?’ हमारे सवालों पर असहनीय चुप्पी छा गई थी. फिर किसी ने हमसे सवाल नहीं किए. आज भी वह विज्ञापन चल रहा है.

कंडोम यौनाचार से होने वाले रोगों और अवांछित गर्भ से बचने का सबसे सस्ता और सुविधाजनक साधन है. इन मसलों की आप उपेक्षा नहीं कर सकते हैं. बच्चों को असुरक्षित सेक्स के खतरों से सावधान करना बेहद जरूरी है. मैं कई मंत्रालयों को वर्षों से सलाह देता रहा हूं कि कंडोम के विज्ञापनों पर रोक लगाने की जगह उनमें एक लाइन यह जोड़नी चाहिए कि कंडोम यौन रोगों से आपको बचाता है.

अगर हम उन्हें दुनियाभर में हो रहे अत्याचारों से आगाह कर रहे हैं, तो सेक्स को हौवा क्यों बनाएं? इस तथ्य की अनदेखी करने से बात नहीं बनेगी कि युवा तो सेक्स करेंगे ही. इसलिए बेहतर यही होगा कि उन्हें जानकारियां दें, ताकि वे इसके नतीजों से निबटने में सक्षम हो सकें. चीजों तक बढ़ती पहुंच के मद्देनजर हमें ‘बचपन’ की उम्रसीमा को भी संशोधित करने की जरूरत है. 15-18 आयुवर्ग के बच्चों को तो युवा वयस्क ही मानना चाहिए और उनके साथ ज्यादा समझदारी से पेश आना चाहिए. महत्वपूर्ण जानकारियों पर प्रतिबंध निंदनीय है. युवा वयस्कों को ऐसी जानकारियां पाने का हक है.

विज्ञापनगुरु अलिक पदमसी मुंबई में रहते हैं

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